कुछ यादें सचमुच कितनी बेहया होती हैं कि जितनी बार भी उनसे पीछा छुडाओ वे बार बार गले आ पड़ती हैं.अब भला ये कोई बात हुयी बनारस की अल्लसुबह रामनाम जपने के बजाय बेहूदी बेशर्म यादें सर चढ़ के बोलने लगीं ...अभी अभी फेसबुक पर अपनी यह व्यथा दर्ज कर उनसे पीछा छुड़ाना चाहा मगर वे हैं कि जाने का नाम नहीं ले रहीं तो सोचा उन्हें ब्लॉग कर दूं तो शायद ब्लाक हो जाएँ ....फेसबुक पर लिखा -
बहुत दिनों से नहीं आयी है तुम्हारी याद
हम तुम्हे भूल गएँ हो ऐसा भी नहीं .....
मगर कोई भुलाए न भूले,बुलाये न बने तब?
तब तो ...
याद में तेरी जहां को भूलता जाता हूँ मैं
भूलने वाले कभी तुझको भी याद आता हूँ मैं ?
या फिर बकौल बशीर बद्र ...
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
जिसने तुझे भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो ...
उफ़ ये सुबह रामनाम के बजाय किस बेवफा की याद हो आयी :(
मगर ये वाली याद सचमुच बड़ी बेशर्म टाईप वाली है ....मुझे चिढ इस बात की है कि ये सुबह सुबह ही क्यों कोबरा के फन की तरह उठ आती है? ..और वह भी सुबहे बनारस में ...तोबा.. तोबा...सुना है ऐसी यादें अक्सर शाम को आती हैं और जिन्दगी तक के खात्में का अंदेशा दे जाती है ...अजब मरहलों से गुज़र रहे हैं दीदाओ दिल ...सहर की आस तो है ज़िंदगी की आस नहीं ...
दिलासा देने वाली बात बस इतनी है कि कोई एक अकेला मैं ही नहीं कितने ही बेहतरीन शख्सियतें ,शायर या सहरियार इन यादों में मुब्तिला होते रहे हैं और उनसे पीछा छुड़ाने के जुगाड़ में ताज़िंदगी लगे रहे हैं ..और कुछ बेमिसाल कह गए, लिख गए....मगर अपनी तो इतनी कूवत भी नहीं ...कि उन यादों का कुछ ऐसा इस्तेमाल कर पाऊँ...उनसे तो बस पीछा छूट जाए अब ....किसी के पास कोई मेमरी इरेज़र जैसी कोई जुगत है भाई तो बताओ न ....अब मुश्किलें हद के पार हो रही हैं .....यह तो कुछ ऐसा लफडा हो गया लगता है कि रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा.......और ये भी ......गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें,ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किस का था......
कुछ दोस्त मेरी इस हालत से इत्तेफाक करेगें और कोई रास्ता बतायेगें जिससे मेरी और बनारसी सुबहें बर्बाद न होने पायें....