शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

पैतृक आवास पर मनाई दीवाली ..शुरू हुई बाल रामलीला!

 पैतृक  आवास मेघदूत जो वाराणसी लखनऊ मार्ग एन एच 56 (जौनपुर) पर है.

कल जौनपुर स्थित अपने पैतृक  आवास से दीवाली मना कर लौटा -मगर यहाँ तो बिजली गायब ,फोन का डायल टोन गायब ,ब्राडबैंड कनेक्शन नदारद ..लगा कहीं सुदूर अतीत में आ पहुंचे हों ...बिना अंतर्जाल के जुड़ाव से यह दुनियाँ सहसा कितना बदरंग हो जाती है इसका अनुमान आपको होगा ही ...जैसे तैसे रात कटी ..आज का पहला काम बी एस एन यल आफिस में शिकायत और फिर कहीं से आप सब से जुड़ने की जुगाड़ .... .अब  इसमें सफल हुआ हूँ...
 बाल रामलीला टीम
..सोचा था विस्तार से ग्राम्य दीवाली की चर्चा करूँगा मगर अब यह संभव नहीं दीखता ...हाँ कुछ चित्रों और उनके विवरणों को जरुर साझा करना चाहता हूँ -हमारा कोई भी त्यौहार सच पूछिए तो बच्चों का ही होता है ..उनका उत्साह देखते बनता है ....घर पहुँचते ही बिटिया प्रियेषा और बेटे कौस्तुभ तथा अनुज मनोज के बेटे आयुष्मान और बिटिया स्वस्तिका ने गाँव भर के बच्चों की दिवाली की टीमें तैयार की -कोई कंदीले बनाने में जुटा तो कोई दीयों और मोमबत्तियों को संभालने में तो कोई आतिशबाजी संजोने में .....
 सीता(आस्था ) श्रृंगार में जुटी प्रियेषा

 लेत उठावत खैंचत गाढे काहूँ न लखा रहे सब ठाढ़े ...धनुषभंग बाल राम (आयुष्मान ) द्वारा
मैंने एक नयी शुरुआत कराई .बाल रामलीला की ....और बाललीला टीम का आडिशन,पात्र चयन ,संवाद अदायगी आदि का काम दीवाली के दिन ही रिकार्ड ४  घंटे में पूरा किया गया ..मेरी मदद में आयीं गाँव की ही होनहार छात्रा कीर्ति मिश्र ..उन्होंने निर्देशन का काम संभाला ..शाम को बाल रामलीला की एक नयी परम्परा ही शुरू हो गयी ...दृश्य था सीता स्वयम्बर का ..बच्चों ने ऐसी अभिनय प्रतिभा दिखाई कि लोग बाग़ बाग़ हो उठे और वाह वाह कर उठे ....बच्चों में अपनी संस्कृति और संस्कारों के प्रति प्रेम -झुकाव  आज के इस विघटन के युग में बनाए  रखना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है ....पश्चिम की आंधी में हमारा बहुत कुछ बेहद अपना भी दूर होता जा रहा है ....अंगरेजी में कहा ही जाता है "कैच देम यंग " मतलब जिन संस्कारों की नीवें गहरी करनी हो उसके लिए बच्चों से ही शुरुआत होनी चाहिए ..अभी तो यह हमारी यह विनम्र शुरुआत ही है आगे इसके विस्तृत स्वरुप की संभावनाएं हैं .....

 मनोज ने विधिवत संपन्न कराई लक्ष्मी पूजा
आतिशबाजी हमारी एक सुन्दर सी प्राचीन कला है जिसमें विज्ञान के साथ  ही कलात्मकता का अद्भुत मिश्रण है..हम तो आतिशबाजी के बड़े वाले पंखे(फैन) हैं  ..सो एक आतिशबाज को ही पिछले साल से पड़ोस में बसा लिया गया है और उसे इस अवसर पर आर्डर देकर आतिशबाजी का प्रदर्शन करने को बुलाते हैं ..हम आतिशबाजी पर लिखने  लगेगें तो यह पोस्ट कम पड़ जायेगी....बस इतना ही कि बड़े आईटमों से बच्चों को दूर रखते हैं और तेज आवाज के पटाखे हम नहीं छुडाते ....बाकी तो स्वर्गबान ,चरखी ,राकेट ,अनार आदि का तो प्रदर्शन होता ही है -हमने इस बार भी आतिशबाजी का खूब आनन्द लिया ..बच्चों ने खूब तालियाँ ठोंकी और गला फाड़ कर चिल्लाए ...बड़ा  आनंद आया ....
 दीवाली पर दुल्हन की तरह सजा हमारा पैतृक आवास मेघदूत

दीवाली का एक मुख्य कार्यक्रम है देवी लक्ष्मी की पूजा से जुड़ा  अनुष्ठान जिसकी जिम्मेदारी मनोज ने निभाई ....और उन्होंने सभी को प्रसाद का वितरण किया ..हम लोगों के यहाँ एक मान्यता यह भी है कि हर हुनर और क्षेत्र के लोगों को दीवाली के दिन अपना काम भले ही अंशतः लेकिन करना  जरुर  पड़ता है ..जिससे साल भर उसमें कोई विघ्न बाधा न उत्पन्न हो ..बच्चों को किताब खोलना ही पड़ता है .अकादमियां का आदमी कुछ जरुर पढ़ लिख लेता है ... हम सभी ने  कुछ न कुछ बतौर शुभ करने को  अपना अपना इंगित काम किया ....इसी मान्यता के अंतर्गत रात में चोर लोग कही हाथ भी साफ़ करते हैं -इसलिए दीवाली की रात इधर चोरियां भी बहुत होती हैं .....हमने तो कुछ सामान जानबूझ कर मैदान में छोड़ भी दिया था मगर दुःख यह हुआ कि किसी ने उन्हें छुआ तक नहीं ..जाहिर है लोग दीवाली जगाने में भी अब लापरवाही बरत रहे हैं :) 
 आतिशबाजी आसमानी

घर को सजाने में भी बाल टीम जुटी रही ...और बाल रामलीला के कलाकारों के  मेकअप को बेहद कम समय  के बावजूद प्रियेषा ने निपटाया......मेरे शंखनाद से बाल रामलीला शुरू हुई..मैंने मुख्य दृश्यों के समय रामचरित मानस के सुसंगत अंशों का सस्वर पाठ भी किया ...काफी ग्राम्य जन जुट आये थे इस नए अचरज को देखने सुनने ...अगले वर्ष से इस कार्यक्रम को व्यवस्थित रूप देना है ....प्रियेषा को दिल्ली जल्दी लौटना था इसलिए हम दीवाली के दूसरे दिन जिसे यहाँ जरता परता कहा जाता है और जिसमें कहीं आना जाना निषेध भी है ..यहाँ लौट आये हैं ....और झेल भी रहे हैं ..


और यह रही इस बार की रंगोली जो प्रियेषा और स्वस्तिका ने मिल बैठ  बनाई 


43 टिप्‍पणियां:

  1. पोस्ट और चित्र देख भरोसा होता है कि भारत में सांस्कृतिक जड़ें गहरी हैं। कम से कम एक दो पीढ़ी तो सांस्कृतिक सम्पन्नता में धका ले जायेंगे हम लोग!

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  2. वाह! दीप पर्व पर खूब रोशनी फैलाई आपने। वहां भी, यहां ब्लॉग जगत में भी।

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  3. hooon......je poori tayari se mani
    divali.....

    khoob maje liye gaye.....aur ab pathkon ko diye ja rahe hain.......

    sundar chitran.....


    pranam.

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  4. हमारी अमूल्य संस्कृति के लुट-पीट जाने की सस्वर रुदन के इतर आपलोगों ने जो पहल की है वो प्रेरक है , अनुकरणीय है . सच ही है हर अच्छे काम की शुरुआत पहले अपने घर से किया जाना चाहिए . कालांतर में उसका विस्तार स्वयं होने लगता है. आप सबों को हार्दिक बधाइयाँ..

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  5. हम दीवाली के दूसरे दिन जिसे यहाँ जरता परता कहा जाता है और जिसमें कहीं आना जाना निषेध भी है ..यहाँ लौट आये हैं ....और झेल भी रहे हैं ..
    आप इस कदर अंधविश्‍वासी हो जाएंगे .. तो बाकी लोग क्‍या करेंगे ??

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  6. परम्पराओं में संस्कृति जीवित रहेगी, बड़े ही सुन्दर चित्र।

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  7. बाल रामलीला की शुरुआत अच्छा सन्देश है ..
    मिल कर त्यौहार मनाने का अपना अलग ही आनन्द है ..

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  8. कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...यही संस्कृति और परम्पराएँ शायद.
    सुन्दर चित्र.

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  9. इमानदारी से कहूं? - ईर्ष्या हो रही है आपकी दिवाली देखकर और अपनी सुनी सी दिवाली को सोचकर:)

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  10. .
    .
    .
    देव,

    आप विज्ञान प्रचार-प्रसार के कार्य में लगे हैं इसलिये आदरणीया संगीता पुरी जी के सवाल का जवाब देना तो बनता है... :)

    प्रियेषा और स्वस्तिका की बनाई रंगोली शानदार है दोनों बच्चों तक यह बात अवश्य पहुंचाइयेगा...

    एक जिज्ञासा भी है, क्या आपके परिवार में वर्तमान में कोई ग्राम प्रधान है या पूर्व में प्रधानी रही है ?



    ...

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  11. @संगीता जी ,
    खीझ और तंज को सामान्य वक्तव्य न माना जाय
    @प्रवीण जी ,जी हाँ मेरे स्वर्गवासी पिता जी और माता जी भी पूर्व ग्राम प्रधान रहे हैं ..
    मगर इनके निहितार्थों से अलग भी बहुत कुछ है जो काफी पुराना है ..मेरे पितामह और प्रपितामह अपने क्षेत्र के बड़े मशहूर रईस रहे ....तब प्रधानी मेरे घर नहीं थी ......

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  12. परी लोक जैसी दिवाली! अच्छी प्रस्तुति!!

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  13. वाह वाह पंडित जी । गाँव में दीवाली मनाना ग़ज़ब ढा गया ।
    पैतृक घर में मनाकर आपने फिर से एक जिंदगी जी ली । बधाई ।

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  14. त्योहार का पूर्ण आनंद आपने लिया , हम लोग परिवार से दूर बस खानापूर्ति कर लेते हैं । आने वाली पीढ़ियां इसे ठीक से समझ सकें ,यह काम आपने बखूबी किया ।

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  15. संस्कृति के रंगों से संसिक्त मार्ग दर्शक पोस्ट है अरविन्द भाई मिश्र की ,छोटी बना है पंडत .राम लीला की शुरुआत दिवाली के और भी रंग भरेगी .आत्म रति भी एक रति है भाई साहब .अपने पास इफरात से है इसी का व्युत्पाद है विषयरति ,अलबत्ता दृश्य रतिक हम नहीं हैं . यकीन मानिए .

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  16. संस्कृति के रंगों से संसिक्त मार्ग दर्शक पोस्ट है अरविन्द भाई मिश्र की ,छोटी बना है पंडत .राम लीला की शुरुआत दिवाली केरंगों में और भी रंग भरेगी .आत्म रति भी एक रति है भाई साहब .अपने पास इफरात से है इसी का व्युत्पाद है विषयरति ,अलबत्ता दृश्य रतिक हम नहीं हैं . यकीन मानिए .

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  17. बहुत सुन्दर ढंग से वर्णन किया है। बहुत शानदार। इस तरह के आयोजनों को देखने के लिये हम तो तरस जाते हैं। आजकल सब टीवी पर लापतागंज में बढ़िया रामलीला चल रही है, उसीका आनंद ले लेते हैं यहां रहकर।

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  18. रंगोली लाजवाब है।
    साज-सजावट भी भाया।
    चित्र में पूजा के वाक्त आपकी दृष्टि मिठाइयों की तरफ़ ...
    दीपावली और रामलीला का यह संजोग भी अच्छा लगा।
    शुभकामनाएं।

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  19. आश्चर्य है कि आपका परिवार , हमारी परम्पराओं एवं संस्कृति को बरकरार बनाये हुए है ! आप लोगों का यह रूप वन्दनीय है ! डॉ मनोज को इस रूप में देख बहुत अच्छा लगा ....
    प्रियेशा स्वस्तिका की मेहनत सफल एवं प्रभावी रही है !

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  20. दिवाली पर काफी सराहनीय प्रयास आरंभ किया है आप लोगों ने.
    कौस्तुभ के माध्यम से रंगोली की झलक तो देख ही ली थी बनाने वालों के नाम आपने बता दिए. उन्हें मेरी ओर से भी बधाई.
    एक 'मेघदूत' में ही आपसे पहली मुलाकात हुई थी अब कभी इस 'मेघदूत' पर भी शायद आपसे मिल सकूँ.

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  21. काश, इसका आनन्द हम भी ले पाते :-(

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  22. नई शुरुआत और परम्‍परा का अच्‍छा मेल.

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  23. @उन्मुक्त जी अगले वर्ष आईये न बाल कलाकारों को आशीर्वाद देने

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  24. हमें तो राम लीला देखे हुए सालों हो गये और इस बार पहली बार दीवाली भी दक्षिण की मनाई जहाँ उतनी रौनक तो कतई नहीं थी, जितनी हमारे यहाँ होती है।

    चित्र देखकर आनंद आया, बस ऐसे ही मिलजुलकर त्यौहार मनाते रहें, संस्कृति जीवित रहेगी ।

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  25. बच्चों में अपनी संस्कृति और संस्कारों के प्रति प्रेम -झुकाव आज के इस विघटन के युग में बनाए रखना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है

    ... satya vachan :)

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  26. Kudos to u for the efforts u took n u will take next year...

    looks like u had a great time there... your readers too enjoyed with this post !!!

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  27. बाल रामलीला शुरू कराने की पहल अति उत्तम.
    बच्चों द्वारा की गयी सज्जा अद्भुत!
    ........
    रंगोली के लिए प्रियेषा और स्वस्तिका को विशेष बधाई.
    रंग सयोंजन एवं डिजाईन बेहद खूबसूरत.
    ......
    घर बने मिष्ठान की खबर बिना अधूरी लगी ग्राम्य दीवाली की चर्चा..

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  28. बहुत सुंदर फोटो हैं... त्योंहार सच में हमें जोड़ देते हैं..... घर ले जाते हैं....

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  29. सचित्र पोस्ट बहुत ही उम्दा लगी |बच्चों की प्रतिभा का भी दर्शन हुआ |

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  30. सचित्र पोस्ट बहुत ही उम्दा लगी |बच्चों की प्रतिभा का भी दर्शन हुआ |

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  31. रंगोली तो कमाल की है। शुभकामनायें।

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  32. बहुत सुन्दर अल्पना बनाया गया है
    आपका बहुत आभार
    मेरी तरफ से आपको दीपावली तथा भैयादूज पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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  33. पोस्ट और तस्वीरें देखकर आनन्द आ गया...भारत में मनाई दीवाली की याद हो आई.

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  34. जय हो!
    इस पोस्ट के लिये आपका बहुत आभार! सचमुच ही उत्सव के उल्लास को बच्चों के बीच बाँटने और बढाने की आज बड़ी आवश्यकता है। इस पहल के लिये प्रणाम! चित्र और विवरण देखकर आनन्द आया और ऐसा लगा जैसे देश-काल भूलकर अपने बचपन में पहुँच गया होऊँ जब हम बच्चे मिलकर रामलीला और छोटे नाटकों का मंचन करते थे। अभिषेक ओझा की टिप्पणी भी अच्छी लगी।

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  35. बहुत बहुत सुन्दर पोस्ट और चित्र , आनंद आ गया सच में , जितनी तारीफ़ की जाए कम है

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  36. सुन्दर तस्वीरें..रोचक विवरण

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  37. इतने रंगारंग घर में अंतरजाल की बदरंगी भी खली! आश्चर्य है!!!!!!!!

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  38. uki har rat diwali hoti hai hamne ek dip jalaya to bur man gaye
    hale dil ga ke sunaya to bura man gaye

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  39. यदि यह पैतृक सम्पत्ति जौनपुर के किसी गांव में हो,तो निश्चय कीजिए कि दीवाली वहीं मनाई जाए। कम से कम हमारी पीढ़ी को तो यह संतुलन बनाए रखना ही होगा।

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  40. हम पिछली दीवाली पर नहीं आ पाए थे । इस दीवाली पर हाज़िर हैं । पैतृक आवास देख कर दिल खुश हो गया । वही पारम्परिक नक्शा । सामान्य दिनों के माहौल की मैं कल्पना कर रहा था और बाकी उत्सवी माहौल का वर्णन आपने कर ही दिया । वाह...

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