मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

जी हाँ यह कविता आपको पूरी करनी है....

जी हाँ यह  कविता आपको पूरी करनी है क्योकि ऐसा लगता है कहीं कुछ छूटा सा है....कुछ और कहा जाना बाकी है ..मेरे कई मित्र हैं ब्लॉग जगत में जिनकी काव्यात्मक प्रतिभा पर मुझे नाज है. कविता तो बस एक भाव है जो शब्दों का सहारा ले अभिव्यक्त हो उठती है मगर यह अभिव्यक्ति , शब्दों के  चयन की प्रतिभा के साथ एक सतत अभ्यास की भी  अपेक्षा रखती है ....ऐसे ही कोई  भाव उठा और चंद पंक्तियाँ सहज ही अभिव्यक्त हो गयीं मगर हो सकता है कोई कुशल शब्द जेता कवि मन इसमें कुछ और जोड़ दे ....मेरे मित्र जयकृष्ण तुषार जी दूसरे अनुशासनों,क्षेत्रों के लोगों का कविता के मैदान में आ धमकना किसी हिमाकत से कम नहीं मानते ..मगर मेरी इल्तिजा है - कविता क्या अनिवार्यतः किसी कवि का ही आश्रय ढूंढती है वह स्वयं-उद्भूता नहीं हो सकती? ..हमारे जैसे कथित शुष्क विज्ञानसेवी को अपना माध्यम नहीं बना  सकती? मुझे तो सदैव यह लगता रहा है कि कवि नहीं कविता का होना ज्यादा सहज है..नासतो विद्यते भावो ... ...अभिव्यक्ति का माध्यम कोई भी बन सकता है ....मुझ जैसा  कवि कला विहीन भी ....विज्ञान का सेवी भी ...बहरहाल आप कविता पढ़ें और इसे पूरी करें ....कोई व्याख्या या स्पष्टीकरण चाहते हों तो खुलकर कहें .....

देह  से नहीं मुझे मेरी चेतना से जानो 
वय से नहीं मुझे मेरी भावना से पहचानो
 नहीं मेरा है  कोई  काल बाधित वजूद 
इक शाश्वत कामना है केवल यही मानो 

 चिर पुरातन होकर  भी हूँ चिर नवीन 
रहा हूँ बना इक अभिलाषा  युग युगीन 
बस साथ रहने को ही तेरे हर पल छिन 
अवतरित अपनाता हर मरुथल जमीन 

हर युग  में रहूँ  साथ उसके यही  कामना 
वह जो खुद भी है एक शाश्वत सी चाहना 
चिर संयोग में  फिर हो कोई क्यूं  बाधा 
युग युगों में रहूँ मैं कृष्ण और तू मेरी राधा 

अब यह आपके भरोसे कुछ और जोड़ना चाहें या फिर कोई संशोधन ..सस्नेह सादर ....
आ गया है राधा का संशोधन:
 मुझसे नहीं मेरी चेतना से मुझे जानो
समय से नहीं भावना से मुझे पहचानो
मेरा नहीं है ये काल बाधित अस्तित्व
जो भी हूँ मैं  बस हूँ  तुम्हारा ही तत्व
इक शाश्वत कामना है बस यही मानो
मुझसे नहीं मेरी चेतना से मुझे जानो
चिर पुरातन होकर भी हूँ चिर नवीन
बनकर  अभिलाषा इक  युग-युगीन
औ संग तेरे हो मेरा हर इक पल छिन
अवतरित हुआ कई-कई जन्म अगिन
युगों-युगों का साथ हो है यही कामना
निश्छल,नैसर्गिक सा शाश्वत चाहना
संयोग में न उत्पन हो कोई भी बाधा
तू ही कृष्ण हो और मैं हो जाऊं  राधा .
यह अनुष्ठान अब परिपूर्ण हुआ ....



52 टिप्‍पणियां:

  1. कविता अंतर के भाव
    बाहर लाती है,
    वह किसी कवि को नहीं पहचानती,
    संवेदना हैं तो उनको जगाती है !


    तुम तो कृष्ण बन गए हो प्रिय ,
    राधा कौन बनेगा ?
    क्योंकि,
    कृष्ण रास भी रचेगा !

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  2. @अली भाई,
    इस कविता में आपको भयंकर रस की अनुभूति हुयी ...अहो भाग्य मेरे ...
    अब यह टिप्पणी ट्रेंड सेटर न बन जाय अब तो यही गुजारिश है मित्रों से ..
    यह सच्चे मन से सहयोग को निवेदित है ...

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  3. @संतोष जी,
    क्या बिना राधा के वजूद में आये ऐसी कविता लिखी जा सकती है ? :)
    वह तो आस पास ही है सदा ही सदैव ही -एक शाश्वत चाहना !:)

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  4. खालिस प्रेम में भयंकर वाद ढूंढ रहे हैं अली सा..!

    जाके ह्रदय भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
    या..
    नहीं दोष देखन वाले का,छवि कलि काल हुई है ऐसी।

    ..पता नहीं दोनो में क्या सही है!

    चिर पुरातन हूँ फिर भी हूँ चिर नवीन

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  5. देनेश गुप्ता "रविकर" को बुलाइये
    सेवा करिये, कुछ खिलाइये पिलाइये
    कविता की मरम्मत कर देंगे बस अभी
    वे हैं ब्लॉग जगत के प्रसिद्ध आशुकवि

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  6. "अचेतन में भी मेरी ऊर्जा से पहचानो" यह प्रारंभिक दूरी पंक्ति मेरी तरफ से.

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  7. ना भाव हूँ ना विचार
    ना कण ना क्षण
    मै हूँ वो चिरन्तन सत्य
    जो तुझमे हूँ आवेष्ठित
    मै ही गोपी मै ही राधा
    मै ही कृष्ण और मै ही परम सत्य
    ना तुझसे जुदा हूँ और ना ही अलग
    अस्तित्व वक्त की गर्द मे दबा
    मोह माया के आडम्बर मे लिपटा
    तुझमे समाया तेरा "मै"
    तेरी आत्म चेतना
    तेरे "मै" को जानती
    सूक्ष्म रूप मे तुझमे रहती
    फिर कोई कैसे जानेगा
    जब तू ही ना मुझे जान पाया
    स्वंय को ना पहचान पाया
    क्यों दुनिया से करें उम्मीद
    ्करो प्रयास खुद ही
    स्वंय को जानने की
    आत्मतत्व को पहचानने की
    जिस दिन निजत्व को जानेगा
    अन्तरपट खुल जायेगा
    हर रूप तुझमे समा जायेगा
    गोपी कृष्ण राधा तू ही बन जायेगा

    अरविंद जी ये भाव उतरे है आपकी रचना को पढकर बताइयेगा कुछ तालमेल बना या नही।

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  8. मेरी याचना कुछ ऐसे होगी .....

    राधे ! मेरे व्यक्तित्व की,
    पहचान, केवल चेतना है !
    उम्र से पहचान क्या ?
    पहचान केवल भावना है !

    मात्र मानव न समझना
    एक शाश्वत कामना है !
    हर जनम तेरा साथ हो,
    बस इक यही आराधना है !

    जब भी जमीं पर जन्म लें !
    बस साथ की ही कामना है
    हर युग में तू, प्रेयसि रहे !
    अरविन्द की अभियाचना है !

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  9. मात्र सतीश सक्सेना जी से सहमती ही जता सकता हूँ.

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  10. बहुत बढ़िया ...दिल से जो भाव उतरे वही कविता है ........न जाने
    कहाँ हुआ गुम
    तेरा मेरा "मैं और तुम ."...........वाले भाव से मुझे आपकी लिखी पंक्तियाँ सम्पूर्ण लगती है ...जिस में एक एहसास है और
    अहसास
    कुछ नही, एक पगडंडी है
    तुमसे मुझे तक आती हुई,
    मैं और तुम,
    तुम और मैं
    जिसके आगे शून्य है सब...................

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  11. सर बहुत -बहुत आभार आपका स्नेह मुझ पर है |लेकिन स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि कविता भाव ,शिल्प और संवेदना की मोहताज होती है |मैं स्वयं वकालत जैसे पेशे से हूँ |आज हिंदी विभागों से अधिक कवि ,लेखक सरकारी विभागों में या अन्य विभागों में हैं बल्कि यों कहें तो साहित्य उन्हीं से जीवित है |कालेजों विश्व विद्यालयों में बस मठाधीशी चल रही है |सर कविता संसार में आपका हार्दिक स्वागत है |अभी आपकी मुलाकात मोनल से हुई थी तो कविता फूटेगी ही बाल्मीकि जी भी क्रौंच वध से आकुल होकर कविता की मनोहारी दुनियां में आये थे |

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  12. हम तो आपकी रचना और सबके कमेन्ट पढ़ रहे हैं...

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  13. यह रचना तो अपने आप में ही जबरदस्त है.

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  14. अली भाई ने कविता को नहीं बल्कि दिए गए काम को भयंकर कहा होगा....कबिताई का बूता अब शायद उनमें भी नहीं रहा ,फिर तो यह 'समस्या-पूर्ति' है !

    वैसे सतीश जी से सहमत !

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  15. सतीश जी माने सतीश सक्सेना....(कउनो ध्वाखा न होइ जाय )

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  16. @ सतीश जी माने सतीश सक्सेना

    भला ये भी कोई कहने की बात हुई.....ब्लॉगजगत में एक वही तो सतीश हैं बाकी जो हैं सो बस नाम के ही सतीश हैं :)

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  17. है भावना - भट-की, कसम से, अगर छेड़ा |

    सचमच खड़ा हो, जंग का नूतन बखेड़ा |

    हैं कृष्ण - राधा की सगी सम्वेदनाएँ--

    इस दर्द को मथुरा का मानो मधुर पेड़ा ||


    फिर भी,

    क्षमा सहित पेश है यह

    'तुरंती'|

    तुषारा-पात

    से बचा लेना है यही विनती ||



    दिल के किसी कोने में इसे लेना सजा |

    श्याम पूरी कर ही देंगे इल्तिजा ||

    *--------*-------*----------*-------------*--------*

    नश्वर है यह देह पर, भाव सदा चैतन्य |

    शाश्वत हूँ साकार पर, चिरकांक्षित ना अन्य |

    चिरकांक्षित ना अन्य, भटकती है अभिलाषा |

    भटक रहा चहुँ ओर, पपीहा स्वाती प्यासा |

    कह कृष्णा अकुलाय, भेंट कर राधे अवसर |

    तुम राधा हम श्याम, नहीं हम - दोनों नश्वर ||


    ऐसे ही लिखा करता था

    कभी प्रेयसी को पत्र |

    पर अफ़सोस

    उड़कर चले जाते थे वे दूर, अन्यत्र ||

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  18. @देवेन्द्र जी ,
    अब तक तो आपने और भी प्रविष्टि -प्रतिक्रियाएं मिल गयीं होंगी -क्या सोच रहे हैं?
    @अनुराग जी ,श्रीमान "रविकर " जी का पता भी दे दिए होते लगे हांथ,वैसे दूसरे "रविकर " जी भी आये हैं और वे कम प्रतिभाशाली नहीं हैं!
    @सुब्रमनियंन साब,
    जोरदार लाईन है,आभार!
    @वंदना जी ,
    बहुत सुन्दर और बेहतर भाव आये हैं और बिलकुल मौलिकता से लबरेज.....ताल मेल कैसे नहीं बैठेगा एक दूसरे के यहाँ आते जाते रहे तो ....:)

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  19. आपकी पिछली कविता के लिए मैंने कहा था ..ह्रदय है तो कविता फूटेगी ही. बस उसे शब्द देने की जरुरत होती है. और हम निःशब्द हो जाते हैं..इतनी सुन्दर कविता को आत्मसात कर..

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  20. एक तो हुस्न बला, उसपे बनावट आफत
    घर बिगाड़ेंगे हज़ारों का, संवरने वाले !

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  21. कविता को नहीं , हम तो भावना की सुन्दरता को पहचान रहे हैं ।

    लेकिन भाई , बोली ऐसी बोलो जिसे राधा भी समझ आए । वर्ना कवि महाशय राधा आँख झपकाती ही रह जाएगी । :)

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  22. अली सा के कमेंट का अर्थ अब समझ में आ रहा है। वे कहना चाहते थे कि दिन भर भयंकर कविताई होगी।

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  23. @सतीश जी,भैया आप तो गीत के बादशाह हो ...बस संस्पर्श मात्र से कोयला कंचन हो जाय ....आप भावों को सहज सरल प्रस्तुति देने में माहिर हैं .....तो क्या इस संशोधित रचना को लाक कर दिया जाय ?

    @रंजना जी ,हाँ यह मैं और तुम का ही खेल है ,और आपने इसे सही दिशा में समझा है...

    जिसके आगे शून्य है सब...सचमुच!

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  24. @जयकृष्ण जी ,

    मेरे लिए तो प्रतिबंधित क्षेत्र है यह ....आपके लिए छोड़ दिया है :)

    शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ ,मगर कविता पर बोलने से बचा गए अपने आपको :)!

    @रविकर जी ,

    तो गोया आप वही है -अहोभाग्य यह प्रतिभा यहाँ आयी ..सचमुच बस शिल्प आपने बदला है कविता -भाव वही है

    माशा तोला !

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  25. @डॉ. दराल,

    अब आप भले न समझे हों डाक्टर ,राधा समझ गयीं हैं और उनकी जवाबी कविता भी ईमेल से आ गयी है .... :)
    वैसे वे अगर पलकें झपकायेगीं तो दिल को ही ठंडक पहुचायेगीं ! :)

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  26. अली जी के
    भयंकर
    से घोर सहमत

    बाक़ी अपने बस की बात नहीं :-)

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  27. अरविन्द जी
    हमने तो सोचा था कुछ दिन इस कविता के नये नये आयामें का दौर पर दौर चलेगा
    पर इसे तो आज ही मंजिल मिल गयी।
    वन्दना गुप्ता जी की पंक्तियाँ भारतीय नारी
    ब्लाग पर साभार अवश्य उपयोग करूगा
    भारतीय नारी

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  28. बहुत बहुत आभार ||

    स्मार्ट-इंडियन आप भी धन्य हैं --
    आपने इस ग्वाले पर व्यर्थ का दबाव बनाया ||
    फिर भी आभार --
    जो सांवरे की चरण-राज माथे पर लगा पाया ||


    राधा के दर्शन किये, पड़ी कलेजे ठण्ड |
    मथुरा में आफत करे, कंस महा-बरबंड |
    कंस महा-बरबंड, जो उद्धव गोकुल आये |
    राधा हुई उदास, भला अब के समझाए |
    जाय रहे रणछोड़, बड़ी जीवन पर बाधा |
    बढ़ी प्रीति को तोड़, छोड़ कर जाते राधा ||

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  29. गोपी भाव की रचना .(वियोगी होगा पहला कवि ,आह से निकला होगा गान ,निकलकर अधरों से चुपचाप ,बही होगी कविता अनजान ).हाँ आजकल बिखरा हुआ हूँ और ये बिखराव हर तरफ दिख रहा है .सामान भी शहर शहर बिखरा हुआ है मेरा .लेदेके एक एनकार्टा ही साथ है .

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  30. यहाँ तो कवि सम्मलेन सा हो चला है..हम तो पढ़ रहे हैं और आनंद ले रहे हैं.

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  31. @ अरविन्द भाई ,
    अगली बार आपकी इस रचना को पूरा करने का प्रयास करूंगा गुरुदेव !
    आज तो लॉक करें ...आपको पसंद आई ...
    यह जानकार अच्छा लगा !

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  32. @ अरविन्द भाई ,
    कुछ दोस्तों के लिए है , शायद उन्हें कुछ प्यार आ जाए :-)

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  33. I echo the words of Sikha Varshney: It is giving a feeling of kavi sammelan :P

    Fantastic write up... deep, hidden meaning entwined with clever but witty expressions.

    Nice read !!

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  34. "प्रभु की कृपा भयउ सब काजू,जनम हमार सुफल भा आजू !"

    आपका आयोजन सफलीभूत हुआ ,बधाई !

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  35. Rajiv Thepra by email:
    अपने-आप में तो कोई कमी दिखाई नहीं दे रही बंधुवर....बाकी कुछ जो कमी है...सो है...हज़ारों लोग इसे थोडा-थोडा बदल दे सकते हैं....और बता सकते हैं...कि हाँ यह होना चाहिए...मगर भाई जो होना चैह्ये...वो समय के साथ बदलता रहता है....हमारी भावना....हमारे विचार....तदनुरूप हमारे शब्द... इसीलिए जो लिख दिया गया है वो लगभग ठीक है....अगली बार जो लिखा जाएगा...संभवतः इससे बेहतर बन पड़े....अगली बार और....उसकी अगली बार और...और....और....ऐसा होता रहता है....और ना भी हो सके....तो भी क्या बुरा है.....सब लोग तो तरह-तरह के है ना...है कि नहीं...!!??

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  36. हाय ! ये आपने क्या कर दिया ? कितनी ही राधा को यूँ ही जला दिया . वे सब जल रही होंगी आपकी राधा से.

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  37. @वर्ज्य,क्या सटीक प्रेक्षण है .....वही तो! चलिए गोपियों की पदवी तो नहीं छिन रही किसी से:) कृष्ण का प्रेम तो एकरस है! समझ नहीं पा रहा वर्ज्य का उल्टा क्या है नहीं तो उसी पदवी से नवाजता आपको ..बतायेगीं क्या ?

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  38. aapki is premanubhuti se labrej rachna me main talmel baitha paunga ya nahi is bat ka sanshay hai...islie sirf padhke maje le raha hun......

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  39. मैंने आपकी राधा के बारे में या आपके शाश्वत प्रेम के बारे में तो कुछ नहीं कहा . आप खामखाह उबल गए. जो सामान्यत होता है आजकल मैंने वही लिखा है. आप अपवाद हैं तो बधाई हो.

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  40. @देवि वर्ज्य ,
    कहाँ उबला मैं? बिलकुल कूल कूल तो हूँ ....आप भी न :)

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  41. यह अकवि टिप्पणी के द्ववारा सिर्फ उपस्थिति दर्ज कर रहा है और आनंद ले रहा है मनीषियों की अभिव्यक्ति का!!

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  42. हम तो रचना पढ़ रहे हैं और आनंद ले रहे है ..

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  43. रचना चर्चा-मंच पर, शोभित सब उत्कृष्ट |
    संग में परिचय-श्रृंखला, करती हैं आकृष्ट |

    शुक्रवारीय चर्चा मंच
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  44. सुन्दर प्रस्तुति .दिवाली मुबारक .दोबारा बांचा और भी हसीं लगी यह रचना .बधाई .

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