शुक्रवार, 3 जून 2011

मेरी पहली थ्री डी फिल्म -हान्टेड!

हान्टेड देख कर लौटा हूँ .विक्रम भट्ट द्वारा निर्देशित यह थ्री डी फिल्म है -आँखों पर एक ख़ास चश्मा लगाकर देखना होता है इन फिल्मों को .मुझे याद है भारत में पहले भी ३ डी दृश्यों युक्त फिल्मे जैसे शिवा का इन्साफ ,छोटा चेतन ,सामरी आदि बन चुकी हैं मगर कुछ ऐसा संयोग ही रहा कि मैं उन्हें नहीं देख पाया ...बच्चों ने रिकमेंड किया तो मैंने आउट आफ क्यूरियासटी हान्टेड देखने का मन बना लिया कि देखें थ्री डी फ़िल्में कैसी होती हैं ...और सचमुच गजब का अनुभव रहा ...फिल्म के कई दृश्यों ने तो सचमुच यह अनुभव करा दिया कि शरीर में झुरझुरी फैलना किसे कहते हैं -पूरी फिल्म में मैंने महसूस किया कि कम से कम आधा दर्जन बार  ऊपर से नीचे तक झुरझुरी ,सिहरन सी फ़ैल गयी ...एक तीव्र ग्रामी रोलर कोस्टर पर बैठने के  रोमांच से  कुछ कमतर नहीं ....मुझे याद नहीं कि सारे शरीर में इसके पहले कब ऐसी झुरझुरी फ़ैली  थी ....यह   एक आपात रिस्पांस सा होता है जब शरीर किसी अचानक आपदा ,खतरे के प्रति खुद को तैयार करता है -धमनियों के जरिये ड्रेनालीन नामक हारमोन पूरे शरीर में फ़ैल जाता है ....इस फिल्म को देखने का अहसास कुछ ऐसा ही है ..भले ही आप मेरी तरह भूतों प्रेतों पर विश्वास नहीं करते हों ,घोर तार्किक हों मगर इस फिल्म को देखते हुए आपका तंत्रिका तंत्र आपके चैतन्य दिमाग का साथ छोड़ देगा ... क्योकि मनुष्य को आसन्न खतरे  से बचाने के लिए उसकी इन्द्रियाँ नैसर्गिक रूप से ऐसी ही प्रोग्रामड हैं जो मानव मात्र की अस्तित्व रक्षा से जुदा एक  उपाय है ...



थ्री डी प्रभाव में आप सामने के दृश्यों की गहराई /दूरी भी देख सकते हैं ..मतलब कैमरे के ठीक सामने की वस्तु और फोकस में दूर की वस्तु के बीच का फासला साफ़ दीखता है ..कई बार तो ऐसा लगता है कि परदे पर दिख रही वस्तुओं में से कुछ तो  हाल तक बढ़ती चली आ रही हैं.  इसी फिल्म में  दीवार ढहने पर ऐसा लगा कि एक ईंट तेजी से हाल में लपकती हुयी आ पहुँची ..सभी दर्शकों को तत्काल डक करना पड़ गया अपना थोबड़ा बचाने के लिए ..नायक के हाथ का पंजा भी हाल के भीतर घुसता हुआ लगा -एक सांप ने जब एक कैरेक्टर पर अपने  फन का प्रहार किया तो सभी सिहर से उठे ..लगा यह वार दर्शकों पर ही हुआ है ...अब ऐसे दृश्यों की भरमार क्यों न दिल की धड़कन और शरीर की सिहरन बढ़ा दे..

हान्टेड जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है एक  बड़े भुतहे बंगले/हवेली  का नाम है ..जिसकी खरीददारी का मामला चल रहा होता है ...यह बना तो १९३६ में  था मगर  इसका वर्तमान मूल्य ४०० करोड़ रूपये हैं...रियल स्टेट बिजिनेसमैन    का बेटा जो विदेशों में पढ़ा है भूत प्रेत पर विश्वास नहीं करता...वह  बंगले में भूत प्रेत की अफवाहों की हकीकत  जानने आता है जिससे बंगले की डील में कोई बाधा न आने पाए .. और वहां घट रही अजब गजब घटनाओं ,पंजों के निशान,सिर कटी लाश आदि से खौफ खाता है ..और तभी उसकी मुलाक़ात एक सूफी संत से होती है जो उन घटनाओं के पीछे आत्माओं की ही भूमिका बताता है -

फ्लैश बैक में जो कहानी चलती है उसमें संगीत सीखने   वाली   एक लडकी  से  उसके   संगीत शिक्षक  की जोर जबरदस्ती और लडकी द्वारा आत्मरक्षा में शिक्षक की हत्या,शिक्षक की रूह का  लडकी के साथ खौफनाक बरताव और फिर उस लडकी का परिस्थितियों से हारकर आत्महत्या करने के दर्दनाक दृश्य है -ये सभी दृश्य दर्शकों की साँसों को सहसा रोक लेने में कामयाब हुए हैं -शरीर में कंपकपीं इन्ही दृश्यों से छूटती है ...फिल्म का सबसे रोचक हिस्सा वह है जब नायक बीते समय में -  १९३६ में जाकर  शिक्षक की हैवानियत से उस लडकी जो अब नायिका के रोल में आती है को बचाता है .बड़ी आपाधापी ,मार धाड़ के बाद वह कामयाब भी होता है -फिल्म का यह हिस्सा एक विज्ञान फंतासी (साईंस फैंटेसी ) सा है मगर जहाँ विज्ञान फंतासी का नायक टाईम मशीन से समय यात्रा करता है इस भुतही फिल्म में यह काम नायक से सूफी संत के चिलम का धुंआ  ही कर दिखाता है....

फिल्म को वैज्ञानिक नजरिये को ताक  पर रखकर महज मनोरंजन की दृष्टि से देखने में  ही मजा है ...फिल्म में थ्री डी दृश्य तो अद्भुत ही बन पड़े हैं ..लगभग सारी फिल्म ही थ्री डी में है ....अतीत में पीछे जाकर इतिहास के प्रवाह को बदलना विज्ञान फंतासियों का जाना माना विषय रहा है -इसी से वैकल्पिक इतिहास/दुनिया  की धारणा भी जुडी हुयी है ....अब जैसे इसी फिल्म में एक इतिहास वह है जिसमें नायिका आत्महत्या कर लेती है और दूसरी में नायक द्वारा वह बचा ली जाती है,शादी करती है ,पूरा जीवन गुजारती है  -लीजिये हो गए  न ये दो समान्तर संसार ...एक में १९३६ के बाद नायिका का  वजूद नहीं है दूसरी दुनिया में वह बाद में भी है और उसकी वंश परम्परा भी है -हिन्दी फिल्म दर्शकों को यह सब कुछ अटपटा  जरुर लगेगा मगर इस फिल्म का वैल्यू  एडीशन तो यही है ...

अतीत के दृश्यों में ,विंटेज मोटरों ,बंगलों आदि के लुभावने दृश्य हैं ....एक दो गीत भी कर्णप्रिय है ...जिस्म से रूह तक है  तुम्हारे निशां   इस ट्रेलर में सुन लीजिये ...फिल्म से जुड़े कुछ और उल्लेखनीय विवरण चवन्नी चैप   (पहले भी पूछा है कि यह चवन्नी  छाप क्यों नहीं है चवन्नी चैप क्यूंकर  हुआ?) और विकीपीडिया पर हैं !  फिल्म का एक बड़ा झोल यह है कि जब नायक रेहान ने भूतकाल में जाकर नायिका मीरा को रूह के प्रकोप से मुक्त ही कर दिया था तो बंगले में उस समय (वर्तमान में ) क्यों अजीब हरकतें हुयी जब रेहान ने उसमें प्रवेश किया ? जब कारण ही नहीं रहा तो फिर अकारण ही बंगला भुतहा कैसे बना रहा? बावजूद इसके फिल्म देखिये ..जरूर देखिये ..बच्चा पार्टी के साथ देखिये ....मैंने दिया साढ़े तीन स्टार! 

35 टिप्‍पणियां:

  1. बड़े डरपोक निकले ठाकुर !
    आपके बच्चों ने ही शायद आपको सँभाला होगा ।
    बेहतर यह होता कि आप इन चश्मों के हाइजिनिक पहलू, 3 प्रभाव के दुष्परिणाम, हैलॉसिनेशन से उभरने वाले रोग ( मिर्गी इत्यादि ), और टेम्पॉरेरी कलर ब्लाइन्डनेस इत्यादि पर चर्चा करते । ज्ञातव्य है कि ऎसी फ़िल्मों की सफलता एक भेड़चल को जन्म दे सकती है, जिससे दोहन करने में समर्थ 3डी प्रभाव वाली फ़िल्मों की लाइन लग जायेगी । छोटा चेतन मैंनें भी देखी है, लेकिन मोगैम्बों खुश नहीं हुआ !

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  2. "बेहतर यह होता कि आप इन चश्मों के हाइजिनिक पहलू, 3 प्रभाव के दुष्परिणाम, हैलॉसिनेशन से उभरने वाले रोग ( मिर्गी इत्यादि ), और टेम्पॉरेरी कलर ब्लाइन्डनेस इत्यादि पर चर्चा करते । "

    यह विशेषग्यता तो डाक्टर साहब आपकी है .आप बतायें तो मैं साईब्लाग पर चर्चा कर दूंगा ..लोग कहते हैं वियाग्रा दिल के लिए हानिकारक है मगर भी उसकी सेल दुनिया में किसी भी बटी से ज्यादा है :)
    ये फायदे -नुकसान की आँख मिचौली चलती रहेगी... आईये आनंद के कुछ पल ले लें ..जीवन नश्वर है :)

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  3. हमने तो थ्री डी कभी नहीं देखी । एक बार कनाडा में ज़रूर डॉक्युमेंट्री टाइप देखी थी लेकिन उसमे कुछ खास मज़ा नही आया था ।
    अब डॉक्टरों के कहने से कोई गोल गप्पे खाना थोड़े ही छोड़ देगा । :)

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  4. @अब देखिये दो डाक्टर अलग अलग कह गए ..अब किस डाक्टर के पास थर्ड ओपिनियां लेने जाऊं -एक तो मरकही ही हैं :)

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  5. अर्विंद जी, यहां ओर भारत मे भी 3D टेली विजन आ गये होंगे, फ़िल्म का पता नही अगर भारतिया फ़िल्म भी (नयी ) ३ डी मे हो तो टी वी पर देखे, इस का चश्मा खास तरह का हे, ओर करीब ६,७ हजार रुपये का होगा, लेकिन फ़िल्म देख कर पैसे वसुल हो जाते हे, मैने बाक्सिंग ३ दी मे टी वी पर देखी थी सोफ़े पर बेठे बेठे लगता हे कि अब घुंसा अपने ही मुंह पर पडा, यानि हम उस फ़िल्म मे अपने को फ़िल्म के अंदर ही महसुस करते हे, मैने अभी यह टी वी खरीदा नही क्यो कि बच्चे कहते हे अभी ओर अच्छा आ जाये, फ़िल्म हाल मे तो खुब मजा आयेगा

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  6. वाकई थ्री डी में देखने में फिल्म का इफेक्ट काफी बढ़ जाता है. हमें अवतार देखी थी.

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  7. अतीत की ओर लौटने में यही तो ख़तरा है कार्य, कारण को नष्ट कर सकता है .मैं पीछे लौटके अपने ही पड़ दादा जी की ह्त्या कर सकता हूँ ,इसीलिए तो समय का प्रवाह सिर्फ आगे की ओरहै .विज्ञान गल्प कुछ भी कहे ।
    बेहद सटीक समालोचना आपने थ्री डी फिल्म की प्रस्तुत कर दी एक दम से कसाव दार .कथानक से बावास्ता हम भी हुए .आभार आपका भाईसाहब .

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  8. जहां तक हमें पता है डॉ .अमर कुमारजी ,हेलुसिनेशन (व्यायामोह दृश्य का ,श्रव्य व्यायामोह यानी ऑडियो -हेलुसिनेशन )खुद अपने आप में कई रोगों का लक्षण है मसलन शिजोफ्रेनिया .लेकिन हेल्सिनेशन से या थ्री -डी सिनेमा से एपिलेप्सी कैसे हो जायेगी ?लक्षण से रोग कैसे पैदा होगा ?रोग के लक्षण तो हो सकतें हैं .
    रहा फिल्म समीक्षा लिखने की बात यह अपने आपमें एक स्वतंत्र विधा है .जो चीज़ आदमी को प्रभावित करती है वह उसी पे लिखता है .केवल सौद्देश्य ही नहीं होता लेखन जन -मनोरंजन ,जन मन रंजम भी करता है .गुस्ताखी मुआफ .आदर से आपका वीरू भाई .

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  9. पढ़ने के बाद देखने की ललक जाग गई...
    हर पोस्ट का विषय इतना रोचक हो रहा है कि मन उधर ही भागा जा रहा है लेकिन हाय रे समय..!

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  10. अभी तक तो कोई थ्री डी फिल्म नहीं देखी ...... पोस्ट पढ़कर लग रहा है यह अनुभव भी लेना चाहिए

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  11. .
    @ वीरु भाई,
    सँदर्भ ग्रँथों का भारी भरकम हवाला न देते हुये, मैं यहीं नेट पर मौज़ूद एक गैर चिकित्सा सँदर्भित सामान्य लिंक देना चाहूँगा
    http://www.movies3dbluray3d.com/p176892-will-d-television-trigger-epileptic-seizures.cfm

    The advent of 3D movies such as Avatar and the expected explosion of 3D Television is creating concerns in the community worldwide as to the effect of 3D viewing in "triggering" an epileptic seizure.

    In some cases these concerns are indeed valid, in others it is merely adding another myth to the mystery of epilepsy, particularly in the minds of those who are not epilepsy sufferers.

    As much as awareness of epilepsy and what it is, and more importantly what it is NOT, is growing in society through various information campaigns, the misguided stigmas attached to epileptics are still unfortunately prevalent in those who do not have epilepsy or are not close to someone who does. :-(

    @ डॉ. दराल सर,
    अरविन्द जी अपने आदमी हैं, इनसे मत डरा करिये,
    बेधड़क निर्भीक टिप्पणी दिया करिये, यह बहुत ज़ल्दी मान जाते हैं । :)

    @ अरविन्द जी,
    " ग़म दिये मुश्तकिल कितना नाज़ुक है दिल
    ये न जाना, हाय हाय रे ज़ालिम ज़माना "
    क्यों नॉन प्रोफ़ेशनल खिचड़ी डॉक्टर में उलझे हो ?
    मस्त रहो :-)

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  12. त्रि आयामी फिल्मो को आई मैक्स जैसे थियेटरो में देखने का आनद कुछ और है! मैंने अभी पायरेट्स ऑफ़ कैरेबीयन देखी. इस फिल्म के दृश्य तो द्वी आयामी में ही रोमांचक है त्रि आयामी में तो क्या कहने !

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  13. आपने लिखा है- ''आउट आफ क्यूरियासटी हान्टेड'' यह क्‍या फिल्‍म के अंगरेजी नाम का असर है.('जिज्ञासावश' कहना नहीं जमेगा क्‍या), बस जिज्ञासावश पूछ लिया है. समीक्षा बढि़या है कई स्‍टार वाली (मल्‍टीस्‍टारर).

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  14. हान्टेड तो नहीं देखी पर काफी पहले छोटा चेतन देख चुका हूँ. हूबहू वही रोमांच मैने भी महसूस किया था जैसा आपने बताया है.

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  15. although I've seen avatar and Resident Evil in 3-D but I'm gonna try this too....... coz I love horror movies.

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  16. रुचिकर विवरण ....बिना बुद्धि लगाये यह फिल्म देखने जरूर जाऊंगा ! शुभकामनायें आपको !

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  17. हॉंटेड - हिन्दी फिल्म है?

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  18. 'शिवा का इन्साफ और १-२ कोई और हौलीवुड की 3 D फिल्में देखी हैं. इसे भी हौल में जाकर महसूस करने का प्रयास करूँगा.

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  19. मतलब देखनी पडेगी मुझे भी थ्री-डी फिल्म।

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  20. बहुत पहले जैकी श्राफ की एक 3डी फ़िल्म देखी थी
    शिवा का इंसाफ. 3डी इफ़ेक्ट वास्तव में प्रभावित करते हैं पर मुझे ये देख कर बहुत निराशा हुई थी कि पूरी फ़िल्म में 3डी इफ़ेक्ट नाममात्र को ही थे वर्ना वाक़ी फ़िल्म तो दूसरी आम फ़िल्मों की ही तरह चलती रहती थी. जबकि मुझे लगता था कि शायद पूरी की पूरी फ़िल्म ही 3डी होगी.

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  21. कहानी पढली अब कौन पैसे खर्च करे ,हम तो भूत बंगला, दो गज जमीन के नीचे जैसी फिल्मे देख लिया करते थे

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  22. अपने बचपन में मैंने छोटा चेतन और शिव का इंसाफ जैसी त्रि आयामी चलचित्र देखे हैं. तब तो मुझे बहुत मजा आया था. किसी डरावनी फिल्म को त्रि आयामी रूप में देखना और भी मजेदार होगा. वैसे मेरी इच्छा इस पहली पोर्न त्रि आयामी चलचित्र को देखने की है जिसके लिए हांगकांग के लोग लम्बी लाइने लगाये खड़े हैं. खबर इस लिंक पर पढ़ें. http://www.filmjournal.com/filmjournal/content_display/columns-and-blogs/asia-pacific-roundabout/e3i13cda89ecc3b70b8127583bdbd7cb9be

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  23. .
    .
    .
    'छोटा चेतन' बचपन में देखी थी, मजा भी खूब आया था, अब इसे देखने का जुगाड़ लगाते हैं...

    वैसे यह मरकही व नॉन प्रोफ़ेशनल खिचड़ी का क्या चक्कर है... हमारे पीछे क्या-क्या हो जाता है दुनिया में... :(


    ...

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  24. अगर मौका मिले तो Rio (3D) देखिए...बहुत ही खुशनुमा अहसास होगा.

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  25. बढ़िया समीक्षा ..देखती हूँ...

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  26. मेरे हिसाब से साढे तीन में से तीन स्टार ३-डी को और आधा स्टार फिल्म को मिलना चाहिए.. जिन दृश्यों को ३-डी में देखकर आपको झुरझुरी हुई उनको साधारण स्क्रीन पर देखकर आपको हंसी आती.. मैं हॉरर फिल्मों का बहुत बड़ा फैन हूँ... और मुझे यह फिल्म पुरी चाट लगी... मैं तो अंत तक झेल भी नहीं पाया.. भारतीय हॉरर फ़िल्में हॉलीवुड या जापानी फिल्मों के मुकाबले कहीं नहीं ठहरतीं.. अच्छा हो यदि निर्देशक ३-डी वाला पैसा फिल्म के अन्य पहलुओं को सुधारने में लगाएं...बाकी आपका विवरण रोमांचक रहा ..

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  27. @डॉ .अमर कुमार साब जी ,
    जब तक आप खिचडी पकाते रहोगे हम आस पास डटे रहेंगे ...
    @विचार शून्य ,
    पोर्नो थ्री डी,वह भी पब्लिक और वह भी चीन में -ये कैसा जमाना आ गया है !
    क्यों प्रवीण शाह भाई जी ?
    @प्रवीण शाह जी ,
    आपके पीछे जो न हो जाय :)
    @रश्मि जी ,
    हम जरुर देखेगें रिओ -खुशनुमा अहसास आखिर कौन नहीं चाहता :) मुला ये बनारस में आये तो ..
    @राहुल जी ,
    अब इतना हिन्दी प्रेमी भी नहीं हूँ मैं ...
    जैसा बोलता बतियाता हूँ वैसा क्या अपोस्तें नहीं लिखी जा सकती ?
    हिन्दी को लेकर कोई रेटरिक नहीं आजमाता मैं .....इतना तो अकोमोडेट कर लिया करिए न ...

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  28. विवरण पढ़ देखने की ललक जाग गई है। देखता हूँ समय निकालकर।

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  29. थ्री डी का प्रयोग सौंदर्य को कैप्चर करने के लिए भी किया जा सकता है जिसका मन और शरीर पर अच्छा प्रभाव पड़ सकताहै पर पता नहीं क्यों फिल्म वालों को हारर फ़िल्म बना कर दर्शकों को चौंकाने में मज़ा आता है :)

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  30. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी का कहना सही है ...यही प्रयोग सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों के साथ किया जाए तो बात ही क्या ...
    एक पत्रिका में पढ़ा भी था इसके बारे में ..जहाँ व्यक्ति की दिमाग की तरंगों के आधार पर ऐसे काल्पनिक दृश्य प्रस्तुत किये जाते हैं , मानो वही घूम रहे हों ...ये भी थ्री दी तकनीक जैसा ही कुछ मामला रहा होगा !

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  31. डॉ .अमर सिंह जी आप खुद ही अपने सन्दर्भ को गैर चिकित्सा लिंक बतला रहें हैं हम अध्ययनों के झरोखे से देखतें हैं विज्ञान को बहर -सूरत हम एक रेस्पोंस जेनरेट करने में कामयाब रहे आपने भी हमारा मान रखा आप बड़ें हैं हम भौतिकी विज्ञान के छात्र हैं विषय भी हमें आधा अ -धूरा ही आता है .बहर- सूरत आते जाते रहिये .प्रेम भाव बनाए रहिये .आदाब .
    "क्षमा बड़ें को चाहिए छोटन को उत्पात "गुस्ताखी माफ़ .सवाल लेखन की स्वायत्तता से जुड़ा था .उसके लोकोपयोगी होने से नहीं .

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