मंगलवार, 7 सितंबर 2010

अयोध्या में राम को कहाँ खोजें ..

वैसे यह खुद में ही एक बड़ा दुर्भाग्य है कि जन जन के जीवन राम को खुदाई के जरिये साबित करने का राजनीतिक उपक्रम चल रहा है -ज्ञात मानव सभ्यता की महा मूर्खताओं में एक और अध्याय  जुड़ने जा रहा है ...मगर अगर कुंठित और सायास तर्क की भी बात की जाय तो भी हजारों वर्ष पहले जन्में राम के वजूद के अवशेषों को खोजने खोदने के लिए हम सटीक स्थल का निर्धारण   कैसे कर रहे हैं -या प्रश्नगत संरचना के सौ गज तक की जमीन के नीचे ताक झाँक कर हम कैसे कोई निर्णय कर सकते हैं -क्या हम यह कह कर पल्ला झाड सकते हैं कि राम /या राम मंदिर का कोई अवशेष वहां नहीं मिलता ...मुग़ल आक्रान्ता इस देश में कब आये ? राम का वजूद उनसे कितना पुराना है -क्या इन तथ्यों पर सरकारी गैरसरकारी और विधायिका नहीं सोचेगी  ? और क्या हम वहां राम से जुड़े अवशेषों के न होने की बात कहकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेगें तो कोटि कोटि जनता  यह मान  जायेगी ? 

चलिए हम थोड़ी देर के लिए पुरा इतिहास और पुरातत्व की कार्यविधि की भी बात कर लें ....पश्चिमी शिक्षा की पद्धति में शिक्षित भारतीय मनीषा एक कथित वस्तुनिष्ठ तरीके से अपना काम करने को निष्णात है -वह लोक एवं अंतर्साक्ष्यों पर ध्यान ही नहीं देती ..महाकाव्यों में अयोध्या के नगर वासियों के राम के साथ ही जलसमाधि लेने का उल्लेख है -कोई नहीं बचा था ....जब मैंने  पहली बार अयोध्या जाकर गुप्तार घाट से सरयू का विशाल पाट और जलस्तर देखा तो स्तब्ध रह गया -दूसरी ओर का तट/किनारा  ही दृश्य सीमा में नहीं आ रहा था -बताया गया कि सरयू अपना स्थान परिवर्तन करते रहने के कारण कुख्यात हैं ...और विगत की कई  स्मृतियाँ हैं जब सरयू ने अपार जन धन की  हानि की है -तभी मेरे दिमाग में एक विचार स्फुलिंग निर्गमित हुआ था कि राम की अयोध्या को तो सरजू ही लील गयीं होंगी -अब बात भगवान राम की थी तो यह कैसे माना भी जा सकता है कि  चौदहों भुवनो के स्वामी सरयू को नियंत्रित नहीं कर सके -भक्तजनों/कवियों को अपने उपास्य का यह पराभव भला कैसे स्वीकार होता ... लिहाजा राम और उनकी प्रजा के जल समाधि का कथानक बुना गया और जन स्मृतियों में आज वही शेष है -वाल्मीकि रामायण में और राम चरित मानस में भी राम के इस अनुपम चरित की चर्चा है .
 क्या यही है पुराणोक्त अयोध्या  ??

मेरी यह अन्तश्चेतना (गट फीलिंग ) / 'हायिपोथेसिस ' है कि सरयू की विकराल बाढ़ में समूची अयोध्या डूब गयी थी और कालांतर में उसे बदले स्थान पर -तत्स्थाने नहीं ,बसाया गया ...और पुरानी अयोध्या पर 'पुरातत्व' की परते चढ़ती गयीं और आज वह अदृश्य है -उसकी खोज होनी चाहिए ..और वही राम की नागर संस्कृति के अवशेष मिलेगें -आज की अयोध्या जहाँ है वहां कोई भी ठोस साक्ष्य नहीं मिलने वाला -जितना भी जोर लगा ले ....अगर मिलता भी है तो विवादपूर्ण ही होगा ,पर्याप्त नहीं होगा ...

महान देश के बुद्धिजीवियों कभी तो सहज बुद्धि से काम निकाला कीजिये ...

24 टिप्‍पणियां:

  1. यह एक विवादास्पद मुद्दा है, और अब यह राजनैतिक मुद्दा है जिस पर सरकारें तक गिर गई हैं और बन गई हैं, परंतु आपके तथ्यों को भी नकारा नहीं जा सकता है, इस दिशा में भी पुरात्तववेत्ताओं को खोज करनी चाहिये। आपके विचारों से पूर्ण सहमत .

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  2. यह मुद्दा ही नहीं है। बस बनाया जाता रहा है। राम को जमीन में नहीं अपितु अपने भीतर खोजने की जरूरत है।

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  3. "ज्ञात मानव सभ्यता की महा मूर्खताओं में एक और अध्याय जुड़ने जा रहा है ..."

    सैकड़ों अच्छे लेखों की भांति यह बेहतरीन लेख भी सद्गति को प्राप्त हो जायेगा :-) , हमारे बेवकूफी भरे फैसलों की दुनियां में प्रतिक्रिया वादियों का एक पूरा वर्ग निगाह गडाए बैठा है ! करोड़ों लोगों की श्रद्धा को खुदाई द्वारा ढूँढा जा रहा है ...राम को अयोध्या के एक मोहल्ले में ढूँढा जा रहा है....

    भरत भूमि में आज लुट रही मर्यादा श्रीराम की !

    राजनीति के लिए ख़रीदे
    जाते हैं भगवान भी
    रामनाम को बेच रहे हैं धर्म के ठेकेदार भी !
    परमपिता परमात्मा की भी
    जन्मभूमि सीमित कर दी
    मां शारदा निकट नही आईं, करते बातें ज्ञान की !

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  4. यह मुद्दा कभी राजनीति के भँवर से निकल ही नहीं पाया।

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  5. मुर्ख हे लोग जो इन नेताओ की , मुल्लाप ओर पंडितो की बातो मै आ कर खुन खराबा करते है, राम कहां है, अल्ल्हा कहां है? मंदिर ओर मस्जिद मै तो बिलकुल नही... आगे की बात दिनेश जी ने कह दी
    सब को मिल कर उस मंदिर ओर मस्जिद को वहा से मिटा देना चाहिये ओर वहा एक अस्पताल या ऎसी जगह बनाई जाये जहां सभी लोगो का भला हो, सब धर्म के लोग वहा जा कर मन की शांति पा सके

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  6. बात यह है कि वहाँ मन्दीर था या नहीं. था तो उसे दुबारा बनाया जाना चाहिए.

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  7. वर्तमान में जिसे हम अयोध्या कह रहे हैं पूर्व में वह साकेत थी. गुप्त काल में श्री राम के प्रति अपार श्रद्धा के कारण उन्होंने इस नगर के नाम को परिवर्तित कर अयोध्या कर दिया था. इस प्रकार के अयोध्या कई जगह पाए जाते हैं. थाईलैंड और इंडोनेसिया में भी. एक हमारे यहाँ भी है. खुदाई करना परम बेवकूफी है. मंदिर बनने की परंपरा ही अपने यहाँ दूसरी सदी के बाद की है. मानव रूप में जन्मे भगवान् के अवतार के लिए प्राचीन काल में कोई मंदिर नहीं बनाया गया था. जो दिख रहे हैं सब ९ वीं या १० वीं सदी के बाद के हैं. प्रश्न आस्था का है जिसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है.

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  8. यह प्रश्न आस्था का है। जिस तरह क्राइस्ट या मुहम्मद के अस्तित्त्व या उनके मूल स्थान आदि पर प्रश्न अवांछित हैं, उसी तरह राम, कृष्ण और शिव के ऊपर भी प्रश्न अवांछित हैं।
    तीनों भारतीय समाज के संस्कृति प्रतीक हैं। यह आश्चर्य नहीं कि हमलावरों ने तीनों के मूल स्थानों को ध्वस्त किया और उनके स्थान पर अपने विजय प्रतीक खड़े किए। अब मामले का राजनीतिकरण हो चुका है तो ईमानदार नेतृत्त्व और ईमानदार नागरिक दोनों आगे आएँ और इनके मूल स्थानों की गरिमा पुनर्स्थापित करें ताकि सद्भाव फैले और किसी तरह के राजनैतिक दोहन की सम्भावना ही समाप्त हो जाय।
    उस स्थान पर हॉस्पिटल, स्कूल आदि बनवाने के सुझावों से मैं सहमत नहीं हूँ। यह समस्या से कन्नी काटने जैसा है। रही बात अयोध्या की ऐतिहासिकता साबित करने की तो हजारों साल तक लाखों तर्क शब्द भी पर्याप्त नहीं होंगे और बहस चलती रहेगी।
    कहीं न कहीं सोच में बेईमानी है इसलिए ऐसी समस्याएँ बनी हुई हैं।

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  9. सुब्रह्मन्यन जी के कमेंट से पूरी तरह सहमत।

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  10. बात को मुख्य मुद्दे से भटके हुये ही अर्सा बीत गया.

    रामराम.

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  11. बहुत ही अच्छी समीक्छा की है आपने आपके विचारों से पूर्ण सहमत।

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  12. भगवान राम त्रेता युग में हुए थे । गीता अनुसार त्रेता युग लाखों साल पहले रहा था । फिर कैसे कह सकते हैं कि लाखों साल पहले की ज़मीन यही थी । बड़ा मुश्किल सवाल है ।

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  13. एक सही मुद्दा उठाया है आपने भाई साहब. दर-असल बतौर एक पत्रकार पिछले महीने कोलकाता में एक सेमीनार में शामिल होने का मौक़ा मिला. मुद्दा था राम जन्मभूमि : तथ्य एवं सत्य .
    अब चूँकि आप कह रहे हैं कि " मेरी यह अन्तश्चेतना (गट फीलिंग ) / 'हायिपोथेसिस ' है कि सरयू की विकराल बाढ़ में समूची अयोध्या डूब गयी थी और कालांतर में उसे बदले स्थान पर -तत्स्थाने नहीं ,बसाया गया ...और पुरानी अयोध्या पर 'पुरातत्व' की परते चढ़ती गयीं और आज वह अदृश्य है -उसकी खोज होनी चाहिए ..और वही राम की नागर संस्कृति के अवशेष मिलेगें -आज की अयोध्या जहाँ है वहां कोई भी ठोस साक्ष्य नहीं मिलने वाला -जितना भी जोर लगा ले ....अगर मिलता भी है तो विवादपूर्ण ही होगा ,पर्याप्त नहीं होगा ..."

    दिमाग कहता है कि यहाँ पर आपसे सहमत हो जाऊं लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद वहां जो खुदाई हुई और उस से जो नतीजे सामने आए उसके बारे में आप क्या कहेंगे.
    चम्पत राय जी कहते हैं कि "लखनऊ उच्च न्यायालय ने 2002 के आसपास राष्ट्रपति के प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए भूमि के नीचे की फोटोग्राफी कराई। उसमें यह स्पष्ट आया कि वहां किसी विशाल भवन के अवशेष हैं। इसकी सत्यता जांचने के लिए खुदाई हुई थी, जिसने फोटोग्राफी रिपोर्ट को सत्य ठहराया। वहां पर 27 दीवारें और चार फर्श निकले। दीवारों में सुंदर नक्काशीदार पत्थर लगे पाये गये। खंडित मूर्तियां प्राप्त हुईं। अंत में वहां एक शिवमंदिर मिला।" http://www.vhv.org.in/story.aspx?aid=५८

    चलिए आजकल में फैसला आने को ही है, देखते हैं क्या होता है, बस देशकाल और वातावरण न बिगड़े यही कामना है.......

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  14. इस मुद्दे को बस पढ़ लेते हैं.

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  15. जन्मभूमि तो पुराना जख्म है, बमियान के बुद्ध को किसने उडाया? और उसकी इजाज़त किस धर्मग्रंथ ने दी?

    अगर जन्मभूमि के मन्दिर तोडकर मस्जिद या कब्रिस्तान बना है तो उसमें जन्म सिद्ध करने की बात ही कहाँ आती है? और फिर वह अकेला मन्दिर तो नहीं है जो तोडा गया है। मिस्र से लेकर मलयेशिया तक तोडे गये पूजास्थलों की गिनती भी नहीं की जा सकती है।

    भगवान राम के जन्म का सबूत मांगने वाले अपनी परदादी के जन्म का सबूत भी नहीं ला सकते हैं?
    जहाँ तक अस्पताल बनाने का सवाल है, अस्पताल के लिये दुनिया भर में क्या वही जगह रह गयी है? आखिर यह ज़िद क्यों?

    इधर न्यूयॉर्क में कुछ तत्व इसी ज़िद पर अडे हैं कि ठीक उसी जगह पर मस्जिद बनायेंगे जहाँ मस्जिद वालों के धर्म के नाम पर ही दो गगनचुम्बी भवन और हज़ारोन निर्दोष शहीद कर दिये गये थे। चित भी इनकी, पट भी इनकी और खडा इनके बाप का... यह कौन सी अकल की बात हुई?

    सारी दुनिया इनकी भावनाओंकी कद्र करे वरना ये सबको बम से उडा देंगे और दुनिया अगर कद्र करे तो भी ये बम से उडा देंगे क्योंकि मज़हब में काफिरों को और उनके धर्मस्थलों की हत्या जायज़ है।

    अभी कई उपदेशक शांति-शांति चिल्लाते हुए आयेंगे, बेहतर हो कि वे ओसामा बिन लादेन, जिहादियों और तालेबान को शांति की शिक्षा दें।

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  16. जन्मभूमि तो पुराना जख्म है, बमियान के बुद्ध को किसने उडाया? और उसकी इजाज़त किस धर्मग्रंथ ने दी?

    अगर जन्मभूमि के मन्दिर तोडकर मस्जिद या कब्रिस्तान बना है तो उसमें जन्म सिद्ध करने की बात ही कहाँ आती है? और फिर वह अकेला मन्दिर तो नहीं है जो तोडा गया है। मिस्र से लेकर मलयेशिया तक तोडे गये पूजास्थलों की गिनती भी नहीं की जा सकती है।

    भगवान राम के जन्म का सबूत मांगने वाले अपनी परदादी के जन्म का सबूत भी नहीं ला सकते हैं?
    जहाँ तक अस्पताल बनाने का सवाल है, अस्पताल के लिये दुनिया भर में क्या वही जगह रह गयी है? आखिर यह ज़िद क्यों?

    इधर न्यूयॉर्क में कुछ तत्व इसी ज़िद पर अडे हैं कि ठीक उसी जगह पर मस्जिद बनायेंगे जहाँ मस्जिद वालों के धर्म के नाम पर ही दो गगनचुम्बी भवन और हज़ारोन निर्दोष शहीद कर दिये गये थे। चित भी इनकी, पट भी इनकी और खडा इनके बाप का... यह कौन सी अकल की बात हुई?

    सारी दुनिया इनकी भावनाओंकी कद्र करे वरना ये सबको बम से उडा देंगे और दुनिया अगर कद्र करे तो भी ये बम से उडा देंगे क्योंकि मज़हब में काफिरों को और उनके धर्मस्थलों की हत्या जायज़ है।

    अभी कई उपदेशक शांति-शांति चिल्लाते हुए आयेंगे, बेहतर हो कि वे ओसामा बिन लादेन, जिहादियों और तालेबान को शांति की शिक्षा दें।

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  17. @प्रिय त्रिपाठी जी ,
    बहुत आभार -आपने महत्वपूर्ण लिंक उपलब्ध कराया है ...भारत में कितने ही मंदिर जमीन के नीचे दबे हैं -कोई भी काम आ गया तो क्या कहने :)
    सादर

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  18. "खुदाई" तो होनी ही चाहिये..यह दुनिया ऐसी इसीलिये हो गयी क्योकि "खुदाई" नहीं रही!

    हम सब को अपने भीतर खुदाई करनी चाहिये, और तब तक करते रहना चाहिये जब तक हमें अपने-अपने ईश्वर-अल्लाह-जीसस-बुद्ध-नानक मिल न जायें!!

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  19. दिनेश जी के साथ अंदर की खुदाई में लग गया हूं !


    [ आपको पता है कि मैं अनुपस्थित क्यों था बाद में कभी डिटेल कमेन्ट करता हूं ]

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