रविवार, 21 फ़रवरी 2010

श्रीश के अनुरोध पर मैंने लिखी इक कविता .लिखी क्या कविता ने लिखा लिया खुद को मुझसे!

जी हाँ ,एक दिन श्रीश ने हड़का ही लिया मुझे ....बच्चों का आतप झेला नहीं जा सकता .कभी उन्होंने मुझे नवोत्पल पर  लिखने को आमंत्रित किया था और मैंने इस साहित्यिक मंच की सदस्यता भी स्वीकार कर ली थी मगर लिखने को वक्त नहीं निकाल पा रहा था या फिर उस ओर ध्यान ही नहीं जा पा रहा था ..बस ऐसे में स्नेहाक्रोश से लबरेज श्रीश भाई ने मुझे जो हडकाया कि मेरी रूह फ़ना हो गयी .....तभी से इसी उधेड़बुन में था कि कुछ तो लिखूं वहां -वचन बद्धता तो थी मगर उत्प्रेरण नहीं मिल रहा था -साहित्य सृजन कोई प्रमेय का सिद्ध करना नहीं है शायद ....
और फिर उप्रेरण मिल गया कहीं से किसी  ने बेदखल सा किया तो बस कविता फूट पडी और बिना समूची निःसृत हुए रूकी नहीं -अब यह नवोत्पल पर है पर यहाँ उसकी पुनरावृत्ति ......ब्लागजगत में कविता लिखने वाले एक से एक गज और दिग्गज है उनसे सादर सविनय अनुरोध कि किसी भूल और नाद भंग को अनदेखा करेगें -क्योकि "कवि विवेक एक नहिं मोरे सत्य कहऊँ लिख कागज़ कोरे ".....
क्या लिखूं ?

ज्ञान लिखूं विज्ञान लिखूं या निज कोरा अभिमान लिखूं
जग जान न पाया अब तक जो वह गोपन वृत्तांत लिखूं
क्लेश लिखूं निज द्वेष लिखूं या प्रिय कोई सन्देश लिखूं
लिख नहीं सका जो अब तक निज मन का अवशेष लिखूं ?

पाप लिखूं या पुण्य लिखूं, या प्रायश्चित परिताप लिखूं
अपनों का छल - व्यवहार लिखूं ,या पराये उपकार लिखूं
जग हित जो कर नहीं सका क्या सब वह पश्चाताप लिखूं
उस परम का यशगान लिखूं या निज गुण दोष विधान लिखूं ?

स्व दोष लिखूं पर तोष लिखूं जन जन के दुःख दंश लिखूं
निज बंध लिखूं निर्वाण लिखूं सम्मान लिखूं अपमान लिखूं
माँ सरस्वती का  यशगान करूं निज दुर्बलता आह्वान करूं
शक्ति स्फुरण माँ से तनिक मिले जन जन का कल्याण लिखूं !
(श्रीश के अनुरोध पर) 
 

37 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द और भाव दोनों पक्ष प्रबल...एक सशक्त रचना...अरविंद जो धन्यवाद प्रस्तुति के लिए..

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  3. छिपे रुस्तमों से अनुरोध है कि अपनी प्रतिभा को नारीगोपन की तरह न सहेजें।
    फागुन आया है - मदन, उल्लास, उत्सवादि का प्रकाश करें।

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  4. ye to pahli ball par sixer ho gaya jise umpire ne bhi no ball karar diya.. ab ek free hand ball bhi milegi.. :)

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  5. बहुत ही बढ़िया रचना, और हम "जग जान न पाया अब तक जो वह गोपन वृत्तांत" जानने के परम इच्छुक हैं, बताईये सभी ब्लॉगर्स जन बताईये..

    श्रीश जी के अनुरोध पर लिखी गई कविता ने वाकई आपने अंतरतम से लिखी है।

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  6. ज्ञान लिखूं विज्ञान लिखूं या निज कोरा अभिमान लिखूं ...

    इस पंक्ति का शुरू का आधा हिस्सा डॉक्टर साहब आप संभालिए...बाकी आधे हिस्से के लिए हम सब ब्लॉगर हैं न...

    जय हिंद...

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  7. accha..!!
    to aaj tak aap ham sab logan ko budbak bana rahe the...itna behtareen kavi hibernation mein rakha hua tha abhi tak..
    bahut beinsaafi hai ye..aur iski saazaa milgi...barobar milegi...
    holi kab hai ..kab hai holi ..??

    haan uske liye bhi zabardast kavita likhni hi padegi aapko...ab ii hamra farmaaisi program hai...:):)

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  8. ये क्या गज़ब कर रहे हैं महाराज? आप लिखने लगे तो ढेर सारे कवियों को दूकान बढानी पड़ेगी.
    बहुत सुन्दर [मैं नहीं मानता की यह पहली कविता है - वह भी एक्स्टेम्पोर]

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  9. सब महसूस कर सकते हैं..श्रीश या नवोत्पल तो एक बहाना है..कविताई की धारा को कहीं से भी रोका जा सकता है क्या..!

    ताल लय छंद के हिसाब से भी सुन्दर बन पड़ी है ये कविता..अत्युत्तम...!

    आपको तो समय-समय से कोई हड़काता रहे ...तभी ठीक है..!

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  10. क्या सर जी आप भी कमाल करते है , ना-ना कहते इतनी अच्छी कविता लिखा डाली , सर जी कमाल कर दिया आपने , हमें तो पता ही नहीं था कि आप ऐसे भी हैं ।

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  11. ज्ञान लिखूं विज्ञान लिखूं या निज कोरा अभिमान लिखूं
    क्या अभी पूछना बाकी रह गया है बहुत कुछ कह दिया इस सुन्दर कविता के माध्यम से लाजवाब कविता है अगली और कविता का इन्तज़ार रहेगा। धन्यवाद्

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  12. बहुत अच्छी कविता ........... आश्चर्य है आप कवितायें (भी) क्यों नहीं लिखते !!

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  13. अरे!
    ये कविता में प्रश्नपत्र तैयार कर दिया है आप ने। अब इस का उत्तर तो आप ही खोजेंगे।
    आप कविता बहुत अच्छी और बहुतों से अच्छी लिख सकते हैं। फिर लिखते क्यों नहीं?

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  14. कविता तो अच्छी है निस्सन्देह!! लेकिन ये मोटे अक्षरों में लिखा "बेदखल" किस ओर इशारा कर रहा है??? वैसे उस प्रेरक तत्व को भी धन्यवाद देना ही चाहिये.
    @ गिरिजेश राव, और बाबा,
    नारीगोपन क्यों लिखा. अच्छी बात नहीं है.

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  15. लिख तो दिया आपने...क्या शेष है..!
    शक्ति स्फुरण माँ से तनिक मिले जन जन का कल्याण लिखूं !
    ..वाह.

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  16. बेदखली किसी को कवि बना दे तो इससे बेहतर बात क्या ....जो होता है अच्छे के लिए ही होता है ...
    लग नहीं रहा कि ये आपकी पहली कविता ही है ...जहाँ तक मुझे याद है ...इससे पहले भी एक कविता पढ़ी है मैंने इसी ब्लॉग पर ...कविता अच्छी बन पड़ी है ...

    वैसे इंसान को हमेशा अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनना चाहिए और वही करना चाहिए जो वह कहे....

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  17. जग हित जो कर नहीं सका क्या सब वह पश्चाताप लिखूं
    उस परम का यशगान लिखूं या निज गुण दोष विधान लिखूं ?

    वाह ....वाह
    बहुत खूब ...क्या बात है

    अरविन्द जी बहुत अच्छा लगा आज आपके लेखन का यह पक्ष देखकर !
    मुझे याद आ रहा है आपने एक पोस्ट अपने पूज्य पिता जी की स्मृति में लिखी थी ! वो सिद्धहस्त लेखक भी थे !

    आपकी इस रचना को पढ़कर कौन कह सकता है कि आपकी पहली कविता है ! ठेठ स्थापित कवि की भांति नजर आते हैं !
    आप निरंतर लिखा करिए

    शुभ भाव

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  18. ''(श्रीश के अनुरोध पर) '' , अच्छा कर गया ! आभार !

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  19. श्रीश जी का स्नेहाक्रोश ही है जिसने झट से नवोत्पल को एक सक्रिय-सजग-सार्थक साहित्यिक मंच बना दिया है । अच्छा लग रहा है कि आपने नवोत्पल के लिये योगदान किया ।

    पहली कविता की बात कहाँ । पहले भी लिख चुके हैं आप !
    "लिख नहीं सका जो अब तक निज मन का अवशेष लिखूं ?" - इस इच्छा को पूरी करते हुए देखना चाहूँगा मैं आपको !
    आभार ।

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  20. वाह ये तो कमाल कर दिया आपने.

    रामराम.

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  21. 'उत्प्रेरण' और 'बेदखल' जी के नाम इस तरह से सार्वजानिक करना शोभा नहीं देता :)

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  22. "कवि विवेक एक नहिं मोरे सत्य कहऊँ लिख कागज़ कोरे ".....
    माँ सरस्वती का यशगान करूं निज दुर्बलता आह्वान करूं
    शक्ति स्फुरण माँ से तनिक मिले जन जन का कल्याण लिखूं !
    Sundar rachna ke liye bahut badhai..

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  23. ज्ञान लिखूं विज्ञान लिखूं या निज कोरा अभिमान लिखूं
    बहुत सुंदर भाव अति सुंदर कविता.
    धन्यवाद

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  24. बातो बातों में बढ़िया रचना लिख गए भैया जी।
    आनंद आ गया पढ़कर।

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  25. kya likhu swaal me nihit gahraaiya shpash dikhaai deti hai.behtreen racha pdhane kile aapka bahut bahut aabhar!
    Saadar
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  26. सोचते विचारते ही गज़ब लिख गये...लिखने बैठते तो क्या होता.

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  27. गजब की कविता लिखी है आपने।
    मैं आपसे पहले ही कहता था कि आप कविताएं लिखिए, और देखिए आपने पहली ही बार में छक्का जड़ दिया। बहुत बहुत बधाई।

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  28. स्व दोष लिखूं पर तोष लिखूं जन जन के दुःख दंश लिखूं
    निज बंध लिखूं निर्वाण लिखूं सम्मान लिखूं अपमान लिखूं
    माँ सरस्वती का यशगान करूं निज दुर्बलता आह्वान करूं
    शक्ति स्फुरण माँ से तनिक मिले जन जन का कल्याण लिखूं !
    kya kya me arvind ji aapne bahut kuchh likh diya wo bhi kamaal ka .anurodh par ye shodh ,shreesh
    ji ka shukriyan .

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  29. श्रीश जी के इस "स्नेहाक्रोश" पर वारि-वारि...आह! इसी बहाने क्या कविता आयी है।

    इस परिष्कृत हिंदी, जिसका कि फैन मैं अपने ब्लौग के शुरुआती दिनों से रहा हूं, के साथ जो आप कविता-क्षेत्र में दखलअंदाजी देने लगे आप गर यदा-कदा तो हमारा क्या होगा मिश्र जी।

    तमाम तारिफों से परे सर जी!

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  30. श्रीश जी को साधुवाद..
    अरविन्द जी आप जो भी लिखते है, बहुत अच्छा लिखते है...
    ये मेरी कमी है कि मै रेगुलर नही आ पाता..इस कमी को दूर करने मे प्रयासरत हू..
    आभार..

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  31. बहुत ही अच्छी कविता लिखी है...क्या लिखूं??

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  32. आश्रय की मन्द बयार लिखूँ या तुझ पर निज अधिकार लिखूँ,
    आँखों से आकर बहे नहीं या गहरे वो उद्गार लिखूँ ।

    गजब की लय दी है । कविता से अपनापन लगा तो दो पंक्तियाँ निकल आयीं । आपको ही समर्पित ।

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