मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

ब्लॉगर या टिप्पणीकार -काके लागूं पायं !

अनूप शुक्ल जी के लिए सचमुच यह भाव सच्चे मन से निःसृत हो रहा है कि वे ब्लागजगत के एक कुशल टिप्पणी भाष्यकार हैं -अभी एक दो दिन पहले ही उनका टिप्पणी भाष्य का नया संस्करण आया है उनके चिट्ठे पर -आपको भी याद होगा .जिन्हें याद नही उनके लिए शायद यह चर्चा नही है .उन्होंने अपनी बात शास्त्री जी के टिप्पणी वाली चर्चित पोस्ट पर लिखी थी -पहले भी इस खाकसार की टिप्पणी वाली पोस्ट पर उन्होंने जो टिप्पणी की थी उसमें अपने एक पहले के टिप्पणी चर्चा का जिक्र किया था -लुब्बेलुआब यह कि टिप्पणी शास्त्र पर उनका अब एकाधिकार सा होता जा रहा है -और यह बात मैं अभिधा में ही कह रहा हूँ कोई यमक या श्लेष नहीं .मैंने इन्हे टिप्पणी शास्त्र विशारद तभी मान लिया था जब उन्होंने यह जोरदार टिप्पणी की कि ज्ञान जी का ब्लॉग वहाँ आने वाली टिप्पणियों के लिए ही जानी जाती हैं -हाँ वहाँ ऐरो गैरों की सचमुच नही चलती क्योकि मैंने भी यह समझ बूझ लिया है कि जो ज्ञानी पुरूष की अभिजात्य मानसकिता होती है या होनी चाहिए -ज्ञान जी उसकी प्रतिमूर्ति हैं ,तो वहां जाने पर ज़रा कैजुअल अप्रोच से काम नही चल पाता इसलिए सभी यहाँ तक कि ख़ुद अनूप जी भी वहाँ अतिरिक्त सावधानी से ही टिप्पणियाँ करते हैं और ज्ञान जी के आभा मंडल को परिधि में बनाए रखते हैं (ताकि वह बिखर ना जाए ) ।
अभी अभी चिट्ठा चर्चा में हीएक मसला -मत विमत ऐसा भी आया कि कुछ मित्र केवल अपने ही लिखे पर आत्ममुग्ध हो टिप्पणियों कीअपेक्षा करते हैं -दूसरों की पढने की इच्छा ही नही करते -मानों वे सर्व ज्ञान संपृक्त हो चुके हों -मैं भी ऐसे कई लोगों को जानता हूँ ।
कभी कभी तो यही लगता है कि बीच बीच में हिन्दी जगत के पुरोधा चिट्ठाकारों को अपना महान लेखन सप्ताह -पखवारे तक स्थगित कर दूसरों का लिखा ही पढ़ते रहना चाहिए और खूब मुक्त भाव से यथा सम्भव और यथोचित टिप्पणियाँ उसी मनोयोग से करनी चाहिए जैसे कि वे अपना ख़ुद का चिट्ठा ही लिख रहे हों -पर उपदेश कुशल बहुतेरे की बात नहीं यह मैं ख़ुद शुरू करने की गंभीरता से सोच रहा हूँ .इससे कई फायदे होंगे -हम दूसरों केलेखन से जहाँ मनोयोग से परिचित होंगे वहीं एक सहिष्णुता का भाव भी ब्लॉग जगत में व्याप्त /व्यापक होगा जिसकी आज जरूरत है -अनूप जी ने भी इस बातको टिप्पणी मे ही कहा है कि दूसरों की बात के मर्म को ठीक से लोग समझे और संवाद कायम करें .तभी सार्थक चर्चा का नैरन्तर्य बना रहेगा .अब उनकी यह नसीहत ठीक से समझी गयी या नहीं राम जाने !
पता नहीं क्या क्या बातें मन में उमड़ घुमड़ रही थीं जो यह पोस्ट शुरू की पर अब इसका उपसंहार किया जाए -
समीर जी का सचमुच कितना प्रणम्य व्यक्तित्व है कि वे कितने ही पोस्टों को पढ़ते हैं टिप्पणियाँ करते हैं और अपना हर बार का धांसू फांसू पोस्ट भी लिखते हैं ,वे अभी तक तो हिन्दी ब्लागजगत के कालिदास ही हैं क्योंकि उनके बाद दूसरेनंबर पर तो कोई दीखता नहीं -तीसरे नंबर पर ज्ञान जी हैं ,शास्त्री जी हैं और कई और भी विद्वान् तेजी से उभर रहे हैं ।
तो समीर जी एक सफल चिट्ठाकार के साथ ही एक प्रखर टिप्पणीकार भी हैं ! एक परफेक्ट ब्लेंडिंग ! और बाकी सब चिट्ठाकार ज्यादा टिप्पणीकार कम हैं -एक अपवाद है अनूप जी जो चिट्ठाचर्चा के ही बहाने विशुद्धतः टिप्पणी चर्चा ही तो कर रहे हैं -वे एक टिप्पणीकार है -टिप्पणी भाष्य कार भी हैं .अब मैं निष्पत्ति पर आ रहा हूँ -किसके पायं लगूं -एक महान चिट्ठाकार के या किसी महान टिप्पणीकार के ! अभी महान चिट्ठाकार का शायद अवतरण नही हुआ है -समीर जी अगर टिप्पणी कम कर दे तो अवश्य उस श्रेणी में आ जायेंगे पर शायद यह होगा नहीं और तब तक अनूप जी को ही एक विद्वान टिप्पणीकार भी स्वीकार करते हुए उनके पायं -जो पता नही धोती में छुपे हैं या पतलून या पैंट में ,लगना ही श्रेयस्कर है .आईये हम एक श्रेष्ठ टिप्पणीकार का अनुसरण करें -महाजनों ये गतः सा पन्थाः !

29 टिप्‍पणियां:

  1. बिना टिप्पणीकार के चिटठा लिखने में मजा नही आता इसलिए महान तो टिप्पणीकार ही हुए न

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  2. पूरा का पूरा चिट्ठा ही टिप्पणियों पर लिखा जा सक रहा है. पहल चाहे जिसकी भी रही हो, सार्थक रही.
    आभार.

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  3. म अपनी पहली असहमति की पर्ची आपके यहाँ खिसकाते है.....अनूप जी ने हमारे यहाँ जब भी टिपण्णी की है ..."भावुक पोस्ट "",शानदार पोस्ट "...का इतनी बार इस्तेमाल किया है...हम भी मौका ढूंढते रहते है की कब वे कुछ लिखे ओर हम उनका माल वापस उनके यहाँ ठेल दे ..पर क्या करे इतनी लम्बी पोस्ट लिख देते है....कि इतनी छटांक भर कि टिपण्णी देते हम शरमा जाते है ..इ सोचकर के देखो दो दो भार अपने कंधे पर रखे है....."चर्चा" का भार भी वजनी है ....पर एक दुई ओर ब्लोगर हमारी नजर में है....जो इस तरह कि छटांक टिप्पणी देने में माहिर है....कसम से अब उनके यहाँ भी ऐसे ही ठेल देंगे......
    पर्ची संभाल कर रखियेगा आज ही बनायीं है

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  4. वाह, आपने बहुत मन से लिखा है।
    टिप्पणीकार ही श्रेष्ठ है। यह श्रेष्ठता भाव टिप्पणी करते समय मोटीवेशन देगा - भले ही हम पूरा जोर लगा कर समीरलाल जी की छाया भर ही बन पायें।

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  5. आपने सही कहा-
    कुछ मित्र केवल अपने ही लिखे पर आत्ममुग्ध हो टिप्पणियों की अपेक्षा करते हैं -दूसरों की पढने की इच्छा ही नही करते -मानों वे सर्व ज्ञान संपृक्त हो चुके हों।

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  6. he param gyani gyan dev jee,
    itnee klisht bhasha se to hamare jaise bache uske neeche hee dab kar mar jaayenge, khair, waise mo ko laagat hai ki bhagwaan ne do haath aaur do paanv shayad aisee duvidhaa ke nivaaran ke liye diye the, so maalik dono haathan se dono charnan ka pakad liyahun.

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  7. 'छटांक टिप्पणी देने में माहिर'

    Anurag ki is baat per sehmati, Anup ji Tippani charchakar hain Tippanikar nahi woh khitab to Sameerji ke paas hi rahega, dono me fark hai. BUT dono hi bujurg hain isliye dono ke hi panv para ja sakta hai ;)

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  8. मिश्राजी आपने बड़ा गंभीर चिंतन किया है ! और मैं तो आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ !

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  9. बहुत सही लिखा है आपने ..बड़ा विश्लेषण किया है हर हालात का :) तो आपसे सहमत हुए हम भी ...१००%

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  10. अच्छी खासी दुविधा में डाल दिया आप ने, आप ने तो रेंकिग भी कर डाली, समीर जी पहले नंबर पर , ज्ञान जी और शास्त्री जी तीसरे नंबर पर तो अनूप जी को किस नंबर पर रखा। हम तरुण जी की बात से सहमत हैं, अनूप जी सिर्फ़ टिप्पणीकार नहीं। चिठ्ठाचर्चा पर कई पोस्ट्स में उन्होंने सौ ब्लोग्स को भी कवर किया है, कहां से लाते हैं इतना वक्त और ऊर्जा, वो ही जाने। उअधर समीर जी की टिप्पणी प्राणदान करती है, खास कर नये ब्लोगरस के लिए, तो मुझे भी लगता है कि पांव तो दोनों के ही छूने चाहिएं। अब हमारी मुश्किल ये है कि ये दोनों हमसे छोटे हैं तो हम पांव कैसे छूएं ( वैसे भी झुकने में कमर दुखती है…:)) और हम इनसे इतने बड़े भी नहीं कि इन्हें आशिर्वाद दे सकें , तो हम तो सिर्फ़ इतना ही कह सकते है , तुम्हारी भी जय जय और तुम्हारी भी जय जय्…दोनों इसी तरह ब्लोगजगत की कमान संभाले रखें, हमारी शुभकामनाएं…।:)

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  11. अरे महाराज!! नरक भिजवाओगे क्या? अनूप जी तो हमारे गुरु जी हैं भई..वो ही हमें खदेड़ कर गद्य लेखन में लाये, उनसे काहे की बराबरी. उनका स्थान हमारे सर आँखों पर.

    ज्ञान जी और शास्त्री जी को तो बारं बार प्रणाम भेजता ही जाता हूँ- दोनों ही अनुकरणीय है.

    डॉ अनुराग की पर्ची देखकर जरा डर सा लग रहा है. :)

    वैसे अनिता जी, कमर में दर्द मेरे भी रह रहा है इन दिनों मगर उस दर्द की बिना भी झुकना असंभव सा ही है, आपने तो देखा ही है. :)


    सब आप लोगों का स्नेह है. चलता जा रहा है. बस, स्नेह देते रहें,कोइ स्थान न दें- उसी में मैं सँतुष्ट हूँ.

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  12. इस पर अभी चिट्ठा-कुल में अभी और मन्थन की आवश्यकता है। ऐसे लेख इस दिशा में सोचने का मार्ग बना रहे हैं।

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. कहते हैं ना कि वादे वादे जायते तत्व बोधः -देखिये कितनी गहरी बातें छन कर आ रही हैं .तरुण जी ने बढियां क्लासिफाई कर डाला -टिप्पणीकार और टिप्पणी चर्चाकार ! अनुराग जी के स्नेहिल कटाक्ष में भी एक संदेश छुपा है भाई टिप्पणी करो तो कुछ तो कहो -माना कि शब्द ब्रह्म हैं पर इतनी भी किफायत क्या ?अनिता जी ,समीर जी -विश्वास कीजिये इन दिनों कमर मेरी भी बहुत दुःख दे रही है पर फर्ज तो निभाना ही पडेगा ! ढ़ाढस बस इसी बात से है कि महान लोग ज्यादा झुकने के पहले ही हाथ थाम लेते हैं -कमर की पीडा का ज्यादा अहसास नही होने देते .कविता वाचक्नवी जी ने दुरुस्त फरमाया ,यह टिप्पणी चिंतन चलता रहना चाहिए जिससे यह हुनर एक समादृत विधा के रूप में उभर सके ..चर्चा तो अभी चल ही रही है .......

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  15. इस पर कुछ और लिखना तमाम बातों को दोहराना ही होगा। अक्सर होता है किसी मुद्दे पर हम लोग अपनी राय बना लेते हैं और इसके बाद हुयी घटनाओं को अप्नी समझ के अनुसार परिभाषित करते हुये अपनी राय को पुख्ता करते रहते हैं। आपने मेरी बारे में जो लिखा उसका शुक्रिया कहते हुये अपनी बातें लिखता हूं:-
    १. टिप्पणी शास्त्र पर मेरा अधिकार कतई नहीं है। कम से कम मुझे ऐसा भ्रम नहीं है। मेरी नजर एक आम पाठक की नजर है जिसमे यथासम्भव प्रयास रहता है कि पूर्वाग्रह कम से कम हों।
    २.ज्ञानजी के ब्लाग पर ऐरों-गैरों की नहीं चलती यह कहने का कोई खास मकसद नहीं। लिखने वाले ने लिखा, पढ़ने वाले ने टिपियाया इसके बाद लेखक उस टिपियाये हुये को कैसे लेता है यह तो उसकी मर्जी पर रहना चाहिये।
    ३. ज्ञानजी के ब्लाग पर हम उतना ही कैजुयली कमेंट करते हैं जित्ता और कहीं। अब चूंकि वे नियमित लिखते हैं और विविधता पूर्ण लिखते हैं इसलिये वहां जाना नियमित होता है। लगभग हर पोस्ट मैं पढ़ता हूं।
    ४. ज्ञानजी या किसी अन्य का आभामंडल मैं केवल बिखेरने के लिये क्यों बिखेरूं? वे अगर अराजक हों, असामाजिक हों तो उसके लिये पसीना भी बहाया जाये। मेरी नजर में वे हमसे बड़े हैं। अपने से बड़े के प्रति एक न्यूनतम आदरभाव रखने का मेरा सहज प्रयास रहता है। वही ज्ञानजी के लिये भी है। आपके लिये भी है।
    जिसे आप अतिरिक्त सावधानी बता रहे हैं वह मेरा सहज स्वभाव है। आप ज्ञानजी के ब्लाग पर की गयी मेरी टिप्पणियां पढ़ लें। जित्ती शरारती मेरी टिप्पणियां होंगी शायद और किसी ने न कीं हों सिवाय आलोक पुराणिक को छोड़कर!
    ५. मुझे यह अच्छी तरह पता है कि नेट पर हम जो कर्म करते हैं वह हमेशा के लिये सुरक्षित रहता है। इसलिये टिपियाते हुये यह ख्याल रखता हूं कि कुछ ऐसा न लिखूं कि मुझे अखरे- हाय, यह मैंने क्या लिखा? दूसरे से अधिक मुझे अपनी चिंता रहती है। अपने ब्लाग पर लिखे को तो मैं मिटा भी सकता हूं लेकिन दूसरे के ब्लाग पर क्या करूंगा।
    ६.अपने लिखे पर मुग्ध होना सहज स्वाभाविक मानवीय स्वभाव है। इसमें कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। दूसरे के लिखे पर मुग्ध होना सीखना पढ़ता है और यह व्यक्ति की समझ पर निर्भर करता है।
    ७. पुरोधा लेखक/छोटे ब्लागर/बड़े ब्लागर ये सब हमारे अपने गढ़े हुये शब्द हैं। हर एक के समय की मजबूरियां होती हैं। हर समय ऐसे अवसर नहीं आते कि लोग आपके या किसी अन्य के ब्लाग पर टिपियाये हीं। टिप्पणी अगर चलताऊ नहीं है तो तीन चार मिनट लेती है। आप दिन में कित्ती टिप्पणी करेंगे?
    ८. समीरलालजी लोगों का उत्साह बढ़ाते हैं। अक्सर इसके लिये उनकी खिंचाई भी लोग करते हैं। लेकिन वे अपना काम करते हैं इसीलिये लोग उनको मानते हैं। उनका योगदान महत्वपूर्ण है।
    ९. जाड़े के मौसम में किसी के पांव छूने के लिये काहे रजाई से बाहर निकलवायेंगे?
    १०. डा.अनुराग की टिप्पणी जायज है। लेकिन अक्सर होता है कि अद्भुत, शानदार लिखकर ही काम चलाना पड़ता है। एक तो उनके और तमाम दूसरे लोगों के शानदार लेखन से जलन भी होती है। जलता आदमी इससे ज्यादा क्या टिपियायेगा। इसके अलावा किसी पोस्ट में जो कुछ बातें कहीं खटकती हैं उनके बारे में चलताऊ ढंग से लिखना भी गैरजिम्मेदारी की बात है जिससे मैं बचना चाहता हूं।
    ११.हिंदी ब्लागिंग अभी शुरुआती दौर में हैं। इसमें तमाम उज्ज्वल पक्ष हैं। समय के साथ इसमें और आयाम जुड़ेंगे। आप-हम यह कर सकते हैं कि इसके अच्छे तत्व हमारे कारण कमजोर न पढ़ें।

    १२. टिप्पणी कल करनी थी लेकिन कल करते तो चर्चा रह जाती। इस टिप्पणी में केवल अपनी बात कही है। जरूरी नहीं कि उससे हर कोई सहमत हो!

    १३. एक बार फ़िर यह बात जोर देकर कहना चाहूंगा कि महान, सबसे महान, एक नम्बरी, दो नम्बरी लफ़ड़े से हमें बचना चाहिये। यह आदमी को डिजिटाइज करने जैसी बात है जिसका कोई मतलब नहीं। हर एक का अपना महत्व है। तमाम लोग बहुत अच्छा लिखते हैं जिन पर उत्ता ध्यान नहीं जाता जित्ता जाना चाहिये।

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  16. अब कौन कहेगा कि अनूप जी महज एक टिप्पणी चर्चाकार ही हैं टिप्पणीकार नहीं !
    शुक्रिया अनूप जी आपने कई बातें बहुत साफ़ कर दी हैं मेरी शंकाएँ दूर हुईं -बहुत आभार !

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  17. इस गूढ़ चर्चा से बहुत कुछ स्पष्ट हो रहा है ! ऎसी चर्चा होते रहना चाहिए ! आपने ये अच्छा विषय उठाया है ! आ.अनूप जी शुक्ल ने बहुत स्पष्टता से टिपणी की है ! इस स्पष्टवादिता के लिए उनको धन्यवाद ! कुल मिलाकर एक सार्थक चर्चा रही !

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  18. मुझे लगता है सर्वश्रेठ टिपण्णी वाहक डॉ अमर कुमार है ..

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  19. चाहे कोई कितना भी बडा आत्ममुग्ध क्यों न हो, ब्लॉग जगत में है, तो एक न एक दिन तो यह आत्ममुग्धता शहीद होनी ही है।

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  20. आप ने एक बहुत अच्छा एवं उपयोगी विषय लेकर उस पर काफी संतुलित तरीके से एवं काफी विस्तार से चर्चा की है.

    जिस तरह से इस लेख ने टिप्पणीकारों को आकर्षित किया है वह लेख की गुणवत्ता एवं विषय की महत्ता दोनों की तरफ इशारा करते हैं.

    सस्नेह -- शास्त्री

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  21. आदरणीय मिश्रा जी,

    आपने बड़ी सार्थक पोस्ट लिखी। बधाई स्वीकार करें।

    अनूप जी का कहना है कि- “तमाम लोग बहुत अच्छा लिखते हैं जिन पर उत्ता ध्यान नहीं जाता जित्ता जाना चाहिये।” मैं तो बस इसी बात पर मुग्ध हूँ। :) ...आत्ममुग्ध नहीं, बल्कि इस बात से प्रसन्न कि सबसे अच्छा का कोई लफ़ड़ा ही नहीं है। कोई टेन्शन नहीं कि मेरा स्थान कहाँ है।

    मुझे लगता है कि इस माध्यम में आगे चलकर यही नीति स्थायी रह जाएगी कि “...अपनी सुविधा और समय देखकर जितना अच्छा लिख सको, लिखो, पोस्ट करो और भूल जाओ। अपनी क्षमता भर जितना पढ़ना चाहो, पढ़ो और कुछ जोड़ना-घटाना चाहो तो वहाँ अपनी एक ईमानदार टिप्पणी छोड़ जाओ। लिखते समय आने वाली टिप्पणी का ध्यान करना और टिप्पणी करते समय रिटर्न टिप्पणी की आशा करना एक स्वस्थ लेखन के बजाय अमेरिकी बाजार नीति की तरह अधोगामी सोच लगती है। कदाचित्‌ यह सोच श्रेष्ठ लेखन को अवरुद्ध करने वाली है। इस माध्यम की जरुरतों के हिसाब से लिखना अलग बात है।

    जो सच्चा है वह टिका रहेगा और जो जुगाड़ू है, या प्रपञ्च पर टिका हुआ है वह एक न एक दिन दम तोड़ ही देगा।

    जिस गति से चिठ्ठों की संख्या बढ़ रही है, उसमें इस समय की सारी गणित फेल होने वाली है। विचारों और शब्दों का जो महासागर उमड़ने वाला है, उसमें सभी चिठ्ठों को पढ़कर उनका तुलनात्मक मूल्यांकन समग्र रूप से करना संभव नहीं रह जाएगा। बस जब भी डुबकी लगाएंगे कोई न कोई मोती हाथ आ ही जाएगा।

    यहाँ याद रखना होगा कि सागर में केवल मोती ही नहीं होते, यहाँ अच्छा-बुरा सब मिलेगा; लेकिन डुबकी लगाने वाला सिर्फ़ अपनी पसन्द के मोतियों को ही सहेजना चाहेगा। इसलिए सभी चिठ्ठाकारों में मोती बनने की चाह बनी रहेगी, जो उनके कौशल को विकसित करने में प्रेरक का कार्य करेगी। यह एक शुभ संकेत है।

    अभी यह मौका है कि नं.१,२,३,... का चुनाव कर लें। बाद में मुश्किल हो जाएगी।:)

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  22. अनूप जी की टिप्पणी ( नहीं नहीं पोस्ट) देख कर मन प्रसन्न हो गया। यूं तो उनकी कही हर बात सही है जिससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है, लेकिन उनका कहा पोइंट नंबर छ: पढ़ कर हम बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं

    "अपने लिखे पर मुग्ध होना सहज स्वाभाविक मानवीय स्वभाव है। इसमें कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। दूसरे के लिखे पर मुग्ध होना सीखना पढ़ता है और यह व्यक्ति की समझ पर निर्भर करता है।"
    हमने जब भी लिखा हमें ये आत्म मुग्धी का बुखार कभी नहीं चढ़ा, हमेशा दूसरों का लिखा हमें ज्यादा भाया। इतना भाया कि अब हम जब भी की बोर्ड पर उंगलियां नचाते हैं तो लगता है क्या बचकाना लिख रहे हैं। लेकिन अनूप जी का ये कमैंट पढ़ कर एक बात की तो शांती हो गयी कि हम कम से कम दूसरों के लिखे पर मुग्ध हो जाते हैं तो वो तो नहीं सीखना पढ़ेगा, इसका मतलब लिखना भले न आता हो अच्छे लिखे को पहचानने की समझ तो है। उनका ये कहना कि आदमी को डिजिटाइज न किया जाए, एक्दम सही है लेकिन ऐसा न करना उतना ही मुश्किल भी है

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  23. भाई अरविंद जी
    मैं कोई धाकड़ लिक्खाड़ चिट्ठाकार नहीं हूं। भाई पीसी रामपुरिया की तरह ब्लाग मेरे लिए एक माध्यम है कुछ अपनी ही तरह के लोगों से संवाद का। चिट्ठाकार महान हैं या टिप्पणीकार इसपर इतने विद्वतजन चर्चा कर चुके हैं कि मुझ जैसे नाचीज को कुछ कहना मुनासिब नहीं लगता। क्योंकि मेरा मानना है कि मुझसे ज्यादा महान फिलवक्त दुनिया में कोई नहीं है। आपकी बात दूसरी है। आपको बता दूं कि सुल्तानपुर जिला बनने से पहले जौनपुर का तालुका हुआ करता था। सो हम तो आपके तालुकेदार हैं।
    आपके द्वारा अपने पिता जी को दी गई शब्द श्रद्धांजलि पढ़कर पलकें नम हो गई थीं लेकिन आपने कहा था कि टिप्पणी आवश्यक नहीं है तो मैंने समझा कि आप इस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। आज देखा तो उसपर दो दर्जन से भी अधिक टिप्पणियां थीं। उन्हें मेरा प्रणाम।

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  24. good enough
    दीपावली की हार्दिक शुबकामनाएं

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  25. "निंदक नियरे राखिए,आंगन कुटी छवाय.
    बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय."

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  26. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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