दीपावली पर हम मैया लक्ष्मी की पूजा की तैयारियां कर रहे हैं तो लगे हाथ लक्ष्मी मैया के वाहन का भी पूजन- स्तवन हो जाय !पर क्या कभी आपने विचार किया कि लक्ष्मी वाहन उल्लू ही क्यों ? सरस्वती का वाहन हंस है -फिर लक्ष्मी का वाहन उल्लू क्यों ? उल्लू जिसे मूर्खता के अर्थ में रूढ़ मान लिया गया है .पर क्या उल्लू सचमुच मूर्ख है ?
वैज्ञानिक राय बिल्कुल भिन्न है -वे उल्लू को एक बेहद सजग रात्रिचर प्राणी मानते हैं -उसका मुंह तो देखिये दीगर परिंदों से बिल्कुल अलग उसके "धीर गंभीर " से चेहरे पर आंखे बिल्कुल सामने हैं .वह हल्की सी आहट पर चौकन्ना हो जाता है .शायद इन्ही खूबियों के चलते हमारे आदि कवि मनीषियों ने लक्ष्मी को वाहन के रूप में उल्लू का तोहफा दिया होगा ? पर एक अच्छे खासे से पक्षी को भारतीय सन्दर्भ में
उल्लू क्यों मान लिया गया ? जीहाँ यूनान में उल्लू बुद्धि का प्रतीक माना गया है -अंगेरजी में ऐन आवलिश अपियर्रेंस का मतलब ही है विद्वता पूर्ण चेहरा और अक्सर न्यायधीशों के लिए 'ऐन आवलिश अपीयरेंस ' का जुमला इस्तेमाल होता है .वह कविता भी आपने शायद सुनी पढी हो -एक विग्य उल्लू बैठा था ओक की डाल पर ......
फिर ये माजरा है क्या -उल्लू यहाँ भारत में ही
उल्लू क्यों है ? यह मामला है सदियों से विपन्नता का दंश झेल रहे भारतीय कवि मनीषियों का जिन पर लक्ष्मी कभी भी कृपालु नहीं रहीं -तो यह एक खीझ है जो कभी हजारो साल पहले हमारे पूरवज मनीषियों ने लक्ष्मी पर उतारी थी, उन्हें वाहन के तौर पर उल्लू अलाट कर और उसे मूर्खता का जामा पहना कर ।
किसी भी विद्वान को लें लक्ष्मी न जाने क्यों उससे रूठी हुयी हैं -अब अपवाद के तौर पर ऐसे लोग भी दिख जाते eहै जिन पर सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की कृपा होती है मगर पुराण -इतिहास गवाह है विद्वान् ज्यादातर पैसे कौडी के मामले में 'दरिद्र' ही रहे हैं -उन पर लक्ष्मी कभी भी कृपालु नही रही हैं -इसलिए ही विद्वानों को ख़ुद को सरस्वती पुत्र eकहलाने में ज्यादा गौरव की अनुभूति होती है .और उहोने भी सदियों से ही लक्ष्मी की घोर उपेक्षा से खिन्न होकर उनके साथ सरस्वती की तुलना में काफी भेदभाव किया है और अपनी खीझ मिटाई है ।
अब यही देखिये सरस्वती को उन्होंने वाहन के रूप में हंस अलाट किया -कितना सुन्दर है हंस -यही नही उसमें नीर क्षीर विवेक की भी क्षमता डाली -वह केवल मानसरोवर का मोती चुगता है .जब लक्ष्मी जी को वाहन अलाट करने की बात आयी तो उनके लिए ऐसे वाहन की तलाश शुरू हुई जो रात्रि चर हो क्योंकि धन /कालाधन कमाने के सारे कामधाम रात के अंधेरे में ही संपन्न होते हई ,वह वाहन मांसाहारी हो यानी वैष्णवी वृत्ति से दूर ! मजेदार तो यह कि विष्णु को भी धता बता कर एक घोर अवैष्णवी वाहन लक्ष्मी को दिया गया .यह घोर मांसाहारी है -क्रूरकर्मा है .आदि आदि और लगता है इससे भी कविजनों को संतुष्टि नही हुई तो उसे मूर्खता के अर्थ मे
भी रूढ़ कर प्रकारांतर से मानो यह कहा गया कि लक्ष्मी केवल उल्लुओं पर ही मेहरबान होती हैं - लक्ष्मी द्बारा की जा रही उनकी घोर और निरंतर उपेक्षा से ऊब कर उनके प्रति अपना आक्रोश यूँ जाहिर कर दिया और वृथा न जाई देव ऋषि वाणी के अनुसार वह व्यवस्था कालजयी बन गयी है ।उल्लू
उल्लू न होने के बावजूद भारतीय मनीषा में मूर्खता का पर्याय बना है .
अब ज्ञानी जन भी यह मानते भये हैं कि
बदलते परिदृष्य में वित्त का जुगाड़ ज्यादा जरूरी है .अतः हे माँ लक्ष्मी के वाहन मैं तुमसे अपने पुरनियों के किए धरे की माफी माँगता हूँ -तू तो मेरे घर का द्वार लक्ष्मी मैया को दिखा और इस नयी नयी हिन्दी ब्लॉगर बिरादरी के यहाँ भी उनका कम से कम एक विजिट करा दे .....हम तुम्हे ज्ञानी मानते हैं -हम नए युग के लोग है अर्थ की महिमा को बखूबी मानते हैं -अतः हे निशाचर मुझ अकिंचन पर भी रहम कर -हमारे पूर्वजों के किए धरे की खामियाजा हमसे मत वसूल -हम हंस को नही अब तुम्ही को पूजने को तैयार है - अभी से इसी दीपावली से ! जय उल्लू भ्राता की ! जय लक्ष्मी मैया की !
मित्रों आप सभी को दीपावली पर्व पर सुख -समृद्धि की हार्दिक शुभकामनाएं !