प्रधान मंत्री जी गंगा के शुद्धिकरण को लेकर आप कटिबद्ध हैं। मगर तनिक रुकिए - गंगा शुद्ध हो यह कोटि कोटि जनों की मांग है।  गंगा संस्कृति प्रसूता है  और  जनभावनाओं से  गहरी जुडी हैं।  कहा गया है कि गंगा के दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है -गंगा तव दर्शनात् मुक्तिः! और अब तो गंगा हमारी राष्ट्रीय नदी भी हैं।  मगर गंगा शुद्ध और निर्मल रहें यह एक बड़ी चुनौती हैं -हाँ उनकी  पवित्रता को लेकर आस्थावानों में कोई संदेह नहीं, भले ही आज की गंगा में  डुबकी लगाने से परम श्रद्धावान तक भी हिचक जाते हैं।  किसी भी पर्यावरणविद से पूछिए वह आंकड़े देकर बता देगा कि गंगा में  प्रदूषण के तमाम मापदंड और संकेतक अब इसे विश्व की अनेक प्रदूषित नदियों की सूची में  ला रखते हैं और अब यह कोई विवादित मुद्दा भी नहीं है।  मगर मुद्दा यह जरूर है कि अब इसे अपनी स्वाभाविक दशा में कैसे लाया जाय। यह कतई एक आसान मुहिम  नहीं है।  
जानकारी मिली है कि  गंगा  को लेकर अपनी वचनवद्धता के चलते इस महायोजना पर आपके आदेश से  धनराशि का आबंटन शुरू भी हो गया है।  मगर तनिक रुकिए प्रधानमंत्री जी! आपसे भी वही भूलें न हो जायँ जो पहले की सरकारें करती    आयी हैं।  गंगा 
शुद्धिकरण के नए अभियान पर धनराशि मुक्त करने के पहले यह सुनिश्चित करना होगा   कि इस महा अभियान की नईं कार्य योजना क्या है और उसके विभिन्न चरण और उनके समापन की  
समयावधियां क्या होगीं? गंगा की सफाई एक बहुल रणनीतिक /गतिविधि प्रक्रिया है।  बड़े 
बांधों से गंगा का  अविरल प्रवाह कैसे मुक्त होगा ? किनारे के औद्योगिक 
कचरों का प्रवाह कैसे रुकेगा ? शहरों के मलजल के  निपटान की वैकल्पिक कारगर 
युक्ति क्या होगी ? नदियों को जोड़ने की 
महत्वाकांक्षी परियोजना को कब अमली जामा पहनाया जाएगा ? गंगा और सहायक नदियों में समय के साथ जो गाद इकठ्ठा होती आयी है उसे कैसे निकाला जाएगा? नदियों के तल काफी उथले हो चले हैं।  उनकी जलधारण क्षमता  कम     होती गयी है।  खनिज निस्तारण की गलत नीतियों के चलते कई जगहों पर रेत/बालू के ढूहे  उठे हुए हैं जिनका निरंतर विवेकपूर्ण निस्तारण भी होना  चाहिए।  बनारस  शहर के  गंगा के उस पार के तट पर पिछले कई वर्षों से कछुआ अभयारण्य की दुहायी देकर रेत की सफाई न होने देने से जल दबाव शहर के घाटों की और बह  रहा है   . किसी दिन यह शहर में भारी तबाही का कारण बन सकता है।  
बनारस की गंगा की दशा कम  शोचनीय नहीं है।यहाँ स्नान ध्यान के लिए श्रद्धालुओं का भारी ताँता रोज ही लगा रहता है मगर शहर का मलजल कई जगहों पर सीधे नदी में ही गिरता है।  एक तो राजघाट के करीब सरायमुहाना गांव के पास ही वरुणा संगम के नजदीक ही गिरता रहता है -देखकर ही जुगुप्सा उत्पन्न होती है। बिना मलजल निस्तारण के ठोस और भरोसेमंद विकल्प के गंगा कैसे निर्मल होंगी? गंगा की सफाई का जुमला आसान है मगर क्रियान्वयन के लिए फिर से एक भगीरथ प्रयास की जरुरत है।  कानपुर के औद्योगिक कचरे को गंगा में गिराये जाने से रोके बिना  हम इस नदी के शुद्धिकरण का जाप कैसे कर सकते हैं?कितने ही प्रयास तो हुए मगर औद्योगिक घराने कोई न कोई बचने का तरीका निकाल लेते हैं और उन्हें तंत्र को संतुष्ट करते रहने की कला भी आती है।  हमने छोटे बांधों के बजाय दैत्याकार बांधों के निर्माण की नीति बनायी।  यह भी एक प्रमुख कारण है कि गंगा का अविरल प्रवाह बाधित हुआ।  अब हम कैसे इन बड़े बाँधों से गंगा के प्रवाह को मुक्त करेगें।  गंगा से बढ़कर तो शोचनीय दशा सहायक नदियों की है -यमुना ,गोमती और सई नदियां अपने अस्तित्व की आख़िरी जंग लड़ रही हैं।  गंगा शुद्धिकरण की कोई एकल प्रयास नीति तब तक सफल नहीं है जब तक उसकी सहायक नदियों को लेकर एक समेकित योजना को मूर्त रूप न दिया जाय।  
हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी जी ने नदियों को जोड़ने की एक महत्वाकांक्षी  परियोजना सुझायी थी , उस पर कार्य ठप है.  कुछ अतिवादी पर्यावरण विरोधी इसका मुखर विरोध करते रहे हैं।  वर्तमान सरकार की मंत्री मेनका गांधी जी भी इसके पक्ष में नहीं रही हैं।  मेरी अल्प समझ में अब भारत की नदियों के उद्धार के लिए इससे बेहतर कोई और उपाय नहीं है -पर्यावरण  असंतुलन का हो हल्ला मात्र एक मिथक है कोई सच नहीं।  विश्व में अनेक भौगोलिक बदलाव खुद कुदरत कर देती है मगर कालांतर में सब कुछ सहज हो लेता है , भारतीय नदियों को जोड़ देने से ऐसा कोई पर्यावरणीय कोहराम नहीं मचने वाला है -बल्कि कई प्रजातियों को और भी व्यापक क्षेत्र विकसित होने को मिल सकता है जो अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं।  गंगा की सूंस डॉल्फ़िन जो हमारे  जलतंत्र का राष्ट्रीय जीव है उसे अन्य नदियों में विस्थापन की कार्य योजना क्यों तैयार नहीं हो सकती?    
प्रधानमंत्री जी!  ये सारे मुद्दे 
गंगा के निर्मलीकरण के लिए महत्वपूर्ण और अपरिहार्य हैं  ! पहले इन बिन्दुओं पर एक तूफानी 
ब्रेन स्टॉर्मिंग करके एक निश्चित कार्ययोेजना तैयार करना ज्यादा जरूरी लग रहा है।   अन्यथा इस 
नयी मुहिम पर निर्गत बजट को भ्रष्ट इंजीनियर ,नेता - ब्यूरोक्रैट नेक्सस 
तथा  छुटभैये नेता डकार जायेगें और फिर केवल नाकामी हाथ लगेगी! और इस सरकार के रिपोर्ट कार्ड में गंगा के शुद्धिकरण का उल्लेख तो करना ही होगा! 

