मंगलवार, 7 मई 2013

घर में घुस आया वह अनचाहा संगीतज्ञ!

वह संगीतज्ञ कब से हमारे घर में घुसा बैठा था मुझे पता ही नहीं चला . वो तो रात में पहली झपकी के दौरान ही एक ऐसे तेज संगीत से नीद उचट गयी जिसके आगे जाज और बीटल्स सब फेल थे ....नींद टूटने के बाद अपने को संयत करते हुए ध्यान संगीत के स्रोत की और फोकस किया ...ऐसा लगा कि कर्कश संगीत लहरियां मेरे स्टडी रूम से आ रही हैं। भारी मन से उठा और ताकि देख सकूं यह बिन बुलाया मेहमान कब से चुपके से आ गया था मेरे स्टडी कक्ष में -जयशंकर प्रसाद की एक कविता भी अनायास याद आयी -पथिक आ गया एक न मैंने पहचाना ,हुए नहीं पद शब्द न मैंने जाना ...कर्कश स्वर लहरी के बीच यह रोमांटिक कविता का यकायक स्मरण होना और नींद में खलल पड़ना -इस सिचुएशन पर एक बेबस मुस्कराहट भी होठों पर आ धमकी ...बहरहाल अब मैं अपने स्टडी कक्ष में था मगर ऐसा लगा आवाज कभी इधर तो कभी उधर से आ रही थी ....

रात के ११ बज रहे थे और मैं अपने स्टडी कक्ष  के दरो दीवार को निहार रहा था कि आखिर संगीत  लहरियां फूट कहाँ से रही हैं? मैं इधर उधर नजरे घुमाता उस संगीतज्ञ को ढूंढो ढूंढो रे की तर्ज पर ढूंढ रहा था .आखिर वह मिल ही गया .दरवाजे के कोने में संगीत की तान लेता वह पकड़ा गया .अब आपकी जिज्ञासा को और भटकाने के बजाय बता ही दूं कि ये एक झींगुर महराज थे जो मदमस्त हो गाये  जा रहे थे -मगर स्वर लहरी इतनी कर्कश कि सोता हुआ उठ के बैठ जाय और मुर्दा भी उठ के भाग जाय . जी हाँ ! मैंने उन्हें उनके पंखों से उठा कर बाहर फेंक दिया ...थोड़ी देर तो शान्ति रही मगर फिर वही संगीत बाहर से भी सुनायी पड़ने लगा. दरअसल झींगुर यानी 'क्रिकेट' अपने आगे के आरीनुमा पंखों को रगड़ कर यह आवाज पैदा करते हैं . यह खुद से दुश्मनों /रकीबों को दूर रखने का तरीका तो है ही, साथ ही मादाओं को प्रणय के लिए रिझाने की कवायद भी है .
 
आखिर मिल ही गए महाशय !
झींगुरों द्वारा संगीत उत्पन्न करने की इस प्रक्रिया को स्ट्रिडुलेशन कहा जाता है . इन्हें एक और करामात आती है जिसे वेन्ट्रीलोक्विजम कहते हैं . यह भला वेन्ट्रीलोक्विजम क्या है ? यह एक ऐसी आश्चर्यजनक क्षमता है जिससे आवाज को उसके निकलने के मूल स्थान के बजाय किसी और स्थान से निकलने का आभास होता  है . यही कारण है कि जब भी कोई झींगुर आवाजें निकाल रहा हो आप उसे आसानी से ढूंढ नहीं सकते क्योकि आवाज कहीं और से निकलती सुनायी देती है . इस कला में कुछ पुतलेबाज भी माहिर होते हैं जो बोलते तो खुद है मगर उनकी आवाज पुतले के मुंह से निकलती हुयी लगती है .


प्राचीन काल के मंदिरों के पुजारी इस कला के माहिर हुआ करते थे और मंदिर में आये अपने जजमानों को सहसा 'आकाशवाणी' सुना कर चमत्कृत करते थे -मतलब वे बोलते तो खुद थे मगर ऐसा लगता था कि आवाज कहीं दूर से आ रही है -इसमें पेट की मांसपेशियों के सहारे फेफड़ों पर बल देकर आवाज को प्रोजेक्ट किया जाता था .....इसलिए इस कला का नाम पेट बोली भी है .  अब यह लुप्तप्राय है मगर झींगुरों में अभी भी यह क्षमता विद्यमान है -सच कहता हूँ उस रात इस कीट महराज ने मुझे काफी छकाया मगर मैं भी कुछ कम जीव नहीं ,जीव विज्ञान का खिलाड़ी हूँ सो साहबजादे को ढूंढ ही निकाला .


तनिक आप भी सुनें न यह संगीत!

अब अगली बार जब आपका पाला किसी संगीत रस में डूबे झींगुर मोशाय से पड़  जाय तो तनिक उन्हें ढूँढने का प्रयास करियेगा -अरे अरे उस दिशा में नहीं, जहाँ से आवाज आ रही हो बल्कि उससे  अलग कहीं भी :-) हमने कितने ही गुण इन कीट पतंगों और जीव जंतुओं से सीखे हैं और आज उसी पर एक नयी प्रौद्योगिकी ही आकार ले रही है जिसका नाम है बायो-मिमिक्री यानी जैव अनुहरण जिसके बारे में कभी विस्तार से साईब्लाग पर चर्चा होगी . अब बताईये कैसी लगी यह पोस्ट? :-)

39 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट। बरसात में झुंगुरों और मेढकों की जुगलबंदी सुनने का मजा ही कुछ और है।

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    1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
      आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
      आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
      सूचनार्थ...सादर!

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  2. झिंगुर की आवाज ऐसी है जो शायद ही कोई कह सके कि उसने नही सुनी. लेकिन सलाम आपको जो आज आपने झिंगुर की फ़ोटो के अलावा विडियो भी दिखा दिया. आज तक नही देखा था. कभी कभी इनकी आवाजे वाकई परेशान कर डालती हैं. पर इनकी आवाज का मतलब और संदेश आज मालूम पडा. बहुत ही उत्कृष्ट जानकारी.

    रामराम.

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  3. और हां, ऊपर की टिप्पणी में यह लिखना तो भूल ही गये थे कि समझदार दोस्तों की संगति के फ़ायदे ही फ़ायदे हैं.:)

    रामराम

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  4. वेन्ट्रीलोक्विजम की नयी जानकारी मिली. इसका अनुभव तो है क्योंकि आवाज़ की दिशा में झींगुर कभी मिलता नहीं था. हम अपने कानों को दोष देते रहे.यह आलेख बडा ही ज्ञानवर्धक रहा. आभार.

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  5. एक बार यह महाशय हमारे बाथरूम में कहीं से घुस कर छिप गए, और यकीन मानिए, पूरे सप्ताह भर बाद पता चला कि ये अपना गान कहाँ से गा रहे थे अनवरत!

    और, घर की शांति उस दौरान तो जाहिर है छिनी हुई ही थी!

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  6. बढ़िया ज्ञानवर्धक लगी यह पोस्ट .

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  7. झींगुर के द्वारा आवाज़ निकालने का तरीका आपने बताया वह तो ग्राह्य है परन्तु वेन्ट्रीलोक्विजम की बात समझ में नहीं आ रही है. यही कि वह पेट से कैसे आवाज़ निकालता है. यह भी समझ में आ रही है कि उसका चीत्कार वेन्ट्रीलोक्विजम जैसा ही है। कहीं ऐसा तो नहीं की वह जिस फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करता है वह तत्काल हमें सुनाई नहीं देती या फिर केवल उसकी प्रतिध्वनि ही हमारे श्रवण शक्ति के अन्दर है.

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    1. सुब्रमन्यन जी ,
      झींगुर तो अपने आगे के पंखों से ही आवाज उत्पन्न करते हैं -अब इनमें वेंन्ट्रीलोक्विजम का प्रभाव कैसे उत्पन्न होता है -अगर कोई शोध हुयी है तो मुझे जानकारी नहीं है -मगर वेंन्ट्रीलोक्विजम का प्रभाव तो प्रत्यक्ष है !आप की हायिपोथेसिस भी सच हो सकती है मगर इसे टेस्ट कैसे किया जाय ?

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  8. ab sangeet to aapko sunana hi tha door se ya paas se ..bas aanad aaya...

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  9. वाह ...
    नयी जानकारी अरविन्द भाई !
    शायद ही किसी ने इनपर कभी कलम चलाई हो ..
    अब यह आपके शिष्य हो गए समझिये ! :)

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    1. शिष्य हो गये फ़िर तो रोज सुबह शाम गुरू वंदना गाने आये करेंगे ये, फ़ंस गये मिसिर जी चेले के जाल में.:)

      रामराम.

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  10. वाह
    बहुत सुंदर प्रस्तुति मेरे लिए नई जानकारी ,,,

    RECENT POST: नूतनता और उर्वरा,

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  11. इनका तो नाम सुनते ही ये विशेष संगीत कानों में गूंजने लगता है .....

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  12. हमने तो एक पॉडकास्ट ही इनकी धुन के साथ बनाया हुआ है ....फिलहाल खोजना होगा ...मिलते ही सुनवाते है,आपको और आपके साथ सबको ....

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  13. यहाँ तो झींगुरों से मुलाक़ात नहीं हो पाती है. मगर मेरे गाँव में घर के आस पास के गड्ढों में आषाढ़ में रात के समय मेंढकों का सुर में गायन स्मृति में अब भी तरोताज़ा है. हाँ कुछ आवारा कुत्ते भी थे जिनका हर रात सुर में विलाप होता था. वो भी बहुत खलल डालते थे नींद में.

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  14. .
    .
    .
    अच्छी जानकारीप्रद पोस्ट,

    पर एक बात समझ नहीं आई वह यह कि "दरअसल झींगुर यानी 'क्रिकेट' अपने आगे के आरीनुमा पंखों को रगड़ कर यह आवाज पैदा करते हैं . यह खुद से दुश्मनों /रकीबों को दूर रखने का तरीका तो है ही, साथ ही मादाओं को प्रणय के लिए रिझाने की कवायद भी है ." तो वेन्ट्रीलोक्विजम क्यों ?... ऐसे में तो होगा यह कि आवाज निकालने में मेहनत की किसी एक अभागे ने और मादा गई किसी चुप बैठे दूसरे भाग्यवान की ओर... क्या मादा की श्रवण क्षमता भिन्न प्रकार की है, थोड़ा और प्रकाश डालिये इस पर... मेरी सहज बुद्धि तो यही कहती है कि जनाब वेन्ट्रीलोक्विजम वाली आवाज निकालते हैं केवल कबाब की हड्डियों को टरकाने को और प्रणय गंध आधारित चुपचाप किया जाता है...


    ...

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    1. प्रवीण जी ,
      वेंन्ट्रीलोक्विजम तो मुख्यतः गैर प्रजाति के शिकारियों से बचने का तरीका है -रकीबों से नहीं -वे पास आ जाते हैं तो पहले अपने स्पर्शकों से यह देखता है कि वह वह कोई कीट अभिसारिका है या फिर कोई रकीब? रकीब तो फिर छिड़ जाता है युद्ध जो कई बार प्रतिद्वंद्वी की जान लेकर ही शांत होता है -विजयी अभिसार का आनन्द उठाता है ! इतना ही कहूँगा कि अभी भी इस कीट व्यवहार पर व्यापक शोध की गुंजायश है!

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    2. आपकी हाईपोथीसिस में भी दम है!

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  15. झींगुर इतना करामाती है , हमको पता नहीं था . पेट बोली की जानकारी भी रोचक है !
    रोचक विडियो , जानकारी और पोस्ट भी , पूछा इसलिए बताया !

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  16. झींगुर की आवाज़ ... कितने दिनों बाद सुन रहा हूं इसे ... दुबई में तो ऐसी कीड़े, मकोडों की आवाजों को तरस जाते हैं ... हां आने वाले समय में शायद सुनने को मिलें ...

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  17. अब तो फ्रिज और पंखे की आवाज में ये प्राकृतिक आवाजें छिप गयी हैं।

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  18. कमाल करते हैं मिश्र जी ! एक प्रेमालाप करते हुए निरीह कीट को नाहक वंचित कर दिया। :)

    वैसे झींगुर के बारे में जानकर अच्छा लगा। क्रिकेट कम्बोडिया में बड़े चाव से खाए जाते हैं क्योंकि वहां इन्हें हाई प्रोटीन डाईट माना जाता है। एक बार एन्जिलिना जोली भी अपने गोद लिए हुए कम्बोडियन बच्चे मेडोक्स को लेकर वहां गई थी क्रिकेट खिलाने के लिए ताकि वह अपने मूल पारंपरिक भोजन के स्वाद से वंचित न रहे।

    फ़िलहाल विडिओ देख नहीं पा रहे हैं। हालाँकि कल्पना कर ही आवाज़ कानों में गूंजने लगी है।

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  19. झींगुरों के गान से नींदें तो खराब अपनी भी हुई हैं, मगर इतनी जानकारी इस पोस्ट से ही मिल पाई.

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  20. पोस्ट दिखने में बढ़िया लग रही है पर पढ़ नहीं पा रहा हूँ.
    खेद्सहित
    आपको शुभकामनाएँ !

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  21. वेन्ट्रीलोक्विजम के बारे में काफी सुना और पढ़ा है. सबसे पहले किसी विज्ञान गल्प में इसके बारे में पढ़ा था.
    क्या कोई और जानकारी दे सकते हैं इसके बारे में?

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  22. नागालैण्ड के जंगलॊ में एक इसी तरह का कीड़ा पाय जाता है. लेकिन उसके द्वारा उतपन्न की गयी ध्वनि इतनी कर्कश होती है कि आप उसके आसपास भी नहीं खड़े हो सकते , झींगुर को तो मान लीजिये मजबूरी में झेला भी जा सकता है, उसे झेलना बहुत ही कठिन है , उसके पूंछ के पास एक छॊटी सी चरखी होती है जिसे सुपरसोनिक रफ्तार में घुमा कर वह अत्यन्त तीक्ष्ण ध्वनि पैदा करता है, नाम पता नहीं क्या है ! और होता झींगुर से भी छोटा है , काला सा.

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  23. बहुत सुन्दर जबलपुर के सांध्य दैनिक समाचार पत्र दिनांक १४ मई १3 के अंक में "प्रदेश टुडे " में यह आलेख प्रकाशित किया गया ...आभार

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  24. पहली जानकारी तो थी हमें कि झींगुर की आवाज़ उसके आगे के पैरों से निकलती है, लेकिन दूसरी बात नयी पता चली.

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