इस बार की दिल्ली यात्रा में एक दोस्त से जिनसे हम काफी दिनों से दूर दूर हो गए थे मुलाकात हो गयी -मुलाकात क्या हुई बाहं पकड़ घर तक ले गए ..दुखवा सुखवा हुआ ...डॉ.कृष्णानन्द पाण्डेय हमारे विश्वविद्यालयी दिनों के लंगोटिया यार हैं ..अब ये बात दीगर है कि तब हम लंगोट पहनना छोड़ चुके थे और रूपा का अंडरवीयर भी उन दिनों प्रचलन में नहीं था ..हम शाम निर्वाचन सदन के गेट के बाहर निकले तो डॉ.पांडे जी सामने कार सहित विराजमान थे ..खुद चला के आये थे ..आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ..उन्हें स्कूटर भी चलाते कभी जो देखा नहीं था ...और दिल्ली में ड्राईविंग भी कम मुश्किल तलब नहीं -पक्के दिल्ली वाले सतीश भाई अभी कल ही तो दो बार दिल्ली पुलिस द्वारा टोके(ठोकें नहीं!) गए थे ..वह तो उनके परिचय पत्र पर भारत सरकार की बड़ी सी सुनहली अशोक लाट हर मौके पर अभयदान दे देती है वरना ....वैसे तो डाक्टर पाण्डेय जी भी बड़े ओहदे पर हैं -आई सी एम् आर में डीडीजी हैं मगर अब सतीश भाई के बुद्धि चातुर्य और ब्लॉगर - रसूख की कोई सानी नहीं है!
डॉ.पाण्डेय के फ़्लैट में फुर्सत के क्षण
पहले तो हम पांडे साहब की कार में थोडा हिचके मगर फिर आराम से बगल बेल्ट लगाकर सहज हो गए और दिल्ली की सडको पर उनकी कार फर्राटा हो ली ...वाकई बहुत अच्छा ड्राइव कर रहे थे डॉ.पांडे ....अब मुझे अम्बेसडर के अलावा कोई कार तो पहचानी नहीं जाती (सच में,बच्चों से पूछ लीजिये!) मगर उनकी कार भी शानदार थी ..कार चलाते समय पाण्डेय जी की नज़र इतनी पैनी कि आजू बाजू के दूर खड़े पोलिस को भी देख मुझे बताते जा रहे थे कि यहाँ कार चालकों पर पुलिस की गिद्ध दृष्टि रहती है गलत लेंन या मोबाईल पर बात करते ही धराने की पूरी आशंका है और बिना चालान -जुर्माने के बचना मुश्किल ...इसलिए मुझे उनकी कुछ मोबाईल काल को खुद अटेंड करना पड़ा ...पहले मुझे वे दक्षिण दिल्ली के मालवीय नगर ले गए जहां मेरी बहन ज्योत्स्ना रहती है और उसके श्वसुर और मेरे पिता तुल्य इंजीनियर मिश्र जी की ओपन हार्ट सर्जरी हुयी थी ..उन्हें देखने और शुभकामनाएं देने के बाद डॉ पांडे एक लम्बी ड्राईव पर मुझे लेकर चले -नोयडा ....जहाँ उनका अपना आशियाना है ...डॉ.अमिता पांडे जी अब उनकी सहचरी हैं जो कभी विश्वविद्यालयी सहपाठी थीं ..अब पांडे साहब और वे एक दूसरे से वहीं विश्वविद्यालय में शोध के दौरान ही प्रणय -परिणय आबद्ध हो गए थे ..हम ठगे से रह गए ...यह एक अलग कहानी है ..फिर कभी!
अब दो पुरनियां दोस्त मिल बैठे तो बस उस नज़ारे की कल्पना ही कीजिये ...सुस्वादु भोजन हुआ रात १ बजे तक हम गपियाते रहे ...कुछ इधर कुछ उधर की ..कुछ गोपन कुछ खुले आम ..मुझे तो हिचक नहीं मगर खुद पाण्डेय जी बुरा मान जायेगें अगर मैंने कुछ भी ईलाबोरेट किया तो... कितने ही पुराने दोस्तों की यादे हो आयीं कोई सुधा पाण्डेय,कोई इंदु श्रीवास्तव कोई के के सिन्हा ,कोई प्रदीप श्रीवास्तव.. कोई.... छोडिये अब गए दिनों के दोस्त कब से ब्लागिंग मैटेरियल होने लगे ..कहीं बुरा न मान जायं!सुबह हम जल्दी उठ भी गए और डॉ पाण्डेय जी फिर मुझे एक लम्बी मगर खुशनुमा ड्राइव पर ले अपने संस्थान आई सी ऍम आर पहुंचे ....दिल्ली का मेरा यह चौथा दिन था ....
आई सी एम् आर में मेरे काबिल दोस्तों का जमघट सा है ...ये लगभग सभी एक ही कालखंड के प्राणी विज्ञान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राणी ...ओह सारी ,सहपाठी हैं -डॉ .विजय कुमार श्रीवास्तव ,डॉ .रजनीकांत ...अब एक ही कालखंड के इत्ते सारे लोग एक ही प्रीमियर संस्थान में? ..इसके बारे में हम अभी नहीं अपनी आत्मकथा में बताएगें...आपको इंतज़ार करना होगा! यहीं मेरी मुलाकात एक और भूले बिसरे साथी से हुयी, हर दिल अजीज सदाबहार रणबीर जी से जो एक महान संस्थान के पी आर ओ है..एक बढ़िया व्यक्तित्व के मालिक ....पुरातत्व , धरोहरों और संस्कृति के दीवाने ..धरोहर वाले अभिषेक मिश्र से गुजारिश है कि वे डॉ. रणबीर जी की शागिर्दगी जरुर कर लें ..मेरे परिचय का पासपोर्ट इस्तेमाल में लाये ...रणबीर जी खुद ब्लॉगर नहीं है यह मुझे अच्छा नहीं लगा ..मगर वे भी कम नहीं -मुझे ब्लागिंग/गूगलिंग से मस्तिष्क की क्षमता का क्षरण होने वाला एक वैज्ञानिक लेख थमा दिया... वे ऐसे ही हैं!
डॉ पांडे जी ने अपने संस्थान से एक दक्ष ड्राईवर का इंतजाम किया और मैं १२.३० तक एअरपोर्ट पहुँच गया ...उड़ान टर्मिनल एक से थी ..यह टर्मिनल ३ के मुकाबले तो शानदार नहीं मगर फिर भी साफ़ सफाई और चमक दमक में कुछ कम भी नहीं ...स्पाईसजेट के इस एयर क्राफ्ट का नाम 'सिन्नामोंन' -दालचीनी था -स्पाईसजेट के विमान किसी न किसी मसाले के नाम पर हैं -पिछली बार मेरी यात्रा लौंग नामधारी विमान में हुयी थी ....२ बजकर १० मिनट पर हम बनारस को उड़ चले ...
हाईस्कूल में प्रायः पूछे जाने वाले मशहूर निबंध 'चांदनी रात में नौका विहार ' शीर्षक की याद दिला गया हवाई यात्रा का सफ़र ...क्योकि यह वर्षा ऋतु में गगन विहार का अवसर था ..घने काले और सफ़ेद बादलों की अठखेलियों के बीच विमान का उड़ना मुझे एक घंटे से कुछ अधिक की यात्रा में निरंतर रोमांचित करता रहा ..कभी लगा हम एक विशाल नीले सागर में फैले ढेर सारे शुभ्र धवल हिम खण्डों के ठीक ऊपर से हम गुजर रहे हों और कभी जैसे हिमालय श्रृंखला के ऊत्तुंग पहाड़ों के ठीक ऊपर से जा रहे हों ...और कभी काले कलूटे लघु बादलों का समूह हमारी और झपटता रावण की मिथकीय सेना का प्रतीति करा रहा था जिसका नेतृत्त्व मानो ' महाविराट कज्जल गिरि' जैसा कुम्भकर्ण कर रहा हो -अद्भुत अविस्मरणीय ..मैं मंत्रमुग्ध सा ही रहा कि विमान के बनारस लैंड करने की घोषणा हो गयी .. ..सिफारिश यह कि कभी वर्षा ऋतु में गगन विहार का यह लुत्फ़ जरुर लें अगर अभी न लिया हो तो...पैसा वसूल की गारंटी ...अब हवाई सेवायें सस्ती भी हो गयी हैं ...कुल मिलाकर दिल्ली की यह यात्रा शानदार और जानदार रही ....अनेक कारणों से यादगार भी!