बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

मौन ही मुखर है आज ...

मौन को महिमामंडित करने में हमारे प्राचीन अर्वाचीन मनीषी प्रायः मुखर होते रहे हैं . मुनि शब्द ही मौन धारण करने की गुणता के कारण है .मौन आपकी स्वच्छन्दता  का कारण हो सकता है -
आत्मनः गुण दोषेण बंध्यते शुक सारिका 
बकाः तत्र न बध्यते ,मौनं सर्वार्थ साधनं

अर्थात वाचालता के   अपने गुण /दोष के चलते ही तोते और मैना पिजरे में कैद हो जाते हैं ;मगर बगुला चुप्पी लगाये रहने के कारण ही स्वतंत्र रहता है -मतलब मौन रखने से सब कुछ साधा जा सकता है ....अंगरेजी साहित्यकारों की ऐसी उक्तियाँ हैं कि वाचालता  रजत है जबकि मौन स्वर्ण या फिर पानी वहां शांत बहता है जहाँ सोता गहरा होता है ...साथ ही यह भी कि खाली शीशी जोरदार आवाज करती है (इम्प्टी वेसेल मेक्स हाई न्वायज ..) और अपने यहाँ भी अधजल गगरी छलकत जाय जैसे मुहावरे चुप रहने की ओर ही निर्देश करते लगते हैं ..ऊपर के संस्कृत श्लोक की ही तर्ज पर एक देशी कहावत भी है कि न निमन्न गीत गायन न दरबार धर के जायन ....

कभी कभी सचमुच समझ में नहीं आता कि मुखर हो जाना ठीक है अथवा मौन ....हाँ यह जरूर है कि अति की वर्जना तो होनी ही चाहिए ....अति का भला न बोलना अति की भली न चूप ..अति का भला न बरसना अति की भली न धूप ...अति सर्वत्र वर्जयेत .....मगर मेरी अपनी तो व्यथा ही अलग रही है -
नतीजा  एक ही निकला 
कि किस्मत में थी नाकामी 
कहीं कुछ कह के पछताया 
कहीं चुप रह के पछताया 
अब  यह तो किसी विडंबना से कम नहीं ....मेरे मन  में ये बाते परसों से न जाने क्यूं उमड़ घुमड़ रही थी कि  सुबह ही सिद्धार्थ जी ने बताया कि आज तो मौनी अमावस्या है यानि जम्बू  द्वीपे  भारत भू खंडे का एक प्राचीन पर्व -एक मौन पर्व जिसका विधान रहा है कि आज के दिन पुण्य सलिला नदियों में स्नान ध्यान दानादि करके यथासम्भव चुप रहना चाहिए ...मानवता का एक गुण है मौनता ....चिर मौन हो जाने के पहले भी मौन होने का  शायद एक पूर्वाभ्यास या चिर मौनता का एक पूर्वाभास :) मतलब मौन रहकर आध्यात्मिकता की अनुभूति .... गंगा स्नान न कर पाने की विवशता में घर में गंगा जल के छिडकाव से  ही मैंने गंधर्व स्नान कर लिया है और यथा संभव मौन रहने के प्रयास में लगा  हूँ ..आप भी कुछ समय मौन रहकर इस पर्व की भावना से जुड़ें -यही अनुरोध है ! 




33 टिप्‍पणियां:

  1. मुखर है आज मौन मंथन!!

    कहते हैं…
    अधिक बोलने वाला सोचता कम है। अधिक सोचने वाला बोलता कम है।

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  2. कल नरक निवारण चतुर्दशी था ..कुछ उसपर भी लिखें ...ये पोस्ट ...सार्थक है ... हृदयग्राही भी ...

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  3. सुन्दर ...सार्थक ..... संदेशपरक ब्लॉग

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  4. मौन का भी अपना महत्व है. और कभी कभी मौन धारण करना आवश्यक भी हो जाता है. बोलना व्यर्थ लगने लगता है तब.

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  5. ऐसा हो सकता है की हमारे मनीषियो ने सोचा होगा की पूरे वर्ष बोलने के पश्चात जीह्वा को भी एकदिनी विश्राम मिले .और एक कहावत और सुनी है मैंने ," सौ वाचाल एक चुप हरावे ". मौनी अमावस्या की आपको शुभकामनाये . चौका घाट से बगले में तो है , निकल लिए होते दशास्व्मेध .

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  6. यदि कोई न सुने तो मौन सुखद है। जो लोग प्रभाव रखते हैं, इस अव्यवस्था में उनका मौन मुखर है।

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  7. नतीजा एक ही निकला
    कि किस्मत में थी नाकामी
    कहीं कुछ कह के पछताया

    भलीभांती समझ सकता हूँ आपकी व्यथा को, स्पष्ठ्वादी को बहुत कुछ सुनना/सहना पड़ता है.
    कहीं चुप रह के पछताया
    अच्छे लेख के लिए आभार !

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  8. मौन रहकर आध्यात्मिकता की अनुभूति ....

    एक अनुपम सन्देश प्रेषित करती हुई
    कामयाब सूक्ति ...
    निर्णय, संकल्प और विवेक
    सबको बल देने वाली

    अभिवादन .

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  9. कहीं कुछ कह के पछताया
    कहीं चुप रह के पछताया
    किस "कहीं" के लिए कौनसा विकल्प परिणाम दायक रहेगा, काश यह हम जान पाते!.

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  10. देश काल और वातावरण के अनुसार बोलने या मौन रहने का निर्णय लेना उचित होगा। गुणीजन इन दोनो का सही उपयोग करते हैं।

    एक कहावत यह भी है कि “सौ बोलतू पर एक चुप्पा भारी” होता है। :)

    वर्धा में आकर मौनी अमावस्या के स्नान का विधान ही पूरा न कर सका। इसमें सुबह बिस्तर से उठने के बाद स्नान करने की प्रक्रिया पूरी होने तक मौन रखना पड़ता है। स्नान के बाद पूजा, और अन्न-द्रव्य आदि दान करने के बाद तिल के लड्डू खाने से मौन टूटता था।

    इस बार मुझे गाँव से अनुस्मारक सूचना मिलने में थोड़ी देर हो गयी।

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  11. मौन रहनें से तमाम समस्याओं से मुक्ति भी तो मिलती है...

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  12. मगर मुझे लगता है मौन को अधिक महत्व देना चाहिए ! कहीं न कहीं मुखरता उस स्थान पर लाकर छोडती है जहाँ अपने आपसे वित्रष्णा होने लगती है ! और बहस करने ऐसे लोग आ जाते हैं जिनकी संगति वर्जित होनी चाहिए तब मौन हो जाना अधिक सार्थक है न कि उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब देना !

    हमें तो आपका यह शेर बहुत पसंद आया....

    नतीजा एक ही निकला
    कि किस्मत में थी नाकामी
    कहीं कुछ कह के पछताया
    कहीं चुप रह के पछताया

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  13. आपने सब कुछ कह दिया....मौन प्रभावी होता है और आत्मघाती भी....
    लेकिन मौन को एक गुण मानना भी सही नहीं है.....
    कहाँ कितना कितनी देर में बोलना है...ये समझ सब में हो तो बस बात ही क्या है.....

    मुखर होना भी एक स्वभाव है....मुझे अच्छा लगता है जो मन में हो स्पष्ट शब्दों में बिना आहात किये सही शब्द का चुनाव कर के कह दिया जाए.....
    मौनी आमवाश्या के शुभकामना.....
    अरे हाँ....आपने आर्द्रा तारे की बात की थी ना अपने साइईब्लोग में. कल मैं उसे ना केवल देखने में सफल रहा बल्की तस्वीर भी खींची....
    आपके उस लेख से प्रेरित होके एक छोटा सा कुछ लिखने भी वाला हूँ ....
    आपका सहयोग मिलेगा उम्मीद है....

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  14. वो कहते हैं ना एक चुप सौ सुख..... कभी कभी तो ऐसा ही लगता है......हृदयग्राही विश्लेषण

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  15. 'थोथा चना बाजे घना' याद आ रहा है और 'ऐसी मीठी कुछ नहीं जैसी मीठी चुप' भी.

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  16. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि मौन कौन है ? क्यों है ? किन परिस्थितियों में है ? कहीं मौन सत्य की खोज में किया जाने वाले प्रयास है तो कहीं मौन में अकथनीय पीड़ा है,रूदन है। जैसे...

    नश्तर सा चुभता है उर में कटे वृक्ष का मौन
    नीड़ ढूंढ़ते पागल पंछी को समझाये कौन।

    ..अच्छी लगी यह पोस्ट।

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  17. नतीजा एक ही निकला
    कि किस्मत में थी नाकामी
    कहीं कुछ कह के पछताया
    कहीं चुप रह के पछताया
    "इंसान की यही तो व्यथा है .......चुप रहना भी मुश्किल और कहना भी...... फिर भी प्रतिकूल परिस्थिति में मौन रहना ज्यादा लाभकर होता है. सुन्दर आलेख"

    regards

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  18. .

    कभी-कभी ऐसा भी ..............

    नवल किशोर कहें 'चुप' अच्छी होती सबसे यही कला.
    कम बोलो अच्छा है उससे भी होता है मौन भला.
    बने रहें गंभीर, छिपी रहती विमूढ़ता साथ बला.
    'अगर मूर्ख हो रहो मौन ही' सार यही इसका निकला.

    ___________________
    *नवल किशोर — मेरे एक शिक्षक का नाम, जो मौन के ताउम्र हिमायती रहे.

    .

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  19. तो इसलिए लिखा है आज ... क्योंकि मौनी अमावस्या है ....
    बहुत ही सार्थक और सुंदर संदेश है ....

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  20. `बगुला चुप्पी लगाये रहने के कारण ही स्वतंत्र रहता है ....'
    पर वह तो अपने शिकार के लिए मौन धारण करे एक टांग पर खडी रहती है :)


    वैसे, मैं मौन हूं :))

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  21. शब्द की अनुपस्थिति ही मौनता है और मौनता भी संवाद की एक शैली ही है...जो ज्यादा प्रभावकारी होती है..

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