गुरुवार, 4 जून 2009

भारतीय शास्त्रीय संगीत ,योग और अध्यात्म से बढ़ती है जीवन की गुणवत्ता !

आज की भागम भाग जिन्दगी और अनेक चुनौतियों के चलते उत्पन्न तनाव से मनुष्य का जीना दूभर हो रहा है -तनाव जानलेवा भी हो सकता है ! जीवन को नारकीय बना सकता है ! यह उन बच्चों के जीवन को भी कई तरीकों से प्रभावित कर रहा है जिनके माँ बाप तनाव ग्रस्त हैं ! तनाव के चलते दाम्पत्य जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है -पश्चिमी देशों में बढ़ते तलाक ,सहज यौन जीवन पर भी यह बुरा प्रभाव डाल रहा है ! यहाँ तक की लोगों की उम्र भी तनाव के चलते घट रही है -रोगों से शरीर के लड़ने की कुदरती शक्ति लगातार तनाव के चलते घटती जाती है और एक समय शरीर पर अनेक रोगों का हमला हो जाता है ! पर्याप्त शोधों द्बारा अब यह पूरी तरह साबित है !

पर यह तो समस्या रही पर इसका समाधान ? यह पोस्ट इसलिए ही तो है ! समाधान है भारतीय शास्त्रीय संगीत ,आध्यात्म ,योग और ध्यान में रूचि ! और यह बात कोई धार्मिक गुरु नही -आधुनिक विज्ञान की पद्धति को अपना कर बर्लिन और अमेरिका में विगत २५ वर्षों से शोधरत भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक वैज्ञानिक
डॉ जैस्लीन मिश्रा का कहना है जो इन दिनों भारत भ्रमण पर हैं ! कल ही उनका एक रोचक व्याख्यान इसी विषय पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अकैडमी स्टाफ कालेज में संपन्न हुआ जिसे टाईम्स आफ इंडिया के आज केअंक में कवर किया गया है !

डॉ मिश्रा ने कहा कि उनके शोध के दौरान यह पाया गया है की राग मालकौंस की तनाव शैथिल्य में अद्भुत भूमिका है ! साथ ही आध्यात्म ,भक्ति , ध्यान और नियमित योग से तनाव से काफी हद तक मुक्ति पायी जा सकती है ! जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं वे दीर्घ जीवी होते हैं -और अनेक रोगों के चलते मृत्यु दर में भी काफी कमी पायी गयी है -इस तथ्य की पुष्टि में उन्होंने लेविन और शिल्लेर (१९८७ ) के अध्ययन का हवाला दिया ! उन्होंने मनुष्य के इर्द गिर्द एक आभा मंडल (औरा ) की मौजूदगी पर भी अपने शोध का ब्यौरा दिया ! बी एच यू के करीब ५० शिक्षकों और प्रोफेसरों के बीच उनका व्याख्यान चर्चा का विषय रहा !

हम भारतीयों की एक मजेदार आदत है -कोई भी देशज ज्ञान जब पश्चिमी विज्ञान के अनुमोदन के बाद यहाँ पुनरावर्तित होता है तो हम आत्ममुग्धता के मोड में चले जाते हैं -तुंरत कहते हैं कि "देखा मैं तो पहले ही कहता था कि .........." पर भाई ख़ुद अपने ही ज्ञान की थाती की भारत में इतनी उपेक्षा क्यों ? हम ऐसे शोधों को भारत में ही क्यों नहीं अंजाम दे सकते ! किसने मना किया है ?

अगर आप इसे अन्यथा न लें (वैसे यह सचमुच आवश्यक भी नही है !) तो यह भी बताता चलूँ कि डॉ जैस्लीन मिश्रा मेरी चाची हैं और गर्मीं की छुट्टियां अपने पैत्रिक आवास और पर्यटन में बिताने का इरादा रखती हैं ! अकेले आयीं हैं ,चाचा जी आए नहीं और इसलिए आप मेरी व्यस्तता समझ सकते हैं -आज से मैंने भी योग और ध्यान आजमाया है -जरूरत पड़ गयी है ! वैसे आपके कान में मैं यह भी धीरे से कह दूँ कि मैं बहुत संशयवादी आत्मा हूँ और ऐसे शोधों को तब तक स्वीकार नहीं कर पाता जब तक उनकी व्यापक पुष्टि न हो जाय ! नहीं तो ऐसे दावों और क्षद्म विज्ञान के बीच की विभेदक रेखा बहुत महीन है ! कम कहा अधिक समझा ! क्यों ?

25 टिप्‍पणियां:

  1. हम भारतीयों की एक मजेदार आदत है -कोई भी देशज ज्ञान जब पश्चिमी विज्ञान के अनुमोदन के बाद यहाँ पुनरावर्तित होता है तो हम आत्ममुग्धता के मोड में चले जाते हैं -तुंरत कहते हैं कि "देखा मैं तो पहले ही कहता था कि .........."
    मगर मैं तो पहले ही (सचमुच) कहता था. (यह सिर्फ मज़ाक था). सच्चाई यही है की हमारी अपनी परम्पराओं को अपने देश में ही उचित सम्मान नहीं मिल रहा है. जिस प्रकार रागों में से मालकौंस का नाम आया उससे यह अध्ययन सचमुच बहुत फोकस्ड लग रहा है. जानकारी बांटने के लिए धन्यावाद!

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  2. राग मालकौंस सुन कर देख लेते हैं, आएँ इधर!
    http://anvarat.blogspot.com/2009/06/blog-post_04.html

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  3. ब्लॉगरी तो होती ही रहेगी। आदरणीया चाची जी की आवभगत में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। वे हमारे देश की मेहमान हैं। कदाचित्‌ अमेरिकन मूल की लगती हैं। ‘मिश्रा’ तो उन्हें चाचा जी की संगत ने बनाया होगा।:)

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  4. राग मालकौंस वैसे अद्भुत है.आपके निर्देशानुसार अधिक बांच लिया

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  5. बहुत आभार जानकारी बढाने के लिये.

    रामराम.

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  6. हमारे यहाँ ऐसे शोध प्रपंच माने जायेंगे, जब तक कि उसपर पश्चिम की मोहर न लग जाये. क्या शास्त्रीय संगीत,योग और आध्यात्म का भारत से गहरा जुडाव मात्र एक संयोग है !

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  7. हमारी प्राचीन परिपाटी इसी साहित्य संगीत और कला के अवकाश क्षणॊं को बूँद-बूँद जीकर बाह्य तनाव को अस्पृश्य बनाने की थी । जब हमने अपने मानक ही बदल लिये तो व्याख्यान क्या करेंगे । मैं खुद ही नहीं जानता राग मालकौस ।

    आलेख जरूरी था, और क्वचिदन्यतोअपि के अनुकूल भी ।

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  8. मानसिक शांति में संगीत की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता .मैं कई ऐसे लोंगों को जानता हूँ जो कि सदैव कुछ न कुछ गुनगुनाते रहतें हैं या फिर कोई मनपसन्द संगीत सुनते रहते हैं .

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  9. महत्‍वपूर्ण जानकारी, जिसे पहले से भी लोग जानते और समझते रहे हैं।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  10. सच मे देशी ज्ञान का दुनिया मे कोई मुक़ाबला नही है और ये बात भी सही है उस पर ओ के टेस्टेड,अमेरिका या लंदन या और किसी देश का नाम नही लिखा जाता उसकी कदर देशी भाई करते नही है।बाबा रामदेव ने भी मुझसे गुरूदक्षिणा मे योग करने के लिये कहा तब मैने इसे शुरू किया और इसका मुझे तो लाभ मिल रहा है,आप भी कुछ दिनो तक़ प्रयोग जारी रखें,शायद नतीजे अच्छे ही आयेंगे।

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  11. भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति अपनी अज्ञानता पर कभी कभी दु:ख होता है, मगर योग के अपने अनुभब से कह सकता हूं कि तनाव घटाने में यह नि:सन्देह कारगर है.

    डॉ. मिश्रा की तस्वीर लगानी चाहिये थी पोस्ट में.

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  12. आपके आलेख में अभिव्यक्त विचार मेरे चिर विश्वास हैं....

    पूर्ण सहमत हूँ आपसे....अपने मन की ही बातों का अनुमोदन होते देख अतिशय प्रसन्नता हुई...

    ईश्वर से प्रार्थना है की लोगों को सद्बुद्धि दें और इन बातों को अंगीकार कर जीवन को सुन्दर बनाने की प्रेरणा दें.

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  13. पूरी तरह सहमत, मेरे कार्यस्थल पर भी लगातार रेडियो बजता रहता है और मैं काम करते हुए गुनगुनाता जाता हूँ, काम आसानी से निपट जाता है। साथ ही सुबह हल्का-फ़ुल्का योग भी कर लेते हैं… सिर्फ़ आध्यात्म से मैं दूर हूँ… :)

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  14. "ऐसे दावों और क्षद्म विज्ञान के बीच की विभेदक रेखा बहुत महीन है"

    यकीनन..!

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  15. मालकौँस राग मेँ शौर्य और भक्ति का अनोखा सँगम है
    जहाँ ईश्वर या उस अनजाने तत्त्व से
    याचना नहीँ किँतु,
    द्रढता से अपने सत्त्व का समर्पण किया जाता है आलेख अच्छा लगा -
    - लावण्या

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  16. "देखा मैं तो पहले ही कहता था कि ...... ...." :)

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  17. बहुत सही बात कही ..ध्यान और योग अब अपनाए रखे तो बेहतर :)

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  18. आध्यात्म ,भक्ति , ध्यान और नियमित योग से तनाव से काफी हद तक मुक्ति पायी जा सकती है !

    अरविन्द जी इस प्रशंसनीय पोस्ट के लिए आभार ....!!

    नीचे की पोस्ट से पता चला सीमा जी अस्वस्थ हैं..... उनके जल्द स्वस्थ लाभ की कामना है ...!!

    अब आपकी टिप्पणी के आवाज में .....

    मेरा दर्द समाज को यह सोचने पर तो मजबूर करेगा ही कि कहीं न कहीं औरत के साथ आज भी अन्याय हो रहा है जो नहीं होना चाहिए ....मैं अपने आस पास जब भी देखा औरत को दर्द में सिसकते देखा .....समाज की कई ऐसी बंदिशें, मान्यताएं ,रिवायते हैं जो मुझे भीतर तक आहात कर जाती हैं ......!!

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  19. Thanks for your comment.I think you are very much fond of eating like me.So do u know cooking?
    I liked your post very much.Its very very informative and I am thankful to you as I am able to gain knowledge due to your lovely post.

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  20. यह लेख उसी दिन पढ़ लिया था मगर टिप्पणी नहीं कर पाई थी.
    आप की आदरणीय चाची जी ['डॉ जैस्लीन ए मिश्रा,]ने जो शोध किया है--[उन्होंने मनुष्य के इर्द गिर्द एक आभा मंडल (औरा ) की मौजूदगी पर भी अपने शोध का ब्यौरा दिया ]वह कबीले तारीफ है..[badhaayee]---हम सभी के चारों और ओरा होती है सब की ओरा अलग होती है...तभी तो वर्षों से भगवान् की तस्वीर में चेहरे के चारों और प्रकाश सा दिखाते हैं..वह ओरा ही तो है..


    - सालों से भारतीय कहते ही आ रहे हैं की 'रागों 'का मानव शरीर पर प्रभाव पड़ता है.

    -आप की बात से सहमत हूँ---
    हम भारतीयों की एक मजेदार आदत है -कोई भी देशज ज्ञान जब पश्चिमी विज्ञान के अनुमोदन के बाद यहाँ पुनरावर्तित होता है तो हम आत्ममुग्धता के मोड में चले जाते हैं-
    सब से बड़ा उदहारण--'योग--जब योगा बना तो सब को महत्वपूर्ण लगने लगा...

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  21. raag maalkauns me banaai gayi filmi sangeetkaar noushaad ki rachnaayen vaakayi sunne waalon ko doosree duniyaa me le jaatee hain.

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