आईये रस परिवर्तन किया जाय ! विरह के बाद श्रृंगार के संयोग का भी तो आनंद लिया जाय !
जी हाँ ,आज बात संयुक्ता की -
" चुपके से प्रियतम की आँखों को पीछे से आ ढँक लेने के बहाने प्रिय से आ लिपटी बाला ...... .फिर उसने मादक अंगडाई ले अपने अनुपम अंगों को दिखला डाला ......... प्रियतम ने तब भेद भरी बातों मे सहसा इक आग्रह कर डाला........ . शर्म से हुई छुईमुई बाला ने हँस कर बात को टाला ......... अगले ही पल बाला ने गले में प्रीतम के डाली बाँहों की माला "...........
यह संयुक्ता नायिका है ! प्रिय आलिंगन में आबद्ध !आह्लाद और प्रेमोन्माद से भरी हुई !
चित्र सौजन्य :स्वप्न मंजूषा शैल
नटत के बाद का रिझन
जवाब देंहटाएंयकायक खिलियाब..
मस्त श्रृंगारी प्रस्तुति ...
आभार ...
बहुत बढिया जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ये …,,,,,, कह कर रूक जाना व अनुपम अन्गो क वर्णन कर फ़िर रूकना ऐसा लगता है कि नायिका की भान्ति आप भी सन्केतो मे ही कुछ दिखाना व कुछ छिपाना चाहते है ऐसी मजबूरी क्यो
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति-नायिका भेद पहचानना भी जरुरी है। "सौह करे भौहनि हंसे-दैन कहि नटि जाए"
जवाब देंहटाएंबार-बार -आभार
श्रृंगार का सुंदर वर्णन ।
जवाब देंहटाएंजीवन की निरंतरता की पूर्व तैयारी, अनुपम! अनुपम! अनुपम!
जवाब देंहटाएंलो जी, अब ऐसी बाला पर किस मुहम्मद गोरी का जी नहीं ललचाएगा:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, मिलन तो हुआ.
जवाब देंहटाएंलघु से अतिलघु हुए जा रहे हैं आप !
जवाब देंहटाएं@अभिषेक ,दरअसल लघुतम में जो महत्तम को देखता है ,वही देखता है !
जवाब देंहटाएंजारी रहिये...आगे इन्तजार है!!!
जवाब देंहटाएंस्त्रियाँ कितनी चतुर होती हैं.........!!!
जवाब देंहटाएंआज फुरसत में समस्त छुटे किस्तों को देख रहा हूँ...
जवाब देंहटाएंये श्रृंखला ब्लौग-जगत में संग्रहणीय संकलनों में शुमार होने वाली है...
दशरूपक में संयुक्ता नायिका के विषय में तो उल्लेख नहीं है, परन्तु स्वाधीनपतिका नायिका इसके समान ही है. स्वाधीनपतिका नायिका वह है जो अपने पति के स्वयं के समीप और अनुकूल रहने के कारण प्रसन्न रहती है. संयुक्ता नायिका का संस्कृत काव्यशास्त्र में वर्णन न करने का कारण मेरे विचार से यह है कि यहाँ नायिका-भेद रूपक(नाटक) के प्रसंग में किया गया है और संस्कृत नाटकों में नायक-नायिका के आलिंगन का मंचन निषिद्ध है.
जवाब देंहटाएंati uttam.
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