अभिषेक जी ने अभी अभी ब्लागिंग के खतरे शीर्षक वाले एक रोचक ,श्रृखला बद्ध आलेख का समापन किया है ! मुझे याद नही आ रहा कि उन्होंने आपको भटकती आत्माओं से आगाह किया या नहीं ! चलिए यह नेक किंतु अप्रिय काम मैं ही कर देता हूँ ! लेकिन सबसे पहले अनेक अतृप्त आत्माओं में से मैं ख़ुद का नाम सर्वोपरि रखता हूँ -एक वह शख्स जिसे ख़ुद यह नही मालूम की वह यहाँ हिन्दी ब्लॉग जगत से क्यों आ चिपका है किंतु प्रत्यक्षतः वह दंभ भरता है कि वह लोगों में विज्ञान का संचार करना चाहता है ! उसकी अत्रिप्तता अपने विचारों को लोगो में बांटने की भी है जैसा कि कवि लेखक लोग कहते हैं कि उनके साथ भी ऐसा ही है ! वह इसी मुगालते में यहाँ भटकती आत्मा बन उठा है !
अब कुछ अतृप्त आत्माएं नारीवादियों की है जिसमें नर नारी दोनों ही सम्मिलित है -उनके अनुसार मानवता के इतिहास में अगर क्रूरतम अत्याचार हुए हैं तो बस नारी के साथ ही और वह आज भी बस खून के घूँट पी पी कर रह जा रही हैं -बल्कि कई तो प्रेतात्माएं बन चुकी हैं और ढूंढ ढूँढ कर जहाँ भी नारी निंदक मिलेगें -यहाँ तक कि इस आभासी जगत तक भी उन्हें प्रेत्योनि से ग्रसित किए बिना नहीं छोडेगीं ! हे राम ! वे कितना प्रतिशोधी बन चुकी हैं -उनकी जीभों से रक्त टपक रहा है -वे अपने साथ कुछ पुरूष भृत्यों की टोलियाँ भी लिए हुए हैं -जो नर मुंडों की खोपडियां लिए मानों और खोपडियां ढूंढ रहे हैं -बहुत डरावना दृश्य है सचमुच -इस भरी दुपहरी में मुझ जैसा कोई भी इनकी जमात को देख ले तो वहीं क्षण भर में ढेर हो जाए ! मैं भी इन्ही के चलते देखिये न कब का एक भटकती आत्मा में तब्दील हो चुका हूँ !
कुछ और भटकती आत्माएं धार्मिक प्रक्रति हैं -उन्हें यह लगता है कि संसार के कुछ महानतम धर्म संकट ग्रस्त हो चुके हैं -और धर्म गया तो फिर बचा ही क्या ? वे इस आभासी जगत में अलख जगाये यही कह रहे हैं कि उठो जो तुम्हारे धर्म पर बन आए उस पर तुम बन आओं ! पर यह क्लैव्यता को प्राप्त हिन्दी ब्लॉग जगत उनकी अनसुनी करता जा रहा है -दो चार साथी जरूर रणभेरी बजा रहे हैं -मगर यह क्या बात कि नकार खाने में उनकी आवाज बस शहनाई बन के रह गयी है -उन्होंने जीवन के हर मकसद हर कृत्य को ख़ुद के समझ के मुताबिक धर्म से जोड़ लिया है और जीवन में ख़ुद शंकराचार्य /विवेकानंद नहीं बन पाये तो बस इस आभासी जगत को कब्जिया लिए हैं -जिन्न की तरह ब्लागों पर मंडरा रहे हैं ! धर्म की ऐसी ऐसी व्याखाएं ये उड़ते फिरते वैताल करेंगें कि सर चकरा जाए और आत्मा तक कांप जाए !
ये भटकती आत्माएं समाज के उभय उत्पाद हैं -चिर अतृप्त और अत्रिप्ताएं -पूरी तरह प्रतिक्रियात्मक और प्रतिशोधात्मक !बोले तो नेमेसिस !! कितनी राहत है कि इस आभासी जगत ने उन्हें अब अपने दामन में समेट लिया है -बेघरों को अच्छा सा घर मिल गया है ! अगरचे वे यहाँ न होते /होतीं तो कहाँ होते /होतीं -इस सुंदर सी मानवता का कितना नुक्सान हो रहा होता बस कल्पना ही किया जा सकता है !
आईये इन प्रेतात्माओं को तिलांजलि दें !
कुछ और प्रेतात्माओं की कोटियों की जिक्र आगे भी ....
इन आत्माओं की शांति तंत्र-मन्त्र की सीमाओं के भी परे है! ऐसी और अचिह्नित आत्माओं की कोटियों के जिक्र की प्रतीक्षा रहेगी.
जवाब देंहटाएंवह मिश्र जी..जब इन प्रेतात्माओं की पहचान हो ही गई है तो चलिए इनकी मुक्ति के ईए पिंड दान वैगेरह का इंतजाम भी करवा दिया जाए..वैसे कुछ उन सदियों से पीड़ित आत्माओं का जो चरित्रहनन आपने किये है..उसके बदले कुछ क्रूर कमेन्ट के लिए तैयार रहे..अब वे आपको केस करने की धमकी तो नहीं दे सकते न...और हाँ अगली प्रेतात्माओं की सूची का इन्तजार है....अरे कुछ नहीं....थोडा रहस्य रोमांच से हमें भी प्यार है न इसलिए...
जवाब देंहटाएंअजब -गजब रूहें!
जवाब देंहटाएंऐसा वर्गीकरण न कहीं देखा ,न सुना!
[आप ने लिखा-पूरी तरह प्रतिक्रियात्मक और प्रतिशोधात्मक !
बोले तो नेमेसिस---?]
कृपया स्पष्ट करें -'नेमेसिस 'शब्द क्या अनोनिमस के लिए लिखा है?
ऐसे मूर्धन्य भटकती आत्माओं को प्रणाम !!
जवाब देंहटाएंवैसे विज्ञान प्रसार का दम भरने के बाद ......भटकती आत्माओं का प्रचार प्रसार और उनका अस्तित्व
कहीं कोई विरोधाभास तो नहीं?
लेकिन सबसे पहले अनेक अतृप्त आत्माओं में से मैं ख़ुद का नाम सर्वोपरि रखता हूँ -एक वह शख्स जिसे ख़ुद यह नही मालूम की वह यहाँ हिन्दी ब्लॉग जगत से क्यों आ चिपका है किंतु प्रत्यक्षतः वह दंभ भरता है कि वह लोगों में विज्ञान का संचार करना चाहता है !
जवाब देंहटाएं" हा हा हा हा हा हा शुरुआत बहुत शानदार है......कुछ मुस्कुराते हुए पढा गया है ये आलेख... वैसे तो प्रेतात्माओं के जिक्र मात्र से रूह कांपने लगती है.....मगर अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा.."
regards
आत्माओं की मुक्ति का कोई उपाय?
जवाब देंहटाएंआजकल गर्मी बहुत पड़ रही है। इसे दिमाग तक पहुँचने से रोकने के लिए थोड़ा अतिरिक्त प्रयास करना पड़ रहा है। थोड़ी चूक हुई नहीं कि ऐसे प्रेत पकड़ लेंगे और परेशान करने लगेंगे। स्वाइन फ्लू की तरह इनसे बच कर रहने में ही भलाई है।
जवाब देंहटाएंईश्वर करे आप इनसे बचे रहें और सकुशल-सानन्द रहें। शुभ कामनाएं।
सही में मजा आ गया. हम महामृतुन्जय मन्त्र का जाप करते हुए ही उन प्रेतात्माओं के चिट्ठों पर जाते है,
जवाब देंहटाएंआईये इन प्रेतात्माओं को तिलांजलि दें ! लेकिन यह प्रेतात्माये एक बार पिछे पड जाये तो द्स बारहा भूतभी साथ मै ले कर आती है, सुना है अब हनुमान जी भी इस से डरते है, इस लिये हनुमान चलीसा हमारी वजाये यह प्रेतात्माये ही गुनगुनाती है.
जवाब देंहटाएंराम राम अर्बिंद जी थोडा बच के जी...
मै तो चला सुना है जहां इन दुष्ट प्रेतात्माओ का चर्चा भी हो वहा नही जाना , ओर ना ही चर्चा मै हिस्सा लेना चाहिये... वरना यह पीछे पड जाती है.......राम राम राम राम
जल तु जलाल तु आई बला को टाल तु...
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
अब लगता है भूतनाथ और भूतभंजक महोदय को प्रकट हो जाना चाहिये. सही समय आगया है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
चलिए, कमेण्ट तो आए। वर्ना मैं तो सोच रहा था कि कहीं इस पोस्ट पर कमेण्ट न आने के कारण आपको दूसरी पोस्ट न लिखनी पडे।
जवाब देंहटाएंइन भटकती आत्माओं को शान्ति मिले, फिलहाल मुझे तो ऐसा कोई रास्ता नहीं दिखता है।
अगर कोई तांत्रिक इतनी हिम्मत रखता हो, तो वह सामने आए।
ह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चलिए आगे देखते हैं कौन कौन से भटकती आत्माएं ................. या प्रेतात्माओं का पता चलता है ब्लॉग जगत में...... दिलचस्प है आपकी पोस्ट
जवाब देंहटाएंदुर्गा -कवच पढ़ कर तैयार रहिये ,अब किसी समय अटैक हो सकता है .
जवाब देंहटाएंक्या कर रहे हैं मिश्राजी ?????? तंत्रोकों को न्योत रहे हैं आप.....बच कर रहें....कुछ प्रेतात्माएं अमरत्व प्राप्त हैं,उनसे टक्कर न लें....
जवाब देंहटाएं@ अल्पना जी नेमेसिस तो पर्तिशोध की देवी हैं अंगार आपका संकेत सटीक है -अनानीमस भी हो सकते हैं !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण लेख ! किसी तांत्रिक का नंबर देखने के लिए देखते रहे आज तक ...
जवाब देंहटाएंओह नो अरविन्द जी ब्लागजगत से बढ़कर कोई भूत वूत नहीं होता है . इसके आगे तो प्रेतात्मा फेल है ..
जवाब देंहटाएंशान्ति करवाते है
जवाब देंहटाएंएक निष्ठावान हिन्दू के नाते पुनर्जन्म पर पूरी श्रद्धा है। मैं देह के साथ मरूंगा नहीं। एक देह से दूसरी के बीच भूत की अवस्था होती है या नहीं - मैं श्योर नहीं हूं।
जवाब देंहटाएंalfaaz hat k
जवाब देंहटाएंandaaz hat k
aap hakeem-e-azeem hain
karte hain ilaaj hat k
____________anand aa gaya
badhaai !
आश्चर्य, इतनी सेक्युलर टिप्पड़ियाँ ! किसी को ब्लागजगत में भटकती ड़ार्विन,आइंस्टी,न्युटन,मार्क्स ,मैक्समूलर, मैकियावली, हीगल, काँट,शेक्सपियर और न जानें कौन-कौन सी रूहॆं दिखी ही नहीं? ओह अब समझा ! वो तो सरल रेखा में सतत विकासयात्रा पर होंगी? फिर तो तिलाँञ्जलि देने की जरूरत नहीं।
जवाब देंहटाएंभटकती आत्माओं से स्नेही संबंध बना कर बचे खुचे दिन काट लो, उसी में सार है. तांत्रिक ओझा सारे बस्ता समेट कर भाग गये हैं.
जवाब देंहटाएंसारी इच्छाएं अगर इसी जन्म पूरी हो गयी तो पुनर्जन्म और प्रेत योनी का चक्कर नहीं बचेगा जी. चलिए इसी जीवन में ही प्रेतात्मा भी हो लिए :)
जवाब देंहटाएंऔर सरजी ये मेरे नाम के आगे 'जी' शोभा नहीं देता. कम से कम आप तो मते लगाइए. आगे प्रिय लगा देते तो ज्यादा ख़ुशी होती. चलिए उसके काबिल बनाने का प्रयास रहेगा लेकिन तब तक 'जी' तो नहीं :)
... हमने चेक किया था, कई आत्माएं का तो पहले ही देहांत हो चुका है ;)
जवाब देंहटाएंअभिषेक का लेख रह गया था, याद दिलाने का धन्यवाद!
ये किसने हमें याद किया......लो हम आ गए ही हा हा हा .......अरे कहाँ छुप गए सब के सब.....??
जवाब देंहटाएंसाभार
हमसफ़र यादों का.......
llkj
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जवाब देंहटाएंभईया अरविन्द जी, इनमें मुझे शामिल न करना..
मैं तो तृप्त होकर यहाँ डकार लेने आता हूँ ।
अतृप्त भटकती आत्मा कोई और को कहना,
माबदौलत तो यहाँ डेरा जमाये ज़िन्न है ।
जवाब देंहटाएंअच्छा जी, एप्रूवल की यह विलासिता यहाँ भी घुसपैठ कर गई !
चलो हमरा एक जजमान कम ही सही ।
हम सब अतृप्त हैं। चिट्टकारी तो तृप्त होने के लिये ही कर रहें हैं।
जवाब देंहटाएंइन आत्माओं ने चिट्ठाजगत की डरपोक आत्माओं पर बुरी तरह से कब्जा कर रखा है. जब जब इनकी इच्छा होती है तब तब ये अपने द्वारा नियंत्रित आत्माओं को नचा देती हैं. फल यह होता है कि नयी नवेली सत-आत्मायें इनके कारण बुरी तरह डर जाती हैं और प्रार्थना करने लगती हैं कि "त्वमेव माता, च पिता त्वमेव".
जवाब देंहटाएंइनको तिलांजली देना ही सबसे अच्छा है.
यदि इसके बावजूद समस्या बनी रहती है तो सामूहिक यत्न द्वारा इनको "झाडा" जा सकता है.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
वाह अरविन्द जी बहुत अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंआज दिल को ठंडक मिली !
आज पहली बार किसी ने मेरे स्वर से स्वर मिलाया है !
मैं तो हमेशा से ही कहता रहा हूँ की ब्लागबाजी अतृप्त आत्माओं का अड्डा है,
लेकिन आप स्वयं का नाम अव्वल नंबर पर यूँ ही नहीं रख सकते .... तगड़ा कम्पटीशन है .. कई सारे बेहद मजबूत दावेदार हैं ... अरे सबसे मजबूत दावेदार तो मैं खुद ही हूँ !
आज की आवाज
भैय्या आप आत्माओं से निपटिये हम तो ' ठेल्लों ' से ही निपटने में मशगूल हैं ... टू इन वन , या नथिंग इन वन या एवरीथिंग इन वन वाले .....कब गिरोह मा आ जावें ताली बजाते बिना कारन भी ....अनसुलझे रहस्य की कोटि वाले .
जवाब देंहटाएंफिर आप अपना कपडा बचय भी ले जाओ ऊ अपनी नग्नता उठाय के देखाए बिना नहीं ही मानेंगे .
अतृप्त आत्माओं में कहीं मेरा नाम तो नहीं .....!!~!!
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