चिट्ठाकार चर्चा -आख़िर चयन का मानदंड क्या हो ? मैं भी इस प्रश्न भवर से निकल नहीं पा रहा हूँ ! और दिन हैं कि पलक झपकते बीत जाते हैं और अगली चर्चा शुरू करने को उकसाने लगते हैं -और फिर मन उसी अदि प्रश्न का टेक पकड़ लेता है -'कस्मै देवाय हविषा विधेम ? " आख़िर किसकी खोज खबर लूँ ! अब हिन्दी ब्लागाकाश या चिट्ठासागर में नित नये नये सितारों /मीनिकाओं का जलवाफरोश हो रहा है -आँखें चुधियाँ रही हैं ! और मुझे देर सबेर जहाँ तक सम्भव हुआ इन सितारों /मीनिकाओं का खैर मकदम तो करना ही है ! अब तक कई नामचीन चिट्ठाकार इस चट्ठे को अपनी गरिमामयी उपस्थिति से आलोकित भी कर चुके हैं ! मैं सोचता रहा कि इस बार क्यूं न किसी होनहार चिट्ठाकार की चर्चा न कर ली जाय !
..तो शुभ संकल्प है कि आज युवा चिट्ठाकार अभिषेक मिश्र के बारे में थोड़ी चर्चा कर ली जाय जो अभी अभी रांची के चिट्ठाकार मिलन से खट्टी मीठी यादों के साथ लौटे हैं और मुझे थोड़ा शक है कि पूरा दिल बिचारे का सही सलामत लौटा है या नहीं भी ! इस उम्र में ऐसा होना और वह भी ख़ास तौर पर सीधे साधे से युवाओं के साथ सहज ही है ! मुझे शिद्दत के साथ लगता रहा है कि कतिपय मामलों में हम और अभिषेक सरीखे पुरुषों के साथ ऐसा जीवन के अन्तिम सोपान तक होता आया है और होता रहेगा -यही तो चिरन्तन व्यथा है ! पुरूष व्यथा ! पर फिर भी बदनाम भी वही होता आया है ! कैसी बिडम्बना है ?
अभिषेक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हैं जहाँ मुझे प्रवेश द्वार से ही टरका दिया गया था जब मैं एम् एस सी में दाखिला लेने वहाँ १९७६ के आसपास गया था .तभी मुझे लग गया था कि अब जीवन का वह मुकाम गया हाथ से जहां तक मुझे अब तक पहुँच जाना था ! फिकर नाट ,मगर यह मलाल हमेशा सालता रहता है कि इस महान शिक्षा मन्दिर मैं प्रवेश तक न पा सका और दूसरे, तबसे यहाँ के छात्रों, अध्यापको को लेकर एक घणी सी हीन ग्रंथि भी मन में फांस सी अटकी हुई है -बहरहाल इसी अंतर्जाल से जब अभिषेक ने मुझे खोजा और ई मेल से हम परिचित हुए तो मेरी ग्रंथि एकटीवेट हो गयी ! मगर फिर भी मैं अभिषेक को इतना तवज्जो नहीं देता गर उन्होंने मेरी कमजोर नस न टीप दी होती ! गरज कि उन्होंने विज्ञान कथा की चर्चा छेड़ दी और मैं फंस गया -जो लोग मेरे इस ट्रैप को जानते होंगे चेहरे पर एकाध इंच मुस्कान जरूर तिर आयी होगी ! अकादमिक माहौल और लोग मेरी कमजोरी है बाकी बातें बाद में आती हैं ,पर अभी छोडिये इन बातों को, यहा चर्चा तो अभिषेक की हो रही है ,मगर एक बात साफ़ कर दूँ कि निरपेक्ष रूप से केवल चिट्ठाकार चर्चा हो भी नही सकती उसी के बहाने चर्चाकार भी अभिव्यक्त और चर्चित होता है !
बहरहाल मैंने अभिषेक को विज्ञान कथा से प्रथम मिलन के लिए गलीचों की नगरी भदोहीं के शानदार मेघदूत होटल में एक परिचर्चा के दौरान आमंत्रित किया -अपनी हीन ग्रंथि के चलते उन्हें इम्प्रेस करने के लिए -और पूरे अटेंशन के साथ उनके साथ बैठ कर नाश्ता करने आदि का उपक्रम किया ! उन्हें शायद जल्दी थी वे लौट गए और यह आज तक नहीं बताया कि वे विज्ञानं कथा के चमक दमक माहौल से प्रभावित हुए थे भी या नहीं ! तब से उनसे बातें कम से कमतर होती गयीं भले ही वे बनारस में ही हैं पर हम सभी के अपने अपने अफ़साने ,गमें मआश हैं और हैं गमें रोजगार ! हाँ इन दिनों उन्होंने अपने ब्लाग धरोहर पर पोस्टों की फ्रीक्वेंसी बढ़ा दी और एक नया ब्लाग गांधी जी पर शुरू कर दिया ! दो दीगर कम्युनिटी ब्लॉगों में अलग से शिरकत भी वे कर ही रहे हैं ! मैंने भी गांधी जी पर उनके ब्लॉग की शुरुआत से उन्हें और भी गंभीरता से लेना शुरू किया और मैंने ही नहीं अब उनकी नैया रफ़्तार पकड़ रही है -इंशा अल्लाह वे भी अब सेलिब्रटी बनने की राह पर हैं, इस बात से पूरी तरह बेखबर कि सेलिब्रिटी होने के अपने बडे खतरे भी हैं !
अभिषेक की रूमानियत उनके आत्मपरिचय के इन कालजयी शब्दों में झलकती है ,"मधुर भावनाओं की सुमधुर, नित्य बनाता हूँ हाला; भरता हूँ उस मधु से अपने, ह्रदय का प्यासा प्याला. उठा कल्पना के हाथों से, स्वयं उसे पी जाता हूँ; अपने ही मैं हूँ साकी, पीने वाला मधुशाला." वैसे उनकी लोक जीवन ,परम्पराओं ,संस्कृति की समझ और रुझान की इन्गिति उनके चिट्ठे धरोहर से होती है !
उनकी एक हालिया पोस्ट में जब मैंने यह जिक्र पाया कि वे रांची ब्लॉगर मीट में यहाँ से जा रहे हैं और शायद इसलिए भी कि वे झारखंड से ही बिलांग करते है मैंने उनसे शिकायती लहजे में सम्पर्क करना चाहा कि भैये हमको भी बता दिए होते तो साथ लटक लिए होते क्योंकि एक मनभावन निमंत्रण मुझे भी वहाँ जाने को मिल चुका था और इनकार पर उपालम्भ भी -मगर ये भाई तो पहली वाली ट्रेन से रवाना भी हो चुके थे न जाने कैसे रंगीन सपने लिए ,हसरते लिए ! कहतें हैं ना कि एक से भले दो और यात्रा प्रसंगों में तो यह जुमला अक्सर इस्तेमाल होता है मगर शायद अभिषेक को यह गंवारा नही था -वे अपने सपनों को साझा करने को शायद तैयार नहीं थे ! यार अभिषेक मैं तुम्हारा प्रतिद्वंद्वी हो भी नही सकता -कहाँ पूरी युवा ऊर्जा से लबरेज तुम और कहाँ पुरूष रजोनिवृत्ति के कगार पर आ पहुँचा मैं ! कोई मुकाबला ही नही है भाई ! मगर हाँ साथ होता तो कुछ उपदेश देता (पर उपदेश कुशलबहुतेरे वाला ) -शायद तुम्हे मना भी लेता ( भले ख़ुद को नहीं मना पाता ) कि " छाया मत छूना मन होगा दुःख दूना मन ! "
पर अब तुम वहाँ से वापस आ गये हो .जानता हूँ (ऋतम्भरा शक्ति से ) कि उद्विग्न हो इसलिए तुम्हे कल लंच पर बुलाया है ! थोड़ी उद्विग्नता शायद बाँट लूँ -यह जन्म ईश्वर ने शायद मुझे इसलिए ही दिया है -परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर ! पर अभिषेक को बुलाने में मेरा भी एक निहायत टुच्चा सा स्वार्थ भी छुपा है ! इसके आगे की चर्चा शायद अभिषेक अपने ब्लॉग पर करें !
अभिषेक अगर अपने यह पढ़ लिया है तो भी आपको बिना किसी सेकंड थाट के कल आना ही है -कुछ पसंदीदा खिलाने का वादा !
तो मित्रों मैं अभिषेक की आतुर प्रतीक्षा में हूँ ! इति ......
हूँ! तो बेचारे अभिषेक को खिला-पिलाकर धुनने का इरादा है! आप वास्तव में ख़तरनाक हैं.
जवाब देंहटाएंकहाँ पुरूष रजोनिवृत्ति के कगार पर आ पहुँचा मैं यह नयी बात सुनी है । बहुत गहरी बात है ।
जवाब देंहटाएंआपने शुरुआत ब्लॉगर चर्चा के माप दंड की की थी और हम अपनी टिपण्णी के लिए शब्द तैयार करने लगे. ज्यो ज्यो आगे बढ़ते गए कल्पना में ही टिपण्णी का स्वरुप बदलता गया. अब भाड़ में जाये मापदंड, अभिषेक के बारे में आप से और सुनने का मन बन गया. इंतज़ार तो करना ही होगा कमसे कम सुबह के नाश्ते तक. आभार
जवाब देंहटाएंइस से अच्छा न्यौता हो ही नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंसूबह तक का इंतजार कर लेते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बढिया तरीका है।बहुत अच्छे अरविंद भैया।
जवाब देंहटाएंहम भी प्रतीक्षा में हैं, अभिषेक के ब्लोग पर नयी पोस्ट की - पूरे विवरण के साथ.
जवाब देंहटाएंबनारस विश्व विध्यालय के छात्र ना हुए तो क्या हुआ ?
जवाब देंहटाएंआपका ज्ञान फिर भी विकसित हुआ है
आगामी कडी की उत्सुकता रहेगी ~~
बहुत दिनों बाद टिपिया रहा हूँ!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा अभिषेक जी के बारे में जानकर !!
वैसे आपकी निगाह में छाडे होंगे तो अवश्य कुछ न कुछ विशिष्टता तो उनमे अवश्य ही होगी!!
बहुत दिनों बाद टिपिया रहा हूँ!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा अभिषेक जी के बारे में जानकर !!
वैसे आपकी निगाह में छाडे होंगे तो अवश्य कुछ न कुछ विशिष्टता तो उनमे अवश्य ही होगी!!
मिलन मुबारक हो! भदोही में न सही बनारस में इम्प्रेस कर सकें आप और निगोड़ी हीन ग्रंथि से उबर सकें!
जवाब देंहटाएंभाई, मेनू तो बताया ही नहीं:)
जवाब देंहटाएं@राठौड़ जी ,
जवाब देंहटाएंपुरुष रजोनिवृत्ति -मेल मीनोपाज के बारे में फिर कभी विस्तार से वैसे कोई मनोविज्ञानी /चिकत्सक बढियां बता देगा ! है कोई हिन्दी चिट्ठा विश्व में ?
@अनूप जी आपकी टिप्पणियाँ इतनी तेजाबी क्यों होती है ?
@मीनू तो अभिषेक से ही पूँछिये न बंधु !
जवाब देंहटाएंइतनी घिसाई के बाद आपको भोजनोपरांत अभिषेक जी कुछ पत्र पुष्प दक्षिणा भी प्रदान कर शास्त्रोक्त आशीर्वाद लेना चाहिये ।
यदि आप आज्ञा देंगे, तो पुरूष रजोनिवृत्ति पर बाहैसियत ब्लागर-चिकित्सक मैं आपके ब्लाग पर मैं एक अतिथि पोस्ट दे सकता हूँ ।
हिन्दी भावानुवाद एवं सरलीकरण में समय लग सकता है ।
यदि...
@नेकी और पूंछ पूंछ डाक्टर !
जवाब देंहटाएं@ डा अरविन्द,
जवाब देंहटाएंमैं तो अपनी पूंछ तलाशता हुआ आया था,
यहाँ दो 'पूंछ पूंछ 'हैं..किसको ले जाऊँ :)
@ डा. अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंमैं तो अपनी पूंछ तलाशता हुआ आया था,
पर, यहाँ तो दो 'पूंछ पूंछ 'हैं..किसको ले जाऊँ ?
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:)
न मेरी ना तेरी पूछ डाक्टर ,केवल एक ही पूँछ है -जय हनुमान की पर इसे और लम्बा न करें महानुभाव !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सत्य वचन
जवाब देंहटाएंहिन्दी के युवा ब्लॉगरों में जो लोग गम्भीर लेखन कर रहे हैं, उनमें अभिषेक का नाम सर्वोपरि है। वे एक निष्ठावान और गम्भीर प्रवृत्ति के ब्लॉगर हैं। हार्दिक बधाई विवेक को और आपको भी, एक संभावनाशील एवं समर्पित ब्लॉगर की चर्चा करने के लिए।
जवाब देंहटाएंहम तो पूंछ पकड़ कर बैठे है..
जवाब देंहटाएंअभिषेक अगर अपने यह पढ़ लिया है तो भी आपको बिना किसी सेकंड थाट के कल आना ही है -कुछ पसंदीदा खिलाने का वादा .....Are akele akele...? Bhi hum bhi to hain....!!
जवाब देंहटाएंयह तो आज पढ़ा बढ़िया न्योता दिया आपने
जवाब देंहटाएंमैं तो बस आप लोगों का धन्यवाद करने चला आया. और कुछ नहीं कहूँगा.
जवाब देंहटाएंअभिषेक अत्यन्त प्रिय है!
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