tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post823285555531494859..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: मानविकी और विज्ञान की दूरियां, नजदीकियां-विषय गंभीर है,फुरसत से बांचें!Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-21150787190281477412012-06-02T21:49:50.600+05:302012-06-02T21:49:50.600+05:30सुनिए सर , ई जो आप समझ रहे हैं कि ई पोस्ट को पढने ...सुनिए सर , ई जो आप समझ रहे हैं कि ई पोस्ट को पढने के बाद समझ के हम कुछ उदगार व्यक्त करें तो कतई गल्त है जी जे तो ,। हमें तो इत्ता गूढ विषय आप हिमालय पर टुईसन देके भी पढाने का पिरयास करें तो कसम से हम सायकिल ले के ही सही भाग निकलेंगे हिमालय से । <br /><br />आचार्य अगली बार ही टीपेंगे कुछ विशेष , ई वाला के लिए तो बस भईया जी ईश्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्श्माईल ही धर जा रहे हैंअजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-82683642233719158342012-05-31T08:46:13.027+05:302012-05-31T08:46:13.027+05:30मानविकी और विज्ञान के बीच कहाँ-कहाँ नजदीकियाँ हैं ...मानविकी और विज्ञान के बीच कहाँ-कहाँ नजदीकियाँ हैं इसकी पड़ताल की जा सकती हैं लेकिन दूरियाँ तो हमेशा रहेंगी। दिल से लिखने वालों और दिमाग से तार्किक पक्ष ही रखने वालों के विचारों को पढ़कर हमारा बच्चों की तहर नई अनुभूति पर उत्तेजित होना भी स्वाभाविक है। <br /><br />मानविकी समाज को नई दृष्टि दे सकती है विज्ञान मानविकी को नया आकाश, नई धरती उपलब्ध करा सकता है। दोनो में भेद नहीं, दोनो के सामंजस्य के कारण होने वाले मानव कल्याण पर चर्चा किया जाना अधिक सार्थक होगा।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-49448819033606414312012-05-30T18:47:13.466+05:302012-05-30T18:47:13.466+05:30विषय कोई भी हो, सबका लक्ष्य मानव जीवन को बेहतर बन...विषय कोई भी हो, सबका लक्ष्य मानव जीवन को बेहतर बनाना ही होना चाहिए ...संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38073664019343420942012-05-30T17:32:33.681+05:302012-05-30T17:32:33.681+05:30दोनों की भूमिका विस्मय में है...दोनों की साधना भी...दोनों की भूमिका विस्मय में है...दोनों की साधना भी अंतर्मुखी व्यक्तित्वों द्वारा ही सम्भव हो पाती है ..बहुत बार तो कवि की कल्पना, कल्पना ही क्यों.. स्वप्न भी, विज्ञान की खोज का आधार बनते हैं ...अंतर केवल इतना है कि कवि यदि सच्चा है तो वह अंतर्जगत के रहस्यों को उदघाटित करता है और वैज्ञानिक बाह्यजगत के ! सच तो यह है कि जहाँ कविता और विज्ञान का संगम होता है, वहाँ अध्यात्म फलित होता है...मेरे देखने में तो आइंस्टीन के या स्टीफन हकिंज के वक्तव्य उतने ही आध्यात्मिक हैं, जितने की कृष्ण के या बुद्ध के या पतंजलि के या शिव के ! हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सृष्टि का आधारभूत तत्व ज्ञान है जो इन्द्रिय-गोचर नहीं है लेकिन हर चीज़ छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी ..सिर्फ और सिर्फ उसी की गवाही देती है !shyamjuneja1noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-77705198533860000852012-05-30T15:09:49.395+05:302012-05-30T15:09:49.395+05:30अरविन्द जी,
साहित्य और विज्ञान का समन्वय कैसे सम्भ...अरविन्द जी,<br />साहित्य और विज्ञान का समन्वय कैसे सम्भव है?<br />दोनो के परस्पर विपरित गुण-धर्म है। <br />'वो डोलत रस आपने और उनके फाटत अंग॥' :)<br />साहित्य जड़ नहीं बन सकता और विज्ञान अनुशासनहीन नहीं बन सकता।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-9425390880186854542012-05-30T13:21:35.349+05:302012-05-30T13:21:35.349+05:30वाणी:सुचिंतित टिप्पणी!साहित्य और विज्ञान की कोई तो...वाणी:सुचिंतित टिप्पणी!साहित्य और विज्ञान की कोई तो समंजन रेखा हो <br />वीरू भाई : भरी भरकम के श्लेष को समझ रहा हूँ मगर लाचारी है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-14632205443015336512012-05-30T12:45:20.126+05:302012-05-30T12:45:20.126+05:30..जब तक मैं यह देख न लूं कि मैंने कहा क्या था मैं .....जब तक मैं यह देख न लूं कि मैंने कहा क्या था मैं कैसे जान सकता हूँ कि मेरे कहने का अर्थ क्या है?"यह बात साहित्यकार और वैज्ञानिक दोनों पर सामान रूप से लागू होती है -दोनों के लिए निष्पत्ति -अंतिम परिणाम/उत्पाद ही मायने रखता है...एक सफल वैज्ञानिक और एक कवि आरम्भ में तो सोचते एक जैसे हैं मगर वैज्ञानिक काम करता एक बुक कीपर जैसा है-वह आकंड़ो को तरतीब से सहेजता जाता है . वह अपने शोध प्रकल्पों/परिणामों के बारे में कुछ ऐसा लिखता है जिससे वह समवयी समीक्षा (पीयर रिव्यू) में पास हो जाय .समवयी समीक्षा के साथ ही तकनीकी और आंकड़ो की परिशुद्धता भी विज्ञान के परिणामों के दावों के लिए बेहद जरुरी है .इस मामले में एक वैज्ञानिक की ख्याति ही उसका सर्वस्व है. और यह ख्याति प्रामाणिक दावों पर ही टिकी रह सकती है. यहाँ हुई चूक एक वैज्ञानिक का कैरियर तबाह कर सकती है. धोखाधड़ी तो एक वैज्ञानिक के कैरियर के लिए मौत का वारंट है .<br /><br />साहित्य कार को अभी यह समझ लेना बाकी है प्रेयसी का चेहरा चाँद की तरह ऊबड़ खाबड़ नहीं होता और न ही वहां निरंतर उल्का पात होता है .अलबता नजरों से स्केनिंग ज़रूर होती है उस रूप गर्विता की .<br /><br />अलबत्ता हमारा ऐसा मानना है समस्त ज्ञान ही विज्ञान है .वर्गीकरण विस्तृत अध्ययन की सुविधा के मद्दे नजर ही किया गया है .<br />कुछ अरसा पहले विश्विद्यालयों में ज्योतिष विज्ञान का अध्ययन क्यों विषय पर काफी नोंक झोंक हुई थी .हमारी भी शिरकत थी वहां .खुशवंत जी ने यह कह कर इस अध्ययन का विरोध किया कि ज्योतिष कोई विज्ञान नहीं है .साथ ही हमारे तर्कों को सुनके जड़ दिया -<br />'sorry Mr.sharma ,what quackery is to medicine so is astrology to astronomy '<br /><br />हमने कहा था -<br /><br />'Astrology is the predictional part of astronomy .A uniform methodology should be developed to make predictions .Some astrologers are carrying calculations based on nine planets ,others 8and 12 .In Indian system moon and sun are lined together on temple walls in a circle etc.So a common code should be evolved but you can not discard the study of astrology in university systems .<br /><br />Even astronmy is an observational science.But Khushvant singhji was un -yielding.<br /><br />हमने साथ ही यह भी कहा था क्या अध्ययन सिर्फ विज्ञानों का होना चाहिए .साहित्य को कूड़े दान के हवाले कर दिया जाए .जबकि दोनों ही विधाएं हैं अभिव्यक्ति की .हिंदी चिठ्ठाकारी विज्ञान साहित्य रच रही है .दोनों की यारी करवा रही है .<br /><br />बढ़िया आलेख डॉ अरविन्द मिश्र का उनकी भारी भरकम (बौद्धिक रूप से )कद काठी के अनुरूप .<br /> कृपया यहाँ भी पधारें -<br /><br />ram ram bhai<br /><br />बुधवार, 30 मई 2012<br />HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से<br /><br />http://veerubhai1947.blogspot.in/<br /><br />http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/<br /><br />कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-28935576125699631822012-05-30T09:03:20.648+05:302012-05-30T09:03:20.648+05:30विज्ञान में कल्पनाएँ आविष्कारों की जननी है , निश...विज्ञान में कल्पनाएँ आविष्कारों की जननी है , निश्चित सूत्र में परिणाम भी निश्चित ही होंगे जो भविष्य में साकार होने वाली कल्पनाओं के लिए ठोस नियम बनेंगे , जबकि साहित्य में कल्पनाएँ असीमित हैं , चाँद किसी को चरखा काटती बुढिया लगे , तो किसी को प्रेमिका का चेहरा , किसी को मामा ! जबकि विज्ञान में सभी के लिए एक ही नियम है ...चाँद एक उपग्रह है !!<br />विषय रोचक है , टिप्पणी लिखने के लिहाज़ से मुश्किल !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-29308706496348899822012-05-30T08:58:26.154+05:302012-05-30T08:58:26.154+05:30vishay chahe koi bhi ho sabhi vishyo mein samantay...vishay chahe koi bhi ho sabhi vishyo mein samantaye to hoti hi hai aur asamanta bhi ...alag alag kisi ka bhi astitva nahin hai ...surya chahe sthir mana jaye chahe gatiman ...vigyan aur sahitya dono me suraj prakash, urja aur roshni se hi juda hoga..alag nhi...vicharneey lekh...Monika Jainhttps://www.blogger.com/profile/18206634037142003083noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-27181826574953516592012-05-30T08:30:42.618+05:302012-05-30T08:30:42.618+05:30@काजल कुमार,
हाँ प्रस्तुतिकरण में कुछ साहित्यिकता...@काजल कुमार,<br />हाँ प्रस्तुतिकरण में कुछ साहित्यिकता से स्टार ट्रेक जैसे प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं -<br />मजे हुए लोकप्रिय विज्ञान लेखक भी यही करते हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-4288055435179678132012-05-30T08:27:46.699+05:302012-05-30T08:27:46.699+05:30मैं तो 'स्टार ट्रेक्क' लेखन को आज तक के ...मैं तो 'स्टार ट्रेक्क' लेखन को आज तक के सर्वोत्तम वैज्ञानिकी लेखन का उदाहरण मानता हूँ.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-81368252788051802012-05-30T08:12:49.150+05:302012-05-30T08:12:49.150+05:30अरविन्द जी ,
जैविकी को लेकर बात कुछ खास नहीं :)
आल...अरविन्द जी ,<br />जैविकी को लेकर बात कुछ खास नहीं :)<br />आलेख में ई.ओ.विल्सन का हवाला नहीं होता तो किसी और विषय पे समय ज़ाया करते :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-7003536233379646162012-05-30T07:26:11.530+05:302012-05-30T07:26:11.530+05:30अली सैयद: केवल जैविकी पर इतना समय काहें जाया किये ...अली सैयद: केवल जैविकी पर इतना समय काहें जाया किये ?<br />विषय वही कला और विज्ञान के फासले का है .<br />आपके बाकी बातें विचारणीय है ! <br />सुज्ञ:बहुत मनोरम -शुक्रिया <br />अमृता: खुशी है विषय को आपने सही पकड़ा और समझा है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-68107110632673137222012-05-30T07:24:00.764+05:302012-05-30T07:24:00.764+05:30विज्ञान अगर पहली सीढ़ी है तो साहित्य छत वाया खुला ...विज्ञान अगर पहली सीढ़ी है तो साहित्य छत वाया खुला आसमान . हाँ ! परिकल्पना से निष्पत्ति की यात्रा में अद्भुत साम्य अवश्य है . पर दोनों में एक अंतर है ..पहला स्थूल है और दूसरा अति सूक्ष्म..काफी हद तक सहमती ..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-20753267381686510032012-05-29T23:56:27.998+05:302012-05-29T23:56:27.998+05:30किसी साहित्यकार के उकसावे पर हम किसी बहस में क्यों...किसी साहित्यकार के उकसावे पर हम किसी बहस में क्यों शामिल हों जबकि हम स्वयं साहित्य के विद्यार्थी नहीं हैं ! मेरे ख्याल से इस तरह की बहस बेफिजूल है कि साहित्य को जैविकी याकि जैविकी को साहित्य हो जाना चाहिये !<br /><br />साहित्य जैविकी और मानविकी के अन्य विषयों के मध्य सब्जेक्ट कंटेंट की श्रेष्ठता और हीनता को लेकर कोई बहस करना समय नष्ट करने की कवायद है ! <br /><br />अब मुद्दा विज्ञान का ! विज्ञान किसी सब्जेक्ट कंटेंट को समझने / पढ़ पाने / अनालाईज कर पाने का एक दृष्टिकोण है ! अगर इस दृष्टिकोण की शर्तों पे कोई सब्जेक्ट कंटेंट पढ़ा जा सकता हो तो उसे विज्ञान विषय कहने में कोई आपत्ति नहीं है ! <br /><br />विज्ञान अपने आप में कोई सब्जेक्ट नहीं है ! वो एक दृष्टिकोण मात्र है ! साहित्य के लोगों को अपने सब्जेक्ट कंटेंट को डील करते वक़्त विज्ञान के दृष्टिकोण को अपनानना चाहिये याकि नहीं / अपना सकते हैं याकि नहीं / अपना पाएंगे याकि नहीं , खुद ही तय करना होगा ! किन्तु जैविकी इसमें कहां से घुस गई ? जैविकी नाम के सब्जेक्ट कंटेंट की डीलिंग विज्ञान नाम के दृष्टिकोण से परफेक्ट हो सकती है ! पर साहित्य नाम के सब्जेक्ट कंटेंट से यह अपेक्षा रखना ज़रुरी नहीं है !<br /><br />अब मुद्दा मानविकी के दूसरे सब्जेक्ट कंटेंट्स का , मिसाल के तौर पर मनोविज्ञान बनाम खगोल विज्ञान के सब्जेक्ट कंटेंट ! एक खगोल विज्ञानी , विज्ञान के अध्ययन दृष्टिकोण को अपनाते हुए किसी ग्रह से पृथ्वी की सटीक दूरी माप सकता है तो क्या मनोविज्ञान भी विज्ञान की शर्तों का अनुपालन करते हुए दो व्यक्तियों के मध्य प्रेम की सटीक माप कर सकता है ? निकटता / दूरी /वजन कुछ भी ? <br /><br />कहने का आशय ये है कि मानविकी के ज्यादातर सब्जेक्ट कंटेंट विज्ञान के अध्ययन दृष्टिकोण को अपना पाने में विफल रहे हैं क्योंकि उनके सब्जेक्ट कंटेंट विज्ञान की शर्तों के एकदम / पूरी तरह से अनुकूल नहीं है ! इसलिए जैविकी जैसे विषयों से उनकी दूरी बनी हुई है ! जिस दिन वे अपनी इस सामर्थ्य ( विज्ञान सम्मत अध्ययन की सामर्थ्य ) को पा लेंगे ये दूरी स्वयमेव समाप्त हो जायेगी ! <br /><br />अब सवाल ये है कि किसी जीव की देह रचना और उस जीव के मनोसंसार में कोई अंतर है भी कि नहीं ? क्या देह रचना के अध्ययन की तरह से मनोसंसार के अध्ययन संभव हैं ? क्या संभव हो पायेंगे ?<br /><br />जबाब शायद हां में भी हो पर इसमें एक लंबा वक्त लगने वाला है !<br /><br />तब तक अपने 'मेढक' को मेरे 'प्रेम' के साथ एक ही तराजू में मत तौलिए :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-60698086232932247862012-05-29T21:10:05.840+05:302012-05-29T21:10:05.840+05:30हम तो दोनों के बीच कहीं बसे हुये हैं, थोड़ा विज्ञा...हम तो दोनों के बीच कहीं बसे हुये हैं, थोड़ा विज्ञान थोड़ी मानविकी..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-58169197542629814502012-05-29T20:18:53.617+05:302012-05-29T20:18:53.617+05:30इसके चलते फुरसत मिले तो बांचते हैं :-)<a href="http://blogsinmedia.com/?p=19240" rel="nofollow">इसके चलते</a> फुरसत मिले तो बांचते हैं :-)BS Pablahttps://www.blogger.com/profile/06546381666745324207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-16899145359789931582012-05-29T17:42:41.699+05:302012-05-29T17:42:41.699+05:30साहित्यकार?
अपनी सम्वेदनाओं
की अभिव्यक्ति
करते है ...साहित्यकार?<br />अपनी सम्वेदनाओं<br />की अभिव्यक्ति<br />करते है संकेतों से,<br />बिंब, प्रतीक और <br />अभिधा से<br />किन्तु कभी भी<br />विज्ञान को चुनौति<br />नहीं देते।<br />लेकिन ये विज्ञान के<br />नवपढ़ाकू छबिले<br />साहित्य के मुहावरों<br />पर भी आपनी<br />अक्ल जरूर छाटेंगे<br />एक कवि को भी<br />विज्ञानबोध <br />अवश्य बांटेंगे।<br />कोई विरही<br />ताकेगा चांद<br />तो उसे पागल कह<br />चांद की दूरी<br />प्रकाशवर्ष में<br />बताएंगे!!<br />इसप्रकार<br />सभी बिंबो को<br />तर्क पे चढ़ाएंगे।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-17702690280434195122012-05-29T16:57:54.833+05:302012-05-29T16:57:54.833+05:30साहित्यिक दृष्टि से उच्च कोटि लेख !
हालाँकि अपने ...साहित्यिक दृष्टि से उच्च कोटि लेख !<br />हालाँकि अपने तो कुछ समझ नहीं आया . <br />अब दोबारा जल्दी बोर मत करना . प्लीज ! :)डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-47876066166830610442012-05-29T16:05:10.415+05:302012-05-29T16:05:10.415+05:30ऊपर देखिये ...
चेले आपके स्मार्ट हो गए हैं !ऊपर देखिये ...<br />चेले आपके स्मार्ट हो गए हैं !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-84976334685520164062012-05-29T15:21:06.273+05:302012-05-29T15:21:06.273+05:30@ गंभीर विषय है अतः...
कौन धूप में,जल को लाकर
सू...@ गंभीर विषय है अतः...<br /><b><br />कौन धूप में,जल को लाकर <br />सूखे होंठो तृप्त कराये ? <br />प्यासे को आचमन कराने <br />गंगा, कौन ढूंढ के लाये ?<br />नंगे पैरों, गुरु दर्शन को ,आये थे मन में ले प्रीत !<br />विशिष्ट क्षात्रों की कक्षा से , दूर भगाए मेरे गीत ! <br /></b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-63693220806701981252012-05-29T12:01:01.673+05:302012-05-29T12:01:01.673+05:30मानविकी और विज्ञान का सम्बन्ध हमेशा से समझने में ज...मानविकी और विज्ञान का सम्बन्ध हमेशा से समझने में जटिल रहा है,पर इतना तो सही है कि बिना मानवीय हुए विज्ञान अनर्थकारी और व्यर्थ है.इस लिहाज़ से दोनों एक-दूसरे के पूरक हुए न कि प्रतिस्पर्धी !<br />मानविकी में भावनाओं और संवेदनाओं की प्रबलता है जबकि विज्ञान तथ्यात्मकता,तर्क और डाटा को आधार बनाता है.इसलिए इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन भी समझ से परे है !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-64002787939849158732012-05-29T12:00:16.487+05:302012-05-29T12:00:16.487+05:30Badahee vichottejak aalekh.Badahee vichottejak aalekh.kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-45271023610471489312012-05-29T08:41:22.533+05:302012-05-29T08:41:22.533+05:30...ठीक है फिर फुर्सत से ही बांचेंगे :-)...ठीक है फिर फुर्सत से ही बांचेंगे :-)संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.com