tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post5400694478757441475..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: प्रेम पत्रों का विसर्जन! Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-37997140063831223232014-12-17T16:12:51.514+05:302014-12-17T16:12:51.514+05:30मेरी भी सहमती है सर ........... कुछ ऐसा ही करना था...मेरी भी सहमती है सर ........... कुछ ऐसा ही करना था :)मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-75357053303654838322014-12-08T07:42:16.775+05:302014-12-08T07:42:16.775+05:30हमारे कॉलेज के दिन वो दिन थे जिसे 'गदह-काल&#...हमारे कॉलेज के दिन वो दिन थे जिसे 'गदह-काल' कहा जा सकता है. चिट्ठियों के अवसान के दिन थे और मोबाइल सबके हाथों में नहीं आया था. दिल्ली विश्वविद्यालय में वैलेंटाइन्स डे चिर-प्रतीक्षित दिन हुआ करता था. उसी दिन प्रेम-सबंधों की बुनियाद रखी जाती थी और कोर्टशिप को संपूर्णता देने के लिए कई पार्क थे जो बस युगलों के लिए थे. एक तो हमारे सेंट्रल साइंस लाइब्रेरी के सामने ही था. ओंकारनाथ मिश्र https://www.blogger.com/profile/11671991647226475135noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-20574767535428052052014-12-05T13:14:44.174+05:302014-12-05T13:14:44.174+05:30देर से टिप्पणी लिख पाने के फायदे होते हैं कि औरों ...देर से टिप्पणी लिख पाने के फायदे होते हैं कि औरों की महत्वपूर्ण टिप्पणियों से खुद सुझाव देने में सहयता मिलती है ...मुझे ऊपर लिखे सुझावों में रविशंकर जी का सुझाव अच्छा लगा....भावी पीढ़ियों का ख्याल करते हुए यह जनहित में किया गया कार्य माना जाएगा. : ) ..भावी क्यों ....'प्रेमपत्र कैसे होते हैं' ,हम जैसे मूढ़ -मूर्ख लोग भी जान जायेंगे. जो प्रेम -व्रेम से वंचित रह गए... पढ़ाई ख़तम होते ही विवाह हो गया .....प्रेमपत्र लिखने-पाने की नौबत नहीं आई..Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-4503762525962496772014-11-28T07:50:49.264+05:302014-11-28T07:50:49.264+05:30अरे यह तो सोचा तक न था :-) अरे यह तो सोचा तक न था :-) Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-75631190817853025662014-11-28T07:50:00.493+05:302014-11-28T07:50:00.493+05:30अरे यह तो सोचा तक था :-) अरे यह तो सोचा तक था :-) Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-18537555842756570942014-11-28T07:48:58.325+05:302014-11-28T07:48:58.325+05:30 आप भी बस आप ही हैं ! आप भी बस आप ही हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-72635719102422090212014-11-28T07:47:36.764+05:302014-11-28T07:47:36.764+05:30:-) :-) Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-90631602862141145492014-11-27T21:37:14.667+05:302014-11-27T21:37:14.667+05:30विसर्जन!
कमाल करते हो मियाँ!!!
बल्कि तो इन्हें स...विसर्जन! <br />कमाल करते हो मियाँ!!!<br /><br />बल्कि तो इन्हें स्कैन करें, डिजिटाइज करें और फिर ब्लॉग में और आर्काइव.ऑर्ग में अपलोड कर दें. (चाहें तो निजी / सार्वजनिक सेटिंग जैसी भी रखें, ताकि निजी किस्म के वार्तालाप (ऐसी पंक्तियों को धुंधला भी कर सकते हैं - माने सेंसर!) के सार्वजनिक हो जाने से उत्पन्न हो जाने वाली असहजता की स्थिति न हो.)<br /><br /> आनेवाली पीढ़ियों के इतिहास के लिए तो कुछ सोचिए!रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-25889755575430618812014-11-27T19:06:41.235+05:302014-11-27T19:06:41.235+05:30ख़ुद मैंने वो प्रेम पत्र प्रणय-विच्छेद के कई वर्षों...ख़ुद मैंने वो प्रेम पत्र प्रणय-विच्छेद के कई वर्षों उपरांत भी अपने बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखे हुये थे. एक बार "अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो" की परिस्थिति में मुलाक़ात होने पर उनकी ओर से सवाल दागा गया कि वो ख़त (प्रेम पत्र से ज़्यादा वज़न ख़त कहने में आता है) मैंने क्यों बेकार लॉकर में सँजो रखा है, सालाना किराया भी तो देना पड़ता है (उन दिनों तीन सौ रुपये सालाना किराया होता था). हमने भी दिलीप कुमार वाले अन्दाज़ में जवाब दिया - तुम्हारी यादों का किराया तीन सौ रुपये तो बहुत कम है. <br />बाद में जब उन्हीं ख़तों को पढने पर हँसी आने लगी कि क्या फालतू बातें लिखते थे हम तो उन्हें गंगा के पुल से गंगा में बहा दिया! <br />तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,<br />आग बहते हुये पानी में लगा आया हूँ! टाइप कुछ कुछ!!<br />/<br />वैसे पण्डित जी इस टेक्नोलॉजी के भी अपने फायदे हैं. रात भर मोबाइल पर सर्दियों की रातों में रजाई में छुपकर आशिक माशूक की बातें... आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम...!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46176124678204888632014-11-26T20:03:51.567+05:302014-11-26T20:03:51.567+05:30मित्र (?) के काँधे रखकर बन्दूक चला रहे हैं आप आजकल...मित्र (?) के काँधे रखकर बन्दूक चला रहे हैं आप आजकल ;)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53813692140429195832014-11-26T12:07:53.466+05:302014-11-26T12:07:53.466+05:30संगम मिएँ तो मत ही बहाइये ... कहीं पानी में आग न ल...संगम मिएँ तो मत ही बहाइये ... कहीं पानी में आग न लग जाए ...<br />तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ <br />आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46239634480579329412014-11-26T11:16:43.187+05:302014-11-26T11:16:43.187+05:30यह तो 'नमामि गंगे ' प्रोजेक्ट पर कुठाराघात... यह तो 'नमामि गंगे ' प्रोजेक्ट पर कुठाराघात है । अपने घर के टब को ही संगम समझ कर उस पुनीत कार्य को अन्जाम दिया जाए ।शकुन्तला शर्माhttps://www.blogger.com/profile/12432773005239217068noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-23301929789020661472014-11-26T09:48:42.274+05:302014-11-26T09:48:42.274+05:30गहराई से सोचें तो तकनीक के इस खेल ने सच में कई चीज़...गहराई से सोचें तो तकनीक के इस खेल ने सच में कई चीज़ों से दूर कर दिया । ये हमारे व्यवहार में दिख रही हैं डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-76744476734148392722014-11-26T06:44:13.408+05:302014-11-26T06:44:13.408+05:30सहेजने वाली चीजें विसर्जित क्यों की जाएँ?सहेजने वाली चीजें विसर्जित क्यों की जाएँ?अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com