tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post4179359799608380317..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: सुर असुर का झमेला ,हल्की होती जेब -ब्लागिंग जो भी न कराये ....Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-82374128854031659602010-01-15T08:51:34.060+05:302010-01-15T08:51:34.060+05:30आदरणीय गिरिजेश जी की सारी टिप्पणियों मे मेरे मत भी...आदरणीय गिरिजेश जी की सारी टिप्पणियों मे मेरे मत भी रख लीजिये ना...जिस विषय पर कोई जानकारी नहीं हो..(बहुधा होता है मेरे साथ..)मै सर झुका बस सीखना चाहता हूँ...आभार...!Dr. Shreesh K. Pathakhttps://www.blogger.com/profile/09759596547813012220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-27017454079914833182010-01-14T00:57:51.742+05:302010-01-14T00:57:51.742+05:30अरविन्द भाई ,
आपके दरबार में तो सुर असुर चर्चा गरम...अरविन्द भाई ,<br />आपके दरबार में तो सुर असुर चर्चा गरमाई है .पस्त न हों . पता चलते ही बताईयेगा की कैसे सुर असुर हो गए .हम तो बेसुरे ठहरे पर हाँ .....................फोटू सुर असुर ससुर सब के kaam की दिख रही है .<br />सच है .............ऐसे आलेख बुकमार्क कर रखने की चीज है ,तत्व और गहराई दोनों शामिल हैं . उत्सुकता तो है ही .<br />संक्रांति की शुभकामनायें .RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-44138906475853623502010-01-13T22:03:43.407+05:302010-01-13T22:03:43.407+05:30इतनी गहरी विवेचना के लिये आप बधाई के पात्र हैं।अच्...इतनी गहरी विवेचना के लिये आप बधाई के पात्र हैं।अच्छा लेख....प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-9773730431282355242010-01-13T11:33:31.217+05:302010-01-13T11:33:31.217+05:30वाह ! अर्थ निकलना भी गजब होता है ...
शब्द का ख़ास ...वाह ! अर्थ निकलना भी गजब होता है ...<br />शब्द का ख़ास भाषा में जो अर्थ है , वही ग्राह्य होना चाहिए ...<br />जैसे 'देव' का अर्थ राक्षस है मीर के इस शेर में ( फ़ारसी प्रभाव ) ---<br />''आतिशे-इश्क ने रावन को जला कर मारा <br />गर्चे लंका सा था उस 'देव' का घर पानी में | '' <br />यहाँ रावण को कोई देवता समझे तो उसकी समझ को दूर से नमस्कार करना होगा ...<br />अब यहाँ( निम्नोक्त चौपाई में ) अर्थ-प्रस्तावक 'दारु' का द्रव - बोधक अर्थ निकालें <br />तो क्या वे दूर से नमस्कार के पात्र नहीं हैं ( ! ).......<br />'' एकु दारुगत देखिअ एकू। <br />पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू।।<br />उभय अगम जुग सुगम नाम तें। <br />कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें।। ''<br />............. ऐसी अर्थ संबंधी भ्रांतियां न हों तो बेहतर ... आभार ,,,Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-24686529760292488882010-01-13T09:49:28.113+05:302010-01-13T09:49:28.113+05:30अरविन्द जी, मैं इसे धर्म से जोड़कर नहीं बल्कि विभि...अरविन्द जी, मैं इसे धर्म से जोड़कर नहीं बल्कि विभिन्न स्थानों के निवासियों की परम्पराओं के बीच कड़ियाँ जोड़ने का प्रयास कर रहा हूँ. रही बात अनुवाद की तो मेरी इतनी सामर्थ्य नहीं की किसी ग्रन्थ के किसी लघु भाग का भी अनुवाद कर सकूं. वो तो मैंने नेट पर ही एक जगह देखा तो यहाँ पेस्ट कर दिया. अब मेरी विद्धजनों से अपेक्षा है की वे सही अनुवाद तक मुझे पहुंचाएं.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-42484686882908368332010-01-13T08:01:18.676+05:302010-01-13T08:01:18.676+05:30@ जीशान जी ,अनुराग जी ,गिरिजेश जी ,कृपया यहाँ चल ...@ जीशान जी ,अनुराग जी ,गिरिजेश जी ,कृपया यहाँ चल रही तत्व विवेचनी चर्चा को "वादे वादे जयते तत्वबोधः की ही परम्परा में और धर्म से तो बिलकुल निरपेक्ष लिया जय .जीशान जी आपका अनुवाद हास्यकर भी नहीं है महज हास्यास्पद है .<br />अनुराग जी ,बिलकुल सही टोका है और गिरिजेश जी ने तो खैर यथोक्त परम्परा का ही मान रखा है -मुझे यह गुत्थी सुलझानी है कि अवेस्ता के असुर ऋग्वेद में सुर कैसे हो गए ? और यह आसान नहीं है -काफी बौद्धिक मीमांसा की दरकार है -हिम्मत पस्त है मेरी !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-58827686956968066432010-01-12T10:04:55.728+05:302010-01-12T10:04:55.728+05:30गिरजेश जी, ये समस्या सभी धर्मग्रंथों के साथ है. भा...गिरजेश जी, ये समस्या सभी धर्मग्रंथों के साथ है. भाषा न जानने के कारण अर्थ का अनर्थ हो जाता है. जो ग्रन्थ जितना पुराना है उसके साथ ये समस्या उतनी ही ज्यादा है.Zeashan Zaidihttp://husainiat.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-50656429672182387862010-01-12T09:35:18.973+05:302010-01-12T09:35:18.973+05:30-'घरनी 'नया शब्द पढ़ा.
-दैत्यतुल्य इंद्र क...-'घरनी 'नया शब्द पढ़ा.<br />-दैत्यतुल्य इंद्र कैसे देवताओं के राजा बन बैठे ?<br />-[यह भी अचरज की बात है]<br />-आख़िर पैरे में काफ़ी नयी जानकारियाँ मिलीं.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-17335133474074489532010-01-12T06:33:39.737+05:302010-01-12T06:33:39.737+05:30@जीशान भाई जैसे ज़हीन आदमी से एक पवित्र वेद-मन्त्र...@जीशान भाई जैसे ज़हीन आदमी से एक पवित्र वेद-मन्त्र के ऐसे बेतुके अनुवाद की उम्मीद नहीं थी. अभी मैं इतना ही कहूंगा कि जो लोग अपने धर्म ग्रन्थ के बारे में अति-संवेदनशील रहते हैं उन्हें दूसरे धर्म-ग्रंथों की पवित्रता का इस प्रकार जानबूझकर अनादर नहीं करना चाहिए. संस्कृत में दार/दारु (दारू नहीं) का अर्थ लकड़ी, वृक्ष और वन तीनों ही हो सकते हैं (=अंग्रेज़ी का wood/woods) . हम सब इतना तो समझते हैं कि ४०० साल पुरानी उर्दू को हज़ारों साल पुरानी वैदिक संस्कृत पर नहीं थोपा जा सकता है. दार-उल-शफा को क्या आप दारू की दूकान कहते हैं? या देवदारु के वृक्ष को "प्रभु की दारु" कह देंगे? खासकर देवदारु के इस बेतुके अर्थ में देव/प्रभु शब्द का अपने धर्म का पर्याय कहने की दम आपमें नहीं है यह आप भी जानते हैं हम भी. तो फिर आज से यह बात गाँठ बाँध लीजिये कि जिनके घर शीशे के होते हैं उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर फेंकने से बचना चाहिए. हाँ अगर आप सचमुच सत्यान्वेषी जिज्ञासु हैं तो एक ज्ञानी ब्राह्मण का शिष्य बनिए, वेदमंत्रों के सही अर्थ अपने आप पता लग जायेंगे.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-89934321435258167862010-01-11T22:40:48.143+05:302010-01-11T22:40:48.143+05:30आप का लेख पढ कर लगा कि हम पहले बहुत बडे सुर थे:).....आप का लेख पढ कर लगा कि हम पहले बहुत बडे सुर थे:)... फ़िर धीरे धीरे असुर बनते गये, ओर अब ९९% से ज्यादा असुर है ओर साल मै एक दो बार थोडा स सुर बन जाते है.<br />बाकी डॉ टी एस दराल जी से सहमत हैराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-81700684020554845062010-01-11T20:20:13.169+05:302010-01-11T20:20:13.169+05:30अमरेन्द्र जी,
इतनी निराशा ठीक नहीं। शोधरत लोग ऐसे...अमरेन्द्र जी,<br /><br />इतनी निराशा ठीक नहीं। शोधरत लोग ऐसे पल्ला पटकेंगे तो कौन बोझा कौन सँभालेगा? <br />मुक्त हो कर अपनी बात कहिए। <br />अभी तो आप जवान हैं :)गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-78044861083175645142010-01-11T20:18:09.159+05:302010-01-11T20:18:09.159+05:30ज़ैदी जी,
वैदिक मंत्रों की भाषा छान्दस है जो क्लास...ज़ैदी जी,<br /><br />वैदिक मंत्रों की भाषा छान्दस है जो क्लासिक संस्कृत के सामने आने के साथ धीरे धीरे लुप्तप्राय सी हो गई। ले दे कर सायण का भाष्य ही समझने के लिए लोगों के हाथ लगता है। क्लासिक संस्कृत के नियम वेदों पर लगाने से अनर्थ होते हैं जैसे आप ने यहाँ किया है। वेदों में बैकुंठ की अवधारणा नहीं है। आप के द्वारा किया गया अर्थ अनर्थ ही है। इस सम्बन्ध में दयानन्द कृत भाष्य को भी देख लें। <br />हजारों हजार साल पुरानी परम्परा के अर्थ समझने की कोशिश करने पर संशय उपजते हैं जिन्हें एकेडमिक स्तर पर ही सुलझाना या उसके लिए प्रयास करना होता है। आम जन की आस्था/मान्यताओं को बिना कोई ठोस विकल्प पाए ही झुठलाने से अनावश्यक विवाद उठते हैं जिनसे बचा जाना चाहिए। बहुत पहले 'सहमत' संस्था द्वारा बौद्ध जातकों का आश्रय ले रामकथा का विरूपण और उसके बाद उठा विवाद इसका एक उदाहरण है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-2949259554840438102010-01-11T19:07:42.109+05:302010-01-11T19:07:42.109+05:30सीमित मात्र में मदिरा सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदाय...सीमित मात्र में मदिरा सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है। <br />कहते हैं इससे एच डी एल बढ़ता है, जो हार्ट प्रोटेक्टिव होता है। <br />लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की आप आज से ही पीना शुरू कर दें।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38634868930222599032010-01-11T18:58:38.381+05:302010-01-11T18:58:38.381+05:30सर जब भी ऐसे आलेखों को पढता हूं तो बिना देर किये उ...<i> <b> सर जब भी ऐसे आलेखों को पढता हूं तो बिना देर किये उन्हें बुकमार्क कर लेता हूं , जानते हैं क्यों , जब भी हिंदी ब्लोग्गिंग में स्तर से कमतर लेखन की बात उठेगी उन्हें यही सब दिखाऊंगा , और फ़िर प्रश्न करूंगा कि बताओ ये कौन सा स्तर है , शायद उनकी समझ में ठीक ठीक आ जाए। सर आपके ऐसे लेख हिंदी ब्लोग्गिंग के लिए धरोहर की तरह हैं </b> </i><br /><a href="http://www.google.com/profiles/ajaykumarjha1973#about" rel="nofollow"> अजय कुमार झा </a>अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-18021422537831795392010-01-11T17:22:03.076+05:302010-01-11T17:22:03.076+05:30ईश्वर करे आपकी यह जिज्ञासा हर बात को यूँ गहरे तक ज...ईश्वर करे आपकी यह जिज्ञासा हर बात को यूँ गहरे तक जानने की बनी रहे ..और हम इस से यूँ ही लाभ उठाते रहे ...रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-86115616338007846512010-01-11T16:46:43.313+05:302010-01-11T16:46:43.313+05:30लेखनी कितनी सुरा-नीक होकर बोलती है ..
जानकारी देने...लेखनी कितनी सुरा-नीक होकर बोलती है ..<br />जानकारी देने का शुक्रिया ..<br />औरों को तो 'पहुंचा ही दिया मधुशाला ' ..<br />आपके कंटेंट पर कुछ नहीं बोलूँगा ...<br />अब तो अपनी औकात को (उप)भोक्ता-मय कर बैठा हूँ , अतः गूढ़ विवेचनगत<br />प्रश्नों से कन्नी काटने लगा हूँ , '' हम तो बिस्मिल थक गए '' , सो सब सम्हालें <br />धैर्यधनी राव साहब जैसे जन ..<br />कल से मैं अज्ञेय की इस कविता पर बार-बार <br />सोच रहा हूँ --- '' ......... मूत्र सिंचित मृत्तिका के वृत्त में / तीन टांगों पर खड़ा / धैर्यधन <br />नतग्रीव गदहा '' , यहाँ वाले '' धैर्यधन'' में खुद को पाता हूँ .. <br />........ आभार ,,,Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-68474267407880429822010-01-11T15:45:19.898+05:302010-01-11T15:45:19.898+05:30नॉएडा से दिल्ली में सुरा ४० % सस्ती मिलती है !
ह...नॉएडा से दिल्ली में सुरा ४० % सस्ती मिलती है !<br /><br /> हमें दैत्य नहीं बनना...उम्दा सोचhttps://www.blogger.com/profile/08616299859031751426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-54939156173484798352010-01-11T12:23:43.821+05:302010-01-11T12:23:43.821+05:30किसी की आशंका के बहाने जानकारीपरक एक और पोस्ट पढने...किसी की आशंका के बहाने जानकारीपरक एक और पोस्ट पढने को मिली। लेकिन इसके लए इतने रूपये खर्च करने की क्या जरूरत थी? यह जानकारी तो किसी लाइब्रेरी की शरण में जाकर भी प्राप्त हो सकती थी। वैसे अली साहब की बात से कैसे असहमत हुआ जाए। हाँ, अरूण प्रकाश जी के सुझाव पर भी गौर फरमाएं। वो कहते हैं न मौसम भी है, मौका भी....Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-14494665644731731792010-01-11T11:36:44.851+05:302010-01-11T11:36:44.851+05:30अति ज्ञान वर्धिनी पोस्ट है. आभार.
रामराम.अति ज्ञान वर्धिनी पोस्ट है. आभार.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-30633574545001393222010-01-11T11:15:14.998+05:302010-01-11T11:15:14.998+05:30गिरजेश जी से सहमत. इस लाइन पर विचार कीजिये, '&...गिरजेश जी से सहमत. इस लाइन पर विचार कीजिये, ''है उपासक! दूर देश में समुद्र तट पर जो दारू काबन है, वह किसी मनुष्य से निर्मित नहीं है इसमें आराधना करके उनकी कृपा से बैकुण्ठ को प्राप्त हो'' -- (ऋः 10-155-3)zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-7023960130496752002010-01-11T10:43:32.568+05:302010-01-11T10:43:32.568+05:30@अनुराग जी ,राक्षस को दैत्य /दानव् संशोधित किया ह...@अनुराग जी ,राक्षस को दैत्य /दानव् संशोधित किया है .<br />@ तनु श्री ,<br />विवेच्य सुर असुर है ,suraa naheen ,aaur aapkee jaankaree saheee हैArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-34073426820818301702010-01-11T09:53:02.360+05:302010-01-11T09:53:02.360+05:30__________________________________
सर ,आप कितना भा...__________________________________<br />सर ,आप कितना भावपूर्ण और हिन्दी के नव शब्दों के साथ लिखतें हैं कई आपकी पोस्ट को कई बार पढना पड़ता है.<br />काफी गवेषणा की बाद आपनें उत्कृष्ट पोस्ट लिखी है इसके लिए आपको बहुत बधाई,लेकिन मेरे समझ में एक बात नहीं आयी कि जहाँ तक मेरी जानकारी है आपके पूरे परिवार में इस सुरा से तो कोई दूर-दूर तक रिश्ता नहीं फिर इस विषय पर यह लेखन क्यों ?कहीं बच्चन जी की तरहकि -स्वयं नहीं जाता औरों को पहुचा देता मधुशाला------------------------<br />______________________________________________________________________तनु श्रीhttps://www.blogger.com/profile/08137749476720593975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-63291705617555688672010-01-11T09:43:48.213+05:302010-01-11T09:43:48.213+05:30इयर मार्क रुपयों की चोरी के मामले में विचार किया ग...इयर मार्क रुपयों की चोरी के मामले में विचार किया गया ! प्रथम दृष्टया यह अपराध पारिवारिक अमानत में ख्यानत का मामला है ! उचित होता यदि आप इसे प्रबंधक से ऋण बतौर प्राप्त करते! अब चूँकि यह 'कृत्य'आप अकेले का नहीं है इसलिए प्रबंधक को चाहिए कि वह आपको इस कृत्य के लिए प्रेरित करने वाले ज़ाकिर अली रजनीश और अनुराग शर्मा को भी सहअभियुक्त मानकर विधिक कार्यवाही करें ! <br /><br />अब मुद्दा आलेख और आपके कन्फ्यूजन का :<br />तो भाई हमारी अदना सी गुजारिश है कि मिथकों<br />के साथ मिथकों जैसा व्यवहार किया जाये उन पर किसी वैज्ञानिक की तरह से टूट पड़ने की आवश्यकता संभवतः नहीं ही है ! आपकी निराशा स्वाभाविक है ! <br /><br />हमने कुछ गलत लिख डाला हो तो बुरा मत मानियेगा हिच्च ....फोटो आपने लगाई हैं...हिच्च...इसमें हमारी कोई गलती नहीं है! उस दिन रजनीश नें भी ...हिच्च !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-34881170740024555262010-01-11T09:06:08.393+05:302010-01-11T09:06:08.393+05:30अच्छा और गूढ़ विवेचन ,देवासुर संग्राम ने भी...अच्छा और गूढ़ विवेचन ,देवासुर संग्राम ने भी कई सवालों को जन्म दिया ?डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-30679786955837366802010-01-11T07:24:02.380+05:302010-01-11T07:24:02.380+05:30सुर , असुर और सुरा को दूर से प्रणाम ....
आपका शोध ...सुर , असुर और सुरा को दूर से प्रणाम ....<br />आपका शोध पूरा हो जाएगा तो पढ़ जरुर लेंगे ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com