tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post3684764952571618940..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: फागुन के दिन चार बीत गए रे भैयाArvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53084170030043540382010-03-12T22:53:21.437+05:302010-03-12T22:53:21.437+05:30देर से टीप रहा हूँ , पर टीप ही तो रहा हूँ !
अरे भ...देर से टीप रहा हूँ , पर टीप ही तो रहा हूँ ! <br />अरे भाई इसपर क्या कहें , ये तो ब्लॉग स्वामी की मर्जी !<br />पर अगर कोई इसकदर दिल से लिखा हो , तो दुःख होगा ही !<br />मैं तो इस दुःख से अब उबर चुका हूँ , यही मान लें कि आपकी <br />बात कम से कम उस ब्लॉग लेखक तक तो चली ही गयी , आगे चाहे ब्लॉग स्वामी <br />मिटाए , चाहे उखरि परे !<br />.........................................................................................................................<br />@ आपकी पिछली पोस्ट और वहां की टीपों पर ,,,<br />कविता की गजब कटपीस गिरी ! लोग परोपकारातुर दिखे !<br />'' उतरी हुई नदी का कोई करे निरादर सम्मान करने वाले सम्मान कर रहे हैं '' !<br />@ आचारज जी लोग दिख नहीं रहे :) <br />भो गिरि-वर-गहन ! <br />आपकी छिन्नतार वीणा की छेडन अदा बड़ी मासूम-मरहूम-कातिलाना है ! :) <br />@ ,,,,,,,,, @गिरिजेश जी ,आचारज जी ने बैठकी बदल दी है इन दिनों और प्रगतिशील खेमें में चले गए हैं <br />मगर आयेगें यही जानता हूँ ! जैसे पुनि जहाज को पंछी उडि जहाज पर आवे !<br />,,,,,,,,,सर !<br />जहाँ जो पसंद आता है वहां चार मोटी चुनने जरूर चला जाता हूँ ,<br />अपुन का न किसी से स्थायी बैर है न प्रीत !<br />प्रगतिशील खेमें में भी कम बाह्याचार नहीं हैं , जे,एन.यू. में इस खेमे <br />की भी हकीकत देख चुका हूँ , इसलिए खेमों से अलग - थलग रहने को ज्यादा अहम मानता हूँ !<br />.<br />ज्ञान - जहाज पर यह पंछी उड़कर बार बार आएगा !<br />लेकिन क्या करूँ ?<br />ज्ञानेतर स्थिति आहत भी करती है न ! <br />और अपने कबीर दास जी ने तो यहाँ तक चेताया है ;<br />'' भेड़ा देखा जर्जरा , उतरि परे फरंकि '' ! <br />क्या करूँ जहां ज्ञान-जर्जरा दिखती है वहां से मन झिझकने लगता है ! <br />.<br />कही आपका दिल दुखा हो तो क्षमा चाहूँगा , क्या पता आगे फिर दुखाना पड़े आपको !<br />भगवान न करे ऐसा हो मगर फिर भी !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46206107927256008922010-03-12T11:15:18.165+05:302010-03-12T11:15:18.165+05:30@ये कुछ ज्यादा या बहुत ज्यादा नहीं हो गया मीनू जी ...@ये कुछ ज्यादा या बहुत ज्यादा नहीं हो गया मीनू जी ? मगर राहत है जब लुटिया डूब रही हो ऐसे प्रोत्साहन बहुत राहत देते हैं और आगे की राह दिखा देते हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-3776677096704835082010-03-12T10:33:28.926+05:302010-03-12T10:33:28.926+05:30जितने अच्छे साइंटिस्ट, उतने ही अच्छे साहित्यकार, उ...जितने अच्छे साइंटिस्ट, उतने ही अच्छे साहित्यकार, उतने ही अच्छे संगीतज्ञाता, उतने ही अच्छे मनोविनोदी, उतने ही अच्छे ऑरगनाइज़र... जिन डॉ. अरविन्द मिश्र को मैं जानती हूँ वे ऐसे ही है...सम्माननीय और ब्लॉग जगत के सशक्त हस्ताक्षर !!!!Meenu Kharehttps://www.blogger.com/profile/12551759946025269086noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-58315771964825601322010-03-11T23:09:42.325+05:302010-03-11T23:09:42.325+05:30अरविन्द ''सा''
ज्यादा तर ब्लोगर्स...अरविन्द ''सा''<br /><br />ज्यादा तर ब्लोगर्स आपको साइंटिस्ट मानते हैं..<br /><br /><br /><br />इस बारे मैं आपको क्या कहना है....?manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-52211715567653232872010-03-11T19:29:58.070+05:302010-03-11T19:29:58.070+05:30रीति कालीन कविता समझाने में थोड़ा विलम्ब तो होता...रीति कालीन कविता समझाने में थोड़ा विलम्ब तो होता है मगर समझ में आजाय तो बहुत आनंद आता हैBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-72127392270443977042010-03-11T08:03:53.375+05:302010-03-11T08:03:53.375+05:30अरविन्द सा जी,
सच में हमें लगा था के हमीं हैं बस ...अरविन्द सा जी,<br /><br />सच में हमें लगा था के हमीं हैं बस जो ये भाषा नहीं जानते...पर जैसे तैसे समझ ही लिया था....<br />अब फोन आने कि बात पर हमें ख़ुशी हुई के और भी लोग हैं...<br />जो हम से भी कम समझ सके हैं....<br /><br />:)<br />:)<br />आपका आभार.....manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-11600874603662649282010-03-11T06:32:10.260+05:302010-03-11T06:32:10.260+05:30@मनु भाई सा (मैं साहब का संक्षिप्त रूप "सा...@मनु भाई सा (मैं साहब का संक्षिप्त रूप "सा'' लिखता हूँ और बहुत कम लोगों को इससे नवाजा है आपको भी दिया ) ,<br />फोन की घंटियाँ कमतर हो ईन यही बड़ी राहत है -लिख दिया यही पढ़ लेगें लोग -वो बार बार बताने में संकोच भी तो था बहुत -पुरुषों को तो तब भी ठीक ,अब जब वे ही पूंछे जिनके लिए यह लिखा गया तो अब बताएं हम बताएं क्या ? शर्म से पानी पानी हो लिए -फोन भी कट गया!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-2310696612462594412010-03-11T01:12:50.193+05:302010-03-11T01:12:50.193+05:30बेचारे आपको फोन करने वाले...
हमें सहानुभूति है उन...बेचारे आपको फोन करने वाले...<br /><br />हमें सहानुभूति है उन सब से.....<br /><br />और उन से ज्यादा आपसे................manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-57316907429671078182010-03-10T23:52:23.459+05:302010-03-10T23:52:23.459+05:30लोकजीवन से कटे ये लोग जीवन की जीवन्तता से ही मानो ...लोकजीवन से कटे ये लोग जीवन की जीवन्तता से ही मानो वंचित हो गए हैं --<br />-bahut sahi kahi yah baat...16 aane sach!<br /><br /><br />--वियोग ही श्रृंगार का मूल तत्व है .जो इस वियोग की चेतना से संपृक्त नहीं हुआ समझो वह श्रृंगारिकता के सहज बोध से ही प्रवंचित रह गया-<br /><br />shayad is liye prakriti ne bhi mausam ke kayee ruup banaye hain...patjhad...basant...!Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-13780144839282262592010-03-10T13:02:56.532+05:302010-03-10T13:02:56.532+05:30@मुझे फोन पर उक्त कविता के अर्थ के लिए पृच्छायें...@मुझे फोन पर उक्त कविता के अर्थ के लिए पृच्छायें प्राप्त हुयी हैं और निरंतर प्राप्त हो रही हैं -सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की भावना से यहाँ एक सरलार्थ प्रस्तुत है -<br />षोडशी नायिका अपनी पड़ोसन से कह रही है -<br />(लम्बे निःश्वास के साथ ) मेरे हिय -वक्ष पर दो कठोर पाके (फोड़े सदृश रचनाएँ ) उभरती जा रही हैं -अब इस संकोच के चलते मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है -कठोर तो हैं ये मगर ये दर्द नही कर रहे -पद्माकर अब बीच में आ कर सांत्वना देते हैं कि ये बाला घबराओ नहीं ये रति जाल (कामदेव की पत्नी का उपजाया कौतुक ) अमृत भरे हैं -ये जहाँ होते हैं ,जिसके उर में होते हैं वहां नहीं दर्द उपजाते बल्कि इन्हें देखने वाले के उर में ये दर्द उपजाते हैं .Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-58063791765963615242010-03-10T11:13:33.217+05:302010-03-10T11:13:33.217+05:30बहुत बढ़िया आलेख! बेहतरीन प्रस्तुती!बहुत बढ़िया आलेख! बेहतरीन प्रस्तुती!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-23107378316288087122010-03-09T21:07:59.806+05:302010-03-09T21:07:59.806+05:30@गिरिजेश जी ,आचारज जी ने बैठकी बदल दी है इन दिनों ...@गिरिजेश जी ,आचारज जी ने बैठकी बदल दी है इन दिनों और प्रगतिशील खेमें में चले गए हैं मगर आयेगें यही जानता हूँ !<br />जैसे पुनि जहाज को पंछी उडि जहाज पर आवे !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-52465555685154358272010-03-09T20:25:50.186+05:302010-03-09T20:25:50.186+05:30अरे अभी तो 'रामा चईत मासे' का गायन चलेगा ह...अरे अभी तो 'रामा चईत मासे' का गायन चलेगा ही कुछ दिन. हाँ फागुन वाली बात तो अब अगले साल ही आएगी.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-91421324633093347212010-03-09T18:57:36.123+05:302010-03-09T18:57:36.123+05:30प्रस्तावना बहुत पसन्द आई।
ताके और पाके में यमक अल...प्रस्तावना बहुत पसन्द आई। <br />ताके और पाके में यमक अलंकार बहुत जँचा। पद्माकर हैं पद्माकर भैया !<br />आचारज जी लोग दिख नहीं रहे :) <br />लोग व्याख्या नहीं पूछ रहे मतलब कि समझ रहे हैं। मुझे लोगों की परिपक्वता पर संतोष हुआ। <br />ये महफूज भाई इतने दु:खी क्यों हो गए ?गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-27756628209086956522010-03-09T18:49:02.381+05:302010-03-09T18:49:02.381+05:30बेहतरीन ! ऐसी प्रविष्टियों का बस एक ही ठौर है !
लो...बेहतरीन ! ऐसी प्रविष्टियों का बस एक ही ठौर है !<br />लोकोत्सव की गंध घिर-घहरा रही है इधर ! <br /><br />स्वर सुन लेते इस कवित्त का तो आनन्द आ जाता ! खैर !Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-8683132557179179552010-03-09T18:18:45.089+05:302010-03-09T18:18:45.089+05:30बेचैनी सी है सो मित्र आज कोई टिप्पणी नहीं !
( सं...बेचैनी सी है सो मित्र आज कोई टिप्पणी नहीं !<br /><br />( संभव है कुछ दिन आपको दिखाई ना दूं...कोई टिप्पणी भी ना कर सकूं ! मुझे जहां काम हैं शायद वहां नेटवर्क नहीं होगा ! कोशिश करूंगा कि इस दौरान किसी छुट्टी के दिन आपसे सलाम दुआ कर पाऊं ! आपके नियमित पाठक बतौर मेरी गुमशुदगी को अन्यथा मत लीजियेगा )उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-43385022135827351522010-03-09T16:18:41.766+05:302010-03-09T16:18:41.766+05:30अगली बार हम भी चलेंगे इस उत्सव में. कविता समझ में ...अगली बार हम भी चलेंगे इस उत्सव में. कविता समझ में नहीं आयी. थोड़ा परोपकार कीजियेगा.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53124989324735411392010-03-09T15:49:33.786+05:302010-03-09T15:49:33.786+05:30khoobsurti...bahut achha laga aapka ye lekh padh k...khoobsurti...bahut achha laga aapka ye lekh padh karFauziya Reyazhttps://www.blogger.com/profile/01124118614272827003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-87999915428535424042010-03-09T15:10:24.831+05:302010-03-09T15:10:24.831+05:30अच्छा आलेखअच्छा आलेखshikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-44021828352263048842010-03-09T11:47:04.285+05:302010-03-09T11:47:04.285+05:30sach ko ujaagar karta hua aapke ye lekh...
ati ut...sach ko ujaagar karta hua aapke ye lekh...<br /><br />ati uttam.सुरेन्द्र "मुल्हिद"https://www.blogger.com/profile/00509168515861229579noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-71784164620686343732010-03-09T11:23:25.469+05:302010-03-09T11:23:25.469+05:30आज बहुत दुखी हूँ.... इस आभासी दुनिया में कभी रिश्त...आज बहुत दुखी हूँ.... इस आभासी दुनिया में कभी रिश्ते नहीं बनाने चाहिए... कई रिश्ते दर्द देते हैं.... बहुत दर्द देते हैं... ऐसा दर्द जो नासूर बन जाता है...डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-69929190953916280882010-03-09T11:07:05.373+05:302010-03-09T11:07:05.373+05:30आपकी बात समझकर गांठ बांध ली है.
रामराम.आपकी बात समझकर गांठ बांध ली है.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-73764710796499284022010-03-09T09:25:20.426+05:302010-03-09T09:25:20.426+05:30कोशिश जरुर की जायेगी भाग लेने की..अच्छा आलेख.कोशिश जरुर की जायेगी भाग लेने की..अच्छा आलेख.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-80314877625249253882010-03-09T09:15:28.426+05:302010-03-09T09:15:28.426+05:30वर्षा और वसंत, इन दोनों ऋतुओँ में मन प्रिय के लिए ...वर्षा और वसंत, इन दोनों ऋतुओँ में मन प्रिय के लिए उमग उठता है। भारतीय साहित्य में उस के लंबे आख्यान भरे पड़े हैं। यौन संबंध जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन से दूर रह कर जीवन संभव नहीं है। यह हो नहीं सकता कि उसे जीवन में और साहित्य में स्थान न मिले।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-23375481704962653412010-03-09T09:11:20.594+05:302010-03-09T09:11:20.594+05:30सौन्दर्यबोध का गूढ ग्यान बहुत सुन्दर आलेख धन्यवाद।...सौन्दर्यबोध का गूढ ग्यान बहुत सुन्दर आलेख धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.com