tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post2526101180980575570..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: ये कैसी 'कहानी' है?Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger38125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-55430931196387615002012-03-27T23:18:38.832+05:302012-03-27T23:18:38.832+05:30आपने प्रभावी समीक्षा की है. मगर मनोज जी ने भी तार्...आपने प्रभावी समीक्षा की है. मगर मनोज जी ने भी तार्किक रूप से सिसिलेवार प्रत्युत्तर दिए हैं. <br />निःसंदेह एक ऐसी फिल्म जिसका नायक स्क्रिप्ट हो और बिना शीला- मुन्नी के सहारे के सपरिवार देखने योग्य बनाना सहज नही . मेरे ख्याल से कोई और बेहतर फिल्म न आ गई तो संभवतः इस साल 'ऑस्कर' के लिए हमारे यहाँ से यही नामांकित होगी...अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-55927821441033412582012-03-27T03:50:11.065+05:302012-03-27T03:50:11.065+05:30अभी तक नहीं देखा है :) आगे का पता नहीं क्यूंकि सस्...अभी तक नहीं देखा है :) आगे का पता नहीं क्यूंकि सस्पेंस किसी ने पहले ही बता दिया है.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-90757794974021599902012-03-24T11:36:26.806+05:302012-03-24T11:36:26.806+05:30सलिल जी ,मनोज जी
बहुत बहुत आभार ,अपना मंतव्य देने...सलिल जी ,मनोज जी <br />बहुत बहुत आभार ,अपना मंतव्य देने के लिए और मुझे उसके परिप्रेक्ष्य में पुनार्चिनतन के लिएArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-70743623602928847732012-03-23T17:24:01.974+05:302012-03-23T17:24:01.974+05:30@ शुरुआती भीड़ भले ही दिखी हो अब हाल खाली जा रहे ...@ शुरुआती भीड़ भले ही दिखी हो अब हाल खाली जा रहे हैं <br /><br />अब भी बाइस हॉल में चल रही है कोलकाता में।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46251271831829363302012-03-23T17:21:55.399+05:302012-03-23T17:21:55.399+05:30@ कैमरा अँधेरे कोनो को ही फोकस करता रहा -घोर अमानव...@ कैमरा अँधेरे कोनो को ही फोकस करता रहा -घोर अमानवीय स्थति ,गरीबी, गन्दगी <br /><br />ये कोलकाता की संस्कृति है। ये अपनी परंपरा से जुड़े हैं। मैं कई नामी-गिरामी सहित्यकार विद्वान के घर गया हूं। इसी तरह की किसी बहुमंजिली इमारत के दूसरे तीसरे माले पर रहते हैं, छोटी खिड़की वाला घर, रोशनी पर्याप्त नहीं पर मालूम पड़ेगा कि वे मूर्ति देवी या ज्ञानपीठ विजेता हैं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-5717168749138183702012-03-23T17:19:05.325+05:302012-03-23T17:19:05.325+05:30@ दुर्गापूजा की धूम आदि वही यहाँ भी है ...सब दुहरा...@ दुर्गापूजा की धूम आदि वही यहाँ भी है ...सब दुहराव केवल दुहराव<br /><br />हालिया रिलिज अग्निपथ से लेकर सैंकड़ो फ़िल्म में गणपति पूजा मुम्बई के साथ दिखाया जाता है, वहां कोई दुहराव नहीं दिखता। इसी तरह कोलकाता बगैर पूजा के सम्पूर्ण नहीं होता। और यह सब तो कहानी के बैकग्राउंड में चलता रहता है, खासकर यह तब दुहराव नहीं लगता जब नारी शक्ति की तुलना मां दुर्गा की शक्ति से करनी हो निर्देशक को।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53748550239670441362012-03-23T17:14:42.357+05:302012-03-23T17:14:42.357+05:30@ फिल्म की लोकेशन /पृष्ठभूमि को भी एक पात्र के रूप...@ फिल्म की लोकेशन /पृष्ठभूमि को भी एक पात्र के रूप में<br />यह तो विशेषता है। बुराई नहीं।<br />मैला आंचल इसी लिए अमर है कि वहां कोई नायक नहीं है, पूरा अंचल ही नायक है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53688971310106441352012-03-23T17:13:26.074+05:302012-03-23T17:13:26.074+05:30@ कलकत्ता की पुलिस कितनी उदार है ,कितनी भद्र है ....@ कलकत्ता की पुलिस कितनी उदार है ,कितनी भद्र है .<br />मुझे नहीम मालूम कि आपने कितना वक़्त गुजारा है कोलकता में, वरना कोलकाता पुलिस के प्रति आपकी यह राय नहीम बनती। इनकी उदारता और सदाशयता देखनी हो तो दो-चार दिन सड़कों पर पैदल घूमिए, या फिर पूजा के समय यहां आइए। बूढ़े, विकलांग, आदि को ये हाथ पकड़ कर सड़क पार कराते हैं, बड़ी-बड़ी गाड़ियां रोक कर। पैदल यात्री को ये प्राथमिकता देते हैं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-21002499522619984282012-03-23T17:09:39.304+05:302012-03-23T17:09:39.304+05:30@ फिल्म की कहानी/पटकथा पश्चिमी सस्पेंस कथाओं से ब...@ फिल्म की कहानी/पटकथा पश्चिमी सस्पेंस कथाओं से बेहद प्रभावित है ...मगर अपने देश में ,यहाँ के परिवेश और लोकेशन में ये कथायें सहज नहीं लगतीं<br /><br />मैंने एक जगह लिखा था, वही कोट कर रहा हूं, क्योंकि वही मेरा विचार है ...<br />आम तौर पर हिंदी फ़िल्मों का पुनरावलोकन (रिव्यू) करते वक़्त अंग्रेज़ी समीक्षक पश्चिम का चश्मा पहन कर नाहक ही उसकी आलोचना करने लगते हैं। इस फ़िल्म के साथ भी ऐसा ही देखने-पढ़ने को मिला।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-4040446227848861902012-03-23T17:06:36.267+05:302012-03-23T17:06:36.267+05:30@ एक अन्यथा झेलाऊ फिल्म
मेरे साथ मेरे दोनों बेटे ...@ एक अन्यथा झेलाऊ फिल्म <br />मेरे साथ मेरे दोनों बेटे और पत्नी थे ... किसी को झेलाऊ नहीं लगी। हमारे चारों की पसंद ना पसंद अलग अलग है।<br />दूसरी बात हम स परिवार देखने गए। कितनी फ़िल्में आजकल बनती हैं जिसे आप (एक मध्यम वर्गीय और परंपरावादी परिवार ) एक साथ सपरिवार देखने की स्थिति में खुद को पाते हैं। <br />कोलकाता में ही चौथा सप्ताह चल रही है, यह फ़िल्म और बाइस थियेटरों में, एक झेलाऊ फ़िल्म इतना नहीं झेलवा सकती।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-60007327455847841442012-03-23T16:58:27.041+05:302012-03-23T16:58:27.041+05:30कोलकाता पुलिस की उदारता भलमानसाहत देखनी हो तो कुछ ...कोलकाता पुलिस की उदारता भलमानसाहत देखनी हो तो कुछ दिन यहां गुजारिए खासकर पूजा के समय। बूढी, विकलांग आदि को किस प्रकार वे सड़क पार कराते हैं, बड़ी बड़ी गाड़ियां रोककर ... आपके मुंह से खुद ब खुद प्रशंसा के स्वर निकलेंगे।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-4876082802451410072012-03-23T16:56:04.092+05:302012-03-23T16:56:04.092+05:30जो बात दिख गई वहीं से शुरू करता हूं ... बंगला में ...जो बात दिख गई वहीं से शुरू करता हूं ... बंगला में व होता नहीं, ब होता है, इसलिए स्थानीय लोग उसे बिद्या कहते हैं और वह बार बार कहती हैं मैं विद्या हूं , बिद्या नहीं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-90067825874423648302012-03-23T10:53:39.275+05:302012-03-23T10:53:39.275+05:30पंडित जी!
सबसे पहले कोलकाता.. पता नहीं आपने कोलकात...पंडित जी!<br />सबसे पहले कोलकाता.. पता नहीं आपने कोलकाता कितना देखा है या किस नज़रिये से देखा है.. मैंने कोलकाता को वहाँ रहकर देखा है.. जब आप हावडा स्टेशन से कोलकाता की तरफ आते हैं (मेरे लिए हर “हैं” का अर्थ उस काल से है जब मैं वहाँ था – १९९५ से २००१) तो हावड़ा-ब्रिज पार करते ही दोनों तरफ ऐसी इमारतें दिखाई देती हैं, जो हवा से भी धराशायी हो जाएँ. शायद अंग्रेजों के छोड़ कर जाने के बाद से रिपेयर नहीं हुईं. अभी आपने कोस्बा, रथताला, एन्टाली, जमीर लेन, कालीघाट, बेक बागान, बऊ बाज़ार वगैरह नहीं देखा. असली कोलकाता वही है जो इसमें दिखाया गया है.. और जो सारी एक्सरसाइज़ चल रही थी उसके लिए, पार्क स्ट्रीट, बालीगंज, अलीपोर, साल्ट लेक, उलटाडांगा, सदर्न एवेन्यू, चौरंगी दिखाने की ज़रूरत नहीं थी. <br />कहानी को उलझाए रखना, और दर्शकों की जिज्ञासा बनाए रखना अगर दोनों साथ साथ चल रही हो तो यह निर्देशक की सफलता है.. रही बात पुलिस वालों की भद्रता की.. तो इस विषय में एक बात बता दूँ... एक कहावत प्रचलित है कोलकाता के बारे में... अगर कभी रास्ता भूल जाओ तो पुलिस से पूछ लो.. मैंने ट्रैफिक पुलिस को रास्ता पार करवाते देखा है पंडित जी.. <br />फिल्म में जिस पुलिस वाले को आपने देखा.. वो जवान था, सिर्फ छः महीने पुराना, कुछ शुरुआती जोश और कुछ गर्भवती महिला के प्रति सहानुभूति.. इतना मटेरियल काफी है उसके व्यवहार को जस्टिफाई करने के लिए और फिर पूरी कहानी ही उसी व्यवहार की थी.. अब वो चाहे लोकल पुलिस का व्यवहार हो या आई.बी. के ओफिसर का.. <br />ये गरीबी दिखाकर बेचने वाले आरोप अब पुराने हो चुके हैं, पंडित जी.. और हाँ दुर्गा पूजा भी यूँ ही ज़बरदस्ती नहीं दिखाई गयी है, बल्कि उसका रोल तो सबसे महत्वपूर्ण है!! <br />चलिए! आपकी राय आपकी है, यहाँ हमारा उद्देश्य सफाई देना थोडो ना है!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-57077064210782209262012-03-22T04:52:25.063+05:302012-03-22T04:52:25.063+05:30आपका विवेचन बहुत वैचारिक गहराई लिए है......
मैंने...आपका विवेचन बहुत वैचारिक गहराई लिए है......<br /><br />मैंने फिल्म देखी है , मुझे भी अच्छी लगी..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-76320519157951270322012-03-21T19:57:56.630+05:302012-03-21T19:57:56.630+05:30kal hi dekhi...thik lagi ...kal hi dekhi...thik lagi ...Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-44747006278281687272012-03-21T17:00:31.367+05:302012-03-21T17:00:31.367+05:30एक अलग एंगल से आपने फ़िल्म मीमांसा पेश किया ! ऐसी ब...एक अलग एंगल से आपने फ़िल्म मीमांसा पेश किया ! ऐसी बेबाक समीक्षाओं की आजकल बेहद कमी है ! पढ़कर अच्छा लगा !<br />-<br />-<br />जहाँ तक मेरी बात है ! मुझे यह फ़िल्म निहायत बढ़िया लगी ..... कहानी से बंधे रहे आखिरी तक ..... छायांकन भी उत्कृष्ट लगा ! वैसे अपनी-अपनी पसंद है ..... जरूरी नहीं कि सभी को पसंद आये !<br />-<br />आभारप्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-62396456172535690202012-03-21T14:04:41.960+05:302012-03-21T14:04:41.960+05:30acchi lagi yah flim ..acchi lagi yah flim ..रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-1191511341805148592012-03-21T10:33:59.650+05:302012-03-21T10:33:59.650+05:30हमें तो पसंद आई .... धीरे धीरे चालती है फिल्म पर ब...हमें तो पसंद आई .... धीरे धीरे चालती है फिल्म पर बंधे रखती है ... टाइम पास हो जाए जिससे वो अच्छी है अपने लिए तो ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-17578073461806084462012-03-21T08:51:32.395+05:302012-03-21T08:51:32.395+05:30बड़ी मेहनत से बताई हैं कमियां सिनेमा की।बड़ी मेहनत से बताई हैं कमियां सिनेमा की।अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-7901575896993272042012-03-21T08:43:55.041+05:302012-03-21T08:43:55.041+05:30good observation and explanation!good observation and explanation!सुरेन्द्र "मुल्हिद"https://www.blogger.com/profile/00509168515861229579noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-55125393858357020832012-03-20T18:16:41.408+05:302012-03-20T18:16:41.408+05:30हम भी पिछले पचपन साल से श्रेष्ठ कहानी के प्रतिमानो...हम भी पिछले पचपन साल से श्रेष्ठ कहानी के प्रतिमानों में इन्ही को वरीयता देते आये हैं ...<br />मगर अब सहज होना चाहते हैं! :) <br />हमारे पुत्र -पुत्र वधु फिल्म देख आयें हैं .क्योंकि फिल्म में विद्या बालन थी ,हमें पूछना ही था फिल्म कैसी थी -'बहुत उलझी हुई कुछ समझ आई कुछ नहीं भी .कई धागे उलझे रह गए .'भैया स्टोरी क्या थी -कोई ख़ास नहीं बिद्दा अपने खोये हुए पति को ढूंढती रहती है जब मिलता है ,पता चलता है यह उसका पति ही नहीं है .पुरुष पात्र जाने पहचाने नहीं हैं. ये लोग पहचानते ही नहीं हैं .'पर मनोरंजन तो है .सस्पेंस बना रहता है .हमने कहा भैया हम अँधेरी भूल भुलैयों में नहीं जाते .'गाने कैसे हैं' हमने पूछा .'हैं ही नहीं '-ज़वाब मिला .हम गए ही नहीं .हालाकि यहाँ फौजी सिनेमा हाल में टिकिट अधिकतम पचास रुपया है .पर भैया वक्त बड़ा कीमती है .<br />ram ram bhai<br /><br />सोमवार, 19 मार्च 2012<br />किशोर द्वारा दर्द नाशी दवा के गलत स्तेमाल का खामियाजा . <br />जुल्म की मुझ पे , इंतिहा कर दे , मुझसा ,बे -जुबाँ, फिर कोई मिले ,न मिले .<br />http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-59570867401742240872012-03-20T14:51:53.939+05:302012-03-20T14:51:53.939+05:30समीक्षा कलात्मक होनी चाहिये मतलब प्रत्येक दृष्टिको...समीक्षा कलात्मक होनी चाहिये मतलब प्रत्येक दृष्टिकोण से . जिस पर आपने ध्यान आकर्षित किया है जो फिल्म के लिए कुछ सोचने को कहती है .Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-28612123414625135112012-03-20T14:05:49.074+05:302012-03-20T14:05:49.074+05:30हम तो ज्तादातर फ़िल्में टी वी पर आने तक का इंतजार ...हम तो ज्तादातर फ़िल्में टी वी पर आने तक का इंतजार करते हैं .<br />यहाँ रिमोट अपने हाथ में होता है . :)डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-86629391602556700392012-03-20T13:59:14.415+05:302012-03-20T13:59:14.415+05:30हमने भी यह फ़िल्म देखी काफ़ी कसी हुई कहानी है, परं...हमने भी यह फ़िल्म देखी काफ़ी कसी हुई कहानी है, परंतु कहानी के लेखक कर्नल रंजीत लगे, जैसा कि गोवर्मेंट एजेन्ट का परिदृश्य वे रचते थे अपने उपन्यासों में बिल्कुल वैसा ही इस "कहानी" में रचा गया है।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-34759909730298209572012-03-20T06:00:33.576+05:302012-03-20T06:00:33.576+05:30यह सही है कि प्रचार प्रसार से कई बार फ़िल्में महान...यह सही है कि प्रचार प्रसार से कई बार फ़िल्में महान बना दी जाती हैं , जैसे थ्री इडीयट में लोगों को क्या पसंद आया था , मुझे समझ नहीं आया ...निहायत ही फूहड़ फिल्म लगी मुझे तो ...पसंद अपनी -अपनी !<br />मगर यह फिल्म तो जरुर देखनी है!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com