tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post2332176034092175346..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: आपने राम चरित मानस का यह प्रसंग कभी पढ़ा-देखा है? अवश्य देखिये देखन जोगू! Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-52331560159204806882017-01-19T23:34:47.836+05:302017-01-19T23:34:47.836+05:30जय रामराजा सरकार कीजय रामराजा सरकार कीमुकेश पाण्डेय चन्दनhttps://www.blogger.com/profile/06937888600381093736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-2088620264345017602017-01-19T23:34:33.693+05:302017-01-19T23:34:33.693+05:30जय रामराजा सरकार कीजय रामराजा सरकार कीमुकेश पाण्डेय चन्दनhttps://www.blogger.com/profile/06937888600381093736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-92109393593885659902014-04-23T18:07:11.594+05:302014-04-23T18:07:11.594+05:30जाके ह्रदय .........ताके ह्रदय.........रघुराया. .....जाके ह्रदय .........ताके ह्रदय.........रघुराया. ..जिनके ह्रदय में काम क्रोध मद मान मोह नहीं हैं वहां तो स्वत ही प्रभु विराजमान हैं,वहां का ठौर भला क्यों बता रहे हैं ऋषि?क्या ये उचित नहीं की प्रभु को उनके ह्रदय में बसने को कहा जाता जो ह्रदय इन पाप भावनाओं से जड़ हो गए हैं.ताकि उन हृदयों में भी भक्ति का संचार होता,वे भी निर्मल बनते.जिन ह्रदय में प्रभु हैं वहां उनकी उपस्थिति से ही तो ये अवगुण नहीं हैं,जिस प्रकार सूर्य का होना, अँधेरे के न होने का प्रमाण है उसी प्रकार ह्रदय में प्रभुका नाम सारे अअन्धकार दूर कर देता है.अतः अधिक आवश्यकता उन ह्रदय को है जहाँ अन्धकार है.ज्योतिषाचार्य ललित मोहन कगड़ियाल,,https://www.blogger.com/profile/03756695984315268386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-31499700820400539162014-01-29T14:58:58.161+05:302014-01-29T14:58:58.161+05:30बहुत सुन्दर उद्धरण हैं सबके सब। जो तुलसी पर वर्ण व...बहुत सुन्दर उद्धरण हैं सबके सब। जो तुलसी पर वर्ण व्यवस्था पोषक होने का आरोप लगाते हैं वह यह नहीं जानते यह व्यवस्था गतिशील थी इसमें शुद्र के ऊपर आने का अवकाश था। <br /><br />कर्म प्रधान थी यह व्यवस्था ताकि समाज रचनात्मक बना रहे। virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-32189658190683620402014-01-25T16:38:33.794+05:302014-01-25T16:38:33.794+05:30सुंदर प्रसंग।
जे सुख बांटे मित्र संग, हृदय बसें ...सुंदर प्रसंग। <br /><br />जे सुख बांटे मित्र संग, हृदय बसें श्री राम।..साधुवाद।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-43935610099128409922014-01-23T14:56:01.421+05:302014-01-23T14:56:01.421+05:30पण्डित जी! रामचरित मानस जैसे सागर से यह एक मीठी बू...पण्डित जी! रामचरित मानस जैसे सागर से यह एक मीठी बूँद आपने निकाली है और उसपर आपकी व्याख्या.. बहुत सुन्दर!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-28557240321498608992014-01-23T13:37:38.655+05:302014-01-23T13:37:38.655+05:30आनंद ... पूरा प्रसंद औरत उसकी व्याख्या ... समझ आता...आनंद ... पूरा प्रसंद औरत उसकी व्याख्या ... समझ आता है की क्यों कई कई बार इस ग्रन्थ को पढ़ने की जरूरत है मानस को ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38194799496969664122014-01-23T09:57:25.796+05:302014-01-23T09:57:25.796+05:30बहुत सुंदर व्याख्या.बहुत सुंदर व्याख्या. राजीव कुमार झा https://www.blogger.com/profile/13424070936743610342noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-59639495254457453102014-01-22T19:49:51.422+05:302014-01-22T19:49:51.422+05:30ज्ञान सिखाया जा सकता है परन्तु सिखाने से सम्यक्ज्ञ...ज्ञान सिखाया जा सकता है परन्तु सिखाने से सम्यक्ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। वो तो सत्य दर्शन से होता है जो रामायण में स्थित हो कर मनन करने से स्वतः होता है। जिसका सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया है।Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-92076882102134810102014-01-22T18:58:44.647+05:302014-01-22T18:58:44.647+05:30बहुत गजब का प्रसंग है यह. इन पंक्तियों को मैंने ला...बहुत गजब का प्रसंग है यह. इन पंक्तियों को मैंने लाता मंगेशकर की आवाज में सुना भी हअ अद्भुत है.<br /><br />राजेश Rajesh Kumar 'Nachiketa'https://www.blogger.com/profile/14561203959655518033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-4703496866268307202014-01-22T12:38:35.928+05:302014-01-22T12:38:35.928+05:30्यूँ ही नही मानस को सम्पूर्णता मिली है और घर घर मे...्यूँ ही नही मानस को सम्पूर्णता मिली है और घर घर मे पढी जाती है यही मूल्य हैं जिसे मानस ने संजोया है जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं और जीवन कैसे जीना चाहिये वो सिखाती है । जय श्री राम vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-67601389175804208242014-01-22T10:48:05.934+05:302014-01-22T10:48:05.934+05:30कण कण में भगवान् जिसे दिखते हो , वह कहाँ छिप कर प...कण कण में भगवान् जिसे दिखते हो , वह कहाँ छिप कर पाप करे /पुण्य कमाए !<br />रोचक प्रसंग !<br />वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-11782385146011081852014-01-21T12:57:39.742+05:302014-01-21T12:57:39.742+05:30बाली वध और सीता परित्याग दो ऐसे प्रसंग है जिसकी वज...बाली वध और सीता परित्याग दो ऐसे प्रसंग है जिसकी वजह से रघुराई के प्रति मेरे मन में पूर्ण प्रकाश नहीं सका है अभी तक. अब देखते हैं कि उम्र के साथ मेरी दृष्टि में कभी बदलाव आ पाता है या नहीं.ओंकारनाथ मिश्र https://www.blogger.com/profile/11671991647226475135noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-24830418411833477622014-01-20T07:14:49.498+05:302014-01-20T07:14:49.498+05:30बिना संदर्भ जाने कुछ भी आरोप लगा देने से सरल कार्य...बिना संदर्भ जाने कुछ भी आरोप लगा देने से सरल कार्य विघ्नसंतोषी जीवों के लिये दूसरा कोई नहीं। नैगेटिव देखने के आदी लोग आरोप ही लगा सकते हैं।<br /><br />राम चरित मानस ऐसा ग्रंथ है जिसमें से प्रिय प्रसंगों को शार्टलिस्ट करना अपने आप में एक दुरुह कार्य है। <br />जय श्रीराम।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-48236285661584144242014-01-19T21:59:19.657+05:302014-01-19T21:59:19.657+05:30सुंदर व्याख्या ......जीवन का अर्थपूर्ण सार सिखाते ...सुंदर व्याख्या ......जीवन का अर्थपूर्ण सार सिखाते प्रसंग डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-58439919581162548832014-01-19T18:33:13.220+05:302014-01-19T18:33:13.220+05:30आख्या के साथ सुन्दर व्याख्या । प्रवाह-पूर्ण - प्रस...आख्या के साथ सुन्दर व्याख्या । प्रवाह-पूर्ण - प्रस्तुति ।शकुन्तला शर्माhttps://www.blogger.com/profile/12432773005239217068noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-36758192305216359882014-01-19T13:50:31.383+05:302014-01-19T13:50:31.383+05:30मैं ने देखा कि बीजेपी कांग्रेस में तो शायद ही कोई ...मैं ने देखा कि बीजेपी कांग्रेस में तो शायद ही कोई हो वाल्मिकी की बात मान लेने पर जिस के हृदय में राम रह सकें। दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-34954342020261731182014-01-19T13:34:15.889+05:302014-01-19T13:34:15.889+05:30यह बहुत अद्भुत प्रसंग है,जिसमें वाल्मीकि जी अपने आ...यह बहुत अद्भुत प्रसंग है,जिसमें वाल्मीकि जी अपने आराध्य से ही प्रश्न पूछकर उनकी महत्ता को स्पष्ट करते हैं.जहाँ राम अपने स्वभाव के अनुकूल मुनि को सर्वोच्चता प्रदान करते हैं,वहीँ मुनि अपने वाक्-चातुर्य से उन्हें निरुत्तर कर देते हैं.<br />बचपन से ही इस प्रसंग की एक चौपाई प्रायः गुनगुनाया करता हूँ,जिसमें मुनि पूछते हैं 'तुम्हहिं छांड़ि गति दूसरि नाहीं,राम बसहु तिन्ह के मन मांहीं'.<br />....मेरा मानस-पारायण छूट गया है,अब सोचता हूँ फिर से प्रारम्भ करने के बारे में.संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.com