बुधवार, 16 दिसंबर 2009

रचना त्रिपाठी का रचना लोक -चिट्ठाकार चर्चा

इलाहाबाद के ब्लागिंग  सम्मलेन की याद तो अभी होगी ही ....एक शख्सियत (फोटो बदलें!) वहां होकर भी अपनी अनुपस्थिति का अहसास शिद्दत से करा गयी और लानत है ब्लॉगर भाई बन्धु बान्धवियों को कि इसकी आज तलक चर्चा भी नहीं हुई है ! वे सहचरी हैं उस महानुभाव की जिनकी बदौलत ब्लागिंग सम्मलेन मूर्त रूप ले सका था - मतलब "तात जनक तनया यह सोई ब्लॉगर सम्मलेन  जेहिं कारन होई " की खुद की अर्धांगिनी और एक संभावनाशील ब्लॉगर और मेरी एक प्रिय चिट्ठाकार रचना त्रिपाठी उस सम्मलेन में आयीं भी और कोई देख नहीं सका ! गिरिजेश भईया ने तत्क्षण उत्कंठा भी की थी और मैंने उनकी मदद और खुद की भी जिज्ञासा पूर्ति के लिए नजरें भी इधर उधर फेरीं थीं मगर मेरा यह प्रिय ब्लॉगर नहीं दिखा था वहां! सच कहूं कुछ खिन्नता तो मन  में तभी आ गयी थी !  रचना त्रिपाठी  ने बहुत उत्साह से ब्लागिंग की दुनिया में कदम रखा था - टूटी फूटी का प्रगट उद्घोष मगर परोक्षतः कई सरोकारों से जुड़े चिट्ठे का आगाज होने के कुछ समय बाद ही इलाहाबाद में राष्ट्रीय चिट्ठाकारिता सम्मलेन ,  जहां इस ब्लॉगर का डेबू अपेक्षित था किन्तु  इनका नामोनिशान तक न था !

मैं कृतित्व  से बढ़कर किसी भी रचनाकार के व्यक्तित्व को सर माथे रखता हूँ (लोग लुगाई नोट कर लें ताकि सनद रहे ) और तिस पर यदि कृतित्व भी बेहतर हो जाय तो फिर पूंछना ही क्या ? सोने में सुगंध ! कुछ ऐसी ही हैं मेरी प्रिय चिट्ठाकार सुश्री रचना त्रिपाठी .अब उन्हें कितने विशेषणों से नवाजू -कुछ धर्मसंकट समुपस्थित हैं -एक तो अनुज की भार्या और दूसरे नारी!यहाँ ब्लागजगत में ऐसे लोग भरे पड़े हैं कि सहज ही व्यक्त  बातों को भी औचित्य -अनौचित्य ,शील अश्लील के बटखरे से तौलने लगते हैं! मगर अपनी बात तो कहूँगा ही और कुछ अनुज से उनके ही  प्रदत्त अधिकार/लिबर्टी  का सदुपयोग  करते हुए! रचना त्रिपाठी  का व्यक्तित्व  पहले . वे मेरे घर भी आ चुकी हैं -यूं कहिये की मेरे घर को त्रिपाठी दम्पति आकर धन्य कर चुके हैं ! ऐसा पता नहीं क्या हुआ कि वह शुभागमन रिपोर्ट आप तक नहीं पहुँच सकी -आज शायद  कुछ भरपाई हो पाए ! उन्हें देखकर तो मुझे भी तुलसी बाबा का सा वही  अनिश्चय /असमंजस सहसा हो आया  -....सब उपमा कवि रहे जुठारी केहिं  पटतरौ विदेह कुमारी . ....और बस उसी झलक की ललक में हिन्दुस्तानी अकेडमी के हाल के उस भव्य उदघाटन सत्र में मैंने उसी छवि  को एक बार देख लेने की आस में जब निगाहें उठाई थीं तो कुछ ऐसी ही प्रत्याशा थी -रंग भूमि जब सिय पगधारी देख रूप मोहे नर नारी ...मगर घोर निराशा ही हाथ लगी ! आखिर उस समारोह में क्यों मेरा यह प्रिय ब्लॉगर अनुपस्थित हो रहा था ? किसके पास जवाब है इसका ? क्या यह कोई षड्यंत्र था ? या थी एक बेचारी गृहणी की कोई अकथ विवशता ?




 रचना त्रिपाठी और प्यारे बच्चे ,उचित ही पहले गृहणी फिर ब्लागर 

 सम्मलेन के अकादमीय पक्ष से जहाँ मैं संतुष्ट रहा वहीं कतिपय मानव संसाधन के नौसिखिया प्रबंध (जिसे बेड टी न दिए जाने के रूप में मैंने हाई लाईट किया था -हा हा  )से थोडा तमतमाया भी था .मगर मेरी प्रिय ब्लॉगर ने पूरे उलाहने के स्वर में मुझसे कहा "भाई साहब अगर आपको कोई असुविधा हुई थी तो मुझसे कहते ...." मैं तब ग्लानि बोध से दब सा गया था ! मगर फिर मन में आया कि जरूर कहता अगर  आप वहां उस तामझाम का हिस्सा  होतीं ! मगर उनका उलाहना अपनी जगह दुरुस्त था -मुझे औपचारिक प्रबंध से निराश होने पर इस अनौपचारिक सौजन्यता के शरण में जाना ही चाहिए था -मगर मेरे प्रिय चिट्ठाकार को कोई असुविधा न हो इसका भी तो ख्याल मुझे ही करना था ! उनसे बड़ा जो हूँ ! उम्र,ब्लागिंग और सामाजिक  पद में भी !

रचना त्रिपाठी (बार बार त्रिपाठी लिख कर  डिसटीन्ग्विश करना पड़ रहा है ,उफ़ !) विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं -उन्हें तो साईंस ब्लागिंग को भी समृद्ध करना चाहिए मगर सामान्य (जनरल ) ब्लागिंग मे  भी वे नियमित नहीं हो पा रही हैं -क्या भारतीय नारी सचमुच इतनी विवश हो गयी है ? मैं सिद्धार्थ जी  को आड़े हाथों लूँगा अगर यह स्थिति नहीं सुधरी -मेरे प्रिय ब्लॉगर के इस घोषित आत्म परिचय से भी मैं फिर कुछ कुछ सिद्धार्थ जी को ही जिम्मेदार मानता हूँ -और कुछ तो इस आत्म कथ्य से ही स्वयं स्पष्ट है -
"माँ-बाप के दिये संस्कारों के सहारे विज्ञान वर्ग से स्नातकोत्तर तक पढ़ाई करने के बाद उन्हीं के द्वारा खोजे गये जीवन साथी के साथ दो बच्चों को पालने-पोसने में अभी तक व्यस्त रही हूँ ...और सन्तुष्ट भी। नौकरी करना है कि नहीं, इस विषय में सोचने की फुरसत अभी तक नहीं मिल पायी; और जरूरत भी नहीं महसूस हुई। लेकिन अब जब बच्चे बड़े हो जाएंगे, तो समय के अच्छे सदुपयोग के लिए कुछ नया काम ढूँढना पड़ेगा। शायद एक खिड़की इस ब्लॉग जगत की ओर भी खुलती है...।"..तो क्या इस रचनाकार की रचनाओं के लिए हमें अभी भी एक लम्बा इंतज़ार करना पडेगा ? मगर आज की इस अधीर सी होती दुनिया में किसको इतने लम्बे इंतज़ार का धीरज  है ?
वे खुद कहती हैं कि भाई साहब मेरी गृहस्थी पहले है -मैं निरुत्तर  हो जाता हूँ ! क्या पतिनुमा प्राणी भी इतने ही समर्पित होते हैं अपनी गृहस्थी के लिए   ?  आप भी इनसे अनुरोध करें प्लीज कि गृहस्थी  के साथ अपने को यहाँ भी सार्थक करें और  अपने अवदानों से ब्लॉग जगत को उत्तरोत्तर समृद्ध  करें! 

मेरे इस प्रिय ब्लॉगर ने कई यादगार पोस्टें  लिखी हैं ,बटलोई का चावल देखिये-

घर में ब्लॉगेरिया का प्रकोप …भूल गये बालम!!!

मुकदमेंबाज की दवा

ब‍उका की तो बन आयी...!

30 टिप्‍पणियां:

  1. आप ने यह आलेख बहुत मन से लिखा है। लेकिन मैं ने देखा है कि स्त्रियाँ बच्चों को संभालने में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि खुद को विस्मृत कर देती हैं। सारे सपने उन में ही देखने लगती हैं। संभवतः यह उन का प्रकृति प्रदत्त गुण भी है। लेकिन केवल संतानों का ही तो उन पर हक नहीं है। और भी बहुत लोग हैं जिन का उन पर हक है। समाज का भी उन पर हक है। यदि वे समाज को कुछ दे सकती हैं तो उस से वंचित कर के वे समाज के साथ अन्याय कर रही हैं। आप ने जिस अधिकार से उन से ब्लागिरी में लौटने का आग्रह किया है वह उचित है लेकिन मैं तो मेरा और दूसरे पाठकों का अधिकार मांग रहा हूँ। देखते हैं कब मांग पूरी होती है।

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  2. मुझे भी रचना त्रिपाठी जी का लिखा पढना अच्‍छा लगता है .. उन्‍हें शुभकामनाएं !!

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  3. ... या थी एक बेचारी गृहणी की कोई अकथ विवशता?
    अब इतनी तारीफ़ करने के बाद यह "बेचारी" विशेषण तो हटाना ही पडेगा. वैसे एक अच्छे ब्लोगर से परिचय कराने का शुक्रिया.

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  4. क्या पतिनुमा प्राणी भी इतने ही समर्पित होते हैं अपनी गृहस्थी के लिए ?

    निस्‍संकोच कहा जा सकता है - इतने नहीं ।

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  5. इलाहाबाद में अमिताभजी ने कहा था, " भाभीजी भी ब्लागर हैं" तब हमें लगा था कि भई, भोपाल लौटकर यह ब्लाग देखना होगा। बंधु से इस बारे में ज्यादा बात नहीं हुई।
    आपने भला किया यहां मिलवाया। निश्चित ही अब नियमित देखना होगा और नियमित रहने के लिए अनुरोध भी करेंगे।

    आपका यह स्तम्भ नियमित और संतुलित ढंग से आगे बढ़ रहा है। बिल्कुल काशी से आगे बढ़ती गंगा की तरह। इलाहाबाद तक तो हाल ठीक दिखता है उसका। फिर बिहार में ही क्यों गड़बड़ी होती है?

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  6. रचना भाभी के ब्लोग से पूर्व परिचित एवं प्रभावित हूँ.

    यह तो निश्चित ही सत्य है कि वह कम लिख पाती हैं, मगर जब भी लिखती हैं, पूर्व में न लिखने की शिकायत जाती रहती है.

    उनकी अपनी व्यस्ततायें होंगी जिसके चलते नियमित लिख पाना संभव नहीं हो पाता होगा किन्तु एक आशा तो रहती है कि नियमित लिखें जितना बन पाये.

    आपने रचना भाभी को याद किया, बड़ा अच्छा लगा. अभी ही त्रिपाठी जी को पढ़कर चलाअआ रहा हूँ. वायरस अटैक यूँ ही उन्हें परेशान कर गया.

    समस्त शुभकामनाएँ.

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  7. रचना त्रिपाठी जी से विस्तार से परिचय करने का आभार. बेहद आत्मीयता और मन से लिखा आलेख आभार इस प्रस्तुती के लिए......
    regards

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  8. क्या पतिनुमा प्राणि भी इतने समर्पित होते हैं...

    सच पूछा आपने मिश्र जी?

    रचना जी को कभी पढ़ने का मौका नहीं मिला है। आपका लिखा...उफ़्फ़्फ़!

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  9. परिचय के लिये आभार. आपके दिये तीनों लिंक देखे. अपने ब्लॉग रॉल में जोड़ने में देर नहीं लगायी. रचना जी को.... मतलब रचना त्रिपाठी जी को और एक नियमित पाठक मिल गया है.

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  10. रचना जी के बारे में जानकर प्रसन्नता हुई। मुझे दुख है कि इलाहाबाद में उनसे मिल नहीं सका।

    --------
    महफ़ज़ भाई आखिर क्यों न हों एक्सों...
    क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?

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  11. रचनाजी से विस्तृत परिचय के लिये आपका आभार. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. हम भी तो साथ ही लगे रहे आपके इलाहाबाद में । हमें तो खबर तक नहीं हुई, अन्यथा पुण्य-लाभ उठाता दर्शन का ।

    टूटी फूटी का नियमित ग्राहक हूँ । चिट्ठाकार-चर्चा में योग्यतम चुनाव । आभार ।

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  13. "इलाहाबाद के ब्लागिंग सम्मलेन की याद तो अभी होगी ही ....एक शख्सियत (फोटो बदलें!) वहां होकर भी अपनी अनुपस्थिति का अहसास शिद्दत से करा गयी ..."

    परदे में रहने दो, परदा जो उठ गया तो....:)

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  14. एक आत्मीय , इसलिए जरूरी पोस्ट को पढ़कर बड़ा अच्छा लगा ..
    उपस्थिति - अनुपस्थिति जन्य सुख-दुःख की उभयात्मक उपस्थिति !
    इस ब्लॉग का भी अध्ययन करूँगा ..
    .................. आभार ,,,

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  15. रचनाजी इलाहाबाद में उद्घाटन सत्र में मौजूद थीं।अपनी जानकारी दुरुस्त कर लें। फोटुयें दुबारा देख लें।

    .....की खुद की अर्धांगिनी और एक संभावनाशील ब्लॉगर यहां खुद की
    लिखना अनावश्यक है। आप सिद्धार्थ को अनुज मानते मानते हैं। इस तरह के वाक्य विचलन आपसे जानबूझकर होते हैं या अनायास यह आप बेहतर समझ सकते हैं। यदि आप जानबूझकर ऐसा करते हैं तो अपने चरित्र का और अनजाने में करते हैं तो भाषा ज्ञान का परिचय देते हैं।

    अनुज ,सिदार्थ त्रिपाठी, से पाई हुई लिबर्टी क्या अनुज वधू के बारे में कुछ भी लिखने की लिबर्टी देती है आपको? क्या इसमें अनुज वधू की अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है।

    रचना त्रिपाठी जी के लेखन पर आपने जो लिखा उससे उनकी छवि वे एक दीन-हीन टाइप , सुस्त-पस्त , पति/परिवार परायण स्त्री की बनती है। जबकि ऐसा उनका व्यक्तित्व नहीं है। जो बाद सिद्धार्थ त्रिपाठी नहीं कह सके वह रचना त्रिपाठी ने आपसे कही। "भाई साहब अगर आपको कोई असुविधा हुई थी तो मुझसे कहते ...." इसमें मात्र उलाहना नहीं है मिसिरजी आक्रोश भी है।

    लोगों को देखने की अपनी-अपनी नजर होती है। आपने रचना त्रिपाठी का जो वर्णन किया उससे लगता है कि वे एक संभावनाशील लेकिन ऐं-वैं टाइप (टिमिड) व्यक्तित्व हैं। जबकि जित्ता मैंने उनको जाना-पढ़ा और जितनी बातचीत की है उनसे वे इससे कहीं बेहतर और समर्थ/सक्षम व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं।

    उम्र,ब्लागिंग और सामाजिक पद में भी ! बड़े तो बाई डिफ़ाल्ट हो गये। तदनुरूप आचरण भी होता तो शायद ग्लानिबोध न होता।

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  16. @अनूप शुक्ल , ये आपको बिजली का करंट क्यों लग गया महाशय !
    कितने सात्विक मन से लिखा था मैंने अपने प्रिय ब्लॉगर के बारे में ..अब आ गए विष घोलने गुरु घंटाल !यहाँ के शुचितापूर्ण माहौल को भी गंद्लाने !
    "खुद की अर्धांगिनी' कहने को भी आपके विकृत और घिनौने और गलीज मस्तिष्क ने किस रूप में लिया .हद है !
    या तो अपनी टिप्पणी डिलीट करें अन्यथा मैं आपकी कोई अगली टिप्पणी नहीं प्रकाशित करूंगा -अब
    तो आपकी उपस्थिति मात्र से उबकाई आने लगी है -इतनी थू थू हो रही है फिर भी सुधर नहीं रहे हो महानुभाव!
    कुछ तो शर्म करो !

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  17. @ अनूप शुक्ल

    आप अब सीमा से बहुत ही बाहर जारहे हैं। आप एक वरिष्ठ ब्लागर हैं और आपसे यह अनुरोध है कि आप वरिष्ठता बनाये रखें।
    आप अपनी निजी खुंदक निकालने के लिये दूसरों का चरित्र हनन क्युं करते हैं? क्या यह जरुरी है? इस तरह की उदंडता और
    बचपना आपको शोभा नही देता। आपके इसी आचरण के चलते आपके हितेषु भी अब आप से कन्नी काटते नजर आते हैं।
    आपके इर्द गिर्द दो चार चमचों की भीड बची है।

    चमचे सिर्फ़ गर्म चीज निकालने मे साथ देते हैं जब ठंड हो जायेगी तब आप किसके पास रोयेंगे? एक बार आप अपनी हरकतों पर
    पुनर्विचार किजिये।

    आपने पूरे ब्लागजगत का माहोल आपकी इन्हीं हरकतो की वजह से घिनौना बाना रखा है। आपने आपके चर्चा मंच को इन्हीं सब
    कामों मे लिया है और उसका मजाक बना दिया है। बडा दुख होता है।

    आपसे विनती है कि आप अपनी उपरोक्त नाजायज और घिनौनी टिप्पणी को हटाकर अपनी वरिष्ठता का सम्मान करें। आप जैसे जो कुछ भी लिख
    सकते हैं वो अन्य लोग भी लिख सकते हैं।

    पुन: आपसे निवेदन है कि मतभेदों के बावजूद भी सोहाद्र कायम रखा जा सकता है। एक अच्छे और वरिष्ठ ब्लागर का धर्म निभायें।

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  18. रचना जी के बारे में जानना अच्छा लगा .शुक्रिया

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  19. पहले मैं चौंक गया कि मेरी बातें यहां क्यों हो रही। फिर समझ में आया कि मामला क्या है
    माहौल बिगाड़ना कईयों का शगल होता है चिन्ता ना ही करें

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  20. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  21. राम राम। बहुत बड़ी टिप्पणी लिखी थी जाने क्या हो गई! अब बस राम राम, लोग जाने क्या क्या सोच लेते हैं !
    आप ने हमारी भवइ के लिए इतना अच्छा लिखा। धन्यवाद।
    एक बात कहूँगा -
    " वो: बात जिसका जिक्र सारे फसाने में न था।
    वो: बात उन्हें बहुत नाग़वार गुजरी है।"

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  22. @आखिर उस समारोह में क्यों मेरा यह प्रिय ब्लॉगर अनुपस्थित हो रहा था ? किसके पास जवाब है इसका ? क्या यह कोई षड्यंत्र था ? या थी एक बेचारी गृहणी की कोई अकथ विवशता ?

    जी नहीं, यह कोई षणयन्त्र, या विवशता नहीं थी बल्कि मेरे शौक के ऊपर कर्तव्यबोध का अनुशासन था जिसने उस भीड़ में अपने बेटे के मूड के हिसाब से जितने समय की अनुमति मिल सकी उसके बाद मुझे वहाँ से लौट आने को उचित माना। सत्यार्थ ने जब वहाँ अपने डैडी को देखा तो वह उनके पास जाने और उनकी गोद में बैठ जाने को मचलने लगा। शान्ति भंग की आशंका हो गयी। यदि मैं वहाँ कुछ देर और रुकती तो वह शायद नामवर जी को धकियाते हुए मन्च पर आसीन हो जाता और राष्ट्रीय गोष्ठी एक ‘फेमिली ड्रामा’ बनकर रह जाती। :)

    द्वितीय सत्र के बारे में इन्होंने जो जानकारी शाम को लौटकर दी उसके बाद अगले दिन वहाँ जाने का उत्साह नहीं रह गया। हाँलाकि अगले दिन गोष्ठी अच्छी चल गयी थी।

    यह तो रही विनोद की बात, लेकिन यह सच है कि एक स्वतंत्र महिला ब्लॉगर के रूप में यदि मुझे वहाँ गोष्ठी में सम्मिलित होने का अवसर मिलता तो मुझे जरूर खुशी होती। लेकिन यह खुशी हासिल करने के लिए मैं न तो अपने बच्चों को किसी दूसरे के भरोसे छोड़ सकती थी और न ही बच्चों के पिता को संयोजक की भूमिका से खींचकर घर बैठा सकती थी। यह एक परिस्थितिजन्य फैसला था जो मैने सोच समझकर लिया था। लेकिन इस अनुपस्थिति की ओर किसी का ध्यान नहीं जाना मुझे भी अखर रहा था। ब्लॉग मण्डली ने इस या उस ब्लॉगर के आने या न आने पर बहुत चर्चा की लेकिन टूटी-फूटी की ब्लॉगर को जो इलाहाबाद में ही थी किसी ने नहीं खोजा। शायद इसका कारण यह रहा होगा कि संयोजक महोदय मेरे घर के ही थे इसलिए किसी को यह प्रश्न उठाना जरूरी नहीं लगा होगा। और ये श्रीमान्‌ जी कभी-कभी इस संकोच में पड़ जाते हैं कि कोई यह न आरोप लगा बैठे कि आत्म प्रचार और प्रसार की कोशिश कर रहे हैं।

    इस बात की कसक तो रहेगी ही कि मैं उस ऐतिहासिक सम्मेलन का हिस्सा क्यों न बन सकी लेकिन मुझे अपने निर्णय पर कोई पछतावा भी नहीं है।

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  23. और हाँ, इतने दिनों बाद ही सही आपने यह प्रश्न उठाकर आंशिक रूप से मेरे मन की बात कह दी। इस सम्मान के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    आदरणीय अनूप जी को यदि इस आलेख से मेरे दीन-हीन होने का भान होता है तो मैं उन्हें आश्वस्त करना चाहूँगी कि सच्चाई ऐसी कत्तई नहीं है। मुझे विश्वास है कि आदरणीय अरविन्द जी भी ऐसा नहीं मानते होंगे।।

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  24. मुझे पता है कि अब अनूप शुक्ल लिखेंगे कि "जैसा मुझे लगा, वैसा मैने कहा। अगर रचना जी को ऐसा नहीं लगता तो यह उनकी मर्जी। मुझे इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना है। जिसकी जितनी समझ। "

    (इन शब्दों के अन्दर अगर पढ़ा जाये तो अर्थ निकलेगा कि मैने तो दंगा फसाद करवाने का भरसक प्रयत्न किया मगर फिर भी बात नहीं बन पाई, अब मैं इस वक्त और क्या कर सकता हूँ। आगे कभी मौका तलाश करुँगा।)

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  25. क्षमा कीजियेगा, परन्तु यदि पतिनुमा प्राणी भी गृहस्थी में थोड़ा सहयोग करें तो आपकी प्रिय रचनाकार जैसी अनेक प्रतिभाशाली पत्नियाँ ब्लॉगिंग को थोड़ा और समय दे सकतीं. पर यह व्यक्तिगत चुनाव का मामला भी हो सकता है.
    रचना जी ने अपनी बात कहकर स्थिति स्पष्ट कर दी है और आपको धन्यवाद भी दिया. आपने अपने ऊपर लगे घृणित आरोप का इतने विनम्र भाव से उत्तर दिया इसके लिये आप साधुवाद के पात्र हैं.

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  26. भाई साहब प्रणाम ...
    अब क्या कहू आप तो समझ ही रहे है अब ओ मुह बजा बजा कर भी थक गए है अनूप जी ...जिस रचना जी के बारे में इन्होने ऐसा लिखा वही एक अत्यंत ही पूज्यनीय ( हमारे लिए ) रचना जी ने यहाँ आकर उनकी बात काट दी ..अब क्या बचा है उनके अन्दर ?
    आपको सनद होगा जब आपने कुश के बारे में लिखी था तब भी यही श्री मान जी ने आपकी मट्टी पलीद करने की कोशीश की थी ...रचना जी को बुत बहुत धन्यवाद स्थिती साफ़ करने के लिए और आपको बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे सुन्दर शब्दों के साथ चर्चा लेखनी करने केलिए

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  27. रचना जी के बारे में जान अच्छा लगा. धन्यवाद.

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  28. इस पूरे टिप्पणी प्रकरण मे एक पक्ष और भी हैं और वो हैं रचना त्रिपाठी जी के पति , उनके हिस्से का सच क्या हैं , क्या पोस्ट पढ़ कर उनको उन बातो पर रंजीश हुई जिन पर अनूप को हुई या नहीं , रचना त्रिपाठी जी के वक्तव्य को केवल उनका माना जा रहा हैं या वो पति पत्नी का सम्मिलित वक्तव्य हैं । कानून पब्लिक लिटिगेशन कोई भी कर सकता हैं अनूप भी , जरुरी नहीं हैं कि उसके लिये रचना त्रिपाठी जी कि सहमति हो । बहुत संभव हैं कि उनके पति कि असहमति हो उसमे जिसमे रचना त्रिपाठी जी कि सहमति हैं । { डिस्क्लेमर मेरी टिप्पणी मेरी सहमति या असहमति नहीं हैं मात्र एक टिप्पणी हैं }

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