tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post8783203021437786020..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -1Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46468734568815404462010-08-11T08:40:05.422+05:302010-08-11T08:40:05.422+05:30.
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"पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजु पहाड़ ,....<br />.<br />.<br /><br /><i>"पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजु पहाड़ ,<br />तासे यह चकिया भली पूजि खाय संसार<br /><br />काकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय <br />ता चढि मुल्ला बाग दे क्या बहरा हुआ खुदाय"</i><br /><br /><br /><b>*** कबीर के मूल...उनके पालक माता पिता के धर्म और गुरु धर्म के लेबल लगा कर कबीर को देखना शायद ज्यादती है ! जिन विकट सामजिक परिस्थितियों में कबीर मौजूद थे उन्हें भी ध्यान में रखना होगा !<br /><br />*** यह एक ऐसा काल है जब चारो ओर हठवाद,पाखंडवाद ,और तमाम तरह की कुरीतियाँ फ़ैली हुई हैं ..एक तरफ इस्लामिक साम्राज्यवाद का अहम् जोर पकड़ रहा है तो दूसरी ओर हिन्दुओं का जर्जरित पोंगापंथ -धर्म को "तिजारत" बना दिया गया है... आज भी इस सबको बदलने की जरूरत है !!! <br /><br />*** कबीर ने पोंगापंथी हिन्दुओं ,कठमुल्ले मुसलमानों को तर्क के आधार पर चुनौतियाँ दी थीं ! <br /><br />*** कबीर सच के अलावा कुछ भी सहने को तैयार नहीं थे... उन्होंने युगांतरकारी काम किया...<br /><br />*** 'कबीर' एक समाज व्यवस्था है ! 'कबीर' एक दर्द है जो भारत के प्रत्येक आम आदमी में बस्ता है ! 'कबीर' फटेहाल में भी अक्खडपन से जीने और समाज-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध खड़े रहने की अदम्य प्रेरणा है ! 'कबीर' हमारे समय में सदियों पुराना वह विचार है जिसे अच्छा तो सत्ताधारी वर्ग ने हमेशा कहा परन्तु कभी अपनाया नहीं ! 'कबीर' हमारे समाज की वह सच्चाई है जिसे हम याद रखना नहीं चाहते ! वह सच्चाई लगातार हमारे नकलीपन से हमें मुक्त कर हमसे एक मानवीय मनुष्य बनने की जिरह करती है !<br /><br />*** कबीर सम्पूर्ण ज्ञान को "सहज" की श्रेणी में ले आते हैं ! इस सहज की भी अपनी साधना है ! शर्त है अहंकार का परित्याग ! अहंकार कोई एक तरह का नहीं ! कुलीनता का अहंकार है ; धन का अहंकार है ; ज्ञान का अहंकार है ; वर्ण या जाति, धर्म का, मजहब का अहंकार है !</b><br /><br /><br /><i>एक बार फिर से लौट आओ बाबा कबीर...<br />तुम्हारी याद आ रही है शिद्दत से...<br />आज तुम्हारी ज्यादा जरूरत है !</i><br /><br /><br />(लेखक व टिप्पणीकारों को आभार सहित)<br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-71310402581369194332010-08-11T08:38:24.814+05:302010-08-11T08:38:24.814+05:30.
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"पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजु पहाड़ ,....<br />.<br />.<br /><br /><i>"पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजु पहाड़ ,<br />तासे यह चकिया भली पूजि खाय संसार<br /><br />काकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय <br />ता चढि मुल्ला बाग दे क्या बहरा हुआ खुदाय"</i><br /><br /><br /><b>*** कबीर के मूल...उनके पालक माता पिता के धर्म और गुरु धर्म के लेबल लगा कर कबीर को देखना शायद ज्यादती है ! जिन विकट सामजिक परिस्थितियों में कबीर मौजूद थे उन्हें भी ध्यान में रखना होगा !<br /><br />*** यह एक ऐसा काल है जब चारो ओर हठवाद,पाखंडवाद ,और तमाम तरह की कुरीतियाँ फ़ैली हुई हैं ..एक तरफ इस्लामिक साम्राज्यवाद का अहम् जोर पकड़ रहा है तो दूसरी ओर हिन्दुओं का जर्जरित पोंगापंथ -धर्म को "तिजारत" बना दिया गया है... आज भी इस सबको बदलने की जरूरत है !!! <br /><br />*** कबीर ने पोंगापंथी हिन्दुओं ,कठमुल्ले मुसलमानों को तर्क के आधार पर चुनौतियाँ दी थीं ! <br /><br />*** कबीर सच के अलावा कुछ भी सहने को तैयार नहीं थे... उन्होंने युगांतरकारी काम किया...<br /><br />*** 'कबीर' एक समाज व्यवस्था है ! 'कबीर' एक दर्द है जो भारत के प्रत्येक आम आदमी में बस्ता है ! 'कबीर' फटेहाल में भी अक्खडपन से जीने और समाज-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध खड़े रहने की अदम्य प्रेरणा है ! 'कबीर' हमारे समय में सदियों पुराना वह विचार है जिसे अच्छा तो सत्ताधारी वर्ग ने हमेशा कहा परन्तु कभी अपनाया नहीं ! 'कबीर' हमारे समाज की वह सच्चाई है जिसे हम याद रखना नहीं चाहते ! वह सच्चाई लगातार हमारे नकलीपन से हमें मुक्त कर हमसे एक मानवीय मनुष्य बनने की जिरह करती है !<br /><br />*** कबीर सम्पूर्ण ज्ञान को "सहज" की श्रेणी में ले आते हैं ! इस सहज की भी अपनी साधना है ! शर्त है अहंकार का परित्याग ! अहंकार कोई एक तरह का नहीं ! कुलीनता का अहंकार है ; धन का अहंकार है ; ज्ञान का अहंकार है ; वर्ण या जाति, धर्म का, मजहब का अहंकार है !</b><br /><br /><br /><i>एक बार फिर से लौट आओ बाबा कबीर...<br />तुम्हारी याद आ रही है शिद्दत से...<br />आज तुम्हारी ज्यादा जरूरत है !</i><br /><br /><br />(लेखक व टिप्पणीकारों को आभार सहित)<br /><br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-58562094287703148662010-08-10T22:46:17.653+05:302010-08-10T22:46:17.653+05:30थोड़े में बहुत कुछ कहता हुआ कबीर जी के बारे me कहत...थोड़े में बहुत कुछ कहता हुआ कबीर जी के बारे me कहता हुआ अच्छा आलेख \<br />आभारशोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-63055993504305406052010-08-09T20:33:56.436+05:302010-08-09T20:33:56.436+05:30'हिन्दुओं में भी आज कबीर पंथी यत्र तत्र सर्वत्...'हिन्दुओं में भी आज कबीर पंथी यत्र तत्र सर्वत्र दिखते हैं मगर मुसलमानों में कबीरपंथी नहीं दिखते यद्यपि कबीर की ईश्वर में अगाध श्रद्धा थी ...एक मुसलमान परिवार के होने के बाद भी आज मुसलमान "कबीर साहब" को वह सम्मान नहीं देते दिखाई देते जिसके वे वास्तविक हक़दार हैं .'<br />-हिन्दुओं में जन्मजात यह गुण है. मैं इसे हिन्दुओं की विशाल हृदयता कहता हूँ.अगर अपवादों को छोड़ दें तो आम हिन्दू किसी भी धर्म के संत का अनुसरण कर लेता है और खरी खरी कहने वाले को भी आदर देता है.हिन्दुओं ने शिर्डी के साईं बाबा को अपना लिया. इसलिए वे मुसलमानों के लिए त्याज्य हो गए.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-83656026816634860542010-08-09T16:50:21.750+05:302010-08-09T16:50:21.750+05:30बढ़िया श्रंखला, आनंद आ रहा है ! दूसरे की आस्थाओं प...बढ़िया श्रंखला, आनंद आ रहा है ! दूसरे की आस्थाओं पर चोट करते लोगों के मध्य कबीर की बहुत याद आती है , तब और आज में कुछ ख़ास नहीं बदला लगता !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-49326470666655878362010-08-09T14:30:07.161+05:302010-08-09T14:30:07.161+05:30कबीर पर सारगर्भित निबन्ध। पढ़कर आनन्द आ गया।कबीर पर सारगर्भित निबन्ध। पढ़कर आनन्द आ गया।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38875248650440061642010-08-09T13:20:53.125+05:302010-08-09T13:20:53.125+05:30समय पर ही छुट्टी से वापिस आयी हूँ। बहुत अच्छा लगा ...समय पर ही छुट्टी से वापिस आयी हूँ। बहुत अच्छा लगा आलेख। पता नही कबीर को हम अपने आचर्5ाण मे आत्मसात क्यों नही कर पाये? जब आपने सांम्प के मुंम्ह मे अंगुली डाली है तो जरूर इस पर भी विचार होगा। अगली कडी का इन्तजार रहेगा।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-63253655590815131182010-08-09T12:14:28.652+05:302010-08-09T12:14:28.652+05:30.".वह ऐसा काल था जब चारो ओर हठवाद,पाखंडवाद ,....".वह ऐसा काल था जब चारो ओर हठवाद,पाखंडवाद ,और तमाम तरह की कुरीतियाँ फ़ैली हुई थीं ..एक तरफ इस्लामिक साम्राज्यवाद का अहम् जोर पकड़ रहा था तो दूसरी ओर हिन्दुओं का जर्जरित पोंगापंथ -धर्म को "तिजारत" बना दिया गया ..आज भी कहाँ बदला है कुछ ?? .."<br /><br /><br />सच में मिश्रा जी , मुझे भी आश्चर्य होता है कि हम हिन्दुस्तानी किस हाड-मांस के बने है जो ५०० साल में भी ज़रा भी नहीं बदले !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-67395012539116716342010-08-09T11:59:43.336+05:302010-08-09T11:59:43.336+05:30आज भी बड़े पैमाने पर कर्मकांडों और कट्टरता का बोलब...आज भी बड़े पैमाने पर कर्मकांडों और कट्टरता का बोलबाला बना हुआ है.Saleem Khanhttps://www.blogger.com/profile/17648419971993797862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-18060041121466788312010-08-09T11:21:13.863+05:302010-08-09T11:21:13.863+05:30मित्रों, दक्षिण के आडवार संत, नाथों में गोरखनाथ और...मित्रों, दक्षिण के आडवार संत, नाथों में गोरखनाथ और सिद्धों में सरहपा अपने समय की जिस धारा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उसके महानायक की तरह कबीर का प्रदुर्भाव हुआ. कबीर जिन सुत्रों के सहारे आगे बढे वे पहले से ही विद्यमान थे. जब वैष्णवी पाखंड सॆ भर गये तो आड्वारों ने आवाज उठायी, जब नाथ योगियों का पतन शुरू हुआ तो गोरख ने विगुल बजाया और जब बौद्ध सिद्धों ने वामाचार का रास्ता अपनाया तो सरहपा ने हांक लगायी. इसी आवाज को बुलन्द स्वर दिया कबीर ने. कबीर सच के अलावा कुछ भी सहने को तैयार नहीं थे. उन्होंने युगांतरकारी काम किया. पर अब कबीरपंथी सब गुड़-गोबर करने में जुटे हुए हैं. भगवान बचाये. Subhash Raihttps://www.blogger.com/profile/15292076446759853216noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-917032406872981472010-08-09T08:12:43.476+05:302010-08-09T08:12:43.476+05:30अली भाई से सहमत हूँ।अली भाई से सहमत हूँ।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-3941749109662711552010-08-09T06:11:11.397+05:302010-08-09T06:11:11.397+05:30@ अरविन्द जी
सबसे पहले तो आभार कि आप एक नई लीक पर...@ अरविन्द जी <br />सबसे पहले तो आभार कि आप एक नई लीक पर चल निकले हैं ! अनावश्यक आरोपों /प्रत्यारोपों से दूर !<br />कबीर के मूल...उनके पालक माता पिता के धर्म और गुरु धर्म के लेबल लगा कर कबीर को देखना शायद ज्यादती है ! जिन विकट सामजिक परिस्थितियों में कबीर मौजूद थे उन्हें भी ध्यान में रखना होगा !<br />ऐसा नहीं कि सनातन भारतीय परंपरा में'प्रोटेस्टर' कबीर पहले थे ! बुद्ध और महावीर को भी इसी प्रोटेस्टेंट परम्परा में गिना जाये , हां यह जरुर कि इनमें से हर एक , दूसरे से अलग है !<br /><br />आपके आलेख की श्रीवृद्धि के लिये दर्ज किये गये अच्छे कमेन्ट में से,दो कमेन्ट ज्यादा अच्छे लगे !<br />जरा गौर कीजियेगा @ के.एम.मिश्रा ,@ प्रकाश गोविन्द !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-37379529113369369082010-08-09T04:28:35.103+05:302010-08-09T04:28:35.103+05:30@ कबीरपंथ का इतना व्यापक फैलाव होने के बाद भी...
क...@ कबीरपंथ का इतना व्यापक फैलाव होने के बाद भी...<br />क्यूंकि फैलाव पंथियों का होता है ...पंथ का नहीं ...<br /><br />अच्छी पोस्ट ...!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-47040538021044478312010-08-09T01:32:56.088+05:302010-08-09T01:32:56.088+05:30मेरे गुरु मेरे पिता जी थे, जिन्होने मुझे हमेशा अच्...मेरे गुरु मेरे पिता जी थे, जिन्होने मुझे हमेशा अच्छि अच्छि किताबे पढने को दी, जिन मै कबीर जी की भी किताबे थी, ओर कबी झी ने सच ही कहा है कि अगर पत्थर पुजने से मुझे भगवान मिलता हो तो मै पुरे पहाड को ही पुजू.... आज भी लोग पत्थर को ही दुध पिला रहे है?? यानि कुछ नही बदला...... बहुत सुंदर लिखा आप ने, कबीर मुस्लिम थे, लेकिन लिखते सही थे, आज कल के लोगो की तरह से नही जिन्हे सिर्फ़ हिन्दूयो मै बुराई दिखे बाकी सब पाक, कबीर कि तरह बने ओर फ़िर लिखे...<br />इस अति सुंदर लेख के लिये आप का धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38531781896516256742010-08-08T23:51:27.964+05:302010-08-08T23:51:27.964+05:30स्मार्ट इंडियन जी के कमेंट से पूरी तरह सहमत हूँ।
...स्मार्ट इंडियन जी के कमेंट से पूरी तरह सहमत हूँ। <br /><br /> कबीर जी के बारे में पढ़ाते समय मेरी क्लास में हिंदी के अध्यापक श्री एम पी सिंह जी कहते थे कि - मेरी समझ में कबीर से बड़ा क्रांतिकारी कोई न रहा होगा जो कि कालक्रम के हिसाब से अपनी सोच को चार सौ-पांच सौ साल आगे रखकर चलता था।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-60856350550857190992010-08-08T22:54:03.942+05:302010-08-08T22:54:03.942+05:30'कबीर' एक समाज व्यवस्था है ! 'कबीर'...'कबीर' एक समाज व्यवस्था है ! 'कबीर' एक दर्द है जो भारत के प्रत्येक आम आदमी में बस्ता है ! 'कबीर' फटेहाल में भी अक्खडपन से जीने और समाज-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध खड़े रहने की अदम्य प्रेरणा है ! 'कबीर' हमारे समय में सदियों पुराना वह विचार है जिसे अच्छा तो सत्ताधारी वर्ग ने हमेशा कहा परन्तु कभी अपनाया नहीं ! 'कबीर' हमारे समाज की वह सच्चाई है जिसे हम याद रखना नहीं चाहते ! वह सच्चाई लगातार हमारे नकलीपन से हमें मुक्त कर हमसे एक मानवीय मनुष्य बनने की जिरह करती है !<br />-<br />-<br />-<br /><b>"ऐसा कोई ना मिलै जासूं रहिये लागि<br />सब जग जलता देखिया अपनी-अपनी आगि!"</b><br /><br />सब तो अलग-अलग जल रहे हैं अपने-अपने ठिकानों पर अपना-अपना ठाठ रचकर अपने-अपने वाणिज्य व्यापार, हिसाब-किताब, नफा-नुकसान के गणित में फसे हुए ! कबीर उन्हें देख रहे ! देख रहे हैं उनका जलना और अपना भी जलना, और रात-दिन इस दुनिया को देखकर बेचैन हैं !<br />-<br />-<br />कबीर सम्पूर्ण ज्ञान को "सहज" की श्रेणी में ले आते हैं ! इस सहज की भी अपनी साधना है ! शर्त है अहंकार का परित्याग ! अहंकार कोई एक तरह का नहीं ! कुलीनता का अहंकार है ; धन का अहंकार है ; ज्ञान का अहंकार है ; वर्ण या जाति, धर्म का, मजहब का अहंकार है ! <br />---<br />---<br />---<br /><b>अरविन्द जी आपकी यह पोस्ट अच्छी लगी!</b>प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-55076130764386876122010-08-08T22:28:16.903+05:302010-08-08T22:28:16.903+05:30antidote तो मिलेगाही, इसमें हमें पूर्ण विश्वास है....antidote तो मिलेगाही, इसमें हमें पूर्ण विश्वास है. जहां तक आस्था का प्रश्न है, साईं बाबा भी एक उदहारण हो सकते हैं.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-49755944993422223352010-08-08T21:55:17.489+05:302010-08-08T21:55:17.489+05:30aapka lekh bahut hi gyanvardhak laga.
bahut hisam...aapka lekh bahut hi gyanvardhak laga.<br /> bahut hisamyik aalekh.<br /> poonamपूनम श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09864127183201263925noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-55846068549913409222010-08-08T21:19:48.847+05:302010-08-08T21:19:48.847+05:30@गिरिजेश भाई ,
अध्ययन का क्या किया जाय उसके लिए तो...@गिरिजेश भाई ,<br />अध्ययन का क्या किया जाय उसके लिए तो एक पूरा जीवन भी छोटा है .<br />मैं विज्ञान का मनई हूँ ,उसी पद्धति के अनुरूप लिखता पढता हूँ -जाहन गलितयाँ होंगी<br />प्रतिक्रियायें या सम वयी समीक्षा (पीयर रिव्यू ) उसे दुरुस्त करती चलेगी ..<br />बहुत कुछ मैं भी सीखूंगा इसलिए ही यह संत समीरा या बतरस की लालच में बिच्छू विद्या के जाने बिना सीधे सर्प के मुंह में उंगली डाल दी है -किसी ईश्वरीय प्रेरणा से ही -और वही अन्टी डोट भी देगा यह विश्वास प्रबल है .<br />मैं आम बोलचाल की बोली भाषा के विमर्श को पसंद करता हूँ ,पंडितई के सख्त खिलाफ हूँ ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-14120655212859244592010-08-08T21:07:11.163+05:302010-08-08T21:07:11.163+05:30स्मार्ट इंडियन से सहमत।
वैसे आप ने बीड़ा उठा लिया...स्मार्ट इंडियन से सहमत। <br />वैसे आप ने बीड़ा उठा लिया है तो घोर अध्ययन भी अपेक्षित है।<br /><br />@ मुसलमानों में कबीरपंथी नहीं दिखते। <br />यह इस लेख की पंच लाइन है। अगर वाकई ऐसा है तो कब्र, औलिया, मज़ार, अस्ताना वगैरह में विश्वास रखने वाले 'एकेश्वरवादी' मुस्लिम कबीर से परहेज क्यों करते हैं, विचारणीय है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46596107464401389582010-08-08T20:59:28.664+05:302010-08-08T20:59:28.664+05:30बहुत आभार इस आलेख के लिए.बहुत आभार इस आलेख के लिए.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-82952274974586739932010-08-08T20:40:57.015+05:302010-08-08T20:40:57.015+05:30कबीर संगत साधु की नित प्रति कीजै जाय ।
दुरमति दूर ...कबीर संगत साधु की नित प्रति कीजै जाय ।<br />दुरमति दूर बहावसी देशी सुमति बताय ।।<br /><br />इसी कारण आपकी सोहबत में आया हूं ।K M Mishrahttp://kmmishra.tknoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-74413944173833653122010-08-08T20:22:47.635+05:302010-08-08T20:22:47.635+05:30पंडित जी... आपकी ज्ञान वर्षा में नहाकर जो आनंदानुभ...पंडित जी... आपकी ज्ञान वर्षा में नहाकर जो आनंदानुभूति हुई वह वर्णनातीत है! जारी रखिए!!सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-45333259597210764472010-08-08T19:56:58.878+05:302010-08-08T19:56:58.878+05:30कबीरपंथ का इतना व्यापक फैलाव होने के बाद भी आज भी ...<b>कबीरपंथ का इतना व्यापक फैलाव होने के बाद भी आज भी बड़े पैमाने पर कर्मकांडों और कट्टरता का बोलबाला बना हुआ है.</b><br />लोग सुन सब लेते हैं .. पर नियम को तोडने से हिचकते हैं !!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-21136795409433719812010-08-08T19:09:57.425+05:302010-08-08T19:09:57.425+05:30लिखने को बहुत सी बातें हैं, विषय ही ऐसा है। एक तो ...लिखने को बहुत सी बातें हैं, विषय ही ऐसा है। एक तो यह कि गुरु रामानन्द का शिष्य होने के नाते मुसलमानों के लिये कबीर भी कोई पीर-मौलवी नहीं हो सकते। समंवयवादी सनातन भारतीय परम्पराओं में कबीर जैसे अक्खडों को अपनाने में धार्मिक या सामाजिक कोई बाधा नहीं है। परंतु कट्टर मुस्लिम दृष्टिकोण से देखने पर वे जस्ट अनदर पैगन/काफिर ही हैं।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com