tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post7817426684445848871..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: क्या आप मेरे साथ तुलसी के राम का नमन नहीं करेगें ?Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-40542925032962924992010-04-18T00:48:34.512+05:302010-04-18T00:48:34.512+05:30जिस कविता के द्वारा बाबा तुलसी भगवान राम का गुण गा...जिस कविता के द्वारा बाबा तुलसी भगवान राम का गुण गान कर रहे है उसमे निर्बल के बल केवल राम का नैराश्य भाव भी छिपा है सहित्य समाज का दर्पण होता है और सामाजिक तत्कालीन विषमताओ ्के कारण ही इन कालजयी रचनाओ की उत्पत्ति हुई<br /> कल्युग केवल नाम अधारा आज भी प्रासंगिक है <br />आभार इसी बहाने राम का नाम याद दिलाने के लिये वरना आपके पास तो काम ही काम हैarun prakashhttps://www.blogger.com/profile/11575067283732765247noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-50673336572486002822010-04-16T09:08:32.271+05:302010-04-16T09:08:32.271+05:30गिरजेश जी, अमरेन्द्र जी,zeal आदि ने इस पोस्ट में च...गिरजेश जी, अमरेन्द्र जी,zeal आदि ने इस पोस्ट में चार चाँद लगा दिया है । मैं भी कुछ मूड बना रहा था कि बिजली चली गई...<br />सभी का आभार।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-87273336177929986512010-04-15T22:18:05.499+05:302010-04-15T22:18:05.499+05:30आपका यह आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक लगा....आपको व इस ल...आपका यह आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक लगा....आपको व इस लेख को नमन...डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-5582695149069175642010-04-15T17:40:13.608+05:302010-04-15T17:40:13.608+05:30मैं भी चाहता हूँ वे मेरी भव बाधा हरें और इस नश्वर ...मैं भी चाहता हूँ वे मेरी भव बाधा हरें और इस नश्वर से जीवन को एक सार्थकता प्रदान करे ....<br /><br />जय श्री रामRajeev Nandan Dwivedi kahdojihttps://www.blogger.com/profile/13483194695860448024noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-2981888543892711002010-04-15T17:28:37.453+05:302010-04-15T17:28:37.453+05:30अमरेन्द्र की टिप्पणी से टीपना चाहता हूं -
@/@जील...अमरेन्द्र की टिप्पणी से टीपना चाहता हूं - <br /><br />@/@जील ,पूरी समग्रता और ब्लॉग बोध के साथ आप यहाँ उपस्थित हुयी हैं देवि,आपके रामत्व को नमन!<br />--------- पूर्णतया सहमत हूँ इस विचार-राशि और भाव-राशि से !Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-91858277053567611542010-04-15T16:23:27.496+05:302010-04-15T16:23:27.496+05:30अली भाई से सहमत हूँ। तुलसी और वाल्मिकी न होते तो श...अली भाई से सहमत हूँ। तुलसी और वाल्मिकी न होते तो शायद राम भी न होते।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-83668554609137578692010-04-15T13:26:09.778+05:302010-04-15T13:26:09.778+05:30तुलसी के राम मुझे प्रेरित करते हैं । जब भी पढ़ता ह...तुलसी के राम मुझे प्रेरित करते हैं । जब भी पढ़ता हूँ, कुछ नया सीखता हूँ ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-1087494645520927872010-04-15T12:26:28.829+05:302010-04-15T12:26:28.829+05:30मैं व्यक्तिगत रूप से ईश्वर में बिल्कुल विश्वास नही...मैं व्यक्तिगत रूप से ईश्वर में बिल्कुल विश्वास नहीं करती, पर मुझे मानवता में आस्था है...मानव मूल्यों पर विश्वास. यदि ईश्वर इनका प्रतिनिधि है, तो ईश्वर को प्रणाम.<br />जहाँ तक तुलसीदास की भू्मिका का प्रश्न है, उन्होंने ऐसे समय में राम को एक आदर्श के रूप में जनमानस के समक्ष उपस्थित करके मानव मूल्यों के प्रति आस्था की पुनर्स्थापना की थी, जब सामाजिक परिस्थितियों के चलते ये मूल्य पतन के स्तर पर पहुँच रहे थे. तुलसी के इस योगदान के कारण उन्हें प्रणाम.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-87173618235070721662010-04-15T12:23:57.604+05:302010-04-15T12:23:57.604+05:30आप तुलसी भी हैं और राम भी. आपको नमन.आप तुलसी भी हैं और राम भी. आपको नमन.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-2208396139073521332010-04-15T12:22:14.588+05:302010-04-15T12:22:14.588+05:30बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख...सबकी ही भवबाधा हरें ,राम...बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख...सबकी ही भवबाधा हरें ,राम और इस नश्वर जीवन को सार्थक बनाने में सहायक हों...यह मास सभी के लिए शुभ हो....आज मलयाली और तमिल लोगों के नववर्ष का पहला दिन भी है...so Happy Vishu toorashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-12770272402814389422010-04-15T12:00:34.821+05:302010-04-15T12:00:34.821+05:30''ट'' का वर्तुल घूर्णन देखते ही बन...''ट'' का वर्तुल घूर्णन देखते ही बन रहा है उपर्युक्त कवित्त में , भला ऐसे भावों के लिए <br />और कौन ध्वनि चुनी जा सकती थी ! ट की लट्टू - धुरी पर समस्याओं की <br />गतिमयता को नचा दिया गया है जैसे नाभि - स्थल- उद्भूत - पेटागि ! <br />अगर किसी जनम के किसी पुण्यवश कभी बाबा मिलें तो बस एक ही चीज <br />मांगूंगा - '' बाबा अपने काव्यत्व की अक्षय - गगरिया से बूँद भै हमरे सहस्स्रार <br />पै चुवाय दियौ ! जिन्दगी भै रामै-राम करब ! '' <br />.<br />समय की सीमा से कौन बचा है , सो बाबा के यहाँ भी खटकने वाली चीजें दिख सकती है ..<br />पर 'सीमाएं' कम हैं 'शक्तियां' अधिक हैं , वे मूर्ख हैं जो 'सबै धान बाईस पसेरी' समझ <br />कर परम्परा की निंदा ही अपना अभीष्ट मान बैठते हैं .. <br />तुलसी के राम दीनबंधु हैं , यह निर्विवाद है ! <br />.<br />कुछ किताबों की चर्चा गिरिजेश भाई ने की है , मैं फिलहाल उसमें एक किताब को और <br />जोड़ना चाहता हूँ - विश्वनाथ त्रिपाठी जी की 'लोकवादी तुलसीदास' .. इसके सारे अध्याय <br />एक नई दृष्टि देते हैं , मुझे बड़ी प्रिय है यह पुस्तक !<br />.<br />@/@जील ,पूरी समग्रता और ब्लॉग बोध के साथ आप यहाँ उपस्थित हुयी हैं देवि,आपके रामत्व को नमन!<br />--------- पूर्णतया सहमत हूँ इस विचार-राशि और भाव-राशि से !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-24635784939493912932010-04-15T11:36:39.851+05:302010-04-15T11:36:39.851+05:30ज्ञानवर्द्धक लेख....बधाईज्ञानवर्द्धक लेख....बधाईसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-10345753463143513202010-04-15T11:21:21.267+05:302010-04-15T11:21:21.267+05:30पुरुषोत्तम मास की शुरुआत अच्छी है ...बाबा तुलसी क...पुरुषोत्तम मास की शुरुआत अच्छी है ...बाबा तुलसी को याद करते हुए ...<br />शुभ रहे यह मास सभी के लिए ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-68675928716079798752010-04-15T11:16:35.691+05:302010-04-15T11:16:35.691+05:30आपदं अपहर्तारं दातारं सर्व संपदां।
लोकाभिरामं श्री...आपदं अपहर्तारं दातारं सर्व संपदां।<br />लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो-भूयो नमाम्यहं॥मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-86525488758333422902010-04-15T10:42:18.371+05:302010-04-15T10:42:18.371+05:30@जील ,पूरी समग्रता और ब्लॉग बोध के साथ आप यहाँ उपस...@जील ,पूरी समग्रता और ब्लॉग बोध के साथ आप यहाँ उपस्थित हुयी हैं देवि,आपके रामत्व को नमन!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-35497759853946085602010-04-15T09:28:45.067+05:302010-04-15T09:28:45.067+05:30God doesn't exist either, or he exsists in eve...God doesn't exist either, or he exsists in everyone (Be it mishra ji, rachna ji, sujata ji, mukti ji, Ali ji, anuj Amrendra and all of us....) <br /><br />The other name of God is 'Aastha'. We see God in our trusted ones. We see Tulsi and Rama both in the ones we trust. Our parents are epitome of our trust, hence we see God in them.<br /><br />Sab kuchh vishwaas aur aastha par aadharit hai----"Maano to main ganga maan hun...na mano to behta pani "<br /><br /> If a friend comes as a guiding light in our needs...he becomes our Charioteer ( Krishna), and Rama .<br /><br />Corelating Dwapar, Treta and Kaliyug , i define 'God' as mutual trust between the two and among us, in my humble opinion.<br /><br />As far as 'Haath failakar maangna ' is concerned....Why to ask for more? He has blessed us with so much already. Avail that first. <br /><br />Hey Ishwar ( my friends and acquaintances)..aapko shat shat naman !<br /><br />Hare Krishna !, Hare Rama !<br /><br />My Charoiteer !, My Friend !ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-30729965181392843402010-04-15T09:22:20.524+05:302010-04-15T09:22:20.524+05:30बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख. जय श्री राम.
रामराम.बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख. जय श्री राम.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-73666202660557504172010-04-15T08:59:12.945+05:302010-04-15T08:59:12.945+05:30मैं भी चाहता हूँ वे मेरी भव बाधा हरें और इस नश्वर...मैं भी चाहता हूँ वे मेरी भव बाधा हरें और इस नश्वर से जीवन को एक सार्थकता प्रदान करे ....डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-24793927612114611172010-04-15T08:41:32.135+05:302010-04-15T08:41:32.135+05:30दहेज नहीं 'दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा' अक...दहेज नहीं 'दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा' अकबर महान(?) के शासन काल में भयानक अकाल पड़ते थे । उस समय यह स्थिति थी कि,<br />भले लोग इसलिए कि संतानें भूख से न मरें और स्वार्थी लोग अपना पेट भरने के लिए, उन्हें सचमुच बेच दिया करते थे।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38065818408042051732010-04-15T08:24:53.560+05:302010-04-15T08:24:53.560+05:30तुलसी का सृजन 60 की अवस्था से नहीं, बहुत पहले से ह...तुलसी का सृजन 60 की अवस्था से नहीं, बहुत पहले से हुआ। हनुमान चालीसा, बरवै रामायण, रामलला नहछू, जानकी मंगल, पार्वती मंगल वगैरह बहुत पहले की रचनाएँ हैं।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-30362686129717761582010-04-15T08:21:57.486+05:302010-04-15T08:21:57.486+05:30सिया-राम मय सब जग जानी...
राम के ही जरिये तुलसी न...सिया-राम मय सब जग जानी... <br /><b>राम के ही जरिये तुलसी ने मनुष्य मात्र को एक भरोसा एक आत्मबल और एक आत्मसम्मान का फार्मूला सब एक साथ थमा दिया ...हाथ पसारो तो सबको देने वाले राम के आगे न कि किसी मनुष्य के सामने </b><br />शायद हताशा की यही परिस्थितियों ने उस काल को भक्तिकाल बनाया और हमें मीरा, सूर, तुलसी, कबीर, नरसी जैसे संतों की वाणी सुनने को मिली.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46227600195987657082010-04-15T08:09:45.543+05:302010-04-15T08:09:45.543+05:30तुलसी को समझना हो तो विनय पत्रिका, कवितावली और अमृ...तुलसी को समझना हो तो विनय पत्रिका, कवितावली और अमृतलाल नागर का कालजयी उपन्यास 'मानस का हंस' पढ़ना आवश्यक है।<br />खल पात्रों के उद्गार 'ढोल गँवार ...' या 'अवगुन आठ सदा उर रहहिं..' जैसी चौपाइयों को लेकर गरियाना और लेख, कविता लिखना हो तो और बात है। <br />आप को आश्चर्य होगा कि मैंने रामचरित मानस का नाम नहीं लिया। यह महाकाव्य एक महानाटक है जिसमें खल पात्र भी समूची जीवंतता के साथ चित्रित हुए हैं। 'ढोल गँवार ..' वाली चौपाई गर्ग संहिता के एक श्लोक का अक्षरश: अनुवाद है। श्रीमद्भागवत के भी कई श्लोक अनुवादित हो मानस में आए हैं।..<br />सम्भवत: आप तुलसी पर मेरी यह पोस्ट भी पढ़ना चाहें।<br />http://kavita-vihangam.blogspot.com/2009/04/blog-post_22.html<br /><br />उनके बारे में सोचते मुझे उनकी यह पंक्ति याद आती है - 'चन्दन तरु हरि संत समीरा'गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46554168830402066032010-04-15T08:00:58.312+05:302010-04-15T08:00:58.312+05:30ये तो आप हमसे बिना पोस्ट लिखे ही करवा सकते थे अरे ...ये तो आप हमसे बिना पोस्ट लिखे ही करवा सकते थे अरे भाई जब आपको नमन तो आपके आराध्य को नमन करने में देरी कैसी ! मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है बाबा नें श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा की उन्हें जनसामान्य की पहुंच में लाया और उनके व्यक्तित्व को मर्यादाओं के आदर्श शिखर पर बैठाया ! यह सत्य है कि दुःख और दीनता में हर मनुष्य संबल के लिए ईश्वर की ओर ताकता है पर उस ईश्वर को ईश्वर के रूप में स्थापित करने वाले का योगदान भी कम महत्त्व का नहीं है इसलिए आदरणीय मिश्र जी श्री राम यानि 'केवल एक अधारा' को प्रणाम करने से पूर्व बाबा को प्रणाम फिर उनके आराध्य और दुखियों की आशाओं के केंद्र बिंदु को प्रणाम !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.com