tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post6193630167247789520..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: बोलो बेटा ...बोलो ...क्वचिद ....अन्यतो ..अपि ......क्वचिदन्यतोअपि !.....Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-11662332251171839752009-09-19T18:49:27.802+05:302009-09-19T18:49:27.802+05:30देखिए जी, अंगरेजी का शब्द चाहे कैसनो कठिन क्यों न ...देखिए जी, अंगरेजी का शब्द चाहे कैसनो कठिन क्यों न हो, ऊ हमको कठिन नहीं लगता है. चहे हम बोलने मे मरे क्यों न जाएं, पर उसको बोलना भी हम सिखिए लेते हैं. रही बात हिन्दी की त एतनी पिछड़ी भाषा जिससे कुछ मिलना ही नहीं है, उसके इतना मुसीबत काहे झेलें. और संस्किरित? धत्तेरे, क्या बाबा आदम के ज़माने की बात करते हैं!इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-86343867833809036742009-09-16T02:48:08.554+05:302009-09-16T02:48:08.554+05:30गनीमत है यह शब्द जैसा दिखता है वैसा उच्चारित तो कि...गनीमत है यह शब्द जैसा दिखता है वैसा उच्चारित तो किया जाता है वरना आप psychology को क्या उच्चारित करेंगे ..पसायचोलोगी ? और to को टू do को डू और go को ..खैर छोड़िये कहाँ के विवाद मे पड़ गये ?शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-288098131137277382009-09-15T23:34:30.359+05:302009-09-15T23:34:30.359+05:30वैसे माडरेशन वाले ब्लाग पर टिप्पणी करने से बचता हू...<i><br /><br />वैसे माडरेशन वाले ब्लाग पर टिप्पणी करने से बचता हूँ,<br />अपने विचार किसी की दया पर छोड़ना गवारा जो नहीं, यह मेरा व्यक्तिदोष है ।<br />और ग़रीबो के भले के लिये पूरा अर्थ भी सँदर्भ सहित यहाँ दे सकता हूँ, <br />पर, इस प्रकरण से अब एक वितृष्णात्मक अनिच्छा उत्पन्न होती जा रही है ।<br />क्षमा करें, मैं तो इतना विद्वान भी नहीं कि, ठेंगे पर रखा जाऊँ.. क्योंकि यह सँदर्भ अनैतिकता से परे है ।<br />प्रसँगवश अनूप शुक्ल की इस पोस्ट की अगली कड़ी पर मैंनें <br /><a href="http://hindini.com/fursatiya/?p=685#comments/" rel="nofollow"> भाषाई अहमन्यता पर एक प्राचीन सँदर्भ</a> भी दिया था, वह भले ही ग़रीबों के हितार्थ प्रस्तुत कर दे रहा हूँ । <br />डाक्टर अमर कुमार ’ असली ’ Sep 13th, 2009 at 1:33 am <br />इन सब के साथ एक बात और भी खास ध्यान होने योग्य है । सँस्कृत का सारा साहित्य हिन्दू समाज को पुनर्जीवित न कर सका, इसलिये सामयिक भाषा में नवीन साहित्य की सृष्टि की गयी । उस सामयिक भाव के साहित्य ने जो प्रभाव दिखाया वही हम आज तक अनुभव करते हैं । एक अच्छे समझदार व्यक्ति के लिये क्लिष्ट सँस्कृत के मन्त्र तथा पुरानी अरबी की आयतें इतनी प्रभावकारी नहीं हो सकती जितनी कि उसकी साधारण भाषा की साधारण बातें ।<br />” श्री भीमसेन विद्यालँकार - हिन्दी सन्देश 28 फरवरी 1933 पृष्ठ 27 से ” <br />हाथ कँगन को आरसी क्या … जनमानस पर जितना प्रभाव रामचरित मानस, कबीर की साखी, रहीम के दोहे, रसखान की रचनायें, घाघ की सूक्तियों का पड़ा, वह आज भी प्रत्यक्ष है । ” कामिनि कंत सों, जामिनि चंद सों, दामिनि पावस-मेघ घटा सों, कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों ..” जैसी रचनायें पाठ्यपुस्तकों में ही भली लगती हैं । प्रसँगवश यह भी जिक्र कर दूँ कि महाकवि भूषण इस भाषा सौन्दर्य को सँभाल न पाये, और इसी रचना को आगे उन्होंने तत्कालीन भदेश ” ऐल-फैल खैल भैल खलक पै गैल-गैल, गजन कि ठेल पेल सैल उसलत हैं.. ” जैसी पँक्तियों से सँभाला । <br />टिप्पणी गरिष्ठ होती जा रही है, इस पर यदि एक पोस्ट लिख ही डालूँ, तो पढ़ेगा कौन ? कुल मिलाकर यह कि कोई अँग्रेज़ी बघार कर हड़काता है, कोई सँस्कृत का हवाला देकर उकसाता है, पर पब्लिकिया तो मुम्बईया टपोरी पर मरी जाती है । हैदराबादी हिन्दी अब तक क्यों ज़िन्दा है ? उसमें शब्दों को समाहित करने की एक साल्वेन्ट जैसी क्षमता है… पर हम हिन्दीयाइट्स वहीं फँसे पड़े हैं । खेद है कि इसी व्यामोह के चलते हिन्दी राष्ट्रभाषा बन कर भी सर्वमान्य सम्पर्क भाषा आज तक न बन पायी ।<br />इसी बिन्दु पर तो " बाबा तुलसी की रामायण " के होने या न होने की प्रासँगिकता भी सम्मुख आती है ।<br />रिपीट डाक्टर अमर कुमार ’ असली ’ Sep 13th, 2009 at 1:37 am <br />लीजिये साहब, लिखने की रौ में भड़ से एक शब्द हिन्दीयाइट बन ही गया, यदि आदरणीय ज्ञानदत्त जी ने इसे अब तक न बनाया तो क्या.. बन तो गया ही है <br />अलबत्ता यहाँ से अनधिकार एक सूत्र अपने साथ लेता जा रहा हूँ,<br />" मुझे विज्ञान के इतर भी अक्सर कुछ कहने की इच्छा होती है <br />उससे इतर स्रोतों से -इधर उधर से भी जो यहाँ कह सकूं -क्वचिदन्यतोअपि ......." <br />सुभाषितम - डा. अरविन्द मिश्र <br /></i>डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-6308269438743257482009-09-15T23:31:55.967+05:302009-09-15T23:31:55.967+05:30..डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-763486019591051132009-09-15T14:55:58.037+05:302009-09-15T14:55:58.037+05:30धीरे धीरे लोग बोलना सीख ही जाएंगे।
-Zakir Ali ‘Raj...धीरे धीरे लोग बोलना सीख ही जाएंगे।<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">-Zakir Ali ‘Rajnish’</a> <br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">{ Secretary-TSALIIM </a><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">& SBAI }</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-75704083881039087392009-09-15T00:10:26.887+05:302009-09-15T00:10:26.887+05:30हिन्दी हर भारतीय का गौरव है
उज्जवल भविष्य के लिए...हिन्दी हर भारतीय का गौरव है <br />उज्जवल भविष्य के लिए <br />प्रयास जारी रहें <br />इसी तरह सुन्दर<br /> " क्वचिदन्यतोऽपि "<br />लिखते रहें ..............लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-26093771956547772172009-09-14T22:13:08.510+05:302009-09-14T22:13:08.510+05:30हमने तो एक पोस्ट लिखी थी संस्कृत में शीर्षक था तो ...हमने तो एक पोस्ट लिखी थी संस्कृत में शीर्षक था तो एक ईमेल आ गयी की फ़ोकसबाजी क्यों करते हो कुछ और भी तो शीर्षक हो सकता था. अब बताइये !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-55548386958153200882009-09-14T17:24:56.889+05:302009-09-14T17:24:56.889+05:30डा. साहब नमस्कार मै तो सोचा था कि घर पर आउगा तो आप...डा. साहब नमस्कार मै तो सोचा था कि घर पर आउगा तो आपसे पुछुगा पर चलो अभी से बोलना सीख गया !<br />जब घर गया था तो आपके श्री मान लडके से मुलाक़ात हुई थी तो मै बताया कि मै आपके पापा का ब्लॉग पढ़ता हु उन्होंने पूछा कौन सा मै नाम नहीं बोल पाया तो उन्होंने मुस्कराते हुए मुझे बताया क्वचिदन्यतोऽपि !!!!Mishra Pankajhttps://www.blogger.com/profile/02489400087086893339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-52893219040516107602009-09-14T13:42:25.612+05:302009-09-14T13:42:25.612+05:30क्वचिद...अन्यत...ओपि..........
अगर मतलब भी पता चल...क्वचिद...अन्यत...ओपि..........<br /><br />अगर मतलब भी पता चल जाए तो maza है ......... vaise इस नाम को padhna मुश्किल तो है ........दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-87006291560431238332009-09-14T13:27:15.995+05:302009-09-14T13:27:15.995+05:30क्वचिद...अन्यत...ओपि
मैंने भी सही से बोलने की कोशि...क्वचिद...अन्यत...ओपि<br />मैंने भी सही से बोलने की कोशिश जारी रखी है शुक्रियारंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-31198001597016855032009-09-14T10:57:43.480+05:302009-09-14T10:57:43.480+05:30क्वचिदन्यतोऽपि....! pehle to main bhi nahi bol pa...क्वचिदन्यतोऽपि....! pehle to main bhi nahi bol paaya........ main yahi dekhne aaya tha ki iska matlab kya hai......... aur socha tha ki aapse poochoonga......... par aapne khud hi bata diya hai......... to iska dhanyawaad.......... lekin ab isko pronounce kar liya hai ........क्वचिदन्यतोऽपि....! ..........<br /><br /><br />bahut hi achcha lekh......डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-14780140122239294892009-09-14T10:33:29.251+05:302009-09-14T10:33:29.251+05:30बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बिल्कुल सच्चाई का बयान क...बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बिल्कुल सच्चाई का बयान किया है बड़े ही सुंदर रूप से! अच्छी प्रस्तुती!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-37744609593010934872009-09-14T09:52:37.608+05:302009-09-14T09:52:37.608+05:30ये अनूप जी भी न!!!!
क्वचिदन्यतोऽपि....!
इत्ता ...ये अनूप जी भी न!!!!<br /><br /><br />क्वचिदन्यतोऽपि....! <br /><br />इत्ता सा तो बोलना है/Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-2351552617442399902009-09-14T09:47:06.533+05:302009-09-14T09:47:06.533+05:30क्वचिदन्यतोऽपि! भाई मुझे तो यह बडा ही सुंदर शब्द ल...क्वचिदन्यतोऽपि! भाई मुझे तो यह बडा ही सुंदर शब्द लगता है, और बोलने मे भी कोई परेशानी नही है. पर मर्जी अपनी अपनी.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-12324665113679464582009-09-14T09:05:18.051+05:302009-09-14T09:05:18.051+05:30दूर से देखने पर बहुत कार्य बहुत कठिन दिखाई देते है...दूर से देखने पर बहुत कार्य बहुत कठिन दिखाई देते हैं .. पर कोशिश करने पर कुछ भी असंभव नहीं होता .. नर्सरी के बच्चों को पशुओं के नाम सीखने के क्रम में 'हिप्पोपोटेमस' का उच्चारण भले ही थोडा कठिन लगता हो .. पर प्रयास में असफलता हाथ नहीं आती है .. मेरे ब्लाग में कंप्यूटर की हिन्दी शब्दावली देखने वाले लोगों ने इस हिन्दी को बहुत कठिन माना .. पर 'करत करत अभ्यास ते , जडमति होत सुजान' .. वास्तव में अभ्यास की कमी ही हिन्दी और संस्कृत को कमजोर बनाने में जबाबदेह है ..आपने 'क्वचिदन्यतोअपि' शब्द को इस ढंग से प्रस्तुत किया है कि .. शायद अब इसे याद रखने में किसी को कठिनाई नहीं होगी .. इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई !!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-44353725057841121862009-09-14T07:54:09.678+05:302009-09-14T07:54:09.678+05:30देर से देख रहा हूँ, पर हिन्दी दिवस के दिन देख रहा ...देर से देख रहा हूँ, पर हिन्दी दिवस के दिन देख रहा हूँ - संतोष है । <br />इसका कुछ निहितार्थ भी जाने अनजाने खुल रहा है । विचित्र है मनुष्य का यह मन ! यह हिन्दी के शब्द नहीं सीखना चाहता - कठिन हैं इसलिये या शायद पिछड़ेपन के प्रतीक हैं इसलिये - तो भीतर एक विचार तंत्र बनता है जिसका लक्ष्य एक चली आ रही सत्ता (अंग्रेजी) को अक्षुण्ण रखना है । <br /><br />हम प्रयास नहीं करते ! हमें हिन्दी कठिन लगती है । हम उनके विकल्प दूसरी भाषाओं (अंग्रेजी) में ढूँढ़्ना चाहते हैं । पर जब हमें अंग्रेजी कठिन लगती है, हम उसके लिये शब्दकोष ले आते हैं । उन कठिन अंग्रेजी शब्दों के विकल्प हिन्दी में नहीं ढूँढ़ते । <br /><br />हिन्दी का प्रवेश लोक की संश्लिष्ट चेतना का प्रवेश है - चाहे सत्ता में, चाहे पाठ्यक्रम में, चाहे व्यवहार में, चाहे हमारी अंतश्चेतना में । हिन्दी के आने से सत्ता में नये वर्ग, नये विचार प्रवेश करेंगे । हिन्दी के एक कठिन शब्द के प्रति (खासतौर पर जो इतनी आत्मीयता से ब्लॉग-जगत में उपस्थित है)इतनी उदासीन मनोवृत्ति । ऐसे अनगिन शब्द हमें सीखने होंगे अध्यवसाय से, क्योंकि इसी अध्यवसाय से विकास की नयी दिशायें खुलेंगीं । देश में स्वावलंबन का उदय होगा । फिर जागेगी देश के प्रति स्वाभिमान की मनोवृत्ति और स्वभूति का अनुभव कर सकेंगे हम । <br /><br />हम ’स्व’ के प्रति इतनी लगन वाले क्यों नहीं ? ’स्व’ के प्रति लगाव, अपनापन से ही तो प्रकट होता है ममत्व ! हिंदी अपनेपन का प्रतीक है और नींव है । हिन्दी सबकी भाषा क्यों नहीं ? हिन्दी के ऐसे शब्द सबके शब्द क्यों नहीं ? अंग्रेजी से अनभिज्ञ समाज के मतों की स्वीकृति के लिये ही रह गयी है यह भाषा ? हिन्दी सहनीय है, परन्तु विकास की प्रवृत्ति का परिचय नहीं । <br /><br />हम विस्मृत कर रहे हैं उपनिषदीय वचन - "नायमात्मा बलहीनेन लभ्य" । आत्मा कैसे पायी जा सकेगी यदि बल ही खो गया । बलहीन आत्मा की उपलब्धि नहीं किया करते । हिन्दी की उपेक्षा में क्या भारत की आत्मा ही नहीं खो गयी ? सृजनशीलता की कर्मण्यता ही नहीं खो गयी ? <br /><br />हिन्दी को उपेक्षित कर हमने अपने आत्मविश्वास को उपेक्षित कर दिया है । हमारी अन्तर्निहित प्रज्ञा, हमारी प्रतिभा, हमारा सम्मान वंचित हो रहा है। हमें हिन्दी के इस आत्मविश्वास को संरक्षित करना होगा ।<br /><br />"जनभाषा है हिन्दी, जनभाषा बने हिन्दी" - अनगिनत बार कहे जाने वाले इन वाक्यों में एक अनोखा वैपरीत्य नजर आता है मुझे - एक आइरोनी (Irony)- बिलकुल हिन्दी दिवस के रूप में उपस्थित एक जीवंत आइरोनी की तरह । सब कुछ खानापूर्ति के लिये । केवल कह दिये जाने के लिये । पूरे देश में निभायी जाती है औपचारिकता, लिये जाते हैं मजबूती के संकल्प- परन्तु ढाक के वही तीन पात ! क्यों ? भारतीय जिस प्रकार वस्तु के प्रति स्वदेशी भाव से परोन्मुख हैं, भाषा के प्रति भी हैं । <br /><br />वह तो भला हो हिन्दी की गतिशील भाषिक संस्कृति का, उसमें अन्तर्निहित उदारवादी विकासशीलता के तत्व का - कि इसमें भाषाई बद्धमूलता और जड़ता का दोष नहीं आने पाया और सभ्यताओं के संघर्ष, अस्मिताओं की टकराहट, विखंडनवाद, मूल्यों और मान्यताओं के विघटन, वैश्विक बाजारवाद व भाषाओं की विलुप्ति की चिंता के इस संक्रमण काल में भी हिन्दी ने अपने अस्तित्व के प्रश्नचिन्हों को दरकिनार किया । भाषा फलती, फूलती रही । कारण इसकी ग्राहिका शक्ति । विभिन्न भाषाओं के शब्दों को अपनी ध्वनि-प्रकृति में ढाल लेने की सामर्थ्य । हिन्दी के फलक का विस्तार हमें सुनिश्चित करना है । हम क्वचिदन्यतोऽपि कहते ठहरें नहीं, विरम न जाँय । यह क्वचिदन्यतोऽपि का भाव न होता तो बाबा तुलसी की रामायण न होती ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-31553642534236690082009-09-14T04:44:35.509+05:302009-09-14T04:44:35.509+05:30क्वचिद अन्यतोSपि..हिंदी दिवस के अवसर पर आपकी यह प्...क्वचिद अन्यतोSपि..हिंदी दिवस के अवसर पर आपकी यह प्रस्तुति बहुत सामयिक है..पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ आपसी संवाद के लिए विदेशी भाषा का सहारा लिया जाता है..भावी पीढी को अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा दिलाने का एक प्रमुख कारण यह भी है..कैसे कहे..हिंदी का भविष्य उज्जवल है ...बस शुभकामनायें ही दे सकते हैं ..!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-28087374884724265352009-09-13T23:54:25.613+05:302009-09-13T23:54:25.613+05:30क्वचिद...अन्यत...ओपि
लीजिए हमें भी आ गया कहना। कि...क्वचिद...अन्यत...ओपि<br /><br />लीजिए हमें भी आ गया कहना। किंतु ऊपर cmpershad टिप्पणी से मैं भी सहमत हूँ।गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-52323807938743027422009-09-13T21:57:31.828+05:302009-09-13T21:57:31.828+05:30अरविन्द जी...यह shbd है तो kathin ..इस में कोई दो ...अरविन्द जी...यह shbd है तो kathin ..इस में कोई दो raay नहीं..हाँ ,यह बात सही की किसी भी नयी भाषा को seekhne में समय लगता है ,यह तो अपनी भाषा का shbd है..<br />russian नाम तो bole भी नहीं जाते..वे तो और भी kathin होते हैं..<br />लेकिन कुछ अलग सा शीर्षक या नाम होता है तो वह भी आकर्षक होता है..जैसे यह...क्वचिदन्यतोऽपि!<br />बाकि मेरे ख्याल से अगर कभी कुछ भी नया सीखने को मिलता है तो जरुर सीखना चाहिये..सिर्फ उपयोगिता सोच कर सीखने का मौका नहीं गंवाना चाहिये.जैसे शौकिया भी कई भाषाएँ सीखना अपने आप में एक योग्यता हो जाती है..और न मालूम कब कहाँ सीखा हुआ काम आ जाये..Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-55078001833543062382009-09-13T18:44:02.961+05:302009-09-13T18:44:02.961+05:30घोस्ट बस्टर जी से सहमत हूँ , और होना भी चाहिए !
स...घोस्ट बस्टर जी से सहमत हूँ , और होना भी चाहिए ! <br />सीखने का क्या है... जर्मन भी सीख लें ...चायनीज भी सीख लें ..लेकिन उसकी उपयोगिता भी तो होनी चाहिए न !प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38768254788532564052009-09-13T16:29:21.009+05:302009-09-13T16:29:21.009+05:30मुझे ब्लॉग के इस नाम ने ही आपका ब्लॉग पढने हेतु प्...मुझे ब्लॉग के इस नाम ने ही आपका ब्लॉग पढने हेतु प्रेरित किया. मेरी ही तरह अन्य को भी किया होगा.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-61697003763492564912009-09-13T14:51:48.975+05:302009-09-13T14:51:48.975+05:30क्वचिद अन्यतोSपि....बहुत बहुत धन्यवाद.क्वचिद अन्यतोSपि....बहुत बहुत धन्यवाद.कंचनलता चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12380457436009692667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-9966099369106424942009-09-13T14:09:53.918+05:302009-09-13T14:09:53.918+05:30अभी तो घोस्ट बस्टर जी के विचारों से इंस्पायर होके ...अभी तो घोस्ट बस्टर जी के विचारों से इंस्पायर होके जा रहे है.. बाकी नयी भाषा सिखने में हमें कोई एतराज नहीं.. अब देखिये न हमने सीखी भी है.. लोचा, राडा,लफडा,कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-85294915001939134212009-09-13T14:00:15.114+05:302009-09-13T14:00:15.114+05:30जय हो
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Carbon Nanotube As Ideal Solar Cellजय हो<br />---<br /><a href="http://vijnaan.charchaa.org/2009/featured/carbon-nanotubes-as-ideal-solar-cell.html" rel="nofollow">Carbon Nanotube As Ideal Solar Cell</a>Vinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-212823926010713752009-09-13T12:55:01.366+05:302009-09-13T12:55:01.366+05:30क्वचिद ....अन्यतो ..अपि
सही है न| राही मासूम रजा ...क्वचिद ....अन्यतो ..अपि<br /><br />सही है न| राही मासूम रजा के उपन्यास `टोपी शुक्ला' में संस्कृत की तारीफ में एक खवातीन कहती हैं.... "ऐसी जबान का क्या फायदा जिसे बोलने में जुबान मुई छिनाल औरत की तरह सौ-सौ बल खाए..."<br /><br />लेकिन हमें तो यह जबान पसंद है|कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra)https://www.blogger.com/profile/03965888144554423390noreply@blogger.com