tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post5756508003409493236..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: बोलो सियावर रामचंद्र की जय .....कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -3Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-77255740080216632792024-01-27T07:49:41.336+05:302024-01-27T07:49:41.336+05:30सियापति राजा रामचन्द्र की जय|
|सियापति राजा रामचन्द्र की जय|<br /> |Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-27646986677440504102017-04-04T12:35:54.523+05:302017-04-04T12:35:54.523+05:30जन-जन के मन में बसे हैं राम...जन-जन के मन में बसे हैं राम...अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-60247633735878315702017-04-04T12:23:45.761+05:302017-04-04T12:23:45.761+05:30अद्भुत.अद्भुत.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53198312859823385482014-04-03T17:17:26.241+05:302014-04-03T17:17:26.241+05:30वाकई आपने अपने इस आलेख में बता दिया कि अयोध्या में...वाकई आपने अपने इस आलेख में बता दिया कि अयोध्या में एक राजकुल के ज्येष्ठ पुत्र ही नहीं थे श्रीराम अपितु श्रीराम तो हमारे रोम रोम में बसने बाले सत्य का पर्याय हे ,अनुपम ,सरल और लोकहितकारी आलेख के लिए आपके प्रति कृतज्ञ हु और अपेक्षा करता हु कि आगे भी आपसे ऐसी ही रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारिया प्राप्त होती रहेगी !आपको बहुत -बहुत बधाई ,धन्यवाद के साथ जय सियाराम जी की Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17610491554868973934noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-801867209732096072014-04-03T17:15:10.741+05:302014-04-03T17:15:10.741+05:30वाकई आपने अपने इस आलेख में बता दिया कि अयोध्या में...वाकई आपने अपने इस आलेख में बता दिया कि अयोध्या में एक राजकुल के ज्येष्ठ पुत्र ही नहीं थे श्रीराम अपितु श्रीराम तो हमारे रोम रोम में बसने बाले सत्य का पर्याय हे ,अनुपम ,सरल और लोकहितकारी आलेख के लिए आपके प्रति कृतज्ञ हु और अपेक्षा करता हु कि आगे भी आपसे ऐसी ही रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारिया प्राप्त होती रहेगी !आपको बहुत -बहुत बधाई ,धन्यवाद के साथ जय सियाराम जी की Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17610491554868973934noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-59156549230966785572010-08-28T05:34:22.573+05:302010-08-28T05:34:22.573+05:30सीताकान्त स्मरण जय जय राम ।सीताकान्त स्मरण जय जय राम ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-50780842842437136162010-08-21T11:54:16.625+05:302010-08-21T11:54:16.625+05:30@ अरविन्द जी, कृपया मन न दुखाएँ.
मेरे मुखसुख ने आ...@ अरविन्द जी, कृपया मन न दुखाएँ. <br />मेरे मुखसुख ने आलस्य में यह बात कही. <br />लेकिन अब वह फिर से बिस्तर छोड़कर प्राणायाम करने उठ खड़ा हुआ है. <br />मैं भी इसी नाम के कारण खिंचा था. <br />राम का चरित कहने वाली मानस की भाषा अवधी है. <br />लेकिन संस्कृत के शब्दों की भी बहुतायत है जिससे अवधी की मिठास और बढ़ गयी है.<br />यहाँ समस्या एकाधिक संधियों से है. <br />जहाँ जोड़ होते हैं वहाँ अटकाव आ ही जाता है. <br />बस इस अटकाव को रसभंग का कारण मान बैठा था. क्षमा करें. <br />'राम' का नाम दुनिया सहजता से बोल लेती है. 'त्रियम्बकेश्वर' जैसे शब्द न अधिक प्रचलित हैं और ना ही बोलना उनका सहज है. <br />फिर भी यदि केवल पहचान के लिए शब्द गढ़े गए हैं तो स्वीकार्य हैं. <br />मेरी कोशिश विषय भटकाव की नहीं है. <br />"बोलो सियावर रामचंद्र की जय"प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00211742823973842751noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-67664445020693641592010-08-21T11:00:09.460+05:302010-08-21T11:00:09.460+05:30@प्रतुल जी,
शुक्रिया ,किन्तु जब आप जैसे शब्द और भा...@प्रतुल जी,<br />शुक्रिया ,किन्तु जब आप जैसे शब्द और भाषा के धनी लोग ऐसी बात कहते हैं तो मन को ठेस पहुँचती है .<br />जन सामान्य की शिकायत जायज हो सकती है मगर आप भी जब ऐसा कहें तो शायद समीचीन नहीं है .<br />क्वचिद अन्यतो अपि =क्वचिदन्यतोपि इत्ता सा तो है !<br />एक बात और बताऊँ -कितने सुधी जानो ने कहा कि वे इस नाम के कारण ही ब्लॉग पर आये :)<br />नाम की महिमा से आप भी अपरिचित नहीं होंगें ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-41813558288146203322010-08-21T10:39:24.474+05:302010-08-21T10:39:24.474+05:30अरविन्द जी,
धन्यवाद. आपने उन विचारों को समर्थन दिय...अरविन्द जी,<br />धन्यवाद. आपने उन विचारों को समर्थन दिया और आपकी त्वरित प्रतिक्रिया तो मुझे सबसे ज़्यादा पसंद आयी. आभार. <br />फिर आपका इसलिये और धन्यवाद करता हूँ. इस सत्संग में काफी राम-भक्तों को एकत्र कर लिया. इतनी अच्छी अनुभूति तो किसी भी तरह नहीं मिल सकती: सच कहा है : "सात स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरहीं तुला इक अंग, तूल ना ताहि सकल मिली जो सुख लव सत्संग." <br />अरविन्द जी आपकी लेखनी से लिखा पड़ने पर मुख को सुख मिलता है. लेकिन ब्लॉग का नाम जिह्वा को अच्छा व्यायाम करा देता है. हम नए ब्लोगर आपके सन्दर्भ की बात करने के लिये केवल यही कहते हैं कि "अरविन्द जी पढ़ना" या "मिश्र जी को पढ़ना". हमारी परेशानी समझें.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-90076726570294775572010-08-21T00:13:34.543+05:302010-08-21T00:13:34.543+05:30राम-राम कहु राम सनेही।
पुनि कहु राम लखन वैदेही॥
य...<a rel="nofollow">राम-राम कहु राम सनेही।<br />पुनि कहु राम लखन वैदेही॥</a><br /><br />यह रस कभी चुकने वाला नहीं है।<br /><br />आपने मन प्रसन्न कर दिया। बलो सियावर रामचंद्र की जय!!!सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-1930916706430717442010-08-20T22:00:17.078+05:302010-08-20T22:00:17.078+05:30समृद्ध संस्कृतियाँ आदर्श पुरुषों के सहारे विकसित ह...समृद्ध संस्कृतियाँ आदर्श पुरुषों के सहारे विकसित होती हैं। अपने यहाँ तो तीन तीन आदर्श युग्म स्थापित हैं - सीताराम, राधाकृष्ण और गौरीशिव। बहुत पुराने समय से ही ये संस्कृति प्राण रहे हैं। इन्हों ने हमें गढ़ा है, हमारे दु:ख सुख में साथ रहे हैं और हमारे रक्त में घुल मिल गए हैं। इनके बारे में जितना ही लिखा जाय, कम है, कम पड़ता है। ... मुझे तो इस पर आश्चर्य होता है कि लोकपरम्परा ने इन तीन युग्मों को उनके दोषों के साथ भी कितनी आत्मीयता से अपना बना रखा है! जैसे घर के सम्मानित सदस्य हों। ...लिखिए भारतदेश रूपी शिव पर और वंशी बजैया कृष्ण पर भी। एक लेख गौरी, सीता और राधा पर भी - मिथक हैं तो भी। मिथकों का सृजन मनुष्य ही करता है भैया! और इसी गुण के कारण वह कथित ईश्वर से भी आगे निकल जाता है। <br />आप का लेख पढ़ कर अबूझ सी तृप्ति हुई है। थोड़ा और आयुष्मान हो जाऊँ तो शायद अभिव्यक्त भी कर पाऊँ।यह लेख मेरी 'निजी' दृष्टि में आप का सर्वोत्तम लेख है। क्यों है? व्यक्त नहीं कर पा रहा। <br />आभार।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-30813874763724843372010-08-20T21:12:48.612+05:302010-08-20T21:12:48.612+05:30सुंदर अति सुंदर, सियावर रामचंद्र की जय.
रामरामसुंदर अति सुंदर, सियावर रामचंद्र की जय.<br /><br />रामरामताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-10122900510701101682010-08-20T19:47:41.849+05:302010-08-20T19:47:41.849+05:30प्रवीण जी से सहमत,
बड़ा ही सुन्दर परिचय। बड़ा नया ...प्रवीण जी से सहमत,<br />बड़ा ही सुन्दर परिचय। बड़ा नया सा लगा पुनः राम चिन्तन।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-7463277370982424692010-08-20T19:39:40.629+05:302010-08-20T19:39:40.629+05:30सर जी हम तो राम को इन्सान तक मानने से इंकार करते ह...सर जी हम तो राम को इन्सान तक मानने से इंकार करते हैं......एक जिद्दी आदमी है और क्या है राम....anjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-85254692570659193942010-08-20T16:43:45.392+05:302010-08-20T16:43:45.392+05:30बहुत ही सुन्दर और शानदार लेख लिखा है आपने! सियावर ...बहुत ही सुन्दर और शानदार लेख लिखा है आपने! सियावर रामचंद्र की जय!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-49382401782298351572010-08-20T15:00:22.739+05:302010-08-20T15:00:22.739+05:30बेहतरीन, अरविन्द जी !बेहतरीन, अरविन्द जी !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-67979034838787259272010-08-20T13:58:34.136+05:302010-08-20T13:58:34.136+05:30अच्छी रचना है
बहुत बहुत आभार
सियावर रामचन्द्र ...अच्छी रचना है <br /><br />बहुत बहुत आभार <br /><br />सियावर रामचन्द्र की जयएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-63591171224678817402010-08-20T13:51:02.540+05:302010-08-20T13:51:02.540+05:30राम पर आपके लेख में राम की वही छवि पाकर जो मेरे मा...राम पर आपके लेख में राम की वही छवि पाकर जो मेरे मानस (और संभवतः आम हिन्दू मानस) में है, प्रसन्नता हुई.लेकिन विद्वतापूर्ण टिप्पणियों द्वारा इस विषय के नए आयाम प्रकट हुए, जिससे और भी अधिक प्रसन्नता हुई. ब्लॉग जगत की सार्थकता यहीं समझ आती है.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-79000265763045192842010-08-20T13:50:25.312+05:302010-08-20T13:50:25.312+05:30राम पर आपके लेख में राम की वही छवि पाकर जो मेरे मा...राम पर आपके लेख में राम की वही छवि पाकर जो मेरे मानस (और संभवतः आम हिन्दू मानस) में है, प्रसन्नता हुई. विद्वतापूर्ण टिप्पणियों द्वारा इस विषय के नए आयाम प्रकट हुए, जिससे और भी अधिक प्रसन्नता हुई. ब्लॉग जगत की सार्थकता यहीं समझ आती है.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-33499919881992930112010-08-20T11:24:42.446+05:302010-08-20T11:24:42.446+05:30अरविन्द भाई, भरतीय मनीषा शिखर ज्ञान से सम्पन्न रही...अरविन्द भाई, भरतीय मनीषा शिखर ज्ञान से सम्पन्न रही है. पर देश-काल की बाधा तो हर रचनाकार के सामने आती है. इनसे कोई रचनाकार निरपेक्ष नहीं हो सकता. चाहे वाल्मीकि हों या भवभूति या कम्बन या तुलसी, सबने राम को अपने देश काल के साथ जिया. सैकड़ों वर्ष बाद हम अपने समय में खड़े होकर उसी राम को देखने की कोशिश करते हैं, अपने समय के लिये कोई राम नहीं गढ्ते, यह एक बड़ी समस्या है. वह राम एकदम अप्रासंगिक हो गया है, मैं यह नहीं कहता लेकिन आज के समय में भूख, दरिद्रता, अन्याय, भ्रष्टाचार से लड़्ने की ताकत उस राम में नहीं है, जो यह जानते हुए कि कैकयी ने छल से उन्हें निर्वासन दिलाया है, वन चला जाता है, जो यह जानते हुए कि सीता निर्दोष हैं, एक मामूली आदमी के आरोप पर उन्हें अग्निपरीक्षा में झोंक देता है. ऐसा राम तो आज के छल सम्राटों के हाथ शहीद हो जायेगा. अब एक नया राम रचने की जरूरत है जो न्याय के लिये शठे शाठ्यम समाचरेत का हथियार धारण करे.डा सुभाष रायnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-52938488807689157012010-08-20T11:21:20.819+05:302010-08-20T11:21:20.819+05:30प्रतुल जी ,
आपने तो विचारों की एक श्रृंखला ही उद्द...प्रतुल जी ,<br />आपने तो विचारों की एक श्रृंखला ही उद्दीपित कर दी ....आभार !<br />फिलहाल केवल यह कहूँगा कि यह सोच दुरुस्त लगती है की पराये देश /माहौल से आने पर कुछ समय का आयीसोलेशन/ क्वैरेनटायींन सरीखी रूटीन कार्यवाही निश्चित रूप से ही उस समय भी रही होगी -जिसे तब अग्नि परीक्षा कहा गया -जिसका मतलब आग में झोकना नहीं है ...यह कुछ तरह की जाँच /परीक्षण भी हो सकता है तत्कालीन विशेषज्ञों द्वारा -यह राम की आकांक्षा नहीं थी -लोगों के चेहरों पर राम इसे पढ़ रहे थे ...वे विवश थे ..यह तो रही युद्ध के तत्काल बाद वहां के लोगों के सामने सीता के सतीत्व का दिखावटी परीक्षण ,जब अयोध्या आये तो वही प्रश्न चिह्न वहां भी लोगों के चेहरों पर विशाल आकार लेता जा रहा था ....कोई सूरत नहीं दिखी ..लांक्षित सीता मायके तो नहीं जा सकती थीं ....वहां तो और भी ताने सुनने को मिलते ....लिहाजा पिता तुल्य ऋषि सानिध्य ही एक मात्र रास्ता बचा ... लव कुश को एक नए नाना मिले जिन्होंने उन्हें पराक्रमी बनाया पर उनके पिता को डिफेंड भी नहीं किया -अयोध्या की गद्दी के लिए तैयार किया ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46216248859698881752010-08-20T10:48:54.813+05:302010-08-20T10:48:54.813+05:30बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभारबहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभारसमयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-77333505424238252212010-08-20T10:16:34.147+05:302010-08-20T10:16:34.147+05:30त्याग का मूल्य प्रतिष्ठापित करती पोस्ट.
यदि आपकी ...त्याग का मूल्य प्रतिष्ठापित करती पोस्ट. <br />यदि आपकी पोस्टों से एक बड़े समुदाय का भला हो रहा है और आपको इसका एहसास भी है तब आपको इसके प्रवाह में निरंतरता लानी ही होगी. उस समय आपकी वैयक्तिक निजी ज़िंदगी नहीं रह जाती. तब आपको काफी-कुछ त्यागना पडेगा. हाँ वैसे ही, जैसे श्रीराम ने अपनी वैयक्तिक आकांक्षाओं को परे रखकर किया. <br />जहाँ तक सीता के साथ समय-समय पर परीक्षाओं का प्रश्न है, जिसमें बुद्धिजीवी लोग उलझकर कल्पना के घोड़े दौडाते रहते हैं और अनायास ही स्त्री को उसमें लांक्षित कर बैठते हैं. <br />एक पत्नी जो अभी नव-ब्याहता है, उसे अपनी शारीरिक समस्याओं का पता है, जिसके अभी संतान नहीं है. जिसे आने वाली अपने जिमेदारियों का एहसास है, <br />एक पति जिसे राजा बनने से पूर्व जन-समर्थन चाहिए, जिसे रोजगार के रूप में पिता द्वारा अर्जित सत्ता नहीं चाहिए, जिसे वृहत साम्राज्य की कमजोरियों का अवलोकन भी करना है. जिसे अपने राज्य को एक शक्तिशाली राजा भी सौंपना है, घरेलू कलह को रोकना है, भाइयों में सौहार्द, प्रजा में आदर्श स्थापित करना है. <br />— इन सभी कार्यों में समय लगा. <br />— मीडिया [सन्देशदूत/सन्देशवाहक] हमेशा से अपना धर्म निभाती रही है, घरेलू मसलों को प्रजा में उछालने का, प्रजा भी चाहती है कि उनके राजा के निजी जीवन की झाँकी उनको मिलती रहे, सो मीडिया ने जिस रूप में सीता की परीक्षाओं को प्रजा के सम्मुख रखा वे अशिक्षित जनता के बीच ग़लत रूप में समझी गयीं. <br />— लंका से वापसी के समय 'अग्नि-परीक्षा' .......... जो समस्त 'मेडिकल चेकअप' के रूप में माने जा सकते हैं. जिस प्रकार कोई व्यक्ति 'आतंकियों के चंगुल से निकलकर' या फिर किसी बुरी स्थितियों से निकलकर बाहर आता है तो उसकी मेडिकल जाँच की ही जाती है. इसमें संदेह को स्थान नहीं होता. यह एक मानसिक संतुष्टि-भर है. <br />— 'सीता-वनवास' एक ऎसी परिस्थिति है जिसे केवल पति-पत्नी ही बेहतर समझ सकते हैं. उस समय में कृत्रिम-गर्भाधान को सामाजिक मान्यता ऋषियों के स्तर पर थी. [यहाँ ऋषि का अर्थ केवल पूजा-पाठ करने से न लिया जाए, वह किसी विषय का पंडित और अन्वेषक से है]. IUI और IVF जैसे शब्द बेशक नहीं थे, लेकिन ये समस्याएँ शाश्वत हैं. और उनका समाधान प्रत्येक सभ्य समाज में होना चाहिए. और था भी. लेकिन अपढ़ और अबोध जनता के (जो/जिस तरह से) समझ आया उसने वह बोला और गाया [साहित्य रचा]. इसलिये निचले तबके में पैदा हुए भक्त कवियों की रचनाओं में यह सब बाखूबी देखा जा सकता है. <br />— सीता के दो जुडवा-पुत्र 'लव और कुश', टेस्ट-ट्यूब बेबी के रूप में प्रजा में स्वीकार्य होते या नहीं — यह इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि आज इस सत्य को कितने लोग पचा पायेंगे. प्रचार करके देखिये, पता लग जाएगा. <br />— क्या वाल्मीक का घर केवल 'घर' है, एक लेबोरेटरी नहीं. क्या उस समय के ऋषियों के 'समाज' से परहेज था जो जंगल और सुनसान-प्रदेशों में बसेरा किये रहते थे? सोचिये....<br /><br />........... आपके लेख ने मुझे आपके लेख की प्रशंसा करने की बजाय विचारों में झोंक दिया........... <br />ऑफिस निकलना है ...... एक विचारों को गति देती पोस्ट. लाजवाब. <br /><br />हाँ मैं जो कहना चाहता था वह फिर भी छूटा जा रहा है. ...... वह यह कि ....<br />'त्याग' मतलब जो 'वस्तु' हमारे लिये अनुपयोगी हो जाए, उसको उसे सौंप दें जिसे उसकी जरूरत है. <br />और इसे 'व्यक्ति' के स्तर पर भी रूप दिया जा सकता है. यहाँ 'श्रीराम ने सीता को उन स्थितियों को सौंप दिया, जिन्हें उसकी ज़रुरत थी."<br />फिलहाल इतना ही.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-65315100692743012772010-08-20T09:06:32.740+05:302010-08-20T09:06:32.740+05:30प्रवीण भाई ,जी आपने बाटम लाईन पकड़ ली ...!एक आप ही...प्रवीण भाई ,जी आपने बाटम लाईन पकड़ ली ...!एक आप ही तो हैं जो मुझे कभी मिस /अंडर/स्टैंड नहीं करते /रखते -सच्ची !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-80744794082373636392010-08-20T08:56:01.874+05:302010-08-20T08:56:01.874+05:30.
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बोलो सियावर रामचंद्र की जय...
आदरणीय अरविन्....<br />.<br />.<br /><b>बोलो सियावर रामचंद्र की जय...</b><br /><br />आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,<br /><br />पूर्णरूपेण 'राम मय' होकर लिखी है आपने यह पोस्ट...जहाँ इतनी श्रद्धा हो... वहाँ बहस की गुंजाईश नहीं... और बेमतलब भी है बहस...<br /><br /><b>राम को मर्यादा पुरुषोत्तम की पदवी मिली क्योंकि उन्होंने जो किया लोक मत के अनुसार किया ...</b><br /><br />मेरे विचार में यही सार है आपके आलेख का... न्याय, नैतिकता, समानता, जीवन साथी की भावना आदि को दरकिनार कर राम ने हमेशा लोकमत को महत्व दिया... Conformity के नायक हैं राम... मेरी नजर में... और वही रहेंगे हमेशा...<br /><br />हाँ, शिव की बात अलग है... शिव पर पोस्ट का इंतजार रहेगा!<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.com