tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post2670002398190281109..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: मिथक का मतलब Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger83125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-5529804044367233112020-12-18T21:40:38.689+05:302020-12-18T21:40:38.689+05:30धन्यवाद धन्यवाद Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09739739971903333678noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-76265434529388308742017-01-07T13:41:38.340+05:302017-01-07T13:41:38.340+05:30मिथक के बारे में अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार...मिथक के बारे में अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!<br />नववर्ष मंगलमय हो कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-51790214581775091452016-08-26T19:29:27.911+05:302016-08-26T19:29:27.911+05:30मिथक क्या है? एतदर्थ आप सब विद्वानों ने गहन चिन्तन...मिथक क्या है? एतदर्थ आप सब विद्वानों ने गहन चिन्तन-मनन व विमर्श किया है और कर रहे हैं. पर मुझे नहीं लगता कि आप किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाएँगे. जब मिथ या मिथक स्वयं ही अपरिभाषित है, तो क्यों उसे थौंप रहे हैं ? पहले यह सुनिश्चित कर लें कि यह मिथक या मिथ है. जब साहित्य जगत् में सर्व-सम्मत रूप आ जाएगा, हम निश्चित ही स्वीकार करेंगे. फ़िलहाल आपका 'मिथ' या 'मिथक' मिथ्या के अतिरिक्त कुछ नहीं है. क्योंकि यह भारतीय साहित्य-जगत् में तो कहीं है ही नहीं. फ़िर हमारे पास शब्द-भण्डार की कमी भी नहीं है कि इस (मिथ/मिथक) के बिना हमारा समीक्षाशास्त्र या साहित्य-संसार डूब जाएगा या तहस-नहस हो जाएगा. हमने तो पूरी की पूरी संस्कृतियों को पचा लिया है, इस मिथ/मिथक को भी सहर्ष स्वीकार लेंगे. किन्तु; पहले एक मत होकर इसे परिभाषित तो कर लीजिए... :) <br />डॉ.भवानीशंकर शर्मा 'महाजनीय'डॉ.भवानीशंकर शर्मा 'महाजनीय'https://www.blogger.com/profile/03228008906101009070noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-79981802360694919192015-01-08T07:38:46.171+05:302015-01-08T07:38:46.171+05:30मिथकों पर सदा से जारी चर्चा को एक नया अवसर भी मिल ...मिथकों पर सदा से जारी चर्चा को एक नया अवसर भी मिल गया इसी बहाने...अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-56497193172801385502015-01-07T23:50:27.852+05:302015-01-07T23:50:27.852+05:30एक प्रश्न जो मन में उठ रहा है कि अभी तक तो किसी भी...एक प्रश्न जो मन में उठ रहा है कि अभी तक तो किसी भी तथ्य की प्रमाणिकता उस विषय का विशेषज्ञ करता था। और यह समाज विशेषज्ञ के उस निर्णय को मान्यता भी देता था। क्योंकि उनके पास निर्णय के लिए कुछ न कुछ आधार होता था। फिर इस मुद्दे में भी यही तो हुआ है ?<br /><br />चलो माना कि वे विशेषज्ञ भटक गए हैं। या विज्ञान को समझने में असमर्थ हैं। वास्तविकता और कल्पना में भेद नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि उनके पास कोई प्रमाण नहीं है। तो अब प्रश्न उठता है कि हम तो वास्तविकता और कल्पना में भेद कर पा रहे हैं। हम तो भ्रमित नहीं हुए हैं। तो फिर हमारे पास उनके भ्रमित होने का कारण भी होगा। तो फिर हम उस भ्रम को क्यों दूर नहीं करते हैं ? या फिर उन्हें हसी का पात्र बनाए रखना चाहते हैं। क्योंकि हम सब तो व्यस्त आदमी रहे। और फ्री समय में कुछ जोकरों की आवश्यकता तो पड़ती ही है।<br /><br />दरअसल ऐसी बात करने के पीछे भी एक कारण है कि बचपन में रेगिस्तान की मरीचिका को जब भ्रम बताया जाता है। तब विज्ञान के एक सिद्धांत से हमें अवगत कराया जाता है। आखिर हम उस चीज को भ्रम कैसे कह सकते हैं ? जिसे देखने पर हर व्यक्ति वैसी ही प्रतिक्रिया देता है जैसा कि एक वैज्ञानिक देता है। एक वैज्ञानिक भी उस परिस्थिति में वही देखता है जो एक सामान्य मनुष्य देखता है। क्योंकि उन सभी को एक समान परिदृश्य दिख रहा है। भौतिकी उन लोगों में भेद नहीं कर पा रही है। जो उस परिदृश्य को देख रहे हैं। फिर विज्ञान का एक सिद्धांत कहता है कि यदि आप वास्तविकता और भ्रम में भेद के साथ-साथ उसके कारण को ढूंढ पा रहे हैं। तब तो आप वाकई इतनी देर से भ्रमित हो रहे थे। क्योंकि उस कारण के जरिये आप उन लोगों को वास्तविकता से परिचित करा सकते हैं। जिसे लोग अब भी वास्तविकता मान रहे हैं। आप उनकी समझ को उस कारण के उपयोग से परिवर्तित कर सकते हैं। ये है विज्ञान<br /><br />मैं यहाँ एक बात और स्पष्ट कर दूँ। विज्ञान केवल तथ्यों का जमावाड़ा नहीं है। और न ही सिर्फ भौतिकी का दूसरा नाम विज्ञान है। अब आप जैसा समझे...<br /><br />जो व्यक्ति पुष्पक विमान जैसे मिथकों को लेकर प्रमाण मांगते हैं। वे भी गलत नहीं हैं। परन्तु उनकी मंशा समाज और विज्ञान दोनों के लिए खतरनाक है। क्योंकि वे विज्ञान के जिस कूट-करण सिद्धांत का उपयोग करते हुए, अपनी बात कहते हैं। वे नहीं जानते है कि आखिर कूट-करण सिद्धांत कहता क्या है ? उस सिद्धांत का विज्ञान में क्या महत्व है ? क्या भौतिकी के नियमों की प्रमाणिकता में यह सिद्धांत लागू होता है ? इस सिद्धांत की सीमा कहाँ तक है ? बेशक वे लोग सिद्धांत का अनुप्रयोग करते हैं। परन्तु विज्ञान के प्रति उनकी समझ तथ्यों तक ही सीमित रहती है। वास्तव में वे विज्ञान को समझते नहीं हैं। सिर्फ उसे जानते हैं।<br /><br />विषय संबंधी लेख : विज्ञान... विज्ञान... विज्ञान... । www.basicuniverse.org/2014/12/Vigyan-Vigyan-Vigyan.htmlअज़ीज़ रायhttps://www.blogger.com/profile/09237300181352146572noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-81173212912746356992013-07-09T06:14:17.331+05:302013-07-09T06:14:17.331+05:30अगर यही दूसरे धर्म के लिये कह दिया गया होता तो अभी...अगर यही दूसरे धर्म के लिये कह दिया गया होता तो अभी तक तो शहरों, राष्ट्रों में मोर्चे निकल गये होते, आग लग गई होती.. इससे यह तो साबित होता है कि मिथक हो या ना हो.. परंतु हम सहिष्णु जरूर हैं.. हर चीज को आत्मसात कर लेते हैं ।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-57756268698264046582013-07-07T09:17:52.632+05:302013-07-07T09:17:52.632+05:30मेरी टिप्पणी स्पैम में गई?मेरी टिप्पणी स्पैम में गई?Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-8986334469966970832013-07-06T22:07:22.534+05:302013-07-06T22:07:22.534+05:30देर से आने का एक फायदा यह भी होता है कि टिप्पणियों...देर से आने का एक फायदा यह भी होता है कि टिप्पणियों को पढ़ने का मौका मिलता है और इस पोस्ट ही से नहीं टिप्पणियों से भी ज्ञान वर्धन हुआ.<br />..........<br /> <br />खो गए पथिक की सुध लेने हेतु धन्यवाद.<br />बस ज़रा स्कूल में व्यस्तता थी.<br />आभार Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-23749150710847950932013-07-06T20:13:14.814+05:302013-07-06T20:13:14.814+05:30bhagwan ke naam par kitni ladaiya hoti hain :o... ...bhagwan ke naam par kitni ladaiya hoti hain :o... bhagwan (agar hain to) sochte honge .. kash main na hota to kitna achcha hota. Aur agar nahin hain to ye sab dekh kar kabhi hona bhi nahin chahenge :p :pMonika Jainhttps://www.blogger.com/profile/18206634037142003083noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-76479771180239452922013-07-06T09:20:02.797+05:302013-07-06T09:20:02.797+05:30like। यह फेसबुक होता तो।
:)like। यह फेसबुक होता तो।<br /><br />:)Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-24451840551446110742013-07-05T00:22:00.723+05:302013-07-05T00:22:00.723+05:30मैं भी इस निर्र्थक बहस से निजात चाहता हूँ. बस विज्...मैं भी इस निर्र्थक बहस से निजात चाहता हूँ. बस विज्ञान के लिए एक छोटे से शुभकामना संदेश के साथ कि विज्ञान संचारण का भार विनम्र, विवेकशील,समतावानों के हाथों में रहे!! ताकि उसका लोक में सम्मान और आदर वृद्धि को प्राप्त करे. सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-67030154720932305382013-07-04T22:42:18.967+05:302013-07-04T22:42:18.967+05:30विचार विमर्श जब बहस बन जाये तो अर्थहीन हो जाता है ...विचार विमर्श जब बहस बन जाये तो अर्थहीन हो जाता है क्योंकि बहस का न कोई अंत होता है , न निष्कर्ष। न किसी की जीत होती है , न हार । इसलिए बहस निरर्थक है। डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-17696838488189742892013-07-04T20:37:33.707+05:302013-07-04T20:37:33.707+05:30जी। प्रकरण को समाप्त माने ले रही हूँ।
आभार।जी। प्रकरण को समाप्त माने ले रही हूँ।<br /><br />आभार।Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-3402051810472169162013-07-04T20:34:08.911+05:302013-07-04T20:34:08.911+05:30शिल्पा जी ,
"न आप मानेंगे न मैं मानूंगी इस वि...शिल्पा जी ,<br />"न आप मानेंगे न मैं मानूंगी इस विषय पर। तो बेहतर हो कि we should agree to disagree on this matter"<br />मुझे आपके लिए सचमुच दुःख है!<br />मैंने खुद एक बार प्रवीण शाह जी से प्रतिवाद किया था कि लाखों करोंड़ों लोगों की आस्था और विश्वास उनसे मत छीनिए क्योकि फिलहाल विज्ञान के पास कोई वैकल्पिक कार्य योजना नहीं है -जब यहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों तक में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सर्वथा अभाव है और वह भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी /अभियांत्रिकी पढ़े लिखे लोगों में भी तो बिचारे उन्ही लोगों से उनके विश्वास क्यों छीने जायं :-(<br />तो आप अपनी चिंता करिए -आप ठीक होंगी तो उन करोड़ों लोगों को भी एक मार्ग मिलेगा -अभी तो विज्ञान संचारकों को पढ़े लिखे अज्ञानियों से जूझना पढ़ रहा है -एक आप ही नहीं और भारत ही नहीं पूरे विश्व में वकीलों जजों इंजीनियरों शिक्षकों की एक बड़ी जमात वैज्ञानिक नजरिये से मरहूम हैं -यह हमारे लिए बड़ी चुनौती है ! वे शिक्षित होकर भी कट्टर हैं घोर अन्धविश्वासी हैं -करोड़ों सीधे सरल लोगों को तो फिर भी समझाना बहुत आसान है इन्हें समझा पाना टेढ़ी खीर है !<br />मैं यह मानता हूँ कि केवल मृत और मूर्ख अपने विचार नहीं बदलते -विज्ञान तो बदलते विचारों की ही एक प्रगति यात्रा है -अन्धविश्वासी और पुरातनपंथी अपने विचार नहीं बदलते -मैं तो हमेशा तैयार हूँ बशर्ते बात बुद्धि सम्मत ,बुद्धिगम्य और तर्कपूर्ण हो! और तक अपने आर्ष ग्रंथों ,वांग्मय की बात है उसमें जो सारभूत मुझे लगता है वह मेरे लिए प्रणम्य है -मैंने राम और कृष्ण पर कई पोस्ट और श्रिख्लायें की हैं -मगर उनमें कूप मंडूकता की दृष्टि को प्रोत्साहित कभी नहीं किया है !<br />आप और सुज्ञ जी जिस स्कूल को चला रहे हैं उसके बारे में कबीर पहले ही कह चुके हैं -<br /> जाका गुरु है आंधरा चेला निपट निरंध<br />अँधा अंधरे ठेलियो दोनों कूप परंत<br />अगर आप सचमुच एक सही दिशा पकड़ना चाहती हैं तो मैं साहित्य सुझा सकता हूँ ! मगर सुज्ञ जी का तो मामला लाईलाज है !<br />आप दोनों से न चाहते हुए भी ऐसी तरह से बात करने पर दुखी हूँ और क्षमापार्थी हूँ! अपनी ओर से प्रकरण समाप्त करता हूँ!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-88803410446767297292013-07-04T20:02:51.157+05:302013-07-04T20:02:51.157+05:30बिल्कुल कल के स्वप्न आज के हकीकत बन रहे हैं !क्य...बिल्कुल कल के स्वप्न आज के हकीकत बन रहे हैं !क्योकि प्रौद्योगिकी दिन दूनी रात चौगुनी बढ रही है! Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-42808196722021843102013-07-04T19:40:14.773+05:302013-07-04T19:40:14.773+05:30मेरी दो लम्बी टिप्पणियाँ गायब। स्पैम में हो तो कृप...मेरी दो लम्बी टिप्पणियाँ गायब। स्पैम में हो तो कृपया निकाल लें। न तो न सही। फिर से टाइप करने की पेशेंस नही है अब।Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-4778892072186954602013-07-04T19:34:51.981+05:302013-07-04T19:34:51.981+05:30आदरणीय प्रवीण जी
आभार आपके clear cut views को पूरी...आदरणीय प्रवीण जी<br />आभार आपके clear cut views को पूरी honesty से रखनेके लिए।<br />जैसे आप कहते हैं काले को काला और सफेद को अफेद कहना। आनेस्टी is always good। but silence is gold।<br /><br />सुबह एक लम्बी टिप्पणी लिखी पता नही कहां गयी।मोबाइल पर हूँ तो कॉपी पेस्टभी नइ कर पा रही।<br /><br />gist यह था कि मुझे आपके (या किसी भी और के) इश्वर को न मानने से कोई दिक्कत नही। <br /><br />मेरी प्रॉब्लम है करोड़ों लोगों के विश्वास का मखौल बनाने से। उनके मन में बसी प्रतिमाओं को खंडित करने को की गयी चोटों से, और उस चोट से उठते दर्द का मजाक उड़ा कर खुद को सुपीरियर मानने की प्रवृत्ति से। <br /><br />श्री राम या श्री कृष्ण को मिथक साबित करने के बारम्बार प्रयास क्यों??? बार बार इनमे विश्वास करने वालों को सार्वजनिक रूप से अपमानजनक शब्द क्यों? और यह कर कर खुद से इतनी सेल्फ satisfaction क्यों जैसे कोई किला फतह किया हो? इसके पीछे क्या है?<br /><br />और इतनी ही सच्चाई है तो यही वैज्ञानिक विरोध और मिथक आदि साबित करने के प्रयास कभी पैगम्बर जी आदि के लिए नही दीखते इन्ही वैज्ञानिक चिंतकों के । तो सत्यता भी धर्म निरपेक्ष क्यों नही? सारी वीरता हिन्दू मान्यताओं पर ही क्यों?Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-38651178612410553342013-07-04T17:14:53.325+05:302013-07-04T17:14:53.325+05:30प्रवीण जी,
उसी हक के उपयोग का आभार प्रदर्शन है… :...प्रवीण जी,<br /><br />उसी हक के उपयोग का आभार प्रदर्शन है… :) प्रायः लोग हक उठाना चुक जाते है, आपने उठा कर ओरों के लिए मार्ग प्रशस्त किया इसलिए… :) लिखा भी है न उस सोच के लिए…<br /><br />अरविन्द जी,<br /><br />यह धर्मयुद्ध नहीं है, मात्र शब्द युद्ध है और वो भी एक शब्द के लिए और उसके मनवांछित भावार्थ के लिए। यह बात अलग है कि लोग प्राय: एक शब्द उठाकर पहले धर्म पर आकृमण करते है, कोई शब्द चर्चा करे तो उसे धर्म का प्रतिआकृमण कहकर ऐसी शब्दार्थ चर्चा को धर्मयुद्ध संज्ञा देकर निरर्थक धर्म को बदनाम करने का कृत्य करते है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-81595192744518292172013-07-04T16:56:22.792+05:302013-07-04T16:56:22.792+05:30अब मैं क्या कारणों पर प्रकाश डालुं, आपने यथार्थ कह...अब मैं क्या कारणों पर प्रकाश डालुं, आपने यथार्थ कह ही दिया। तर्कशून्य होते ही पाखण्ड की तरफ पलायन के यही दो कारण है। लगता है पाखंड की सर्वव्यापकता, विशाल आय और बोलबाला देखकर लार पहले से ही टपक रही होगी, प्रकट रूप से ईमान तजने का कोई बहाना तो चाहिए ही चाहिए, चलो यही बहाना काफी है कि लोगों ने हमारे निष्कर्ष नहीं सुने। :) वाकई लालच बुरी बला है इसीलिए दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे में दूसरा कारण, साथ मिल जाय 'तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी खुजाउंगा'तो दिल बिल्लियों उछल कर आंतरिक जयकारे लगाता ही है। दिख रहा है न, यही कारण है। संशय को कोई स्थान नहीं… :)सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-59759514664511234392013-07-04T14:38:08.863+05:302013-07-04T14:38:08.863+05:30@सबसे पहले यह कि मिथक शब्द हिन्दी मूल का नहीं है ब...@सबसे पहले यह कि मिथक शब्द हिन्दी मूल का नहीं है बल्कि इसे अंग्रेजी के मिथ या माइथालोजी से गढ़ा गया है..... <br /><br />अर्थात हिन्दी अथवा हिन्दू सम्बंधित बातो को ये सपष्ट करने में पूरी तरह उपयुक्त शब्द हो ऐसा न होने की संभावनाए भी है! क्योकि अनुमानों के आधार पर इसके अर्थो के अनुमान लगाए जायेंगे!इसके अर्थो की कही भी किसी से भी तुलना की जायेगी!और जिसको जो अच्छा लगेगा वो वही मान लेगा!kunwarji'shttps://www.blogger.com/profile/03572872489845150206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-15701027436622813682013-07-04T11:13:01.723+05:302013-07-04T11:13:01.723+05:30:)
आदरणीय प्रवीण जी
अजी हम सब स्वतंत्र भारत देश क...:)<br />आदरणीय प्रवीण जी<br /><br />अजी हम सब स्वतंत्र भारत देश के स्वतंत्र नागरिक हैं। हर एक को वार्तालाप करने का पूर्ण अधिकार है। <br /><br />मैं बार बार अनेक जगह कहती रहती हूँ कि मेरा अध्ययन इतना नही है कि मैं निश्चित तौर पर इश्वर के अस्तित्व पर कुछ कह सकू। <br /><br />मेरा विरोध किसी के विश्वास / अविश्वास / आस्तिकता / नास्तिकता से कभी नही। मेरा विरोध रहता है दूसरों के विश्वासों को सार्वजनिक रूप से अनावश्यक ठेस पहुंचाने की प्रवृत्ति से है। यदि करोड़ों लोगों को राम और कृष्ण पर विश्वास है और यह विश्वास उनके जीवन के दुःख दर्दों पर एक पेन किलर की तरह काम कर उन्हें उनके दर्द से मुक्ति दिलाता है तो उस विश्वास को चोट पहुँचाने के प्रयास क्यों? <br /><br />शायद आप कहेंगे कि इस से कई नुक्सान हैं। होंगे। लेकिन बीमारी में दवाई जो दी जाती है वह यह देख कर कि इसके फायदे इसके नुकसानों से कितने अधिक हैं। और इश्वर पर विश्वास करने वाले कई बुराइयों से दूर रहने के प्रयास करते हैं कई अच्छाइयों को करने के भी। आप कहेंगे कि कई धार्मिक ऐसा नही करते। मैं कहूंगी कि वे धार्मिक हैं ही नही। वे इश्वर को मानते नही सिर्फ विश्वास का दिखावा करतेहाहै।<br /> Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-8354516443778955052013-07-04T10:45:12.659+05:302013-07-04T10:45:12.659+05:30.
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'पलायनवादी होना दुर्भाग्यपूर्ण'
....<br />.<br />.<br /><b>'पलायनवादी होना दुर्भाग्यपूर्ण' <br />'ईमान तजने की प्रकट घोषणा और पाखण्ड की शरण में जाने की बात दुखद'</b><br /><br />ऐसा क्यों हुआ या हो रहा है, इसके कारणों पर भी प्रकाश डालिये सुज्ञ जी... कहीं पाखंड की सर्वव्यापता, मुखरता, बोलबाला और तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी खुजाउंगा की तर्ज पर बारी बारी से एक दूसरे के जयकारे लगवाने की प्रवृत्ति तो कारण नहीं... :)<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-81701258689504586212013-07-04T10:38:38.922+05:302013-07-04T10:38:38.922+05:30.
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सिवाय अरविन्द जी से वार्तालाप के... इतना करन....<br />.<br />.<br />सिवाय अरविन्द जी से वार्तालाप के... इतना करने का तो हक हमें है ही कि नहीं ???<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-28174591135576602522013-07-04T10:37:10.149+05:302013-07-04T10:37:10.149+05:30.
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@ शिल्पा जी,
यह बिना वजह का आभार प्रदर्शन क....<br />.<br />.<br />@ शिल्पा जी,<br /><br />यह बिना वजह का आभार प्रदर्शन क्यों... हम तो किसी को भी कुछ नहीं कहे... :)<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-67170326075683884032013-07-04T10:16:56.057+05:302013-07-04T10:16:56.057+05:30आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ. वैसे मिथक ओर सत्...आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ. वैसे मिथक ओर सत्य तो एक दूसरे से पृथक ही रहे है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि आज का मिथक कल का सद्यः सत्य हो जाए विज्ञान के बूते. ओंकारनाथ मिश्र https://www.blogger.com/profile/11671991647226475135noreply@blogger.com