tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post2044810444522351923..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: जनप्रिय सरकारें और सरकारी मुलाजिम!Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-72286295489754147732011-05-29T18:53:37.740+05:302011-05-29T18:53:37.740+05:30मैं भी कह सकती हूँ कि विकास का जो चेहरा दिखा कर यह...मैं भी कह सकती हूँ कि विकास का जो चेहरा दिखा कर यहाँ की सरकार लोकप्रिय हो रही है जमीनी हकीकत कुछ और ही है .मैंने करीब से देखा है ..फिर भी ...आपसे सहमत हूँ ..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-65867929629538278102011-05-29T10:15:10.822+05:302011-05-29T10:15:10.822+05:30एक सरकारी अधिकारी इन मनःस्थितियों से गुजर रहा होता...एक सरकारी अधिकारी इन मनःस्थितियों से गुजर रहा होता है कोई सहज में कल्पना भी नहीं कर सकता.अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-87091576396928987532011-05-27T20:30:00.281+05:302011-05-27T20:30:00.281+05:30'अब तो यही लगता है जनप्रिय सरकारों की चाकरी के...'अब तो यही लगता है जनप्रिय सरकारों की चाकरी के बजाय जीविकोपार्जन का कोई और रास्ता चुना गया होता तो कम से कम अपनी निजी गरिमा को बचाए रखते हुए राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा में कुछ ईमानदार सहयोग तो दिया ही गया होता -यह पूरा जीवन ही जैसे व्यर्थ चला गया हो!'<br /><br />- इस हताशा के चलते समाजसेवा नहीं हो सकती |hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-73213877199458445022011-05-27T19:09:59.130+05:302011-05-27T19:09:59.130+05:30रावण की लंका में विभीषण की मन:स्थिति भी क्या ऐसी ह...रावण की लंका में विभीषण की मन:स्थिति भी क्या ऐसी ही रही होगी ?सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-22962791996479602792011-05-27T16:43:54.122+05:302011-05-27T16:43:54.122+05:30अभी कल-कत्ते की तो बात है- यदि यस मिनिस्टर नहीं कह...अभी कल-कत्ते की तो बात है- यदि यस मिनिस्टर नहीं कहेंगे तो सस्पेंड हो जाएंगे :) बाकिया तो सही है डॉक्टर साहब॥चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-17297469949271197742011-05-27T12:29:33.083+05:302011-05-27T12:29:33.083+05:30आभार इस जानकारी के लिये।आभार इस जानकारी के लिये।Darshan Lal Bawejahttps://www.blogger.com/profile/10949400799195504029noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-86008542842723747432011-05-27T06:55:42.200+05:302011-05-27T06:55:42.200+05:30@आशीष जी ,
यह शुरुआत उसी दिशा में है
@ज्ञानदत्त ज...@आशीष जी ,<br />यह शुरुआत उसी दिशा में है <br />@ज्ञानदत्त जी ,<br />सही कहते हैं ,कोई अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता ..<br />पर सूरते हाल तो बदले इस पर भी जरा चिंतन किया जाय <br />@प्रवीण पाण्डेय जी ,<br />क्या केंद्र की सरकारें इतनी ही दूध की धुली हैं -पिछले वर्षों के बड़े घोटाले कहाँ हुए हैं ? <br />@सत्यार्थी जी ,<br />हाँ है न मनरेगा में ६० फीसदी काम केवल मिट्टी का है जो अन्स्किल्ल्ड लेबर करते हैं ...<br />वह एक अनुत्पादक काम है <br />@गिरिजेश जी ,<br />मेरी पोस्ट के बीज मन्त्रों को रेखांकित करने का आभार <br />मेरी तो हालत बहुत पतली है -न मंत्रम न जंत्रं ....तदपि न जाने स्तुति महो ...न जाने मेरा क्या होगा ? <br />यह मन्त्र तो अच्छा है :) <br />@डॉ.अमर कुमार,<br />यहाँ तो आप असहमत नहीं दीख रहे ,,बाकी डॉ दराल का आह्वान आपने किया है ..वे जाने ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-8630606978548510672011-05-27T06:44:21.739+05:302011-05-27T06:44:21.739+05:30गिरिजेश उवाच :
आशियाने की बात करते हो
दिल जलाने क...गिरिजेश उवाच :<br />आशियाने की बात करते हो<br />दिल जलाने की बात करते हो।<br /><br />- विकास का कोई स्थायी मॉडल न होना<br />- भू जल स्तर का नित्य नीचे होते जाना<br />- एक ही साथ सूखा और बाढ़<br />- योग्यता का इस्तेमाल नहीं<br /><br />ऊपर की चारो समस्यायें अपने मूल रूप में वोट की या राजनीति की<br />सम्भावनायें नहीं रखतीं। इसलिये जनता और सरकार दोनों की इनके उन्मूलन<br />में कोई रुचि नहीं है। हाँ, इनसे उपजे हजारो एवेन्यूज में वोटक्रीड़ा की<br />अनंत सम्भावनायें थीं, हैं और रहेंगी। धनदोहन तो अपनी जगह है ही। जन का<br />बहुलांश नाली के कीड़ों जैसा ही है। इसलिये अधिक परेशान होने की आवश्यकता<br />नहीं। स्वर उठाते रहिये और अपनी सीमाओं में ही शुभ कर्म करते रहिये।<br /> भारत देश 33 करोड़ देवताओं, भगवान, पीर, औलिया, मौलिया और उतने ही<br />राक्षसों से भरा पड़ा है। यहाँ कुछ अच्छा घटेगा तो अवतारी मनुष्य़ के<br />हाथों ही। हाँ, उसके पहले महाविनाश भी होगा।<br />हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।<br />हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।<br />इस षोडस महामंत्र का नित्य 108 बार पारायण कीजिये। महादेव आप की तड़पती<br />आत्मा को शांति देंगे।Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-32066202362821022172011-05-27T06:30:22.467+05:302011-05-27T06:30:22.467+05:30@डॉ. दराल
डॉक्टर दराल सर, अब भारत गुलाम नहीं है......<i>@डॉ. दराल<br />डॉक्टर दराल सर, अब भारत गुलाम नहीं है... इसका सबसे बड़ा लाभ इन कर्मचारियों और नीति नियँता अफ़सरों को ही मिला ।<br />अन्यथा.. मुग़लों और अँग्रेज़ों के समय समझा जाता था..<br />नौकरी = नो + कॅरी<br />चाकरी = न चूँ करी, न चाकरी<br />इस निरँकुश शासनतँत्र में तो सरकारी नौकरी ईश्वर-प्रदत्त वरदान है, जो पिछले जन्मों के पुण्य-कर्मों से मिला है । अब तो ख़रीदा भी जाने लगा है.. क्या कहते हैं ?<br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-68778494093646080432011-05-26T22:16:46.496+05:302011-05-26T22:16:46.496+05:30पुख़्ता इँतज़ाम क्यों नहीं है, अरविन्द भाई ?
सूखे ने...<i>पुख़्ता इँतज़ाम क्यों नहीं है, अरविन्द भाई ?<br />सूखे ने निराश किया तो क्या, वह दिनों रात आपदा प्रबँधन की मीटिंगों में व्यस्त है ।<br />बाढ़ प्रबँधन से अधिक चिन्ता बाढ़ को लेकर धन आवँटन की है... केन्द्र से कितना वसूला जाये, <br />मित्रवत काँन्सटिट्यूएन्सी को कैसे चिन्हित किया जाये, कमज़ोर बँधों को मीडिया से दूर कैसे रखा जाये..<br />फ़ाइलें हैं, उनका काम सरकते रहना है... कर्मचारी भी यही फ़ॉलो कर रहे हैं, फाइल आयी, सरका दी ।<br />वडनेकर साहब से पूछ देखिये, सरकारी के उद्गम में सरका-दी का ही भाव है ।<br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-57665217427602997362011-05-26T21:56:32.989+05:302011-05-26T21:56:32.989+05:30दफ्तर में नौकरी , घर में चाकरी ।
यूँ बिताता है जी...दफ्तर में नौकरी , घर में चाकरी । <br />यूँ बिताता है जीवन नौकर सरकारी ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-63563084241813628252011-05-26T21:36:10.374+05:302011-05-26T21:36:10.374+05:30और हमें लग रहा था कि सरकारी नौकरी में होते तो शायद...और हमें लग रहा था कि सरकारी नौकरी में होते तो शायद कुछ कर पाते !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-48619487542360345142011-05-26T18:58:15.500+05:302011-05-26T18:58:15.500+05:30विकासशील देशों में ये मुद्दे बहुत बड़े होते हैं. व...विकासशील देशों में ये मुद्दे बहुत बड़े होते हैं. विकास के साथ-साथ ये सब बातें अपने आप गौण होने लगती हैंKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-76020618932918407102011-05-26T17:48:31.437+05:302011-05-26T17:48:31.437+05:30@ अली सा ,
यह शुभकामनायें अरविन्द भाई को है, बुरी...@ अली सा ,<br />यह शुभकामनायें अरविन्द भाई को है, बुरी नज़रों से बचाने के लिए !<br />:-)Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-1264300697255151012011-05-26T16:24:09.122+05:302011-05-26T16:24:09.122+05:30भूल सुधार:- 'वातोराने' को 'बटोरने'...भूल सुधार:- 'वातोराने' को 'बटोरने' पढ़ें ..Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-33843294768726759572011-05-26T16:22:57.367+05:302011-05-26T16:22:57.367+05:30इस पोस्ट को पढते हुए ऐसा भास हो रहा है जैसे सारे स...इस पोस्ट को पढते हुए ऐसा भास हो रहा है जैसे सारे सरकारी मुलाजिम वास्तव में ईमानदार हैं पर सरकार के दबाव में बेचारे गलत काम करने को मजबूर हैं... अगर जमीनी स्तर पर देखें तो जनता का सबसे ज्यादा दोहन ये मुलाजिम ही कर रहे हैं.. और अगर यह मुलाजिम चाहें तो वोट वातोराने के लिए बनी योजनाओं को भी जनता के हित में कार्यान्वित कर सकते हैं... योजना में ऐसा कोई नियम नहीं होगा कि 'मिट्टी के टेम्पररी काम' ही करवाए जाएँ.. पर लूटने के चक्कर में.....Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-58052150082830314622011-05-26T16:05:02.484+05:302011-05-26T16:05:02.484+05:30ये सरकारी महकमें ही अगर सुधर जाएँ तो ९०% समस्याएं ...ये सरकारी महकमें ही अगर सुधर जाएँ तो ९०% समस्याएं खत्म हो जाएँगी भारत की.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-79534096884517699252011-05-26T14:44:24.115+05:302011-05-26T14:44:24.115+05:30राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों से उनके कार्य को छो...राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों से उनके कार्य को छोड़ सब करवा लेती हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-45754825326026664372011-05-26T14:32:33.946+05:302011-05-26T14:32:33.946+05:30sundar post.....
ali sa ke vichar post ke prishtb...sundar post.....<br /><br />ali sa ke vichar post ke prishtbhoomi<br />me ana uchit tha....<br /><br />saath hi gyan da ke vichar is chintan ko manthan karne ke liye prerit kar raha hai.........<br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-47216621068842251822011-05-26T13:06:49.735+05:302011-05-26T13:06:49.735+05:30राजनीति अगर हावी हो गयी है तो उसके लिये ये जनता और...<b>राजनीति अगर हावी हो गयी है </b>तो उसके लिये ये जनता और ये मुलाजिम अपनी जिम्मेदारी से मात्र कोसने के आधार पर बच नहीं सकते! :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-13707902748911972362011-05-26T12:17:37.011+05:302011-05-26T12:17:37.011+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-5553736840709509102011-05-26T12:17:36.083+05:302011-05-26T12:17:36.083+05:30@ अरविन्द जी ,
अगर जनगण राजनैतिक चेतना समृद्ध / सम...@ अरविन्द जी ,<br />अगर जनगण राजनैतिक चेतना समृद्ध / समाजीकृत हों , तो राजनेताओं की इस तरह की चुहलबाजियों और इस ब्रांड के राजनेताओं का कोई नाम लेवा ना रहे ! <br />कथित विकास की ये अल्पकालिक जादूगरियां /जनकल्याण के नाम की टोटकेबाज़ियां आखिर को किसे फायदा पहुँचाती हैं ? <br />आपके आलेख में 'जनप्रिय सरकारों' के नेताओं की जी हुजूरी में लगे होने के नाम पर बड़े नौकरशाहों बख्श दिया गया जैसा लगता है , जबकि बड़े राजनेता और बड़े नौकरशाह और बड़े उद्योगपतियों की तिकड़ी निज हित में देश के संसाधनों का सबसे ज़्यादा दोहन कर रही है इसके बरअक्स छुटभैय्ये नेता और निचले क्रम की नौकरशाही तथा मंझोले पूंजीपतियों का समेकित गिरोह आदमखोर शेर की निगाहों के नीचे बचे खुचे माल को साफ करता रहता है ! आशय ये कि कथित रूप से अनुत्पादक कार्यों में लगा तबका भी अपने 'जुगाड' कर ही लेता है ऐसे में पीड़ित पक्ष तो केवल जनगण ही हुआ ना ? और वो भी अपनी राजनैतिक 'नासमझ' के चलते ! <br /><br />आपके आलेख में उल्लिखित चिंताओं,खासकर विकास योजनाओं की लघुकालिकता बनाम दीर्घकालिकता,से सहमत हूँ ! <br /><br />@ सतीश भाई ,<br />आपने शुभकामनायें किसे दीं ? अरविन्द जी को या जनप्रिय सरकारों को ? :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-75994485429948325822011-05-26T11:46:44.947+05:302011-05-26T11:46:44.947+05:30बढ़िया है गुरु ...
हम तो आपके लिए यही बोलेंगे कि.....बढ़िया है गुरु ...<br />हम तो आपके लिए यही बोलेंगे कि...<br /><br />"बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला"<br /><br />शुभकामनायेंSatish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-86835833997531137632011-05-26T10:29:14.704+05:302011-05-26T10:29:14.704+05:30अरविंद जी,
"यह पूरा जीवन ही जैसे व्यर्थ चला ग...अरविंद जी,<br /><i>"यह पूरा जीवन ही जैसे व्यर्थ चला गया हो!"</i><br /><br />छोटे मुंह बड़ी बात कह रहा हूं लेकिन देर कभी नही होती है।Ashish Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02400609284791502799noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-1439636704284513552011-05-26T10:22:18.218+05:302011-05-26T10:22:18.218+05:30समाज को बड़ी चालाकी से धर्म और जाति में बांट दिया ...समाज को बड़ी चालाकी से धर्म और जाति में बांट दिया गया। अब जनप्रिय सरकारें जानती हैं कि वोट कैसे मिलना है और कौन देगा फिर वे ऐसी नीतियां ही लागू की जायेंगी न जिनसे उनका वोट बैंक मजबूत हो। इनके स्वार्थ का खामियाजा मुलाजिमों को तो भुगतना ही है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com