tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post1346592527416568012..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: एको रसः करुण एव -क्या सचमुच ?Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-89655523401436318162009-11-11T10:19:22.030+05:302009-11-11T10:19:22.030+05:30ओह, इधर खासा व्यस्त/अव्यवस्थित रहा; आपकी श्रृंगार ...ओह, इधर खासा व्यस्त/अव्यवस्थित रहा; आपकी श्रृंगार वाली सीरीज कब शुरू हो गयी जान नहीं सका...<br /><br />"करुणा में जब हम कलप रहे होते हैं..तो मन-ह्रदय के भीतर किसी मधुर पल की स्मृतियाँ ही तो हिलोर मार रही होती हैं...पर करुणा में हम सघन रूप से प्रवृत्त होते हैं, अभाव, भाव से ज्यादा खटकता है ना इसलिए...सो करुणा की महिमा ज्यादा हुई...वैसे सृजन की गुंजायश तो हर स्पंदन में होती है..."<br /><br />"...हम अभी-अभी जवान हो रहे लोगों के लिए तो बेहद जरूरी/अच्छी चर्चा चलायी,, महामना ने....":)Dr. Shreesh K. Pathakhttps://www.blogger.com/profile/09759596547813012220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53638850169981300752009-11-08T20:10:33.179+05:302009-11-08T20:10:33.179+05:30पछता रहा हूँ कि नौकरी की व्यस्तता और कम्प्यूटर जी ...पछता रहा हूँ कि नौकरी की व्यस्तता और कम्प्यूटर जी की बीमारी के कारण इस अद्भुत श्रृंखला की शुरुआती कड़ी तक आज ही पहुँच पाया।<br /><br />यह बहुत बढ़िया काम हो रहा है। साधुवाद।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-80893981077710391092009-11-07T13:00:54.036+05:302009-11-07T13:00:54.036+05:30अपनी तमाम इधर-उधर की व्यस्तताओं में इस अद्भुत श्र...अपनी तमाम इधर-उधर की व्यस्तताओं में इस अद्भुत श्रंखला की शुरूआत छुटी रह गयी थी।<br />छैल बिहारी जी का राकेश गुप्त वाला परिचय मेरे लिये किसी रहस्योद्घाटन से कम न था...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-6331539820638129712009-11-05T06:47:37.437+05:302009-11-05T06:47:37.437+05:30मुक्ति जी ,
जैसा मैंने कहा न आप विषय की मर्मग्य है...मुक्ति जी ,<br />जैसा मैंने कहा न आप विषय की मर्मग्य है अतः इस श्रृंखला के निर्विघ्न निर्वाह में अब आपका योगदान भी निवेदित है !<br />डॉ .छैलबिहारी लाल ने अपना एक और नाम अकादमीय संदर्भों के लिए रख लिया था -डॉ राकेश गुप्त .और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी के पहले डी लिट हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-13331327227199855472009-11-05T00:01:57.640+05:302009-11-05T00:01:57.640+05:30अरविन्द जी,
संस्कृत साहित्य में श्रृंगार ही रसराज ...अरविन्द जी,<br />संस्कृत साहित्य में श्रृंगार ही रसराज माना गया है और कुछ श्रृंगारप्रेमियों ने तो "उत्तररामचरितम्" के करुणरस को भी वियोग श्रृंगार सिद्ध करने का निरर्थक प्रयास भी किया है. आपने सही कहा है करुणरस तो जीवन की चिरन्तन धारा का एक कभी न समाप्त होने वाला भाव है. दुःखों से भरे इस जीवन में संयोग श्रृंगार कुछ राहत प्रदान करता है और वियोग श्रृंगार तो करुण के समान ही दुःख से भरा है, परन्तु मिलन की आशा के साथ.<br />आपके लेख से डॉ. छैलबिहारी लाल के विषय में पता चला. आपका संस्मरण अत्यधिक रुचिकर लगा.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-53175042248054418592009-11-03T17:14:14.274+05:302009-11-03T17:14:14.274+05:30मेरा एक सुझाव है यदि आप अपने ब्लाग के किसी कोने मे...मेरा एक सुझाव है यदि आप अपने ब्लाग के किसी कोने में इन शब्दों जैसे परकीया स्वकीय प्रोशित्पेतिका आदि का शब्दार्थ भी देते चले तो लेखमाला को समझाने में साथ साथ आसानी होगी और शब्दों के अर्थ के लिए ही पुराने लेखो को देखना नहीं पड़ेगाarun prakashhttps://www.blogger.com/profile/11575067283732765247noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-18586712113198871812009-11-03T16:55:40.566+05:302009-11-03T16:55:40.566+05:30चलिए इसी बहाने आपने अपने गुरु छैल बिहारी लाल जी का...चलिए इसी बहाने आपने अपने गुरु छैल बिहारी लाल जी का परिचय भी करा दिया गुरु जी का स्मरण कर लिख मारिये रही बात रस की तो मधुर यानि मोहक मीठे रस का( बशर्ते डायबिटीज से आपकी इन्द्रियां शिथिल न हो गयी हो) ही बोल बाला है सो श्रृंगार से प्रारंभ करे करुणा रस वाले वैसे भी करुणा के पात्र हैंarun prakashhttps://www.blogger.com/profile/11575067283732765247noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-66641097506419342712009-11-03T12:04:36.821+05:302009-11-03T12:04:36.821+05:30जनता को इंतजार रहेगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secr...जनता को इंतजार रहेगा।<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">-Zakir Ali ‘Rajnish’</a> <br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">{ Secretary-TSALIIM </a><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">& SBAI }</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-25657082765097736872009-11-03T08:05:00.019+05:302009-11-03T08:05:00.019+05:30यह पढ़कर तो एक काव्य रसधार बह चली भाई...बुधवारीय पो...यह पढ़कर तो एक काव्य रसधार बह चली भाई...बुधवारीय पोस्ट ऑफ समीर लाल का इन्तजार करिये...आपसे प्रेरणा प्राप्त है. यहाँ इसलिए नहीं ठेल रहा हूँ कि इल्जाम आप पर न जाये. आप तो मेरे अपने हो...वक्त के मुताबिक नहीं..हमेशा...मुद्दों से अलग भी तो दुनिया है न!! मुद्दा बेस सबंध हमारी पहचान नहीं. :) वो तो आज है और कल कहना पड़े कि उनकी क्या कहें!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-10243224250783203422009-11-03T00:06:59.411+05:302009-11-03T00:06:59.411+05:30श्रेष्ठता तो यहाँ रिलेटिव टर्म हुआ ! किसी के लिए श...श्रेष्ठता तो यहाँ रिलेटिव टर्म हुआ ! किसी के लिए श्रृंगार तो किसी के लिए करुण. रिलेटिव इसीलिए कह रहा हूँ कि क्या ऐसे व्यक्ति नहीं होंगे जिनके लिए वीरान वेदना इतनी मारक होगी कि वो श्रृंगार जीवन में कभी सोच ही ना पाते हों? या फिर श्रृंगार वाले क्या समझे वेदना. दोनों अपनी जगह सही हैं :) और आपकी अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा ये कहने की आवश्यकता नहीं.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-28097439593399223002009-11-02T21:04:40.250+05:302009-11-02T21:04:40.250+05:30जो जस चाहे - किसी के हाथ श्रृंगार शतक आता है, किसी...जो जस चाहे - किसी के हाथ श्रृंगार शतक आता है, किसी के नीति और किसी के वैराज्ञ शतक! :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-56038980030584894522009-11-02T18:21:01.668+05:302009-11-02T18:21:01.668+05:30आपके इस संस्मरण ने काफी प्रभावित किया. पुस्तक जरुर...आपके इस संस्मरण ने काफी प्रभावित किया. पुस्तक जरुर साझी करें.अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-32131547232384948512009-11-02T04:21:14.642+05:302009-11-02T04:21:14.642+05:30श्रृंगार रस प्रभावित जरुर करता है ..करूणा गहरे पैठ...श्रृंगार रस प्रभावित जरुर करता है ..करूणा गहरे पैठती है ...जैस ऑंखें सिर्फ देखती हैं ...दिल महसूस करता है ...माना जाता रहा है की बेहतर रचनाये दुःख और करुणा से ही उपजती हैं ...मगर श्रृंगार की महत्ता को भी गौण नहीं रखा जा सकता ...आप जरुर साझा करें ...!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-39933698268293377332009-11-02T01:18:22.043+05:302009-11-02T01:18:22.043+05:30बहुत सुंदर लगा आप का यह संस्मरण.अदभुत... धन्यवादबहुत सुंदर लगा आप का यह संस्मरण.अदभुत... धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-18623304673888089942009-11-01T23:16:32.209+05:302009-11-01T23:16:32.209+05:30अभी कुछ दिनों पहले ही भर्तहरी के श्रृंगार शतक से ग...अभी कुछ दिनों पहले ही भर्तहरी के श्रृंगार शतक से गुजरा हूं, उसे ना भूल जाइएगा। बाबू हरिदास वैद्य की टीका थी, आपके पास होगी ही।<br /><br />यह भी सही कहा कि करुणा भी कोई रस है, और हो भी तो मूक स्त्रियों को मुबारक, जिन्हें इस अप्रतिम सौंदर्य से भरपूर दुनिया में रोना धोना ज्यादा सूझता है। पता नहीं क्या समस्या है उन्हें, जबकि उनके सौंदर्य के पान हेतु उनके उपासक उनके चरणों में लोटने को तत्पर रहते हैं।<br /><br />यह श्रृंखला अगली बार से शुरू कर रहे ही हैं आप। शुभकामनाएं।<br /><br />समय के कुछ मित्रों को श्रृंगार लेखन की बहुत तलाश थी, उनको आपका लिंक भेज रहा हूं। आशा है निराश नहीं ही करेंगे उन्हें आप।<br /><br />बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व हैं आप। आज की चर्चा से यह बखूबी जाहिर हो पाया है। अच्छा लगा यह जानकर कि आप कहानिया भी लिखते हैं। अगर यह नाचीज़ उनसे गुजरना चाहे, तो बताएं यह कैसे संभव हो सकता है।<br /><br />शुक्रिया।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06584814007064648359noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-36194684048130984482009-11-01T22:16:28.329+05:302009-11-01T22:16:28.329+05:30आपका विचरोत्तेजक लेख पढ़ा |
छोटे मुंह बरी बात होगी ...आपका विचरोत्तेजक लेख पढ़ा |<br />छोटे मुंह बरी बात होगी तो<br /> माफ़ी चाहता हूं | जहाँ तक <br />मुझे समझ में आ रहा है, <br />श्रृंगार की तुलना में करुण रस <br />की उच्चता एक व्यापक <br />दृष्टिकोण में कही गयी बात है,<br />जिसकी ओर संकेत आ. राम <br />चन्द्र शुक्ल ने अपने निबंधों <br />में किया है | करुण रस में <br />पालन और रंजन दोनों वृत्तियाँ <br />हैं | <br /> आपका लेख अच्छा<br />लगा | प्रसन्नता हुई |<br />बहस रुची |<br /> धन्यवाद्...Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-11269855369009794042009-11-01T19:10:08.606+05:302009-11-01T19:10:08.606+05:30बढ़िया यादगार पलो से सराबोर संस्मरण ...आभारबढ़िया यादगार पलो से सराबोर संस्मरण ...आभारसमयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-11013296667608729602009-11-01T18:28:10.167+05:302009-11-01T18:28:10.167+05:30अच्छा sansmaran है और ये बात सच है ऐसे sansmarn पढ...अच्छा sansmaran है और ये बात सच है ऐसे sansmarn पढ़ कर बहुत अच्छा लगता है .............दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-2530298133153805822009-11-01T14:11:45.918+05:302009-11-01T14:11:45.918+05:30बेहतरीन चर्चा...बेहतरीन चर्चा...IMAGE PHOTOGRAPHYhttps://www.blogger.com/profile/07648170539684419518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-19452322857215977662009-11-01T12:44:39.999+05:302009-11-01T12:44:39.999+05:30आर्य,
श्रृंगार तो सृष्टि राग है, सब कुछ नाच रहा है...आर्य,<br />श्रृंगार तो सृष्टि राग है, सब कुछ नाच रहा है उसके स्वरों पर ! <br />भारतीय मानस ने इसे बहुत गहनता से समझा। इतना अधिक समझा कि पूरा तंत्र ही विकसित कर दिया। मन्दिरों पर मिथुन मनुष्य और पशु प्रतिमाएँ क्या दर्शाती हैं ?<br /> अस्तित्त्व को विलीन कर देने की उत्कंठा श्रृंगार में व्यक्त होती है। मनुष्य की चरम चाह तो मुक्ति है और विलीन होना सम्भवत: उस दिशा में प्रथम कदम। <br />लेखमाला प्रारम्भ करिए - अब कालिदास की परम्परा से आती है या वात्स्यायन से या आचार्य रजनीश से या एकदम नूतन ! यह तो समय बताएगा। लेकिन जो होगा वह सुन्दर ही होगा, यह विश्वास है।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-361071078707687602009-11-01T12:18:34.390+05:302009-11-01T12:18:34.390+05:30सुंदर संस्मरण. ज्ञान साझा करने से जीवित रहता है , ...सुंदर संस्मरण. ज्ञान साझा करने से जीवित रहता है , सो बताइये, कौन कौन हैं ये नायिकायें.पंकजhttps://www.blogger.com/profile/05230648047026512339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-27325966634886325882009-11-01T12:13:28.169+05:302009-11-01T12:13:28.169+05:30वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान। कवि की...वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान। कवि की बात मुझे सत्य प्रतीत होती है। अक्सर जब हम पीड़ित होते हैं, मन अथाह वेदना से कम्पायमान हो रहा होता है तब मन करता है कि कलम कुछ बोले। आपने श्रृंगार की बात की, वह भी सत्य है लेकिन ऐसे पलों में उस सौंदर्य को भोगने का ही मन करता है। अब करुण रस होना चाहिए या नहीं यह तो आप लोगों का विषय है लेकिन अनुभव में ऐसा आता है कि जब करुणा उपजती है तब स्याही के रंग ही उसे रास्ता दिखाते हैं।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-84129511777522105982009-11-01T11:34:04.831+05:302009-11-01T11:34:04.831+05:30bahut achchi lagi yeh charcha....
dhanyawaad........bahut achchi lagi yeh charcha....<br /><br />dhanyawaad........डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-149539198267796152009-11-01T11:33:37.041+05:302009-11-01T11:33:37.041+05:30प्रश्न है, श्रेष्ठ क्या है? उत्तर मिलता है -सत्यम्...प्रश्न है, श्रेष्ठ क्या है? उत्तर मिलता है -सत्यम् शिवम् सुंदरम्!<br />लेकिन जब समझना चाहें, जानना चाहेँ तो बात सुंदरम् से आरंभ होती है। सुंदरता आकर्षण की प्रथम सीढ़ी है। वहीं से सब कुछ आरंभ होता है। किसी नवजात शिशु को देखते ही सब से पहली प्रतिक्रिया उस के सौन्दर्य से आरंभ होती है। विवाह के लिए किसी वर या वधु का चुनाव करना हो तो बाद उस के सौन्दर्य से आरंभ होगी। शिव और सत्य से साक्षात्कार बहुत बाद में होगा। <br />विज्ञान की दृष्टि से देखें तो प्रकृति ने प्रत्येक जीवधारी को सतत जीवन बनाने के लिए आवश्यक सौन्दर्य दिया है। एक ही स्थान पर अपने वृन्त से जुड़े फूलों को इतना आकर्षक और गंधपूर्ण बनाया है कि वे कीटों को आकर्षित कर सकें जिस से निषेचन की क्रिया हो कर जीवन आगे बढ़ सके। <br />आप पुस्तक को सांझा कीजिए। ज्ञान तो ज्ञान है। जीवन आगे बढ़ाइए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com