बुधवार, 28 जुलाई 2010

पूर्वांचल के पॉँच सितारा व्यंजन -शिवकुमार जी की फरमाईश पर!

पहले ही  मुआफी  मांग  लूं  यह पोस्ट कौनू तैयारी  के साथ नहीं लिख रहा हूँ -यी त अपने शिव भैया आज आके टोक दिए कि बार बार दरवज्जे पर आकर लौट जा रहे हैं और हमरा  दीदार ऊ कर नहीं पा रहे हैं  लिहाजा ई पोस्ट उनही के समर्पित  कर रहे हैं -नामालूम काहें शिव भैया को देख के बाहुत माख आ जाती है -अपने जार जवार क मनई कलकत्ता में जाके कहाँ फंस गए  हैं  -पूर्वांचल के विरह साहित्य में कलकत्ता प्रवास का बड़ा भारी जिकर है ...लेकिन यी बात नहीं है आज की पोस्ट लिखै के खातिर ...हम आज शिव भइया के कुछ पूर्वांचल का याद दिलाई चाहत हैं -ई हमें नइखे पता कि शिव भइया खाई पियई के शौक़ीन हैं या नाही मगर हम उन्हें आज  पूर्वांचल के कुछ पांच सितारा व्यंजनों की याद दिला कर गृह विरही बनाये बिना नहीं छोड़ेगें ..

हमारे  पूर्वांचल में एक से एक ऐसे व्यंजन हजारो नहीं तो सैकड़ों सालों से बनते आ रहे हैं जो किसी का भी दिल जीत लेने की खूबी रखते हैं ...मतलब पेट से दिल के रास्ते का रोडमैप यहाँ बहुत पहले ही तैयार हो चुका था ...इन दिनों गाँव से माता जी पधारी हुई हैं सो हम अतीतजीवी होने का सुख भोग रहे हैं ...रोज कुछ न कुछ पुराने जमाने के कम खर्च बालानशी व्यंजन का लुत्फ़ उठा रहे हैं ...वैसे इनके पाक शास्त्र में टिटिम्मा (जहमत ) कम नहीं है और इसलिए रसोईं घर संभालने वालों की नई पीढियां इन्हें बाय बाय कहती जा रही हैं ...मगर मुझे पक्का लगता है कि इनका वैल्यू एडीशन करके अगर पॉँच सितारा होटलों में उतार दिया जाय तो कई अंतर महाद्वीपीय व्यंजन सी सी कर पानी मांग उठेगें .इस बीच इधर खाए गए कुछ व्यंजन का ब्यौरा दे रहा हूँ -अगर आप पूर्वांचल के भाई हैं तो अपने व्यंजनों के नाम इसमें जरूर जोड दीजियेगा ..

पहले तो सगपईता जो अरहर/उरद  की दाल में अरवी की पत्ती,करेमुआ का साग आदि एक साथ पका कर हींग ,लहसुन, मर्चा का तड़का देकर बनाते हैं ..कहते हैं इसमें देशी घी मिलाकर खाने पर सीधे स्वर्ग का द्वार दिख जाता है ....( वहां जाने की नौबत ही नहीं पड़ती ....यह मतलब  है इसका ) ..इसी तरह का दूसरा प्रेपेरेशन है ...नकदावा या लगदावा जिसमें कटहल के टुकड़ों या लौकी/ .कुम्हड़ा के टुकड़े डालकर, कोहडौरी (मसाला चंक्स ) की छौंक के साथ बनाते हैं ...यह भी यम यम .....और एक व्यंजन है रिकवच जिसमें अरवी की पत्ती को उर्द की दालों के साथ तेल में फ्राई करके चंक्स तैयार करते हैं फिर पकौड़े /सगौडे के नाम से मिलने वाले चाट जैसा  सूप तैयार करके उसमें डाल कर परोसते हैं -सचमुच क्या स्वाद है!बथुआ का साग एक और आकर्षण है मगर यह जाड़े  में शुरू होगा -यहाँ मक्के की रोटी और बथुए के साग जिसमें सरसों का तेल मिला हो का खूब प्रचलन है ...एक बनता है दाल का दूल्हा -सामान्य दाल में आंटे के विभिन्न आकार की डिजाईनों में छोटे छोटे टुकडे पकाए जाते हैं ....बच्चे इन पर लहालोट हो जाते  हैं. और एक चावल या मक्के के  आटे के मिश्रण की लोई बनाकर  उसमें मसालेदार पीठी -उड़दऔर चना  की दाल का पेस्ट स्टफ किया जाता है -इधर गोइंठा/फरा  बोलते हैं -इसके छोटे छोटे स्लाईस तलकर खाने पर बैकुंठ की प्राप्ति यहीं धरती पर ही हो जाती है ऐसा भोजन पंडित लोग कहते आये हैं ....

काश इनमें से किसी का चित्र हम लगा पाते -इसलिए ही कहा न कि यह पोस्ट  तैयारी   के साथ नहीं लिख पाया -बस यारी  में  शुरू हो गए ...और हाँ एक बात और कहे देते हैं -मैंने महज कुछ पूर्वांचल के व्यंजनों का मात्र परिचयात्मक विवरण ही यहाँ दिया है ..रेसिपी /पाक विधि नहीं बतायी है -इसलिए इसे अपने रिस्क पर ही ट्राई करें ...या फिर इंतजार करें अगली किसी पोस्ट का या किसी ख़ास व्यंजन में इंटेरेस्ट हो तो बतायें माता जी से रेसिपी पूछ कर मेल कर देगें ....

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

अपनी धाँसू प्रोफाईल कैसे बनाएं-कुछ उपयोगी टिप्स!

यह व्यावसायिकता और सेलैबिलिटी का ज़माना है -खुद को जितना बेंच सको तो बेंच! सब कुछ, ईमान उमान भी बेंच बांच कर खुद की पोजीशन बुलंद करो नहीं तो मूषक स्पर्धा में पीछे रह जाओगे -कलयुग का यही उद्घोष वाक्य है. इस उदघोषणा के पालनहार ब्लॉगजगत में भी है -जरा अपनी चिमिरघी  प्रोफाईल देखिये और उनकी देखिये ,कैसी फ्लोरिसेंट साईनबोर्ड  सी चमक रही है .-भाई जांन  ने फलाना युनिवेर्सिटी से तोप डिग्री ली ,यहाँ वहां गए और अब ब्लॉग जगत की रौनक में अकिंचन भाव से योगदान देने चले आये हैं .फलाने /फलानी ब्लॉगर नाग नागिन की केचुली की तरह अपना ब्लॉग प्रोफाईल बदलते /बदलती ही रहती हैं -कहते हैं नाग नागिनो का प्रोफाईल रूपी केंचुली बदलने के बाद  उनका वजूद नेमेसिस (प्रतिशोध सुन्दरी ) वाला हो जाता है- सम्मोहक विषैला घातक सौन्दर्य -नए ब्लॉगर बिचारे इस जहरीली सम्मोहकता की बालि  क्यूं न चढ़  जाएँ! 

इन्ही  भाव -विभावों में इन दिनों मुब्तिला ही था कि अपने एक  निरीह पंडित टाईप पुराने मित्र ब्लॉगर ने मुझसे गुहार लगाई -मित्र ,मुझे अपनी भी प्रोफाईल उन जैसी धाँसू फांसू बनानी है -उन्होंने  मुझसे मदद करो संतोषी माँ जैसी ही  गुहार लगाई -यह कुछ कुछ आर्तनाद जैसा लगा -कारण हसीनाओं की तो छोडिये अपने नाईस वाले भी अब  उनकी पोस्टों पर टिप्पणी देने से कतरा जा रहे हैं -कारण ? वही मुआ प्रोफाईल ! अब सहा नहीं जाता -फैसला आखिर उन्होंने ले ही लिया -अब बदल डालूँगा ,प्रोफाईल बदल डालूँगा ...लिहाजा मुझसे मुखातिब हुए ..मैंने फौरी जवाब दिया भाई जांन गलत आदमी से आपने राय मांग ली ...यह बंदा तो अपने एक ब्लॉग पर कोअहम कोअहम की रट लगाये हुए है ...इससे तो उम्मीद ही बेकार है -फलां फलां के ब्लॉग पर चले जाओ और देखो कि कितना धाँसू प्रोफाईल है -सारी ट्रैफिक उधर ही भागी जा रही है ,आबाल वृद्ध बालाएं सभी तो ..वही तो....... वही तो ....मित्र सचमुच यह प्रोफाईल युग है -हम तो बहुत पीछे छूट गए हैं -मैंने उन्हें कुछ टिप्स दिए और अब वे अपनी नई प्रोफाईल बनाए में जुटे हुए हैं मगर मुझे अब भी  डिस्टर्ब किये हुए हैं- बार बार ऐसा तैसा सवाल पूछ रहे हैं ...यह कैसा रहेगा वह कैसा रहेगा -यह भी डाल दूं ,वह भी डाल दूं -आखिर यह नहीं लिखूंगा तो ब्लॉग सौन्दर्य से वंचित ही रह जाऊंगा आदि अनादि सवाल दर सवाल ...उफ़ कैसी तृष्णा है यह ,कैसा नारद मोह  ?

आईये कुछ टिप्स आपसे भी साझा करुँ जो वे अपनी प्रोफाईल उन्नयनीकरण में समाहित कर चुके हैं ...और हाँ बीच में टोका टोकी नहीं, जैसा कि मेरे मित्र हर नए प्रोफाईल आइटम पर चौक कर कह कह पड़ते थे -यह गलत होगा वह गलत होगा -मैंने तो एक बार उन्हें झिड़क ही दिया था -जाईये तब ऐसे ही टिप्पणी विहीन यह कलि काल काट दीजिये मुझसे क्यूं मदद लेने आये हैं -अब एक तो 'जे न मित्र  दुःख होई दुखारी'  जैसी चेतावनी से डरकर मैं आपकी मदद  कर रहा हूँ और आप बे -फालतू टोका टोकी कर रहे हैं -अब एक शब्द भी नहीं -अपने लिए थोड़े ही बना  रहा हूँ ,यह आपके लिए ही है भाई जांन -बहरहाल आँखों में एक गहरे कृतज्ञता बोध लिए वे खामोश हो लिए ...और मैं शुरू हो गया -

पहले तो लिखिए -मैं एक स्मार्ट ,हैंडसम ...कालेज का कैसानोवा ...(वे कुछ तेजी से कहने का उपक्रम किये मैंने डांट कर बैठाया) ..बस तफरीह के लिए यहाँ आया हूँ ...मेरा आलीशान बंगला फला फला शहर में है ....खुदा के फजल से बाप दादा इतना छोड गए हैं मगर क्या करुँ अब तो लगता है यह ऐशो आराम ,धन दौलत साझा करने वाला कोई मिलेगा ही नहीं -तलाश जारी है ..मीत न मिला रे  मन का (भाई साहब यह सब थोडा लम्बा नहीं हो जाएगा? -मैंने डांटा ,इस समय लम्बी प्रोफाईलों का ही चलन है घोंचू राम! ) हाँ ,अब आगे ...अकादमीय उपलब्धियों की चर्चा -मैंने वैकानटिन यूनिवर्सिटी से पी एच डी की है (यह कहाँ है ,अबे घोंचू इतनी बड़ी दुनिया है कहीं न कहीं तो होगा ही ,तुम चुप नहीं बैठोगे ? ) ...एक किताब 'पीपिंग इनटू ब्लैक होल्स ' आस्ट्रिच प्रकाशन  से छप चुकी है (लेकिन ......चुप बैठो यार ) ....२००७  में नाम नोबेल सम्मान के लिए नामित किया गया ....शान्ति और सौहार्द के लिए (मगर ....शश्श्श ! यह कोई बड़ी बात नहीं है ,नामित ही तो किया गया है ?) ...इन दिनों अन्तरराष्ट्रीय  विश्व बंधुत्व सोसायटी का अध्यक्ष हूँ जिसका हेड क्वार्टर जकार्ता में है (जेनेवा में या? ..अब छोडो भी  जेनेवा में तो कई हैं एक जकार्ता में कर दोगे तो तुमारे  बाप का क्या जायेगा और जकार्ता भी तुम्हारा मुरीद बन जाएगा! ) देखो मैं तुम्हारी ऐसी वैश्विक प्रोफाईल बना रहा हूँ जिससे देशी गर्ल ही नहीं विदेशी भी खिंचती चली आयेगीं -यही तो तुम चाहते हो न ? और यह प्रोफाइल आज और कल  के  टीपू सुल्तानो की भी मददगार होगी जो जहाँ भी कुछ अच्छा पाते हैं टीप लाते हैं जैसे एक सम्मनित ब्लॉगर का कुछ दिनों पहले प्रोफाईल चोरी होने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया था .......

तो यह प्रोफाईल अब लगभग पूरा होने को है ..आप भी मेरे मित्र की कुछ मदद करना  तो तहे दिल से स्वागत है आपका ...


सोमवार, 19 जुलाई 2010

पाबला जी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामना दीजिये ..

अभी जैसे कल की ही बात हो जब अपने पाबला जी (कौन नहीं जानता ब्लॉग जगत  के इस सरदार को! ) अपने अवकाश पर्यटन के लिए चल पड़े थे..वे पहले बनारस आने वाले थे मगर कतिपय अपरिहार्य परिस्थितियों में उन्हें अपनी यात्रा का रूट बदलना पड़ा .बीच बीच में लोगों के जन्म दिन और वैवाहिक वर्षगाँठ की घोषणा करने वाला ब्लॉग लगता है अपने तयशुदा /प्री प्रोग्रामिंग के चलते उनकी उपस्थिति का अहसास दिलाता जा रहा था मगर वे अपने पर्यटन टूर पर अग्रसर थे या चलते हुए ही इन पोस्ट को प्रकाशित कर रह थे क्योंकि इनका प्रकाशन तो तिथि बद्ध था ...  सामाजिक सरोकारों की यह प्रतिबद्धता अनुकरणीय है ! 

कल ही उनका फोन आया और उन्होंने मेरे दुःख और क्षोभ की स्थिति में सांत्वना के दो शब्द देने का समय निकाल लिया जबकि खुद अस्पताल में हैं -एक हादसा हो गया उनके साथ -भीषण हादसा ही  कहेगें .वापसी यात्रा में नाडेड के पास उनकी रफ़्तार से भागती वैन में आग लग  गयी ...और ब्रेक ने भी काम करना बंद कर दिया ...चलती वैन से आनंन फानन कूद कर मुसाफिरों ने जांन   बचाई -बेटी तो बाल बाल बच गयी ,खरोंच भी नहीं आई मगर पाबला साहब आंशिक रूप से जाल भी गए और चोटें  भी आयीं ...वें देखते देखते धू  धू कर जली और राख में तब्दील हो गयी .एक फ़िल्मी नजारा साकार हो गया ...
मैं तो सुन कर ही सिहर उठा और उन्हें बार बार आराम करने का अनुग्रह किया ..शीघ्र स्वास्थ्यलाभ की शुभकामनाएं दी ...मगर वे तो मेरे ही दुःख से दुखी थे...ऐसा ही होता है भ्राता भाव !वे वापसी में अब वर्धा प्रवासी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी से भी नहीं मिल पाए इसका उन्हें मलाल था ..

आप भी उन्हें शीघ्र स्वास्थ्यलाभ की शुभकामना देना न भूलें ...यद्यपि उनकी उँगलियों  में जले कटे की चोट है और वे अपना लैपटाप भी नहीं उपयोग में ला पा रहे है आप फोन पर उनसे बात तो कर ही सकते हैं -मगर कृपया लम्बी वार्ता ...आप तो खुद समझदार हैं ...




०९४२५५५३२३४ नंबर है उनका ....

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

एक नारीवादी का प्रतिशोध -अत्याचार की कहानी !

एक नारीवादी के इस कुकर्म ने मेरे होश उड़ा दिए हैं .कल "बिना लाग लपेट के जो कहा जाय वही सच है " नामक ब्लॉग पर 'बिना लाग लपेट' के यह छपा-
मोगाम्बो खुश हुआ 
"ब्लॉग मे साइंस का परचम लहराने वालो कि क़ाबलियत पता नहीं कहा चली गयी जब उनका नाम एक किताब पर से हटा कर किताब को छापा गया । किताब के लिये ग्रांट मिलाने कि शर्त यही थी कि उनका नाम हटा दिया जाये क्युकी उनके दुआरा प्रस्तुत तथ्यों को गलत माना गया । सो नाम हट गया हैं
मुगाम्बो खुश हुआ !!!!
कुल कुल दुर्गति हो रही हैं पर घमंड का आवरण पहन कर वो अपने को विज्ञानं का ज्ञाता बता रहे हैं और बताते रहेगे ।

धिक्कार है धिक्कार है !" (स्नैप शाट सुरक्षित )



पढ़ कर मेरे होश फाख्ता हो गए ...इसलिए कि  एक नारीवादी का प्रतिशोध मानवीय नीचता के इस स्तर तक भी जा सकता है इसकी कल्पना से  ही सिहरन पैदा होती  है ..आईये बताएं आपको कि माजरा क्या है ?

चार्ल्स डार्विन की जन्म द्विशती पर मैंने और एक मेरे मित्र ने एक पुस्तक प्रकाशन की योजना बनायी -पुस्तक में मेरे विगत ३० वर्षीय सतत लेखन के दौरान डार्विन पर लिखे और प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित चुनिन्दा  लेखों का संकलन भी समाविष्ट हुआ -मुझे जानने वाले जानते हैं कि मेरे ऊपर चार्ल्स डार्विन का बहुत प्रभाव है तो उनकी जन्म द्विशती पर मेरी यह एक विनम्र श्रद्धांजलि थी इस महामानव को ....मेरे सह लेखक मित्र ने उस पुस्तक को भारत सरकार के एक प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान को प्रकाशन के लिए सौपा .यहाँ तक तो सब ठीक था ..अब दिक्कत यहाँ शुरू हुई ..प्रकाशन विभाग में ब्लॉग जगत के नारी वाद से अनुप्राणित और यहाँ भी गाहे बगाहे मौजूद एक नारीवादी महिला मेरा नाम देख कर भड़क  गयीं ..उन्होंने कहा कि अरविंद मिश्र ,यह तो नारी विरोधी है यह इस  किताब का सह लेखक कैसे हो सकता है ...मेरे मित्र पर पिछले एक वर्ष से मेरा नाम हटाये जाने का अनुचित दबाव पड़ रहा था ..उन्होंने पिछले दिनों  इसका  जिक्र मुझसे किया ,फिर वे भी चुप्पी मार गए ..कोई गुपचुप समझौता शायद मूर्तरूप लेने लगा था ...और आज इस खबर से तो स्तब्ध ही रह गया हूँ ?

क्या भारतीय नारीवाद इतना प्रतिशोधात्मक और घृणित हो चला है ? चार्ल्स डार्विन पर मेरे अध्ययन, समर्पण को नारीवाद के नाम पर क्या इस तरह किनारे किया जा सकता है .क्या एक सरकारी कार्यालय में कार्य करने वाली मुलाजिम   रंजिशन अपने व्यक्तिगत फैसले को जिस संस्थान में वह काम कर रही है उस पर इस तरह लाद सकती है ? क्या यह भारतीय अकादमीयता के नाम पर कलंक नहीं है ? क्या  मेरी किताब से मेरा ही नाम हटा कर और मुझे धिक्कार धिक्कार   कहने के पीछे का दिमाग पूरी तरह से सामाज विरोधी, विगलित और नैराश्य पूर्ण मानसिकता का नहीं हो चुका  है ? अपने जीवन की व्यक्तिगत हताशा की परिणति  क्या ऐसे कृत्यों में किया जाना घोर घृणित और सर्वथा निंदनीय नहीं है ...?

मैं आज यह प्रकरण भारी मन से  आप सुधी जनों -हिन्दी ब्लॉग संसार के सामने ला रहा हूँ ? कृपा कर बताईये मैं क्या करुँ ? क्या ऐसी बेइंसाफी अनदेखी कर जाऊं ? मेरे लिए लिखना कोई बड़ी धरोहर नहीं है ...यह मेरी आदत में शुमार है ...मगर मेरी ही सामग्री किसी और के नाम से एक षड्यंत्र की तरह छापी गयी है ? क्या यह दंश सहा जा सकता है ? क्या ब्लॉग जगत के कथित और भ्रमित  नारीवाद के नाम पर ऐसा प्रतिशोध और अत्याचार किया जाता रहेगा ? मुझे ब्लॉग जगत की उन समर्पित नारीवादियों से भी जवाब चाहिए जो आन्दोलन में मनसा  वाचा कर्मणा ईमानदार बने रहने का दावा करती आई हैं ?
और अंततः यदि प्रश्नगत  किताब मेरा नाम हटाकर एक षड्यंत्र के तहत प्रकाशित की गयी है जिसकी प्रथम सूचना स्वरुप   उपर्युक्त  ब्लॉग की प्रथम रिपोर्ट भी है तो मुझे माननीय नायालय की शरण लेनी पड़ेगी ...दुष्टों को दंड और न्याय के लिए ...
क्या आपकी अनुमति है ?
(यहाँ महिला का नाम ,मेरे सह लेखक का नाम ,प्रकाशन संस्थान का  नाम सार्वजानिक न करने के पीछे विधिक  कारण हैं ,व्यक्तिगत रूप से आप जान सकते हैं ! )
एक नारीवादी का प्रतिशोध -अत्याचार की कहानी !  

रविवार, 11 जुलाई 2010

बिटिया से बाजी लगा ली है नीदरलैंड्स जीतेगा!

आज का वर्ल्ड फ़ुटबाल कप फाईनल देखने की व्यग्रता बढ रही है ...मैं जल्दी सो जाता हूँ ..मगर आज तो जगना है ..या यह हो सकता है कि अभी तो सो लूं मगर मैच के समय जग जाऊं .मगर कैसे ? अलार्म भी कभी कभी नीद के आगे हार जाता है .अब इसके लिए कुछ तो त्याग करना पड़ेगा ..बेटी प्रियेषा घर आई है छुट्टियों में और फुटबाल में उसकी रूचि देखकर मुझे प्रसन्नता है और इस बात की आश्वस्ति कि उसकी सक्रियता के चलते मैं भी इस रोमांचक मैच का दर्शक बन बैठूंगा!मगर चिंता यह है कि अगर उसने नहीं जगाया तो मैं तो इन अविस्मरणीय क्षणों से वंचित हो जाउंगा! इसलिए एक युक्ति लगाई -मैंने उससे पूछा कि कौन जीतेगा तो उसने झट से जवाब दिया ..स्पेन ! यही तो पॉल बाबा भी कह रहे हैं ...अनवरत वाले दिनेश राय जी भी यही कह रहे हैं ,वर्ड फ़ुटबाल कप के दीवाने गिरिजेश जी से मैं पूछ नहीं पाया ...संगीता जी के पास वर्ल्ड फुटबाल कप का प्रयाप्त गत्यात्मक आकड़ा ही नहीं है ...

अब किसी बड़े लाभ के लिए कुछ तो त्याग करना पड़ता ही है -मैंने नीदरलैंड्स पर ढाई सौ रूपये का दांव  लगा दिया है -इस बाजी को सुनकर बिटिया की आँख में चमक आ  गयी है -उसने यह बाजी सहर्ष स्वीकार कर ली है ...उसे लगता है उसे यह रकम आसानी से हासिल हो जायेगी! वह सीने पर चढ़कर ले भी लेती है ...मैंने ऐसा उसका उत्साह बनाये रखने और खुद को समय पर जगाने के बतौर  पारिश्रमिक देने के लिए किया है .वैसे भी दिल्ली विश्वविद्यालय में जाने के बाद वह निशाचरी हो गयी है .मगर आज तो यही वृत्ति  एक वरदान सी लग रही है  -एक छुपा हुआ वरदान!

एक और कारण है नीदरलैंड्स के फेवर में बाजी लगाने का -मैं यह भी चाहता हूँ अंधविश्वास फैलाने वाले पॉल बाबा की हार हो जाय और विज्ञान और तर्क का कुछ तो भला हो ! यह पूरी दुनिया ही जैसे एक परले दर्जे की बेवकूफी के पीछे पडी हुई है ..पॉल बाबा कहे तो जीत और वे कहें हार तो हार ..हद है भाई!

ठीक है स्पेन की टीम बहुत संयत होकर और समन्वय बनाकर खेल रही है और उसका मनोबल भी ऊँचा है और पॉल बाबा उसे सपोर्ट कर बैठे हैं पर नीदरलैंड्स की हार सुनश्चित ही है यह कैसे कहा जा सकता है .माना कि क्रिकेट में कब क्या हो जाय कुछ नहीं कहा   जा सकता मगर फुटबाल में भी अनिश्चितता की कुछ फीसदी संभावना तो होती ही होगी ....सांख्यिकी का साधारण  सा सिद्घान्त भी हार जीत की  पचास पचास  फीसदी की भवितव्यता की ओर  इशारा तो करता ही है ..
..
मुझे बहुत खुशी होगी अगर नीदरलैंड्स जीत जाता है -केवल इसलिए नहीं कि मैं शर्त जीत जाऊंगा ..बल्कि इसलिए कि पॉल बाबा अपने शीशमहल में दुबक जायेगें और लोगों में अक्ल का प्रादुर्भाव होगा! और अगर स्पेन जीतता है तो मेरा बेड़ा चारो ओर से गर्क समझिये ....क्या आप भी बाजी लगायेगें .मुझसे,  नहीं तो क्या किसी से भी नहीं ? जल्दी कीजिये बहुत कम वक्त बाकी है !

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

एक चैट चयनिका !

इन दिनों लगता है मैं राइटर्स ब्लाक जैसी स्थिति से गुजर रहा हूँ और यह   इसी ब्लॉग जीवन की देन है जो   जुमा जुमा कुल तीन साल की ही तो है -मगर इसी में कई वे गहन अनुभव हो गए जो बीते जीवन में हुए नहीं ..प्रेम, घृणा, प्रतिशोध, कृतज्ञता के अनेक शेड्स दिख गए इस अल्पावधि में ...रह रह कर जब भी उनकी यादें तारी  होती हैं तो लगता है जैसे लिखना विखना सब कुछ बेमानी सा है ...बहरहाल आज कुछ शरारत सी सूझ रही है ...

आज दिन में कुछ विभूतियों से हुए हुए चैट का तनिक नाट्य -रूपांतरित अंश आपसे साझा करना चाहता हूँ ....क्या आप भी ऐसे ही चैट करते हैं या आपके चैट विषय अलग होते हैं (कृपया ध्यान दें अंतर्जाल चूंकि वैश्चिक भौगोलिकता का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इसे केवल भारतीय सांस्कृतिक सोच और संकोच के दायरे में न देखें ..इसमें कुछ अमेरिका वासियों    के भी विचार हैं)..
सबसे पहले मेरी एक परिचिता  ने चैट पर पूछा ..
"brahmand   क्या है ? " 
गलती से मैं समझ बैठा ब्रहमानंद ....
जब मैंने उन्हें इस विषय पर कुछ जानकारी देनी चाही तो वे खीझ गयीं और बाई कहकर चल दीं ....बाद में मुझे अहसास हुआ कि वे ब्रह्माण्ड के बारे में पूछ रही थीं.. मैं मन  मसोस कर ,हाथ मल मल कर रह गया ...लगता है वे नाराज हो गयीं ....लेकिन मुझे लगता है यह ठीक ही हुआ नहीं तो अगर मैं अपनी अल्प समझ से ब्रह्माण्ड शब्द की व्युत्पत्ति समझाता तो शायद वे और नाराज हो गयी होतीं ...

फिर एक मित्र आये ...उन्होंने पूछा ,मतलब  चैट किया कि क्या मुझे अपने सबसे पहले 'किस'  की याद है ..मैंने कहा हाँ मगर वह तो सोते समय लिया गया था ..क्योंकि मैंने बचपन में ही यह पढ़ लिया था कि " स्टोलेन किसेज आर आलवेज स्वीटेस्ट .'' ....और यह लल्लू मार्का सवाल काहें पूंछ रहे हैं सीधे असली बात ही पूछ लीजिये न वह भी बता दूंगा ..जब आप इसी पर उतारू हैं ...वे भी नाराज हो गए और चैट आफ कर गए ...
अब आईये तीसरे चैट पर ,
" डॉ. मिश्रा क्या आपको कभी मिस्टीक अनुभव (रहस्यात्मक अनुभूतियाँ ) हुई हैं .." 
" हाँ कई बार बल्कि सहस्र बार ...अगर आप चरमानंद को मिस्टीक माने तो .." (तब तक मुझे ब्रह्मांनंद की भी सुधि हो आई ..यह दिमाग भी क्या क्या नेटवर्किंग करता रहता है....बहरहाल ..)
" लेकिन वह तो बहुत अल्पावधि का होता है .." 
"आप तो जानते हैं औरतों में यह एक ही शुरुआत में कई बार और लम्बी अवधि का भी हो सकता है -यू नो मल्टिपल टाईप वन ..." 
" हाँ हाँ ..तो ?" 
" मस्तिष्क का वह क्षेत्र जो ऐसी अनुभूतियाँ करता है ......स्त्री पुरुष या योगियों में एक ही है ..." 
" ईंटेरेस्टिंग ..... " 
"कुछ मादक द्रव्यों या मानसिक कसरतों से इस अवधि को पुरुषों में भी प्रोलांग किया जा सकता है ...."
" ग्रेट .." 
" शायद कुछ योगी मस्तिष्क के इसी हिस्से को उद्दीपित करने का कोई फार्मूला जानते हों और शाश्वत आनंद की दशा में चले जाते हों ...और अपने अनुभवों को तरह तरह के शब्द दे देते हों ....अनिर्वचनीय ....ध्यानातीत ....सत चित आनंद ...." 
" यह तो बहुत जोरदार बात है ...कुछ और बताईये न इस मुद्दे पर ...." 
" यह प्राच्य ज्ञान ऐसे ही नहीं मिलता सैम बाबू ..मैं चला .... " 
"प्लीज प्लीज डॉ मिश्रा ....." 
और मैंने चैट आफ कर दिया ! 
ब्रह्माण्ड /ब्रह्मानंद से शुरू हुई बात वही दिन भर अटकी रही ...

यह रही आज की चैट चयनिका!पसंद आई या आप भी सटक लिए ....




 








मंगलवार, 6 जुलाई 2010

शहरी चोले में गवईं मन उर्फ़ सतीश पंचम ....चिट्ठाकार चर्चा! .

सतीश जी से जान  पहचान कोई बहुत पुरानी  तो नहीं मगर अब तो एक अंतरंगता सी हो गयी है ..जब पिछले दिनों वे बनारस आये तो उनके व्यक्ति (त्व ) से भी रूबरू हो गया ,रचनाओं से तो उन्हें पहले से ही जानता था .. मुम्बईया  सतीश 'भैया'  हैं तो वैसे अपने मुलुक के ही मनई ,अपने जार जवार के ,ठेठ जौनपुरी मगर उनका लालन पालन मुम्बई में हुआ है तो ऊपरी तौर से देखने पर सहसा उनके शहराती होने का भरम हो सकता है .मगर तनिक भी उनके करीब होने पर  मन से उनकी  वही गवईं सहजता इम्प्रेस करने लगती है -जबरिया नागरी मिथ्याचारों से दूर हैं अपने सतीश भाई !
 सतीश जी 'देवायन ' ,१६ काटन मिल कालोनी चौकाघाट में तशरीफ़ लाये ...

मैंने कहा न कि उनका मन आज भी गवईं वितानों और बिम्बों में सकून पाता है ...जरा यह आत्म परिचय तो देखिये जिसने समान मनसा आराधना चतुर्वेदी का भी मन  ललचा दिया था  ....
अच्छा लगता है मुझे,
कच्चे आम के टिकोरों से नमक लगाकर खाना,
ककडी-खीरे की नरम बतीया कचर-कचर चबाना।
इलाहाबादी खरबूजे की भीनी-भीनी खुशबू ,
उन पर पडे हरे फांक की ललचाती लकीरें।
अच्छा लगता है मुझे।
आम का पना,
बौराये आम के पेडो से आती अमराई खूशबू के झोंके,
मटर के खेतों से आती छीमीयाही महक ,
अभी-अभी उपलों की आग में से निकले,
चुचके भूने आलूओं को छीलकर
हरी मिर्च और नमक की बुकनी लगाकर खाना,
अच्छा लगता है मुझे
केले को लपेट कर रोटी संग खाना,
या फिर गुड से रोटी चबाना।
भुट्टे पर नमक- नींबू रगड कर,
राह चलते यूँ ही कूचते-चबाना।
अच्छा लगता है मुझे।
 
अब उनके इस परिचय से जैसे मैं किसी लम्बी आत्म विस्मृति से जागा और अपने को देर से पहचान पाया ..अरे मैं भी तो यही हूँ ....तत त्वम् असि ...वही हूँ ...बिल्कुल ...और कितना शुक्रगुजार मैं इस शख्सियत का जिसने मेरे खुद होने का मुझे अहसास दिलाया नहीं तो कबका मैं आज की इस दुनियावी आपाधापी में खो सा गया था ....

सतीश जी की साहित्य में गहरी रूचि है -जो  मानवीयता  का प्रत्यक्ष प्रमाण है ...उनकी साहित्यिक समीक्षायें सफ़ेद घर पर अक्सर आती रहती हैं और मेरी साहित्यिक जमापूजी में भी अभिवृद्धि करती रहती हैं ...यह एक और कारण है कि मैं उनका कृतज्ञ हूँ -सतीश जी की ओर  मेरा ध्यानाकर्षण तब हुआ था जब उन सरीखा एक और मानवीय व्यक्तित्व उनसे मोहमयी नगरी में जा मिला था ...और उस महामिलन का  प्रतिपल विवरण अपने ब्लॉग पृष्ठ पर अंकित कर गया था ...तब से मैंने सतीश जी को सीरियसली लेना शुरू किया और उत्तरोत्तर उनसे  तादात्म्य बनाता ही गया ...लिहाजा वे भी मुझसे मिलने का कार्यक्रम ज्यादा मुल्तवी नहीं कर पाए और एक अल्लसुबह बनारस  आ ही गए ...साथ में आम भी चूसे  जो मेरा एक प्रिय शगल है ....लोग कहते हैं जो मेरे साथ आम खा लेता है वह मेरा और मैं उसका बन के रह जाते हैं ..सुदामा और कृष्ण के बीच का चावल बन जाता है यह आम ....इस ब्लॉग जगत में कितने ही खूबसूरत लोग हैं जिनके साथ मैं आम खाना क्या चूसना पसंद करूंगा! नाम बताना जरूरी है क्या?

इस बार सतीश जी अपने गाँव आये तो बिचारे को बिच्छू ने डंक मार दिया ...जैसे  उनके गवईं बनने में कोर कसर रह गयी हो ...तो यह संस्कार-अनुष्ठान भी पूरा हो गया ...और इस मामले में सतीश जी मुझसे बाजी मार ले गए ...हाय मुझे अभी तक किसी बिच्छू ने क्यों नहीं संस्कारित किया ...मैं तो फिर जन्मना ही गवईं रह गया ...यहाँ सतीश जी से जलन हो हो रही है ....अब वे कर्मणा गवईं हो गए और मैं बपुरा जन्मना ही गवईं बना रहा हूँ ...सतीश जी के शहरी और  गवईं संस्कारों का मिक्सचर कभी कभी उनके लिए असहज स्थितियां ला देता है ..कहते हैं कि 'मजे से ईयर प्लग लगाये गानों के तराने सुनता रहता हूँ और तभी घर आ जाता है और बच्चे देख ना ले इसलिए झटपट कानों से उसे अलग कर छुपा लेता हूँ ..'वाह जैसे बच्चे अपने पापा की करतूतों को जानते न हों!

एक ब्लॉगर के रूप में सतीश जी के  सफ़ेद घर का कंटेंट  ''व्हाईट हाऊस ' की भव्यता (केवल भव्यता ही!)  की  प्रतीति कराता है भले ही उसकी अंतर्कथाओं से दूर हो ,यद्यपि यहाँ भी कुछ कथाएं हैं ....और हम उनका लुत्फ़ उठा चुके हैं ..मसलन उनकी एक कथा समीक्षा में आप शहरी और गवईं रतिलीला का एक मूलभूत फर्क अनुभूत कर सकते हैं ....चूंकि गाँव और शहर का द्वंद्व /अंतर्द्वंद्व उनके मन मस्तिष्क को कुरेदता रहता है सो जाहिर है वह उनके रचना कर्म और अन्तींद्रिय संसार का हिस्सा बनता रहता  है  ..
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आप तो पहले से ही इस संभावनाशील ब्लॉगर से परिचित होंगे  आज मेरे नजरिये से भी इन्हें देख परख लिए  ..जिससे कभी यह न कह सकें कि आपने तो कभी बताया नहीं ...और पहले  परिचित न भी हुए हों तो उनके ओढनियाँ ब्लागिंग की परिभाषा  और इस पारिभाषिक शब्द ने जरूर आपको इनके पास पहुँचाया  होगा !


गुरुवार, 1 जुलाई 2010

"आखिर बिआह शादी क कोई उम्र होत है!"

बुढऊ लगातार बड़बड़ाये जा रहे थे,"आखिर बिआह शादी  क कोई उम्र होत है ,  लड़का जब रुढा जाएगा तब शादी करके का होगा? " लौकी नेनुआ सरीखी तरकारियों का रुढ़ाना तो अक्सर सुनने को मिल जाता है मगर किसी लड़के का रुढाते जाना ?अपने एक परिजन के यहाँ इन दिनों यही कलह मचा हुआ है .दादा जी पोते की जल्दी शादी करने पर तुले हैं और बाप अपनी इस बात पर अडा है कि जब तक बेटा अपने पैर पर पूरी तरह न खडा हो जाय उसकी शादी करना ठीक नहीं है .इस मुद्दे पर मेरे विचार स्थिर नहीं हैं ...समाज में दोनों तरह के उदाहरण हैं ...बहुत से सफल लोगों की अर्ली मैरेज हुई और उन्होंने जीवन में ऊंचा  मुकाम हासिल किया ...मेरे खुद एक साले साहब हैं हाईस्कूल में वियाह दिए गए फिर इंग्लैण्ड गए ,पी एच डी पूरी किये फिर पत्नी को बुलाया और पिछले २५ वर्षों से अमेरिका में हैं ...बहुत लेट व्याह करने वालों में भी सफलता असफलता की कहानियां है ..

तो फिर व्याह की आदर्श उम्र क्या हो ? मुझे लगता है या तो वह बहुत अर्ली यानि २१ वर्ष होते ही हो जाय या फिर निश्चित तौर पर लड़के के सेटल होने पर हो -मझधार  में हम जैसे संसारियों का व्याह करना एक तरह से दम्पत्ति पर अत्याचार है .क्योंकि शादी के ठीक बाद से ही परिवार और समाज का रुख नव दम्पत्ति के प्रति प्रायः  असहयोग का हो जाता है -उन पर यह बोझ बढ़ने लगता है कि वे जल्दी ही अपने दाल रोटी  टिकुली तेल की जिम्मेदारी खुद संभाले -लड़के और लडकी दोनों के बाप किनारा करने लगते हैं ..इस लिहाज से तो लड़के या लडकी दोनों में से कम से कम एक का तो विवाह के समय नौकरी या किसी उद्यम में होना जरूरी है .

कभी कभी यह भी लगता है कि अपने  समाज में व्याह शादी को लेकर इतनी आपा धापी मची ही क्यूं रहती है -बच्चों को अच्छी शिक्षा दीजिये अपनी शादी वे खुद कर लेगें ..आखिर बदले ज़माने में अपने जीवन संगी के चयन का अधिकार अगर खुद लड़के लडकी का हो तो इसमें दोष ही क्या है ? और अगर किसी किसी को मनपसंद जीवन साथी न मिला तो फिर बिना शादी के ही पूरा जीवन बिना समझौतों के जीने का  आनंद क्यों न उठाया जाय ? कितने अकेलों का जीवन /इतिहास भी कम गौरवपूर्ण नहीं रहा है....उन्होंने समाज सेवा की मिसाले कायम की हैं ..इसलिए भी फ़िक्र किस बात की ..एकला  चलो रे  ! 

मगर मुझे एक अंगरेजी का उद्धरण याद आ रहा है कि एक लडकी जितनी जल्दी हो परिणय सूत्र में बंध ले और लड़का जितना वह कर सके इस अवसर को टरकाता रहे ....और यह कहावत भी कि शादी वह गुड है जो न खाए वह तो पछताए ही और जो खा ले वह भी पछताए ..नए फार्मूले सामने आ रहे हैं ..लिव इन रिलेशन के और लिव इन मूमेंट के भी ....
अब मैं आपके विचार सुनने को इच्छुक हूँ !

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