गुरुवार, 30 जुलाई 2009

इस कविता को बहर /बहार में कौन लायेगें ?

गे विषयों पर आधिकारिक लेखनी के लिए जाने माने मेरे मित्र ने यह कविता मुझे भेजी है की इसे बहर में ला दूँ -आख़िर इस ब्लॉग जगत में एक से बढ़ कर एक काव्य शास्त्र महारथियों के होते हुए मैं इस चुनौती को स्वीकार भी करुँ तो क्यों ? वैसे भी कुछ मित्रों को मेरे 'साहित्यिक दोगलेपन' पर एतराज है ! आप कुछ मदद करें प्लीज -

अब यह गे कविता है या उभयलिंगी प्रेम को समर्पित ,इस पर भी मेरी टिप्पणी करना मुनासिब नही हैं - हाँ यह लफडा इसी ब्लॉग जगत से जरूर उपजा है -यह तो तय ही लगता है !
तो कविता का शीर्षक (यह मैंने दिया है ) है -
तुम्हारा प्रेम

आभासी दुनिया में पला पगा तुम्हारा प्रेम
महज आभासी ही है ,
इसमें कहाँ है सामीप्य की ऊष्मा
और सानिध्य का अहसास
यह महज मृग मरीचिका है
बस मरुथल में झरने की खोज
का महज एक निरर्थक प्रयास
जैसे सिर पे आ गए सूरज की
प्रचंड दुपहरी में खुद की छाया
खोजने का एक विकल उपक्रम
छाया मत छूना मन होगा दुःख दूना मन
जैसी शाश्वत सतरों की याद दिलाता
तुम्हारा यह प्रेम केवल एक छलावा है
हकीकत से दूर ,बहुत दूर !!
तुम्हारा प्रेम ............

अब यह कविता है भी या नहीं ? मुझे मेरे मित्र का डर है -मैं तो इसे कविता ही मानता हूँ ! दोस्ती जिंदाबाद ! पर आप भी क्या इसे कविता मानते/मानती हैं / हैं ? सच सच बताईये न ! और इसमें अपेक्षित सुधार भी कीजिये ताकि मित्र का काम पूरा हो !

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

विधायिका का घिनौना चेहरा

यह कौन नहीं जानता की हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विधायिका का स्थान सबसे ऊंचा हैं -बाकी न्यायपालिका और कार्यपालिका उसी की अनुगामिनी भर हैं -मगर इसी विधायिका का एक यह घिनौना चेहरा भी देखिये कि उसी की नुमायन्दगी कर रहे एक विधायक ने किस तरह अपने चेलों चपाटों के साथ एक अपर जिला मजिस्ट्रेट को उनके आफिस में ही घुस कर धुन डाला और आराम से कचहरी परिसर से बाहर निकल गए ! आज बनारस में इस घटना को लेकर बवाल मचा हुआ है -पूरी खबर पढ़ ले !

अब उत्तर प्रदेश भी कुछ वर्षों पहले के बिहार के समान बनता जा रहा है -क्या इन जन प्रतिनिधियों के आचरण से लगता है कि हमारा महान देश सचमुच लोकतंत्र के उदात्त गुणों को आत्मसात करने लायक हो गया है ? अब्दुल समद अंसारी जिन पर यह अत्यंत कुत्सित कृत्य करने का आरोप है ,समाजवादी पार्टी के विधायक हैं ! वे जोर जबरदस्ती अपनी हनक पर एक गलत काम अपर जिला मजिस्ट्रेट (प्रोटोकाल ) से कराना चाहते थे मगर उनके मना करने पर उनको पीट दिया -उनके चेले भी साथ थे जिनमे बनारस के एक पार्षद मनोज राय धूप्चंदी भी शामिल थे ! लोकतंत्र और विधायिका को शर्मसार करती इस घटना से बनारस की जनता ,अधिकारी .कर्मचारी सब स्तब्ध है ! सभी में असुरक्षा और अपमानित होने की भावना घर कर गयी है -जब एक मजिस्ट्रेट यहाँ सुरक्षित नहीं है तो आम आदमी की नियति का आप अंदाजा लगा सकते हैं ? अभी भी मुलजिम बेखौफ घूम रहा है -ऍफ़ आयी आर खुद अपर जिला मजिस्ट्रेट आर के सिंह ने लिखायी और मीडिया के सामने अपनी आपबीती बताते हुए फफक फफक के रो पड़े !

यह पोस्ट आपसे इस लिए बाँट रहा हूँ की मैं आज खुद भी इस घटना से क्षुब्ध हूँ और विधायिका के इस घिनौने चेहरे से डरा हुआ भी ! आप की क्या प्रतिक्रिया है ?

सोमवार, 27 जुलाई 2009

वे अविस्मरणीय लम्हे -खग्रास सूर्यग्रहण ,अस्सी घाट बनारस

नहीं ,सूर्यग्रहण पर एक और लम्बी पोस्ट नही -बस और चित्रों को देखिये -और ख़ुद समझ लीजे कि इन पर कुछ भी शब्दों में कह पाना कितना मुश्किल है -अनिर्वचनीय !


अस्सी घाट प्रातः ,२२ जुलाई ०९ ,आगत की अधीर प्रतीक्षा


शुरू हुआ सूर्योदय



और बादलों की लुकाछिपी भी


लो शुरू हो गया ग्रहण भी



और यह खग्रास ग्रहण -छुप गये सूर्य





और तुंरत बाद यह स्वर्ण जटित हीरक अंगूठी -डायमंड रिंग


डायमंड रिंग को देखता ग्रुप -मुझसे भी व्यूइंग ग्लास छीन कर


ग्रहण के समय उमडा आस्था का सैलाब


और यह रही हमारी छोटी सी ग्रहण प्रेक्षण टीम
बाएँ से अभिषेक ,संध्या मिश्रा ,मैं ,ज़ाकिर हुसेन कालेज डी यू की
प्रोफ .मधु प्रसाद ,कौस्तुभ मिश्रा ,नीचे प्रियेषा मिश्रा ,इजराईल की नोआ
और कैलिफोर्निया की सांद्रा

सभी फोटो कनिष्क प्रसाद के हैं जो दिल्ली से फ्लाईट से केवल सूर्यग्रहण कवर करने माँ के साथ आए थे -अपने को अमेच्योर फोटोग्राफर कहते हैं मगर हुनर में किसी प्रोफेसनल को भी मात करते हैं !





शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

प्लीज ,कोई मुझे तफसील से समझायेगा कि यह पुरूष मानसिकता क्या होती है ?

अपनी एक उद्विग्नता आपसे बांटने की ध्रिष्टता कर रहा हूँ -मेरे एक ब्लॉगर मित्र ने मुझ पर आरोप लगाये हैं कि मैं पुरूष मानसिकता से ग्रस्त हूँ ! मेरी हताशा भरी पीडा यह है कि पुरूष मानसिकता की अवधारणा (यह जो कुछ भी है ) मुझे पूरी तरह बुद्धिगम्य नही हो पाती -क्या सचमुच ऐसी कोई मानसिकता होती भी है या फिर यह कुछ नारी वादी सक्रियकों का मानसिक फितूर है /जुमला है /फिकरा है /फ्रेजहै -बात का बतडंग है ? कोई कृपा कर मुझे बताएगा कि आख़िर यह पुरूष मानसिकता भला है क्या ? और फिर यदि किसी ऐसी मानसिकता का वजूद है भी तो क्या कोई नारी मानसिकता भी होती है -या फिर पुरुषों की यह उदात्तता है कि उन्होंने ऐसा कोई जुमला कभी बुलंद नही किया !

मैंने अपने मित्र से हताश परास्त होकर अंततः कहा कि मैं पुरूष हूँ तो फिर मानसिकता भी तो पुरूष की ही रखूंगा अब नारी मानसिकता भी कैसे रख सकता हूँ -मुझे जो मैं हूँ उसके विपरीत कुछ बनना कभी आया ही नही ! सच कहता हूँ यह जुमला मैंने कर्कश /कर्कशा आवाजों में बस इसी हिन्दी ब्लागजगत में ही सुना और अब तो सुन सुन कर कान पक गए हैं ! इस एक जुमले के चलते हिन्दी ब्लॉग परिवेश कुछ कम असहिष्णु नही हुआ -वैमनस्य ,तिक्तता तारी होती गयी है यहाँ ?!

मैं बार बार और अब तो भोंपू लगा कर बोलता हूँ कि नर नारी में कोई इक दूजे से बढ़ चढ़ कर नही हैं -अपने अपने संदर्भों में दोनों ही बढ़चढ़ कर हैं -मगर समाज में उनके रोल रिवर्जल को लेकर मेरी कुछ गहरी आशंकाएँ ,(अन्तिम मत नही ) जरूर हैं .पहनावे को लेकर भी कोई वर्जना नही पर उनके जैवीय संदर्भों को जरूर देखा जाना चाहिए -तो यह सोच क्या पुरूष मानसिकता का परिचायक है ? क्या पुरूष मानसिकता का फतवा मात्र कुछ अतिरेकी ,आपवादिक या रुग्ण मनोवृत्ति की ही देन तो नही है ? जो पूरे समाज में एक विकृत सोच के प्रसार के लिए उद्यत है ? क्या हम मिल जुल कर एक ऐसे समाज को नही मूर्त कर सकते जिसकी नींव परस्पर आदर भाव,एक दूसरे के प्रति सम्मान और सहिष्णु भाव पर आधृत हो ?

मैं विज्ञान के परिवेश में पला बढ़ा हूँ ,जो चीजें मुझे समझ में नही आतीं सीधे स्वीकार करने में मुझे कभी कोई हिचक नही होती ! भले ही लोग मुझे पिछड़ा ,गैर संवेदनशील या कुछ और भी समझें -मुझे पाखण्ड का आवरण कभी नही सुहाया ! तो मित्रो बहुत खुले मन से और पूरी विनम्रता से मैं आज यह सवाल आपके सामने रख रहा हूँ -मुझे समझाएं कि यह पुरूष मानसिकता क्या है ? एक विग्यानसेवी होने के नाते मैं इस गुत्थी का एक वस्तुनिष्ठ विश्लेषण चाहता हूँ -बोले तो नीर क्षीर विवेचन ताकि मैं उस विश्लेषण के आईने में यह परख सकूं कि क्या मुझ पर जो पुरूष मानसिकता से ग्रस्त होने की तोहमत लगाई जा रही है वह कहाँ तक उचित है ?
क्या आप मेरे लिए अपना कुछ समय जाया करेगें ?

बुधवार, 15 जुलाई 2009

स्वीट कार्न या बेबी कार्न -आपको चाहिए क्या ?

यह स्वीट कार्न है
जब यह सवाल दुकानदार ने पूंछा तो मैं अचकचा गया ! आख़िर बेटी ने मंगवाया क्या था ? हाँ याद आया स्वीट कार्न ! स्वीट कार्न चाहिए मैंने कहा और उसने मुझे डीप फ्रीज़र से निकाल कर एक पालीथीन पकडा दिया -बीस रूपये ! और हाँ इसे फ्रीज़र में रखियेगा यह हिदायत भी दे डाली ! अच्छा जरा बेबी कार्न भी दिखाओ ! उसने टिन में पैक्ड बेबी कार्न दिया और दाम भी बता दिया ६५ रूपये ! तो बेटी ने किफायती चीज ही मंगाई -उसे मन ही मन सराहा !

इन दोनों उत्पादों का मैं भी किसी दूसरे भोजन प्रेमी (भुखड़ नही ) प्रेमी जैसा ही मुरीद हूँ ! घर के भुट्टों का तो खैर अपना अलग ही मजा है और मेरे गृह जनपद के (जौनपुरी) भुट्टे की तो कोई सानी ही नही है मगर अब तेजी से हो रहे वैश्वीकरण के दौर में कई अन्तर महाद्वीपीय व्यंजन अब आपकी थाली को सुशोभित करें तो इसे माँ अन्नपूर्णा की कृपा ही समझिये ! मुझे स्वीट कार्न से बनी हाट एन जूसी बेहद पसंद है -बच्चों और उनकी माँ को भी .क्या लजीज व्यंजन है -साफ़ सुथरा और सात्विक ! यम् यम् भी ! यह मक्के की वह प्रजाति है जो बेहद मुलायम है औरइसके दाने के भीतर का सुगर देशी मक्कों की भाति स्टार्च में नही बदलता -इसे स्टीम कुक करके मसालों ,नमक के साथ खाया जाता है -नए शापिंग मालों मेंयह सहज ही बना बनाया उपलब्ध है .स्वीट कार्न सूप के तो कहने ही क्या !


और यह बेबी कार्न

अब बेबी कार्न -यह एक ख़ास किस्म है मक्के की -बल्कि बोनसाई जैसी किस्म जिसमें दाने आने के पहले ही डंठल तोड़ लिया जाता है और तरह तरह व्यंजनों -या सोलो बेबी कार्न का ही बेःद लजीज व्यंजन आपकी रसना अको तृप्त कर सकता है .मुझे इसकी पकौडियां ,पनीर के साथ मिक्स कर पसंद है और मिक्स्ड वेजिटेबल के रूप में इसे मशरूम और मंचूरियन के साथ भी लिया जाता है -सभी प्रेपरेशन बेजोड़ हैं . न खाएं हों तो कभी ट्राई कीजिये न! हाँ पहले इन व्यंजनों को किसी अच्छे रेस्तरां में ट्राई कीजिये !

बेबी कार्न के बारे में यहाँ और स्वीट कार्न के बारे में यहाँ विस्तार से पढ़ सकते हैं -लीजिये बेटी का बुलावा आ भी गया- स्वीट कार्न आज नाश्ते पर तैयार है ! चलता हूँ -क्या करें ,कंट्रोल ही नही होता !

सोमवार, 13 जुलाई 2009

जब बैंड बज गया ब्राड बैंड का ......

आज पूरे तीन दिन बाद नेट नसीब हो पाया है -शुक्रवार को जब सुबह अपनी निश्चित हो चुकी दिनचर्या के मुताबिक सुबह ६.३० बजे ब्लॉग कर्म की ओर प्रवृत्त हुआ तो पाया कि ब्राडबैंड सेवा अवरुद्ध है -उलझन शुरू हो गयी ! हर घंटे पर चेक करता रहा मगर स्थति वही रही -और फिर शुरू हो गयी मेरी विभागीय व्यस्तता ! देर शाम को लौटा और पाया नेट कनेक्शन अभी भी ठीक नही हुआ है ! मन अनमना सा हो गया ! यह जानने की उत्कंठा धरी की धरी रह गयी कि ब्लॉग जगत में आज क्या लिखा पढ़ा गया -लोगों ,लुगाईयों ने क्या कारनामें किए !बाईस्कोप की तरह चेहरे जेहन में आते जाते रहे . धर्म क्षेत्रे कुरु क्षेत्रे समवेता युयुत्सव .......किम कुर्वतः संजय ? मेरा और आपका संजय तो अब यही ब्राड बैंड ही तो है न ,अब जब यही दगा दे गया तो किससे ब्लॉग क्षेत्रे की जानकारी ली जाय ?

जब व्यग्रता ज्यादा बढ़ी तो ब्राड बैंड सुविधा प्रदाता यानि बी एस एन एल के स्थानीय कार्यालय के सम्बन्धित सेक्शन को फोनियाया - एक भोली भाली महिला आवाज में जवाब आया," सर ब्राड बैंड सेवा में कुछ गडबडी है लोग ठीक कर रहे हैं "
"कब तक ठीक हो जाएगा मैडम ?"
"कह नही सकती सर "
"एस डी ओ साहब से बात कराईये "
"सर आप जानते हैं न कि हमारे यहाँ शनिवार और इतवार दोनों दिन की छुटी रहती है !"
मैं एक भावी आशंका से काँप गया मैं ...
"तो क्या मतलब एस डी ओ इस सेवा को बहाल करने में नही लगे हैं ?"
"नही सर उनकी तो आज छुट्टी है न ..."
"तब ?"
"वे तो अब सोमवार को ही आयेंगें "
मैं जान गया कि अब यह सेवा सोमवार को ही बहाल हो पायेगी ! मैं भी विभागीय काम से लखनऊ निकल गया -केन्द्रीय कर्मी छुट्टी मना रहे हैं और इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार प्रत्येक माह के दूसरे रविवार को लखनऊ में प्रदेश के सारे अधिकारियों की हाई प्रोफाईल बैठकें करा रही है .बहरहाल आज घर पहुँचा तो धन्यभाग- ब्राड बैंड सेवा बहाल हो गयी है और मैं आपसे मुखातिब हो पाया हूँ -लगता है एस डी ओ साहब के कान पर जू रेंग गयी और वे सोमवार की बजाय अपनी छुट्टी पहले ही खत्म कर काम पर आ जुटे ! बी एस एन एल का क्या भरोसा जो बनारस जैसे अंतर्राष्ट्रीय मान चित्र पर उभरे शहर में ब्राड बैंड सेवा को ठीक करने में पूरे तीन दिन ले बीता ! अंतर्जाल और मेरे सम्बन्धों में इतना बड़ा अन्तराल अभी तक नही आया था -मैं उस दहशतनाक मंजर से सिहर उठा हूँ जब कहीं कुछ ऐसी अनहोनी न हो जाय कि इस आभासी दुनिया का वजूद ही न मिट जाय !
फिर हम इनके जरिये बने कितने ही मधुर रिश्तों -नातों को कैसे निबाह पायेगें ? ब्लॉग संस्कृति का क्या होगा ? क्या तब साहित्यकार ठठा के हँस नही पड़ेगे कि लो गया ब्लॉग साहित्य , -ब्लॉग साहित्य ,हुंह माय फ़ुट !

यह अंतर्जाल /ब्लॉग व्यवधान क्या क्या सोचने पर विवश नही कर गया ! मैंने सोचा क्यूं न इसे आपसे बाँट मन हल्का कर लूँ और यह निवेदन भी कर लूँ कि मुझे पिछ्ला बैकलाग देखने -पूरा करने में समय लग सकता है ! तब यदि इस दौरान आपने कुछ विशेष रचा हो और आप चाहते हों कि मैं उसे पढने का सौभाग्य प्राप्त करुँ तो मुझे मेरे मेल पर सूचित कर दें --मुझे आपके ई मेल का इंतज़ार रहेगा ! मेरा ई मेल आप जानते ही हैं -न भी जानते हों तो यह रहा -drarvind3@gmail.com

बुधवार, 8 जुलाई 2009

चिट्ठाकार चर्चा में मिलिए जीशान हैदर जैदी जी से ....

एक जेनुईन निष्ठावान रचनाकर्मी ,शीर्षस्थ विज्ञान कथाकार मगर उतने ही अन्तर्मुखी ,विनम्र ,विनयशील व्यक्तित्व के धनी जीशान हैदर जैदी से आपको मिलवाते हुए मुझे एक सत्कर्म करने का सा बोध हो रहा है ! जीशान से मेरे कोई डेढ़ दशक से ज्यादा के ही सम्बन्ध हैं -रूचि का कामन बिन्दु साईंस फिक्शन है ! मूलतः हम वास्तविक जगत से ही जुड़े हुए हैं और आज आभासी जगत में भी हमारा स्नेह सम्बन्ध बना हुआ है ! जीशान सच्चे अर्थों में एक कहानीकार हैं ,रचनाकार हैं और इसे उन्होंने एक बार नहीं अनेक बार साबित किया है -वे मेरे मित्रों में एकमात्र अकेले हैं जो चुनौती या शर्त पर कहानी लिख कर दे देते हैं -मगर क्या मजाल उसके शिल्प या तकनीक में कोई कमी आ जाय ! ऐसा एक सिद्धहस्त लेखक ही कर सकता है -जो जीशान एक सौ एक फीसदी हैं !

पूरा संभव है आप उन्हें न जानते हों मगर यह केवल इसलिए है कि जीशान को आत्मप्रचार कतई पसंद नही है -लो प्रोफाईल हैं ! मगर इन पर आप पूरा भरोसा कर सकते हैं अगर आप इन्हे अपना मित्र बनाने का फैसला करते हैं -मैंने हमेशा इन्हे मित्रता में खरा पाया है भले ही मेरा या इनका भला या दुर्दिन रहा हो ! मैंने जीशान के साथ सम्मिलित साईंस फिक्शन लिखने के कुछ प्रयोग किए और वे पूरी तरह सफल रहे -यही नेट पर ही एक पार्ट वे लिखते थे एक मैं और इस तरह एक जोरदार काम पूरा हुआ -राष्ट्रीय पत्रिका विज्ञान प्रगति ने उसे ससम्मान छापा -इस अनूठे संयुक्त प्रयास को आप यहाँ पढ़ सकते हैं !

जीशान अपनी कहानियों में तिलिस्म का एक अद्भुत वातावरण सृजित करते हैं और मेरी जान पहचान उनकी इस विशिष्ट लेखन शैली के कारण ही हुयी थी ! जीवन के अभी यही कोई तीसेक शरद बसंत देख लेने वाले जीशान अभी युवा है -गणितीय सांख्यिकी में एम् एस सी हैं .कई पुस्तकों के प्रणेता जिसमे प्रोफेसर मंकी इनकी ज्यादा जानी जाने वाली विज्ञान कथा कृति है !

सद्य प्रकाशित कृतियों में एक कम्पयूटर की मौत भी है -कई टेली फिल्मे भी इनकी लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारित हो चुकी हैं -हिन्दी ब्लॉग जगत का यह कर्मयोगी अपने काम में जुटा रहता है -भले ही कोई नोटिस ले या न ले ! आत्मप्रशंसा या लोक प्रशंसा से पूरी तरह अप्रभावित जीशान हिन्दी साईंस फिक्शन नामक अपने ब्लॉग पर साधना रत हैं -अंततः लोग अपने काम से ही जाने जाते हैं !
जीशान मुझे आपकी दोस्ती पर फख्र है ! मित्रों, क्या आप जीशान से नही मिलना चाहेगें ?

सोमवार, 6 जुलाई 2009

न्यूयार्क :दुनिया में अमन चैन के लिए मुसलमानों से आग्रह और उन्हें आगाह करता बालीवुड !


कल न्यूयार्क फिल्म देखी ! ९/११ के बाद अमेरिका में ऍफ़ बी आई द्वारा महज शक-सुबहे पर हजारों मुसलामानों के साथ जोर जबरदस्ती,अमानवीय प्रताड़नाओं की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म यद्यपि टाइम्स आफ इंडिया की क्रिटिक मार्किंग में चार स्टार और व्यूअर मार्किंग में भी चार स्टार हासिल कर चुकी है -मगर कोई ख़ास प्रभावित नही करती !

हाँ मुसलमानों के जमीर को जरूर इस फिल्म के जरिये झकझोरा गया है जब ऍफ़ बी आईका एक शीर्ष अधिकारी जो ख़ुद मुसलमान है चेतावनी देता है कि सारे दुनिया में अब यह बात मुसलामानों को साबित करनी होगी कि कुरान और इस्लाम में दहशतगर्दी के लिए कोई जगह नही है और मुसलमान भी एक अमन चैन पसंद कौम है ! यह बात किसी और को नहीं ख़ुद मुसलामानों को आगे बढ बढ़ कर साबित करनी होगी -अपनी नजीर देकर उसने कहा कि अमेरिका में मुसलमानों के प्रति यह ट्रस्ट आज भी कायम है और तभी उसे ही एक मुसलमान होने के बाद भी इतना ऊंचा ओहदा दिया गया है ! ( अब कौन कहे कि अमेरिका की यह नीति तो देखो कि लोहे को लोहे से काट रहा है ).

कई बार तो मुझे लगा कि आखिर अमरीकी पृष्ठभूमि और केवल मुसलामानों को संबोधित इस फिल्म का मुझ जैसे एक आम हिन्दू से क्या लेना देना हो सकता है और यह फिल्म मेरे किस काम आयेगी पर वहीं इस सोच से तत्काल राहत मिल गयी कि अब हिन्दी ब्लागजगत का आयाम इतना विस्तारित हो चला है कि वहां के लिए ,मेरे ब्लॉग के लिए एक पोस्ट का फायदा तो यह फिल्म मुझे अता कर ही देगी !और कुछ बेहतरीन टिप्पणियों का तोहफा भी !

मुसलामानों को निश्चित ही यह फिल्म देखनी चाहिए -प्रबल संस्तुति ! ख़ास कर मुस्लिम युवाओं को ताकि वे अपनी कौम के प्रति पूरी दुनिया में फैल रही गलतफहमी को समझ सकें और तदनुसार आगे बढ़ कर एक शांतिप्रिय दुनिया को बनाने सवारने में अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकें !

रही अभिनय की बात तो पहले ही कह दूँ कैटरीना कैफ अपने निस्तेज हो चले सौन्दर्य से पूरी तरह निराश ही करती हैं -निर्देशक लाख कोशिशों के बावजूद भी उनसे एकाध दृश्यों (निश्चित ही असंख्य रीटेक के बाद ) में ही थोड़ा अभिनय करा पाने में सफल हो सका है .नए चेहरे के रूप में नील नितिन मुकेश जमे हैं ! इरफान खान तो खैर मजे हुए अदाकार है ही -जान अब्राहम भी अपने माको इमेज से एक ख़ास वर्ग को आकर्षित करगें ही ,अभिनय की भी जी तोड़ कोशिश इन्होने की है -एक दीगर कारण से भी चर्चा में हैं ! संभी पुरूष पात्र मुस्लिम दिखाए गए हैं !

सिफारिश
आप चाहें तो देख सकते हैं .

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

आईये आपको मिलाते हैं गाँव की नई नवेली आशा से !

रूमानी होने की जरूरत नहीं ,इस आशा से मिलकर आपकी आँखें चार नही बल्कि चौकन्नी हो जायेंगीं ! क्या है कि इन दिनों नौकरी के चक्कर में गाँव गाँव की धूल फांकनी पड़ रही है -तो ऐसे ही एक दिन आशा से मुलाकात हो गयी ! यहाँ जो आशा हैं वे भारत वर्ष के हर गाँव में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के बदौलत नियुक्त Accredited Social Health Activist (ASHA ) हैं ,हिन्दी में बोले तो मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्री -मगर जिस आशा से मैं मिला वे मुझे ठीक से समझा नहीं सकीं कि उनके क्या काम हैं और किस तरह वे ग्रामीणों की सेवा कर रही हैं .लिहाजा मैंने यह जानकारी निकट के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक से प्राप्त की .आप भी आशा के कार्य दायित्वों को देखें और यह भी देखें कि सरकार वास्तव में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कितना कुछ कर रही है मगर खामी तो हमारे सिस्टम में है ।
आशा इन कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं जिसके लिए उन्हें अच्छा खासा मानदेय मिलता है -
१-संस्थागत प्रसव -६०० रूपये प्रति प्रसव (मानदेय )
२-नसबंदी पुरूष -२०० ,महिला १५०रूपये (अरे यह जेंडर डिफ़रेंस क्यों ?)
३-सम्पूर्ण टीकाकरण प्रत्येक केस रूपये ५०
४-स्तनपान को सुनिश्चित करना -तदैव
५-टीकाकरण के लिए उत्प्रेरण प्रति केस रूपये १५० एक दिन में अधिकतम १२ मामले
६-टी बी उपचार प्रति रोगी -६०० रू.
७-कोढ़ उपचार पार्टी रोगी -५०० रू।
८-जन्म पंजीकरण प्रति केस रूपये पाँच
९-मृत्य पंजीकरण तदैव
१०-गाँव में स्वास्थ्य बैठक -आशा मीटिंग -प्रत्येक १०० ,हर मांह दो
११-मोतियाबिंद आपरेशन -२०० रूपये प्रति केस
१२-गंभीर रोगी को पी एच सी तक परिवहन -२५०
१३-बच्चों में आँख के दोष की जांच प्रतेक केस २५० रू.
१४-सी सी एस पी चेक अप -बच्चे के उत्तरजीविता की पूरी जांच -१०० प्रत्येक बच्चा
१५-सर्वे रजिस्टर का रख रखाव -एक वर्ष में एकमुश्त रूपये ५००
१६-पल्स पोलियो ७५ रूपये प्रत्येक
इसके अलावा ग्राम्य स्वास्थ्य से जुड़े और भी विषय और जिम्मेदारी भी आशा के जिम्मेहै ! फिर गाँव में भला निरोगी कौन रहेगा ?
चलिए हम भी अब नौकरी पूरी होते ही गाँव का रुख करते हैं ,जान है तो जहानहै !
आप भी जब गाँव जाये तो पता लगा कर आशा से मिले जरूर !

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